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Tuesday, 26 August, 2025
होममत-विमतट्रंप की MAGA राजनीति भारत की विदेश नीति को नए रास्ते पर धकेल रही है

ट्रंप की MAGA राजनीति भारत की विदेश नीति को नए रास्ते पर धकेल रही है

कोई भी भारतीय प्रधानमंत्री कृषि क्षेत्र में ट्रंप द्वारा मांगी गई रियायतें नहीं दे सकता.

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दुनिया भारत को देख रही है. अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की योजना, भारत से अमेरिका के लिए निर्यात पर 50 प्रतिशत असंभव और कभी न सुनी गई शुल्क दर लागू करने की, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भारतीय कूटनीति के नए मार्ग पर चलने के लिए मजबूर कर रही है.

पिछले सात महीनों से ट्रंप की कूटनीति का उद्देश्य उनके मुख्य निर्वाचन क्षेत्र को खुश करना, अमेरिकी ऋण को कम करना और “मेेक अमेरिका ग्रेट अगेन” योजना को आगे बढ़ाना रहा है. MAGA की हलचल पूरी दुनिया में महसूस हो रही है.

भारत-अमेरिका संबंध संकट में हैं और आसानी से सुधरेंगे नहीं। मोदी एक अभूतपूर्व संकट का सामना कर रहे हैं, जो ट्रंप के उद्देश्यों के कारण भारत पर लाया गया है. भारत वास्तव में ट्रंप की अंतरराष्ट्रीय व्यापार योजनाओं और मिजाज का शिकार है. अब जब मोदी को निर्णय लेने पड़ रहे हैं, तो वे वही कर रहे हैं जो उन्हें सबसे अच्छा आता है. वे सार्वजनिक कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों का उपयोग अपने घरेलू समर्थन आधार को मजबूत करने के लिए करेंगे.

मोदी की कूटनीति

मोदी का राष्ट्रवादी वोट बैंक निश्चित रूप से उनके पीछे खड़ा होगा.

विडंबना यह है कि बड़ी संख्या में मोदी समर्थक भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत करने के पक्ष में थे. लेकिन ट्रंप के इस बड़े विश्वासघात से उनमें अविश्वास के बीज बोएंगे.

1971-1972 में इंदिरा गांधी के बाद, शायद ही कोई भारतीय नेता ऐसे मोड़ पर आया हो—जहां उसे शैतान और गहरे समुद्र में से एक को चुनना पड़ा हो. मोदी ने अपना फैसला कर लिया है.

लंबी चर्चा के बाद मोदी ने ट्रंप के भारत विरोधी रुख के खिलाफ “खड़े होने” का निर्णय लिया. उनके पार्टी सदस्य पहले से ही कह रहे हैं कि भारत को ट्रंप के आदेशों का पालन न करने की वजह से शिकार बनाया जा रहा है.

मोदी ने खुद अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में अपनी नई कूटनीतिक पहल का संकेत दिया.

“मोदी किसी भी ऐसी नीति के खिलाफ दीवार की तरह खड़े हैं, जो भारतीय किसानों, मछुआरों और पशुपालकों को नुकसान पहुंचाती है,” उन्होंने कहा.

इसी का नतीजा था कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर मॉस्को में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से आत्मविश्वास के साथ मिले.

यह प्रतीकात्मक से अधिक है कि जयशंकर ट्रंप से धाराप्रवाह अंग्रेजी में बात कर सकते हैं और पुतिन से रूसी में ज़ार्स के इतिहास पर चर्चा कर सकते हैं.

भारत-रूस संबंधों में एक गुणात्मक बदलाव उभर रहा है.

मोदी की चीन यात्रा इस बात का संकेत है कि भारत अमेरिकी शुल्कों के हमले से कमजोर भारतीय अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए क्या करने को तैयार है. प्रधानमंत्री संकट में “लचीलापन” अपनाते हैं. “टीम मोदी”, जैसा एक सूत्र ने कहा, व्यापार और शुल्क से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाले चार शक्तिशाली मंत्रियों से बनी है.

वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल को वॉशिंगटन में व्यापार समझौते और शुल्क मुद्दों पर बातचीत की जिम्मेदारी दी गई है. अन्य सदस्य हैं जयशंकर, कृषि और किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण. वे वास्तविक समय में मिल रहे हैं और विचारों का आदान-प्रदान कर रहे हैं.

शुल्क युद्ध ने मोदी को नई दिल्ली में अमेरिकी समर्थक और चीन विरोधी लॉबी का निशाना बना दिया है. कई भारतीय विश्लेषक, जो मोदी सरकार की राजनीति के आलोचक रहे हैं, चीन के साथ संवाद को रातोंरात रीसेट करने को पचा नहीं पा रहे हैं. खासकर क्योंकि आरोप है कि चीन ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान की मदद की थी.

वे जोर देकर कहते हैं कि “मोदी की कूटनीति अधिक जिम्मेदार” है मौजूदा द्विपक्षीय संबंधों की गड़बड़ी के लिए। उनका मानना है कि चीन के खिलाफ भारत का रुख नरम करना बिना कीमत चुकाए नहीं होगा.

हालांकि, पाकिस्तान को खेल में मोहरे की तरह इस्तेमाल करना और नई दिल्ली के रूसी तेल आयात पर ट्रंप का रुख भारत की पूरी राजनीतिक व्यवस्था के लिए ‘बहुत उलझनभरा’ है.

मोदी के आलोचक मानते हैं कि भारत विवेक से ज्यादा मजबूरी में फैसले ले रहा है. वरना कैसे एक रात में क्वाड ठंडे बस्ते में चला गया और ब्रिक्स उपयोगी हो गया? इस तरह की दलीलें अर्थहीन हो गई हैं, क्योंकि संकट गहराता जा रहा है, जो रोजगार बाजार और जीडीपी को भी प्रभावित करेगा. मोदी के वार्षिक संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) कार्यक्रम में शामिल होने की संभावना नहीं है. क्वाड नेताओं की बैठक की तारीखें भी अभी तय नहीं हुई हैं.

और भी तीखे वे आलोचक हैं जिन्होंने जीवनभर भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत करने में लगाया. वे आरोप लगाते हैं कि मोदी और जयशंकर की जोड़ी ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की योजनाओं को आंकने में विफल रही.

हालांकि, मोदी-जयशंकर की जोड़ी दोनों तरह की आलोचनाओं को नज़रअंदाज़ कर रही है, क्योंकि मोदी के पास समय नहीं है. वैश्विक बाजार में अधिक उपयुक्त विकल्प मौजूद नहीं हैं। इस समय चीन और रूस भारत की जरूरतें पूरी कर रहे हैं.

मोदी जल्दी में हैं यह सुनिश्चित करने के लिए कि भारतीय जीडीपी तेजी से नीचे न गिरे. कई विशेषज्ञों ने आधा प्रतिशत जीडीपी गिरने की आशंका जताई है. भारतीय सरकार के एक सूत्र ने कहा, “भारत के चीन के साथ इतने निकट संबंध होंगे कि ट्रंप द्वारा पैदा किए गए भारी संकट को संभाल सके, और अलग से, भारत अपने दीर्घकालिक मुद्दों को ध्यान में रखते हुए सावधानी बरतेगा.”

गौरतलब है कि महीने के अंत में मोदी की चीन यात्रा, एससीओ शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए, उनकी जापान यात्रा के साथ जुड़ी हुई है. उनकी योजना है कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल से टूटे भरोसे को पीछे छोड़कर वास्तविकताओं को तेजी से स्वीकार कर नई योजनाएं बनाई जाएं.

निजी तौर पर, रायसीना हिल पर भी यह माना जा रहा है कि भारत ने राष्ट्रपति ट्रंप के दूसरे कार्यकाल और उनके MAGA एजेंडा को समझने में गलती की, जैसे कई और विश्व की राजधानियों में हुआ है.

यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रंप ने भारत का चीन मामलों में कोई उपयोग नहीं पाया है. वास्तव में, कैपिटॉल हिल पर अमेरिकी विदेश विभाग लगभग शक्तिहीन है और स्टीव विटकॉफ जैसे रियल एस्टेट डेवलपर्स का अत्यधिक प्रभाव है. अमेरिका सरकार की मित्र देशों के साथ पुरानी व्यवस्थाएं बिना सूचना टूट गई हैं. साथ ही, ट्रंप की व्यावसायिक प्रवृत्तियों ने अमेरिकी विदेश विभाग की परखी हुई नीतियों को ढक दिया है.

