पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के कमांडर क़ाई फबाओ ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 100वीं वर्षगांठ के आयोजन के अवसर पर कहा, ‘मैं अपनी एक इंच जमीन गंवाने के बजाय अपना जीवन न्योछावर करना पसंद करूंगा.’ चीनी दावों की मानें तो फबाओ जून 2020 में लद्दाख में भारतीय सेना के साथ हुए गलवान संघर्ष में बचे पीएलए सैनिकों में से एक हैं.
हालांकि ये राजनीतिक आयोजन था लेकिन सीमाओं की रक्षा के विषय पर जोर देकर इसे एक नया अर्थ दिया गया. केंद्रीय सैन्य आयोग के राजनीतिक कार्य विभाग ने ‘नए युग में देश की रक्षा और सरहदों की निगहबानी करने वाले वीरों के कार्यों’ पर एक विशेष सत्र का आयोजन किया.
कार्यक्रम में ‘बिहाइंड अस इज द मदरलैंड ‘ नामक डॉक्यूमेंट्री दिखायी गयी. इसे फरवरी 2021 में तब रिलीज किया गया जब चीन ने अंततः गलवान संघर्ष में चीनी जनहानि का जिक्र करते हुए चार पीएलए सैनिकों के मारे जाने की बात स्वीकार की थी. उल्लेखनीय है कि भारतीय सेना ने उस संघर्ष में अपने 20 सैनिकों की मौत को स्वीकार किया था. तब विशेषज्ञों ने चीनी मृतकों की संख्या पर सवाल उठाते हुए मृतकों की संख्या अधिक होने का संकेत दिया था.
उपरोक्त आयोजन का मुख्य आकर्षण क़ाई फबाओ था, जिसे ‘नायक’ के रूप में सम्मानित किया गया. ट्विटर जैसे चीनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वीइबो पर हैशटैग ‘सीमा रक्षकों के देश के प्रति समर्पण के बारे में बात करते चीफ क़ाई फबाओ’ ट्रेंड हुआ. इस हैशटैग वाले मैसेज 4.14 मिलियन बार देखे गए. चीनी सोशल मीडिया पर इस तथ्य को बार-बार दोहराया गया कि संघर्ष में मारे गए चारों सैनिक ‘युवा’ थे.
मारे गए चार सैनिकों और फबाओ को ‘नायकों का दस्ता’ करार दिया गया है. युवा दिवस के अवसर पर कम्युनिस्ट यूथ लीग की केंद्रीय समिति और ऑल चाइना यूथ फेडरेशन ने ‘युवाओं के लिए चतुर्थ मई का पदक’ देकर सम्मानित किया. वार्षिक युवा दिवस 1919 के चतुर्थ मई आंदोलन की याद में मनाया जाता है.
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मीडिया पर नज़र
चीनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर गलवान संघर्ष की खूब चर्चा हुई है. इस कारण चीनी सेना ने भी चर्चा में कूदकर आम धारणा को बदलने का, विशेष रूप से सरकारी मीडिया में प्रस्तुत कथानक पर सवाल उठाने वाली आलोचनाओं को बेअसर करने का प्रयास किया.
चीन में सैन्य ब्लॉगरों द्वारा संचालित एक विशेष वीइबो समूह में, जिसे मैंने देखा है, वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर होने वाली तमाम नवीनतम घटनाओं को साझा किया जाता है. इस समूह में भारतीय मीडिया की रिपोर्टों का विश्लेषण भी किया जाता है. सैन्य ब्लॉगर– जिनमें से कुछेक संभवतः पीएलए से संबद्ध हैं- वीचैट, वीइबो और ट्विटर पर अपने संदेशों को प्रसारित करते हैं. ऐसा ही एक सोशल मीडिया अभियान भारत सरकार और भारतीय सेना द्वारा भी चलाया गया था. लद्दाख में सैन्य गतिरोध की चरमस्थिति के दौरान भारत और चीन दोनों के लिए ही आम धारणा का प्रबंधन महत्वपूर्ण हो गया था.
