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Friday, 22 November, 2024
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चीन पूरी तरह से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस युद्ध की तैयारी कर रहा है, भारत अभी भी 15 साल पीछे

वक्त का तकाजा है कि चीन की ‘इन्फॉर्मेशन और इंटेलिजेंस’ संचालित युद्ध की क्षमता का विश्लेषण किया जाए और फर्क मिटाया जाए.

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फोर्स पत्रिका के संपादक प्रवीण साहनी अपनी नई किताब द लास्ट वॉर: हाउ एआइ विल शेप इंडियाज फाइनल शोडाउन विद चाइना में 2024 के लिए बेचैन करने वाले मनहूस नजारे की कल्पना करते हैं, ‘अगर चीन और भारत निकट भविष्य में युद्ध में उलझते हैं तो भारत के आगे 10 दिनों में युद्ध हार जाने की आशंका झूल रही है. चीन मामूली जान की क्षति से अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख को हथिया सकता है और भारत शायद ही कुछ कर पाए.’ क्या यह किसी रक्षा विशेषज्ञ के सनकीपन का ख्वाब है? नहीं तो, ऐसे नजारे की भविष्यवाणी कुछ और विश्लेषकों ने भी की है.

भविष्य की युद्ध रणनीति पर नजर रखने वाले एक अमेरिकी मिलिट्री ब्लॉग मैड साइंटिस्ट में भी फरवरी 2020 में 2035 के लिए ऐसे ही नजारे की कल्पना की गई थी, जिसमें चीन पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में हरा देता है. रणनीतिक स्तर पर पूर्वी लद्दाख में संकट के शुरुआती दिनों में, मैंने देखा कि चीन की मौजूदा क्षमताओं के ही हाइ-टेक्नोलॉजी हमलों के लिए भारतीय सेना की तैयारी कमजोर थी.

जाहिर है, कयामत की यह भविष्यवाणी इस शर्त के साथ है कि भारतीय मिलिट्री कितनी तेजी से खुद में सुधार कर सकती है. मेरी प्रवीण के साथ सिर्फ समय-सीमा को लेकर ही असहमति है. मेरी नजर में, उन्होंने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की जिन क्षमताओं की कल्पना की है, उसमें एक दशक लगेगा और पूरी तरह एआइ संचालित युद्ध क्षमता हासिल करने में एक और दशक लगेगा.

जो भी हो, वक्त की जरूरत यह है कि चीन की ‘इन्फार्मेटाइज्ड और इंटेलिजेंटाइज्ड’ युद्ध की क्षमता का विश्लेषण किया जाए, हमारी खुद की क्षमता का नीतिपरक आकलन किया जाए और फर्क दूर करने के लिए सुधार की जाए.

चीन की ‘इन्फार्मेटाइज्ड और इंटेलिजेंटाइज्ड’ युद्ध रणनीति

सिद्धांत रूप में मिलिट्री टेक्नोलॉजी, फौज का ढांचा, और डॉक्ट्रीन के संदर्भ में युद्ध रणनीति में आमूलचूल बदलाव का 50 साल का चक्र चलता है. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका ने अगले चक्र का प्रदर्शन खाड़ी युद्ध-1 में किया, जिसमें प्रेसिजन गाइडेड म्युनिशंस (पीजीएम) के साथ एयरलैंड युद्ध, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक और स्पेस वॉरफेयर और वीपन प्लेटफॉर्म के अत्याधुनिक रूपों को देखा गया. आमने-सामने की लड़ाई के ग्लैमर वाली रणनीतिक लड़ाई अब पीजीएम और इलेक्ट्रानिक युद्ध से युद्धभूमि के नियंत्रण में बदल गया. आजकल इस लड़ाई के अत्याधुनिक स्वरूप का दौर है. दुनिया अब युद्ध रणनीति के अगले चक्र के दरवाजे पर खड़ी है, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) का दबदबा होगा. यह टेक्नोलॉजी तो पूरी तरह 2040-50 तक अपने पूरे स्वरूप में निखकर सकती है, लेकिन उसके शुरुआती दर्शन दशक भर में दिखने लग सकते हैं.


