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Sunday, 24 November, 2024
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लाभार्थी मोदी को UP चुनाव जिता सकते हैं, अगर ऐसा हुआ तब PDS का कवरेज भारत में कम नहीं होने वाला

उत्तर प्रदेश में NFSA और PMGKAY की जरूरत पूरी करने के हिसाब से पर्याप्त खरीदी नहीं हो पाती है, इसलिए उसे पंजाब और हरियाणा के किसानों पर निर्भर रहना पड़ता है.

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उत्तर प्रदेश में चल रहे विधानसभा चुनावों में उन वोटों का तगड़ा आधार बन गया है जो लाभार्थी हैं. इन्हें पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) के माध्यम से अनाज उपलब्ध कराया जाता है. कोविड-19 की महामारी के दौरान उत्तर प्रदेश को खाने के अनाज मुहैया कराने में पंजाब और हरियाणा की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी.

उत्तर प्रदेश में नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट लागू होने के पहले, एनसीएईआर (2014) की ओर से पीडीएस से जुड़े आकलन के मुताबिक गरीबी रेखा के लिए जारी 33 फीसदी खाद्यान और गरीबी रेखा से ऊपर के लिए जारी 35 फीसदी खाद्यान्न लीकेज (लाभार्थियों तक नहीं पहुंचे) हो गए. हालांकि, अभी तक नुकसान का आकलन किया गया है, लेकिन उत्तर प्रदेश में चल रहे चुनावों में हो रही बहस के रुख को देखकर लगता है कि नुकसान में कमी आई है.

उत्तर प्रदेश भारत के सबसे पिछड़े राज्यों में से एक है. पिछले उपभोक्ता खर्च सर्वे (2011-12, तेंदुलकर) के मुताबिक उत्तर प्रदेश का गरीबी अनुपात 29.4 प्रतिशत था. उत्तर प्रदेशए-2 सरकार के समय 2013-14 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (NFSA) बनाया गया था, जिसमें योजना आयोग ने निर्णय लिया कि उत्तर प्रदेश की 80 प्रतिशत ग्रामीण आबादी और 64 प्रतिशत शहरी आबादी को NFSA के तहत कवर किया जाएगा.

इस तरह उत्तर प्रदेश में 13.41 करोड़ लोगों को प्रायोरिटी कैटेगरी में रखा गया है. वहीं, राज्य में 1.3 करोड़ (40.8 परिवारों) लोग अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) के लाभार्थी हैं.

उत्तर प्रदेश में 2019-20 में चावल और गेहूं का सामान्य आवंटन क्रमशः 37.80 लाख टन और 55.48 लाख टन था. राज्य सरकार ने 96 प्रतिशत आवंटित मात्रा पर रोक हटा दी थी.

NFSA के तहत राशन कार्ड धारकों को गेहूं दो रुपया प्रति किलो और चावल तीन रुपया प्रति किलो खरीदना होता था. एएवाई परिवारों को 35 किलो खाद्यान्न हर महीने देने का आदेश था जबकि प्रायोरिटी कैटेगरी में रखे गए परिवारों को प्रति महीने 5 किलो प्रति व्यक्ति अनाज लेने की अनुमति थी.

कोविड-19 की पहली लहर में आई तेजी के दौरान केंद्र सरकार की ओर से प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) के तहत प्रति व्यक्ति पांच किलो अनाज मुफ्त में देने की घोषणा की गई. इसके अलावा, एक किलो दाल भी प्रति महीने हर घर को देने का आदेश हुआ. यह आवंटन अप्रैल से जून 2020 (फेज-1) के लिए था. उसके बाद जुलाई से नवंबर 2020 तक प्रत्येक परिवार को एक किलो साबुत चना मुफ्त में देने की बात हुई (फेज-2). नवंबर 2020 के बाद चना या दालों का आवंटन नहीं किया गया. जब देश फिर से अप्रैल 2021 में कोविड-19 के डेल्टा लहर की चपेट में आया, तब केंद्र सरकार ने मई से जून 2021 तक (फेज-3) नए आवंटन की घोषणा की. यह जुलाई-नवंबर 2021 (फेज-4) तक जारी रहा. जनवरी 2022 में देश ओमीक्रॉन की चपेट में आया, तब फिर से PMGKAY को अगले चार महीनों तक के लिए बढ़ा दिया गया. (फेज-5), दिसंबर 2021 से मार्च 2022 तक जारी रहा.

पूरे भारत में PMGKAY के तहत 2021-22 में 448.56 टन के खाद्यान्न का आवंटन हुआ. वहीं, NFSA के तहत सामान्य आवंटन 600 लाख टन का हुआ. केंद्र सरकार को इस बात का श्रेय मिलना चाहिए कि उसने एमएसपी के तहत खरीदे गए अतिरिक्त अनाजों का अच्छा इस्तेमाल किया. कोविड-19 के दौरान करोड़ों कामगारों ने अपनी नौकरियों और आय से हाथ धो दिया, खासकर वे लोग जो असंगठित सेक्टर से संबंधित थे. हालांकि, अतिरिक्त आवंटन के तहत सिर्फ उन्हीं परिवारों को अनाज मिला जो पहले से ही NFSA में कवर किए गए थे और जिनके नाम से राशन कार्ड थे.

