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Tuesday, 5 November, 2024
होममत-विमतचीन से विवाद सुलझाने को बेताब भूटान, यह उत्तर के प्रति भारत के नज़रिए को बदलेगा

चीन से विवाद सुलझाने को बेताब भूटान, यह उत्तर के प्रति भारत के नज़रिए को बदलेगा

निश्चित रूप से भूटानियों ने सोचा होगा कि अगर दिल्ली अब भी बीजिंग के साथ अपने विवाद को हल नहीं कर पाई है, तो थिम्फू के पास क्या मौका है?

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भूटान के प्रधान मंत्री लोटे त्शेरिंग ने बेल्जियम डेली को दिए अपने हालिया इंटरव्यू से एक गहरी चिंता पैदा कर दी है,  उन्होंने डोकलाम सीमा विवाद को सुलझाने के लिए दिल्ली, थिम्पू और बीजिंग के बीच चीन को समान उम्मीदवार बनाया है.

डोकलाम का जिक्र करते हुए ले लिब्रे से त्शेरिंग ने कहा, ‘समस्या को हल करना अकेले भूटान की बात नहीं है.’ डोकलाम में 2017 में चीनी और भारतीय सैनिक दो महीने तक एक दूसरे के सामने थे. यह हालात वहां तब तक रहे जब तक चीन की सेना ने अपनी सेना को वापस बुलाने के लिए सहमत नहीं हो गया.

त्शेरिंग ने कहा, ‘हम तीन हैं. कोई बड़ा या छोटा देश नहीं है, तीन समान देश हैंऔर हर किसी की बराबर हैसियत है.’

उनकी टिप्पणी से यह पता चलता है कि भूटानी सरकार, साथ ही इसके सम्राट, तेजी से इस निष्कर्ष पर पहुंच रहे हैं कि उन्हें अपनी विवादित सीमा को विशाल आर्थिक शक्ति के साथ जल्द से जल्द सुलझाना होगा.

जून 2020 में, चीन ने पूर्वी भूटान में सकतेंग वन्यजीव अभयारण्य पर दावा पेश किया था ऐसे में त्शेरिंग का यह बयान थोड़ा अटपटा लग सकता है. चीन ने कथित तौर पर भूटानी क्षेत्र के अंदर कई गांवों का निर्माण भी किया है लेकिन त्शेरिंग ने इंटरव्यू में दावों को खारिज कर दिया.

भूटानी पीएम की टिप्पणी पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच गतिरोध की तीसरी वर्षगांठ के क्रम में आई है. इस बार गलवान घाटी में हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने के लिए 17 दौर की बातचीत हो चुकी है, जिसमें भारतीय और चीनी दोनों सैनिकों की जान गई थी.


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कड़ी नज़रें

भारत के लिए त्शेरिंग की टिप्पणी महत्वपूर्ण है. अगर त्शेरिंग अब कह रहे हैं कि डोकलाम विवाद के समाधान में चीन का बराबर का हक है तो इससे चारों ओर धारणाएं बदलनी तय हैं.

याद रखें कि 2017 की गर्मियों में, भारतीय सेना डोकलाम में डेरा डाला था ताकि चीनियों को उस सड़क का विस्तार करने से रोका जा सके जिसे वो झाम्फेरी रिज नाम के एक निकटवर्ती पहाड़ी क्षेत्र की ओर बना रहा था. अगर चीनी अपनी सड़क बनाने में कामयाब हो जाते हैं तो तो वे चिकन नेक – सिलीगुड़ी कॉरिडोर – जो पूर्वोत्तर और भारतीय मुख्य भूमि को जोड़ता है के काफी करीब हो जाते.

पूर्वी लद्दाख में पिछले दो वर्षों में स्थिति बिगड़ने के साथ, निश्चित रूप से, पड़ोसी भूटानी बारीकी से पूरे मामले को देख रहे हैं. यहां तक कि उन्होंने भी महसूस किया होगा कि चीन की बढ़ती ताकत से निपटना भारत के लिए आसान नहीं है और बीजिंग, विशेष रूप से शी जिनपिंग के हाल ही में सर्वोच्च नेता के रूप में और मजबूत होने के बाद, अपने परेशान करने वाले पड़ोसियों को एक इंच भी देने को तैयार नहीं है.