11 जून 2021 को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) ने ‘सैन्य कर्मियों की स्थिति, अधिकारों और हितों के संरक्षण पर कानून’ नामक एक नया कानून पारित किया है.
नए एनपीसी कानून के अनुच्छेद 32 में कहा गया है, ‘कोई भी संगठन या व्यक्ति किसी भी तरह से किसी सैनिक पर लांछन लगाने या उसकी गरिमा को कम करने का, किसी सैनिक की प्रतिष्ठा को कम करने या उसे बदनाम करने का, या जानबूझकर किसी सैनिक के सम्मान के प्रतीक को नुकसान पहुंचाने या नापाक करने का काम नहीं कर सकता है.’
इस कानून के अनुच्छेद 65 में कहा गया है कि यदि कोई ‘जनसंचार माध्यमों में या किसी भी तरह से किसी सैनिक का अपमान करता है या उसकी प्रतिष्ठा पर चोट करता है… तो उसे सार्वजनिक सुरक्षा, संस्कृति एवं पर्यटन, प्रेस एवं प्रकाशन, फिल्म, रेडियो एवं टेलीविजन’ या किसी अन्य संबंधित विभाग द्वारा उसमें सुधार करने के आदेश दिए जाएंगे.
नया कानून में सैनिकों के वीरतापूर्ण कार्यों को प्रचारित करने की भी बात है.
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निरंतर जारी प्रयास
चीन ने 2018 में भी वीरों और शहीदों की प्रतिष्ठा और सम्मान की रक्षा के लिए एक कानून लागू किया था. वह कानून ‘हीरो लॉ’ के रूप में चर्चित हुआ. चीन के कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने गलवान में जून 2020 की झड़प के सरकारी ब्यौरे पर सवाल उठाने वाले ब्लॉगरों और सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं को लक्षित करने के लिए ‘हीरो लॉ’ का इस्तेमाल किया है.
किउ ज़िमिंग नामक एक 38 वर्षीय ब्लॉगर को 2018 के कानून के तहत ‘नायकों और शहीदों की निंदा’ करने का दोषी ठहराकर जेल में डाल दिया गया. किउ, जिसके वीइबो पर 2.5 मिलियन से अधिक फॉलोअर हैं, ने लिखा था कि ‘सभी चार सैनिकों ने एक मृत कर्नल को बचाने के प्रयास में जान गंवाई. बचाव दल के सारे सदस्यों का मारा जाना इस बात का स्पष्ट सबूत है कि बचाव प्रयास विफल रहा, इसलिए और भी लोग मारे गए होंगे.’ चीन ने सरकारी कथानक पर सवाल उठाने के लिए सात व्यक्तियों को दंडित किया है या उनकी जांच की है, जिनमें चीन के बाहर रह रहा एक नागरिक शामिल है जो कि अमेरिका का स्थायी निवासी है.
लेकिन ये सवाल अब भी अनुत्तरित है कि सीमा पर गतिरोध के लिए चीन किस बात से प्रेरित हुआ था. शायद इसका जवाब गतिरोध से पहले के चीनी कृत्यों में छुपा है.
सरकार समर्थित ‘तिब्बत डेली’ द्वारा प्रकाशित 2019 के एक लेख में हमें पूर्वी लद्दाख से सटे तिब्बत के न्गारी क्षेत्र (अली क्षेत्र) में चीन के कार्यों के बारे में कुछ जानकारी मिलती है. लेख का शीर्षक है- सीमा पर विकास कार्यों में ‘बुनियाद’ को मजबूत करने और ‘आत्मा’ डालने के लिए अली क्षेत्र में पार्टी का विशेष निर्माण कार्य. रिपोर्ट को बाद में ‘पार्टी निर्माण’ को समर्पित चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की वेबसाइट पर भी प्रकाशित किया गया था.
