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Wednesday, 24 April, 2024
होममत-विमतजिबूती की कहानी हंबनटोटा से मिलती-जुलती है, और उसे भी चीन ने ही लिखा है

जिबूती की कहानी हंबनटोटा से मिलती-जुलती है, और उसे भी चीन ने ही लिखा है

जिबूती के कतिपय प्रभावशाली लोगों को भरोसा है कि चीनी निवेश के सहारे उनका देश ‘अफ्रीका का सिंगापुर’ बन सकता है.

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जिबूती में अमेरिकी नौसैनिक बेस कैंप लेमनीयर से लगभग आठ मील दूर एक शानदार सैन्य परिसर है, जो कि उसे निर्मित करने वाले देश, चीन की ओर इशारा करते हैं. इस पूर्वी अफ्रीकी देश में फ्रांसीसी, जापानी, इतालवी और स्पेनिश नौसैनिक ठिकाने चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सपोर्ट बेस से बहुत दूर नहीं हैं.

इस ठिकाने को पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी द्वारा संचालित किया जाता है और कहा जाता है कि चीन ने इस सैन्य परिसर और डोरलेह बहुद्देश्यीय बंदरगाह पर 590 मिलियन डॉलर खर्च किए हैं.

हॉर्न ऑफ अफ्रीका में जिबूती की अवस्थिति उसे पूरे अफ्रीका और एशिया में शक्ति प्रदर्शन के लिए महत्वपूर्ण स्थलों में से एक बनाती है. फ्रांसीसी उपनिवेश रहा जिबूती अतीत में पूर्वी अफ्रीका में फ्रांस के प्रभाव के लिए अहम साबित हुआ था.

इथियोपिया के अमेरिका के पूर्व राजदूत डेविड शिन ने जिबूती में चीन की उपस्थिति के बारे में कहा था, ‘जिबूती उस आर्थिक श्रृंखला में एक केंद्रीय बिंदु है जो हिंद महासागर के उत्तरी किनारे में कंबोडिया से लेकर श्रीलंका और पाकिस्तान के बंदरगाहों तक फैली हुई है. उसने एक व्यापक रणनीतिक योजना बना रखी है. हमने ऐसा नहीं किया है,’

जिबूती के पांच बार के राष्ट्रपति इस्माइल उमर गुलेह, 10 अप्रैल को 98 प्रतिशत मतों के साथ फिर से चुने गए हैं.  विशेषज्ञों की राय — आधिकारिक और अनाधिकारिक दोनों — का हवाला देते हुए फ्रांस 24 के एक लेख में जिबूती-चीन के निकट संबंधों में धीरे-धीरे खटास आने के संकेत दिए गए हैं. लेकिन जिबूती-चीन के बीच घनिष्ठ संबंध आखिरकार बने कैसे?

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जिबूती-चीन घनिष्ठता

वर्तमान में जिबूती के कर्ज का अधिकांश हिस्सा चीन का है, जो कि देश के सकल घरेलू उत्पाद का 70 प्रतिशत से अधिक है. काइक्शिन के 2018 के एक लेख के अनुसार चीन और उसकी सरकार-नियंत्रित कंपनियों ने जिबूती में करीब 10 बिलियन डॉलर का निवेश किया है.

जिबूती के कर्ज का पहाड़ खड़ा करने के पीछे अफ्रीका और एशिया के बीच लॉजिस्टिक्स हब बनने की उसकी रणनीति का योगदान रहा है. चीन अपनी बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) के तहत उसकी इस रणनीति में धन लगाने वालों में सबसे आगे था. जिबूती के कुछ प्रभावशाली लोगों को लगता है कि चीनी निवेश की मदद से उनका देश ‘अफ्रीका का सिंगापुर’ बन सकता है.

2018 में, चाइना मर्चेंट्स पोर्ट होल्डिंग्स कंपनी लिमिटेड और डैलियन पोर्ट कंपनी ने नए जिबूती अंतरराष्ट्रीय मुक्त व्यापार क्षेत्र के विकास में संयुक्त रूप से 3.5 बिलियन डॉलर के निवेश की घोषणा की थी. चीन ने एक रेल लाईन परियोजना में भी 3.4 बिलियन डॉलर का निवेश किया है जो कि इथियोपिया के अदीस अबाबा को जिबूती के लाल सागर बंदरगाह से जोड़ती है.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने 2018 में आगाह किया था कि देश को लॉजिस्टिक्स हब के रूप में बढ़ावा देने की रणनीति के परिणामस्वरूप जिबूती में ‘ऋण संकट पैदा हुआ, जो कि भारी जोखिम वाली स्थिति है’. आईएमएफ के अनुसार, ‘2018 के के अंत तक सार्वजनिक और सार्वजनिक रूप से गारंटीकृत ऋण की मात्रा जीडीपी के करीब 104 प्रतिशत तक होने की आशंका है’.

आलोचकों का कहना है कि चीनी निवेश से स्थानीय आबादी के लिए रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा नहीं हो रहे हैं क्योंकि श्रमिक चीन से लाए जाते हैं.