वास्तव में, संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ विकसित भू-राजनीतिक स्वीपस्टेक (एक प्रकार का जुआ) में रूस भागीदार बनने के लिए तैयार है – यूक्रेन संघर्ष कसौटी है – चीन को शायद लगता है कि अपनी शेष दो सीमा विवादों के समाधान के बीच यह सही समय है. चीन 14 देशों के साथ अपनी सीमाएं साझा करता है.

निश्चित रूप से, भूटानियों ने सोचा होगा कि अगर दिल्ली, जो कि चीन की गंभीर प्रतिद्वंद्वी है, अभी भी बीजिंग के साथ अपने विवाद को हल नहीं कर पाई है, तो थिम्फू के पास क्या मौका था?

1992 के समझौते को पुनर्जीवित करना?

बेल्जियम के दैनिक को दिए  इंटरव्यू में त्शेरिंग ने बीजिंग के साथ विवाद के निपटारे के लिए एक दिलचस्प समय सीमा भी बताई.

उन्होंने कहा, ‘हम चीन के साथ बड़ी सीमा समस्याओं का सामना नहीं कर रहे हैं लेकिन कुछ क्षेत्रों का अभी तक सीमांकन नहीं किया गया है. एक या दो और बैठकों के बाद, हम शायद एक विभाजक रेखा खींचने में सक्षम होंगे.’

ऐसा लगता है कि भूटानी सरकार बीजिंग के साथ 1992 के समझौते पर लौटने पर विचार कर रही है, जिसमें विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, वह उत्तर में क्षेत्रों के बदले में डोकलाम में विवादित सीमाओं को हल करने पर सहमत हुई थी. ऐसा भी प्रतीत होता है कि उत्तरी भूमि में कुछ चरागाह क्षेत्र भी शामिल हैं जो भूटानी राजा के हैं.

पिछले कुछ दशकों से भूटान के राजा और उनकी चुनी हुई सरकार शायद दिल्ली की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए एक प्रस्ताव को टालने में सफल रहे हैं.

भारत-चीन विवाद के अनसुलझे रहने बावजूद चीनियों ने भारत के पूर्वी लद्दाख में घुसपैठ का प्रयास किया है, और इस मामले में और अधिक अड़ियल होता जा रहा है. दिल्ली ने थिम्फू को बीजिंग के साथ ‘धीमी गति से चलने’ की सलाह दी होगी, इस उम्मीद में कि यह चीन के साथ किसी प्रकार का चेहरा बचाने वाला समझौता हो सकता है.

लेकिन त्शेरिंग का इंटरव्यू साफ तौर पर इशारा करता है कि चीनी भूटान के साथ धैर्य खो रहे हैं. हम जानते हैं कि वे थिम्पू के साथ 25वें दौर की सीमा वार्ता के लिए दबाव डाल रहे हैं और इस साल जनवरी में, भूटानी और चीनियों ने दक्षिणी चीनी शहर कुनमिंग में एक बैठक की, जहां उन्होंने सीमा विवाद के समाधान के लिए ‘तीन-चरणीय रोडमैप‘ पर चर्चा की.

हम यह भी जानते हैं कि भारत और भूटान के बीच बहुत घनिष्ठ संबंध का अर्थ है कि भूटान बीजिंग और थिम्पू के बीच विकसित हो रही वार्ता के बारे में दिल्ली को पूरी तरह से जानकारी दे रहा है.

लोटे त्शेरिंग की सार्वजनिक टिप्पणी ने ठहरे पानी में एक लहर पैदा कर दी है. निश्चित रूप से, इसका प्रभाव इस बात पर पड़ेगा कि भारत अपने उत्तरी पड़ोसी को कैसे देखता है.

ज्योति मल्होत्रा दिप्रिंट की सीनियर कंसल्टिंग एडिटर हैं. वह @jomalhotra को ट्वीट करती है. यहां व्यक्त विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढने के लिए यहां क्लिक करें)


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