लेख में कहा गया, ‘हम सैन्य और असैनिक दोनों ही पक्षों के मानव संसाधनों और संपदा को एकीकृत करेंगे, सीमा निरीक्षण, संघर्ष और विवाद मध्यस्थता हेतु 25 चौकियां बनाएंगे और मुख्य यातायात मार्गों, पहाड़ी दर्रों और प्रमुख क्षेत्रों के करीब सुविधा सेवा केंद्र स्थापित करेंगे. साथ ही, सूचना अधिकारियों, सीमा रक्षकों और संयुक्त सुरक्षा अधिकारियों की एक सैन्य-असैन्य संयुक्त टीम का गठन करेंगे, जिसमें मुख्य भूमिका सेना की होगी जबकि नागरिक सहायक भूमिका में होंगे.’
इसी विषय पर एक अन्य लेख 21 मई 2021 को तिब्बत डेली (या चाइना तिब्बत न्यूज नेटवर्क) द्वारा प्रकाशित किया गया. इस लेख को तिब्बत क्षेत्रीय सरकार की वेबसाइट पर भी छापा गया. ‘सीमा पार्टी के बैनरों से पटी है और कम्युनिस्ट पार्टी का इतिहास गौरवशाली है’ शीर्षक वाले इस लेख में कहा गया, ‘सीमा को मजबूत करना एक महत्वपूर्ण राजनीतिक कार्य है जिसे महासचिव ने अली क्षेत्र (न्गारी क्षेत्र) को सौंपा है. हम ‘सब में पांच, एक में पांच’ के अनुभव को बढ़ावा देंगे और सीमा पर उत्पादन, चराई और गश्ती के कार्यों में जनता का नेतृत्व करेंगे.’ उल्लेखनीय है कि शी जिनपिंग सीसीपी के महासचिव हैं.
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आंतरिक स्थिरता पर ध्यान
हमने स्वतंत्र स्रोतों से प्राप्त तस्वीरों और विश्लेषणों में पाया है कि पीएलए ने शिनजियांग सैन्य जिले में, विशेष रूप से एलएसी के करीब, 2020 के बाद से सैन्य उपकरणों की तैनाती और सीमा चौकियों की संख्या को बढ़ाया है. बीजिंग ने स्थानीय आबादी के वास्ते, जैसे कि न्गारी क्षेत्र के जियागांग गांव में, बुनियादी ढांचे में सुधार हेतु निवेश किया है.
एक कट्टर राष्ट्रवादी के रूप में शी जिनपिंग ने चीन की सीमाओं पर अपना ध्यान केंद्रित किया है. चीनी सैन्य और विदेश नीति के सिद्धांतकार तिब्बत और शिनजियांग के पश्चिमी क्षेत्रों में आंतरिक स्थिरता की दक्षिण चीन सागर और पूर्वी एशिया के अन्य हिस्सों में चीन के बढ़ते आत्मविश्वास के लिए अहम मानते हैं. इसलिए, चीनी सैन्य नेताओं का मानना है कि चीन की वैश्विक महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप विश्व व्यवस्था में अपना ओहदा बढ़ाने के लिए लिए पड़ोसी देशों से लगी सीमाओं को मजबूत करना आवश्यक है.
लद्दाख में सैन्य गतिरोध को बढ़ाकर पीएलए ने संकट को पश्चिमी क्षेत्र तक सीमित रखने की उम्मीद की थी लेकिन भारत की प्रतिक्रिया ने बीजिंग को चौंका दिया, जिसकी वजह से तनाव और बढ़ गया.
चीन की मूल मंशा पर सवाल बने हुए हैं. लेकिन चीन के पश्चिमी क्षेत्रों में सीसीपी की कार्रवाइयों को करीब से देखने से पता चलता है कि सीमा शी जिनपिंग के ‘नए युग‘ में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है और आगे भी निभाती रहेगी.
(लेखक एक स्तंभकार और स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में चीनी मीडिया पत्रकार रह चुके हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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