scorecardresearch
Wednesday, 18 September, 2024
होममत-विमतभाजपा बंगाल को फिर से विभाजित करना चाहती है, यह श्यामा प्रसाद मुखर्जी के हिंदू बंगाल का अलग रूप है

भाजपा बंगाल को फिर से विभाजित करना चाहती है, यह श्यामा प्रसाद मुखर्जी के हिंदू बंगाल का अलग रूप है

भाजपा की योजना पश्चिम बंगाल को इस तरह से विभाजित करने की है कि ममता बनर्जी के तथाकथित मुस्लिम वोट बैंक में बिखराव हो और उसे चुनाव जीतने में मदद मिले. अच्छी खबर यह है कि बंगाल भाजपा में मतभेद है.

Text Size:

तृणमूल कांग्रेस 5 अगस्त को पश्चिम बंगाल विधानसभा में एक प्रस्ताव लाएगी, जिसमें 1905 और 1947 के बाद तीसरी बार राज्य का विभाजन करने के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेताओं के कई प्रस्तावों की निंदा की जाएगी. पिछले एक हफ्ते में लगभग आधा दर्जन भाजपा नेताओं ने मांग की है कि पश्चिम बंगाल की सीमाओं को फिर से बनाया जाए, जिसमें कुछ हिस्से पूर्वोत्तर या अलग केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किए जाएं.

पश्चिम बंगाल के लिए विभाजन एक ऐसा घाव है जो कभी नहीं भरेगा. फिर भाजपा इस मामले को तूल क्यों दे रही है? तार्किक रूप से, विभाजन की बात भी ममता बनर्जी को ही लाभ पहुंचा सकती है और भाजपा को यह दांव उलटा पड़ सकता है. अगर कोई बड़ी योजना चल रही है, तो 2026 में राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले धीरे-धीरे एक बड़ी तस्वीर सामने आने वाली है.

यह बात भयावह लग सकती है, लेकिन षड्यंत्र के सिद्धांतकारों को सबसे बुरा मानने के लिए माफ किया जा सकता है.

आप क्रोनोलॉजी समझिए

10 जून को, भाजपा बालुरघाट के सांसद सुकांत मजूमदार ने दो विभागों के साथ राज्य मंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी कैबिनेट में शपथ ली: शिक्षा और पूर्वोत्तर क्षेत्र का विकास. पिछली बार बंगाल से किसी ने पूर्वोत्तर विकास विभाग 20 साल पहले संभाला था, जब दमदम से तत्कालीन भाजपा सांसद स्वर्गीय तपन सिकदर राज्य मंत्री थे.

अपनी नई भूमिका में एक महीने से थोड़ा अधिक समय बाद, मजूमदार ने एक धमाका किया: उन्होंने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र सौंपा है जिसमें उत्तर बंगाल के आठ जिलों को पूर्वोत्तर में शामिल करने का सुझाव दिया गया है. कथित तौर पर मोदी के साथ उनकी बैठक लगभग 30 मिनट तक चली, जिसे पीएमओ पर नज़र रखने वालों का कहना है कि यह एक गंभीर बातचीत थी. मजूमदार वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर हैं, इसलिए उन्हें भूगोल में कमी के लिए माफ किया जा सकता है, लेकिन किस कल्पना से वे उत्तर बंगाल को पूर्वोत्तर के साथ जोड़ सकते हैं? शायद उन्हें एहसास हुआ कि वे दलदल में फंस रहे हैं, इसलिए उन्होंने ‘पश्चिम बंगाल में रहते हुए’ उत्तर बंगाल के पूर्वोत्तर परिषद में शामिल होने के बारे में शोर मचाया, लेकिन उनकी बात समझ से परे निकली.

अगले दिन झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा में पश्चिम बंगाल पर लगातार तीन मिनट तक तीखी टिप्पणी करके आग में घी डालने का काम किया. उन्होंने दावा किया कि झारखंड की आदिवासी आबादी 2000 में राज्य के गठन के समय 36 प्रतिशत से घटकर 26 प्रतिशत रह गई है; साथ ही, उन्होंने दावा किया कि राज्य के कुछ इलाकों में मुस्लिम आबादी में कुछ खगोलीय प्रतिशत की वृद्धि हुई है. अगर इतना ही काफी नहीं था, तो उन्होंने कहा कि बांग्लादेश से घुसपैठिए आदिवासी महिलाओं से शादी कर रहे हैं और आदिवासी गांवों में बस रहे हैं और पश्चिम बंगाल के मालदा और मुर्शिदाबाद से मुसलमान झारखंड के हिंदू गांवों पर कब्जा कर रहे हैं और राज्य की जनसांख्यिकी को बदल रहे हैं.

दुबे ने कभी भी यह नहीं बताया कि उन्हें अपना डेटा कहां से मिला, खासकर झारखंड की आदिवासी आबादी के बारे में. जनगणना सर्वे 2011 के बाद से नहीं किया गया. 2001 और 2011 में, जनगणना में कहा गया था कि झारखंड में 26 प्रतिशत आदिवासी आबादी थी, लेकिन अभी तक किसी ने दुबे के दावों या उनके आंकड़ों की बारीकियों पर सवाल नहीं उठाया है, क्योंकि संसद में उन्होंने जो मांग उठाई वह चौंकाने वाली थी: उन्होंने बंगाल-झारखंड-बिहार सीमा पर उन जिलों की सूची पेश की, जो ज़ाहिर तौर पर मुसलमानों के वर्चस्व में हैं और उन्होंने मांग की कि उन्हें केंद्र शासित प्रदेश में मिला दिया जाए — ज़ाहिर तौर पर, एक ऐसा स्थान जहां केंद्र बिना किसी राजनीतिक विरोध के एनआरसी अभ्यास कर सकता है.