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चीन ने 1991 तक द्वितीय विश्वयुद्ध की रणनीति में हल्का बदलाव कर लिया था. उसने 20 साल में युद्ध रणनीति का अगला चक्र अपना लिया, जो तकरीबन अमेरिका के बराबर है और अब बड़ी तेजी से एआइ संचालित युद्ध रणनीति को अपनाने की दिशा में बढ़ रहा है. ‘इन्फॉर्मेशनाइज्ड और इंटेलिजेटाइज्ड’ सिर्फ चीन का गढ़ा हुआ खास मुहावरा नहीं है, बल्कि उसकी भाषा मैंडारिन में इसके गहरे अर्थ हैं. चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को परंपरा से केंद्रीय मिलिट्री कमीशन की ‘मिलिट्री रणनीति दिशा-निर्देश’ से तय होती है, जो वर्गीकृत यानी गोपनीय होता है. हालांकि कुछ ब्यौरे ‘डिफेंस ह्वाइट पेपर’ में डाले जाते हैं, जो सार्वजनिक दायरे में उपलब्ध हैं. ‘इन्फॉर्मेशनाइजेशन’ शब्द पहली बार 2004 के डिफेंस ह्वाइट पेपर में इस्तेमाल किया गया: ‘इन्फॉर्मेशनाइजेशन की स्थितियों में स्थानीय युद्ध जीतना.’ इस रणनीतिक अवधारणा को 2015 के ह्वाइट पेपर और सुधार किया गया: ‘इन्फॉर्मेशनाइज्ड स्थानीय युद्धों को जीतना.’

इन्फॉर्मेशनाइज्ड युद्ध रणनीति में परंपरागत (जमीन, हवा और समुद्र)दायरों के साथ तीन नए दायरे-साइबर, इलेक्ट्रोमैगनेटिक और स्पेस-जोड़े गए. फोकस इन्फॉर्मेशन या सूचनाओं के दबदबे पर था-यानी दुश्मन को कमांड, कंट्रोल हथियारों के इस्तेमाल के लिए सूचना न मिले और इन्हे पूरी तरह अपने हक में इस्तेमाल करो. इसका मतलब है कि दुश्मन के कमांड, कंट्रोल और वीपन सिस्टम-जो साइबर, इलेक्ट्रोमैगनेटिक और सैटेलाइट डेटा/कम्युनिकेशन पर आधारित होते हैं-को विध्वसंक सिस्टम के जरिए नाकारा बना देना, और अपनी फौज को उसका इस्तेमाल खुलकर करने देना.

चीन के 2019 के ह्वाइट पेपर में ‘इंटेलिजेंटाइज्ड वॉरफेयर’ पद का जन्म हुआ: ‘टेक्नोलॉजी और औद्योगिक क्रांति के नए दौर से प्रभावित होकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ), क्वांटम इन्फॉर्मेशन, बिग डेटा, क्लाउड कंप्यूटिंग और इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसी अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल सैन्य क्षेत्र में तेजी से हो रहा है. अंतरराष्ट्रीय मिलिट्री होड़ में ऐतिहासिक बदलाव हो रहा है. आइटी पर आधारित नई और हाइ-टेक मिलिट्री टेक्नोलॉजी का तेजी से विकास हो रहा है. मौजूदा ट्रेंड लंबी दूरी के प्रीसिजन, इंटेलिजेंट, गोपनीय या स्वचालित हथियारों और उपकरणों को विकसित करने का है. युद्ध अब इन्फॉर्मेशनाइज्ड रणनीति का रूप ले रहा है और इंटेलिजेंट वॉरफेयर का दौर आने वाला है.’