विलियम एंड मेरी संस्थान की ‘हाउ चाइना लेंड्स’ रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्षों में से एक यह था कि चीनी निवेश में ‘असामान्य गोपनीयता के प्रावधान शामिल होते हैं जो कर्जदारों को ऋण की शर्तों या ऋण के अस्तित्व तक को प्रकट करने से रोकते हैं’. अध्ययन में यह भी पाया गया है कि बीआरआई के तहत ऋण लेने वाले देशों को एस्क्रो अकाउंट में बड़ी मात्रा में धन रखना होता है, जिसे ऋण की किस्त चुकाने में उनके असमर्थ होने पर इस्तेमाल किया जा सके.

शी जिनपिंग ने जून 2020 में कहा था कि चीन उन ‘संबंधित’ अफ्रीकी देशों के कर्ज को रद्द कर देगा जोकि ‘ब्याजमुक्त सरकारी ऋणों के रूप में हैं और 2020 के अंत तक परिपक्व होने वाले हैं.’

जिबूती में बीजिंग की बढ़ती आर्थिक उपस्थिति का अनुमान चीनी के सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी चाइना मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग्स की डोरलेह कंटेनर टर्मिनल (डीसीटी) में हिस्सेदारी से लगाया जा सकता है. जिबूती सरकार ने 2018 में डीसीटी का राष्ट्रीयकरण कर दिया और टर्मिनलों के संचालन के दुबई स्थित डीपी वर्ल्ड के अनुबंध को समाप्त कर दिया. डीपी वर्ल्ड ने आरोप लगाया है कि इस कदम के बाद टर्मिनलों पर चाइना मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग्स का अबाध नियंत्रण हो गया है.

सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर, यह स्पष्ट नहीं है कि जिबूती ने डीपी वर्ल्ड के अनुबंध को समाप्त करने के बाद चाइना मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग्स को पोर्ट के टर्मिनलों पर नियंत्रण करने दिया है या नहीं. लेकिन 2019 में, द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने जिबूती के पोर्ट टर्मिनल पर रुके एक जहाज के एक कार्यकारी अधिकारी के हवाले से कहा था कि यह बंदरगाह उन अन्य बंदरगाहों से मिलता-जुलता है, जहां चीन के सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों के पास बड़ी हिस्सेदारी है: ‘इस बहुउद्देशीय बंदरगाह पर भी उसी तरह के क्रेन तथा अनाज, उर्वरक और अन्य वस्तुओं के वैसे ही गोदाम हैं, बिल्कुल चीनी जैसे.’

एक और हंबनटोटा?

 जिबूती के डोरलेह पोर्ट की कहानी श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट में चीनी निवेश की कहानी से मिलती-जुलती है. डोरलेह पोर्ट का संचालन करने वाली कंपनी चाइना मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग्स वही है जो हंबनटोटा पोर्ट में 70 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल करने में सफल रही थी. कर्ज की किस्त चुकाने में नाकाम रहने पर श्रीलंका सरकार को 99 वर्षों के लिए बंदरगाह चीन को पट्टे पर देने के लिए बाध्य होना पड़ा था.

अफ्रीका स्थिति अमेरिकी कमान के कमांडर जनरल थॉमस वाल्डहाउज़र ने 2019 में सीनेट की एक सुनवाई के दौरान दावा किया था कि जिबूती बहुउद्देशीय बंदरगाह के पांच में से दो टर्मिनलों पर चीन का नियंत्रण है.

इस साल मार्च में, जिबूती स्थित चीनी सपोर्ट बेस के कमांडर लियांग यांग को पदोन्नति देकर मेजर जनरल बना दिया गया और उन्हें किसी अन्य नौसैनिक ठिकाने पर स्थानांतरित कर दिया गया है. पदोन्नति से यही संकेत मिलता है कि चीनी सैन्य आयोग यांग के काम से खुश है जिन्होंने 2017 में एक कर्नल के रूप में जिबूती में जिम्मेदारी संभाली थी.

फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने जिबूती की अपनी पिछली यात्रा के बाद कहा था, ‘चीन दुनिया की एक बड़ी ताकत है और हाल के वर्षों में उसने कई देशों में, खासकर अफ्रीका में, अपनी उपस्थिति बढ़ाई है.’

‘हाउ चाइना लेंड्स’ नामक अध्ययन का एक निष्कर्ष ये भी है कि विशेष परिस्थितियों में ‘चीनी अनुबंध कर्जदाताओं को अंतत: कर्जदारों की घरेलू और विदेशी नीतियों को प्रभावित करने में सक्षम बनाते हैं.’

एक अनाम ब्रितानी विशेषज्ञ ने फ्रांस 24 को बताया कि श्रीलंका के अपने अनुभव के बाद चीन ‘कर्ज की शर्तों पर नए सिरे से बातचीत करने को अधिक इच्छुक दिखने लगा है क्योंकि वह नहीं चाहता कि उसकी छवि खराब हो.’

जिबूती की ऋण समस्या श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह जैसी स्थिति से मेल खाती है. ये तो समय ही बताएगा कि क्या चीन की कर्ज नीति बदलती है और जिबूती अपने बंदरगाह और अपनी संप्रभुता को बचा पाता है.


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इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

(लेखक एक स्तंभकार और स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में चीनी मीडिया पत्रकार रह चुके हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)

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1 टिप्पणी

  1. अच्छा लेख हैं , चीन की रणनीति को सही से समझाया हैं ।

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