इसके बाद, मुर्शिदाबाद में भाजपा के एक विधायक गौरी शंकर घोष ने ‘घुसपैठ की समस्या’ का हवाला देते हुए कहा कि मालदा और मुर्शिदाबाद को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया जाना चाहिए.

बहरामपुर के एक अन्य भाजपा विधायक सुब्रत मैत्रा एक कदम आगे बढ़ गए: वे चाहते थे कि मुर्शिदाबाद और मालदा को मिलाकर काल्पनिक केंद्र शासित प्रदेश में नादिया और दक्षिण दिनाजपुर जिलों के कुछ हिस्से जोड़े जाएं.

भाजपा के राज्यसभा सांसद नागेन्द्र रॉय उर्फ ​​अनंत महाराज ने भी इस स्वर में स्वर मिलाते हुए मांग की कि कूचबिहार जिले का विस्तार कर उसे ग्रेटर कूचबिहार बनाया जाए तथा उसे केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया जाए.


यह भी पढ़ें: भाजपा को बंगाली बनने की ज़रूरत है, रोशोगुल्ला से आगे बढ़िए, पान्ताभात खाइए, होदोल कुटकुट को जानिए


संकेत

क्या इस पागलपन के पीछे कोई तरीका है? या फिर केंद्र शासित प्रदेशों और पश्चिम बंगाल के विभाजन के लिए यह कोलाहल 2026 के विधानसभा चुनाव की दौड़ में भाजपा की दरिद्र राजनीति का संकेत है? भाजपा के संस्थापक पिता श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1940 के दशक में बहुत अलग परिस्थितियों में ‘हिंदू पश्चिम बंगाल’ के लिए हुंकार भरी थी. क्या भाजपा किसी विकृत तरीके से उनका अनुकरण करने की कोशिश कर रही है?

ऐसा लगता है कि योजना राज्य को इस तरह से विभाजित करने की है कि ममता बनर्जी का तथाकथित 30 प्रतिशत मुस्लिम वोट बैंक बुरी तरह से बिखर जाए, जिससे भाजपा वो हासिल कर सके जो वो अतीत में करने में विफल रही है: चुनाव जीतना और पश्चिम बंगाल पर शासन करना, भले ही भूगोल छोटा हो.

अच्छी खबर यह है कि भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई में मतभेद है. राज्य के विभाजन के खिलाफ बंगाली भावना के प्रति अधिक संवेदनशील नेताओं ने यह तर्क देने के लिए कदम बढ़ाया है कि राज्य के मुद्दों को मौजूदा सीमाओं के भीतर हल किया जाना चाहिए. विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने अपना पक्ष रखा है और वरिष्ठ नेता दिलीप घोष, जो सुवेंदु के प्रशंसक नहीं हैं, ने इस पर उनका समर्थन किया है.

ये नेता पश्चिम बंगाल को एक बार फिर विभाजित करने की मांग करने वालों से बेहतर अपना इतिहास जानते हैं और जानते हैं कि 1947 का दर्द अभी भी बंगाली लोगों के मन में है. वो जानते हैं कि भाजपा को 2009 में दार्जिलिंग में मिली जीत की चाल को दोहराने की अनुमति नहीं दी जाएगी: अलग राज्य का वादा करके. भाजपा ने तब से सीट तो जीत ली है, लेकिन वहां के लोगों के मन में अपने लिए सम्मान और विश्वास खो दिया है.

कुछ लोगों का तर्क है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा के कदमों को गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए, क्योंकि पार्टी अंदर ही अंदर प्रतिस्पर्धी गुटों में बंटी हुई है और राज्य के बारे में अनभिज्ञ है. उनका तर्क है कि पश्चिम बंगाल ने हाल के चुनावों में भाजपा को इतनी निर्णायक रूप से खारिज कर दिया है कि पार्टी कभी भी इस झटके से उबर नहीं पाएगी.

लेकिन भाजपा के हालिया कदमों को नज़रअंदाज़ करना मूर्खता हो सकती है. इसके अभियान को बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए और इसका कड़ा विरोध किया जाना चाहिए, अन्यथा पार्टी राजनीतिक नियंत्रण के एकमात्र उद्देश्य के लिए राज्यों के विभाजन के विचार को सामान्य बनाने में सफल हो जाएगी.

ममता बनर्जी ने पहले ही इसे एक साजिश करार दिया है और कहा है कि बंगाल के विभाजन का मतलब भारत का विभाजन होगा.

विधानसभा में सोमवार को होने वाली आतिशबाजी दिवाली के लिए एक ड्राई रन हो सकती है.

(लेखिका कोलकाता स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका एक्स हैंडल @Monidepa62 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: TMC के विरोध प्रदर्शन से BJP की धमकी तक—बंगाल में राजनीतिक रणनीति कमज़ोर हो रही, मतदाता सब देख रहे हैं


 

share & View comments