इंटेलिजेंटाइज्ड युद्ध रणनीति का फोकस मिलिट्री की हर गतिविधि में एआइ के पूरी तरह उपयोग पर है, जिसमें इंटेलिजेंट वीपन/प्लेटफॉर्म, बोट्स और स्वचालित वीपन सिस्टम, और इंटेलिजेंट नेटवर्क से जुड़े रोबोटिक सैनिकों की तकनीकी मदद, क्लाउड, बिग डेटा और इंटरनेट ऑफ मिलिट्री थिंग्स शामिल है. यहां ‘इंटेलिजेंट’ शब्द का मतलब यह है कि मिलिट्री मशीनों का अपना दिमाग काम करेगा.

चीन अब अपना इन्फॉर्मेशनाइज्ड और इंटेलिजेंटाइज्ड युद्ध सात दायरों में लड़ेगा-हवा, जमीन, ऊपरी अंतरिक्ष, साइबर, इलेक्ट्रोमैगनेटिक स्पेक्ट्रम और करीबी अंतरिक्ष या हाइपरसोनिक (20 से 100 किमी. के बीच, जिसके बाद ऊपरी अंतरिक्ष शुरू हो जाता है).

इन्फॉर्मेशनाइज्ड और इंटेलिजेंटाइज्ड युद्ध रणनीति की चीन की तैयारी जारी है. पिछले दस साल में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने ‘चीन सपने’ को साकार करने के लिए मिलिट्री सुधारों पर पूरा जोर लगाया. उनका सपना है ‘ताकतवर और संपन्न’ देश जो ‘2049 तके विराट महाशक्ति’ की हैसियत हासिल कर लेगा. 2015 में उन्होंने पीएलए की कायापलट को अंजाम देने के लिए व्यापक सुधारों का ऐलान किया. सात मिलिट्री क्षेत्रों को पांच ट्राइ-सर्विस थिएटर कमांड में बदल दिया गया. सबसे अहम यह कि तीन नई सर्विस का गठन हुआ-पीएल मैदानी बल, पीएलए रॉकेट बल, और पीएलए रणनीतिक मदद बल. रणनीतिक मदद बल में इलेक्ट्रॉनिक, साइबर, मनोवैज्ञानिक रणनीति, रणनीतिक छलावा, और स्पेस वॉरफेयर के कम्युनिकेशन/इलेक्ट्रॉनिक पहलुओं के लिए शाखाएं बनाई गईं. पीएलए रॉकेट बल दुनिया में जमीन से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलों का हर तरह का सबसे बड़ा जखीरा है. इसका मकसद दुश्मन के स्थायी कमांड और कंट्रोल मुख्यालयों, हवाई ठिकानों/जमीन पर खड़े विमानों, ईंधन डिपो, अस्त्र-शस्त्र डिपो और सडक़/रेल पुलों को नेस्तनाबूद करना है. भारत सहित सभी आधुनिक सेनाओं के पास ऐसी मिसाइल क्षमता है, मगर चीन के पास मिसाइलों की गुणवत्ता और बड़े पैमाने पर जखीरा डरावना है.

मिलिट्री सुधारों की समय-सीमा तेज प्रगति के साथ घटाई गई है. अहम इन्फॉर्मेशनाइजेशन के साथ मशीनीकरण 2020 तक पूरा कर लिया जाना था. मेकनाइजेशन, इन्फॉर्मेशनाइजेशन और इंटेलिजेंटाइजेशन का समेकित विकास 2027 तक तेज कर दिया जाना है (जब पीएलए का सौ साल होंगे). राष्ट्रीय सुरक्षा का व्यापक अत्याधुनिक आधुनिकीकरण 2035 तक हासिल कर लिया जाएगा. और समूचे पीएलए का विश्वस्तरीय बल के रूप में बदलाव 2049 तक पूरा हो जाएगा (जब चीन जन गणराज्य सौ साल का होगा).