राइट टू फूड एक्टिविस्टों और स्वतंत्र कमेंटेटर ने पीडीएस का विस्तार करने के लिए तमाम सुझाव दिए लेकिन सरकार ने सभी सुझावों की अनदेखी कर दी.

साल 2020-21 में उत्तर प्रदेश को 36.09 लाख टन चावल का आवंटन और 21.93 लाख टन गेहूं का आवंटन PMGKAY के तहत किया गया. इस प्रकार NFSA के सामान्य आवंटन 80.95 लाख टन के अलावा, 58 लाख टन का अतिरिक्त आवंटन 2020-21 में किया गया. NFSA के तहत होने वाले सामान्य आवंटन के उलट, PMGKAY के तहत राशन कार्ड धारकों को मुफ्त अनाज दिए जाने की बात कही गई.

साल 2021-22 में PMGKAY के तहत उत्तर प्रदेश को 80.95 लाख टन अतिरिक्त आवंटन किया गया. जिसमें 32.38 लाख टन चावल और 48.57 लाख टन गेहूं का आवंटन शामिल है. यह सामान्य आवंटन 80.95 लाख टन से थोड़ा ही कम है. इसका मतलब हुआ कि राशन कार्ड धारकों को PMGKAY के तहत आवंटित किए गए अनाज की वजह से सामान्य से दोगुना अनाज मिला है. इसे नरेंद्र मोदी सरकार की एक बड़ी सफलता की तरह पेश किया जाता है, जिसकी वजह से कोविड-19 महामारी के दौरान लोगों को भूखों मरने से बचाया जा सका.


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उत्तर प्रदेश में सरकारी खरीद

हाल के वर्षों में उत्तर प्रदेश में गेहूं और चावल की सरकारी खरीद बढ़ी है. जिसके बाद, राज्य की ज्यादातर ज़रूरतें स्थानीय स्तर पर की गई खरीद के स्टॉक से पूरी हो जाती हैं. उत्तर प्रदेश में सरकारी खरीद अलग-अलग जगहों पर नहीं होती है और राज्य में राज्य की एजेंसियां खाद्यान्न की खरीद के बाद उसे एफसीआई को दे देती हैं. जिले की ज़रूरत के हिसाब से बाद में एफसीआई अनाज मुहैया करवाता है. हालांकि, साल 2020-21 और 2021-22 में PMGKAY की वजह से अतिरिक्त जरूरत को पूरा करने के लिए, उत्तर प्रदेश को दूसरे राज्यों से अनाज मंगवाने पड़े.

कमी को पूरा करने वाले कौन हैं?

उत्तर प्रदेश में खाद्यान्नो की जितनी खरीदारी की गई है वह NFSA और PMGKAY की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए काफी नहीं है. PMGKAY की जरूरत को पूरा करने के लिए पंजाब और हरियाणा के किसानों पर निर्भरता है. हाल के दिनों में यहां के किसान निशाने पर रहे हैं.

रमनदीप कौर का चित्रण | दिप्रिंट.
रमनदीप कौर का चित्रण | दिप्रिंट.

2020-21 में पंजाब और हरियाणा से 1,942 रैक (करीब 48.55 लाख टन) खाद्यान्न उत्तर प्रदेश में भेजा गया है. वहीं, 2021-22 में, अप्रैल 2021 से जनवरी 2022 तक 1,795 रैक (44.87 लाख टन) उत्तर प्रदेश में भेजा गया.

2024 के चुनाव तक क्या उम्मीद करनी चाहिए?

NFSA के लागू होने के बाद, आधार के साथ ऑथेंटिकेशन एट द पॉइंट ऑफ सेल (पीओएस) मशीन का इस्तेमाल शुरू हुआ. हालांकि, पीडीएस से लीकेज का पता लगाने के लिए, कोई एम्पिरिकल स्टडी (अनुभव आधारित अध्ययन) नहीं हुई है. हालांकि, जानकारों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में पीडीएस के तहत खाद्यान्नों की डिलीवरी में सुधार हुआ है. राज्य सरकार खाद्यानों को ‘लाभार्थियों’ तक पहुंचाने का दावा कर रही है. यही वजह है कि इस चुनाव में, विपक्षी पार्टियां भी सरकार के इस दावे पर सवाल नहीं उठा रही हैं या दावे को खारिज नहीं कर पा रही हैं.

अगर पीडीएस एक और महत्वपूर्ण चुनाव में जीत दिला पाता है, तो मोदी सरकार अपनी सोच के विपरीत नामी अर्थशास्त्री के उस सुझाव पर विचार कर सकती है जिसमें उन्होंने आबादी के सबसे गरीब लोगों को पीडीएस के तहत अनाज देने की बात कही थी.

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