भारत को समय, राजनैतिक इच्छाशक्ति और मिलिट्री सुधारों की दरकार

आज, भारतीय सेना में खाड़ी युद्ध में दिखे अमेरिका के एयरलैंड युद्ध के गरीब-से संस्करण की क्षमता ही है. जो सुधार 1980 के दशक के मध्य में शुरू हुए, वे 2000 के मध्य तक पूरे हो गए. इस मौके पर हमारी क्षामता चीन के बराबर थी. दुर्भाग्य से, उसके बाद से सुधार प्रक्रिया रुकी पड़ी है. हमने न औपचारिक रणनीतिक समीक्षा की है, न ही हमारे पास औपचारिक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति है, जिससे 21वीं सदी में उच्च टेक्नोलॉजी वाले युद्ध को लडऩे की क्षमता का रणनीतिक विकास होना चाहिए.

उम्मीद जताने के लिए हम कहें कि हम तो मिलिट्री क्षमता में चीन से सिर्फ दशक भर ही पीछे हैं, लेकिन सिर्फ जमीनी, हवाई और समुद्री क्षेत्रों में ही यह सच है. साइबर, इलेक्ट्रोमैगनेटिक, स्पेस और करीबी स्पेस दायरों में हम करीब 15 साल पीछे हैं. वरना हम पूर्वी लद्दाख में अपनी हैरानी को कैसे बता सकते हैं? चीन पहले ही मिलिट्री के लिए एआइ के पूरे इस्तेमाल का लक्ष्य 2027 और 2035 तक तय कर चुका है. हम तो अभी एआइ के मिलिट्री इस्तेमाल की सबसे बुनियादी इनोवेशन में ही उलझे हैं.

आज हमारी स्थिति कमोवेश 1959 से 1962 के दौरान जैसी ही है. युद्ध का खतरा सामने खड़ा था. हमारे पास चीन को रोकने की सैन्य क्षमता थी, मगर सीमा पर उसे कायम रखने का इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं था. लिहाजा, हार लाजिमी थी. आज हमारे पास सीमा पर पर्याप्त इन्फ्रास्ट्रक्चर है, मगर हम साइबर, इलेक्ट्रोमैगनेटिक और स्पेस युद्ध के मामले में काफी पीछे हैं, जो एआइ के सहयोग से भविष्य के युद्धों का नतीजा तय करेंगे. हम पिछले युद्ध जैसी तैयारी में जुटे हैं और चीन भविष्य के युद्ध की तैयारी कर रहा है.

भारत को इसे समझकर कूटनीति के इस्तेमाल से वह दशक हासिल करने की जरूरत है, ताकि हम चीन से जीत न पाएं तो कम से कम उसे रोक सकें.

दो मोर्चों पर युद्ध की फंतासी को छोडऩे की दरकार है. अलगाववाद विरोधी कार्रवाइयों का जिम्मा केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल को दिया जाना चाहिए. हमारा नजरिया ‘समूचे देश’ वाला होना चाहिए. हमारे रक्षा बजट को चीन के बराबर करने के लिए रक्षा शुल्क लगाएं. राजनैतिक प्रेरणा और निरिक्षण में सैन्य सुधार प्रक्रिया तय समय-सीमा के साथ चलाई जानी चाहिए. सहयोगी देशों से रिश्तों में हाइ-एंड मिलिट्री टेक्नोलॉजी हस्तांतरण की शर्त जोड़ी जानी चाहिए. अमेरिका की फौजी ताकत चीन को हिंद-प्रशांत क्षेत्र से दूर रखेगी, लेकिन भारत को मुकाबला हिमालय में करना होगा.

मुझे कतई संदेह नहीं है कि हम चीन को रोक सकते हैं, बशर्ते हममें अगले दस साल में सुधार करने की राजनैतिक और सैन्य इच्छाशक्ति हो. इसकी बेहतरीन मिसाल यह है कि यूक्रेन में 2014 से किए गए सुधारों की वजह से 2022 में रूस को रोका जा सका.

(ले.जन. एचएस पनाग, पीवीएसएम, एवीएसएम (रिटा.) ने 40 वर्ष भारतीय सेना की सेवा की है. वो जीओसी-इन-सी नॉर्दर्न कमांड और सेंट्रल कमांड थे. रिटायर होने के बाद वो आर्म्ड फोर्सेज़ ट्रिब्यूनल के सदस्य थे. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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