ट्रंप की भारी सौदेबाजी

भारत का चीन, रूस, दक्षिण अफ्रीका और ब्राज़ील के साथ बहुपक्षीय संबंधों में नया रुख ट्रंप की वजह से है, जिन्होंने मोदी को दो निराशाजनक विकल्प दिए.

पहला, क्या कोई भारतीय प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से मान सकता है कि एक अमेरिकी राष्ट्रपति ने उसे पाकिस्तान को लेकर रणनीतिक फैसला लेने के लिए मजबूर किया, वह भी तब जब ट्रंप सच को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं?

भारत-पाकिस्तान रिश्तों को लेकर ट्रंप की चौंकाने वाली असंवेदनशीलता ही असली समस्या है. उन्होंने मोदी को सार्वजनिक रूप से ऐसा विकल्प दिया जिसे कोई भी प्रधानमंत्री स्वीकार नहीं कर सकता. शायद यही बात ट्रंप को खटक रही है.

दूसरा, फरवरी 2025 में वॉशिंगटन दौरे के दौरान ट्रंप ने भारतीय कृषि और डेयरी बाज़ार में प्रवेश मांगा. बाद में हुई व्यापार वार्ताओं में यह मुद्दा उठाया गया. तब से हालात बिगड़ते ही गए. भारत में कृषि का मुद्दा रक्षा जितना ही संवेदनशील है.

भारतीय सूत्रों का कहना है कि मार्च से जुलाई की शुरुआत तक जो घटनाएं हुईं, उनसे साबित होता है कि कृषि और डेयरी क्षेत्र को अमेरिका के लिए खोलने का मुद्दा द्विपक्षीय रिश्तों में बड़ी रुकावट बन गया. इसी कारण जयशंकर और एनएसए अजीत डोभाल की रूस और चीन के साथ कई बैठकों का सिलसिला चला.

ट्रंप की टीम, भारत की डेयरी सहकारी संरचना और कृषि समाज-आर्थिक ढांचे की वास्तविक स्थिति समझे बिना, ऐसी मांग कर रही है जो कोई भी भारतीय प्रधानमंत्री मान ही नहीं सकता.

हर बार भारत और अमेरिका की वार्ता टीम जब मसौदा बनाकर व्हाइट हाउस भेजती, तो उसे खारिज कर दिया जाता. क्यों? बहुत लोग कहते हैं कि ट्रंप अपनी MAGA भीड़ को दिखाना चाहते थे कि ‘देखो, मेरे दोस्त मोदी ने 140 करोड़ लोगों का बाज़ार अमेरिका के लिए खोल दिया.’ उन्होंने गलत सोचा कि भारतीय उपभोक्ता मकई, सोया, बीफ़, चीज़ और डेयरी उत्पाद आसानी से अपना लेंगे.

वॉशिंगटन और नई दिल्ली के विद्वान हैरान हैं कि ट्रंप की टीम भारत से कितनी अव्यवहारिक और अस्वीकार्य मांगें कर रही है.

भारत के कृषि क्षेत्र में ट्रंप जैसी रियायतें देना किसी भी प्रधानमंत्री के लिए असंभव है.

ट्रंप के टैरिफ घटाने की उम्मीद बहुत कम है.

27 अगस्त की समयसीमा नजदीक आते ही भारतीय तंत्र पूरी तरह डैमेज कंट्रोल में जुटा है. सरकार की अलग-अलग मंत्रालय जोखिम कारक गिन रहे हैं और दुनिया भर में भारतीय दूतावास नए बाजार खोज रहे हैं.

जीएसटी संरचना में सुधार और अन्य कदम संकट से निपटने के लिए तय किए गए हैं. अगर आर्थिक असर काबू में नहीं रहा तो मोदी सरकार राजनीतिक संकट का सामना करेगी.

ऐसी स्थिति में केवल उम्मीद है कि भारतीय निर्यातक जल्द ही अपने उत्पादों के लिए नए रास्ते खोज लेंगे. टैरिफ का खतरा असली है.

भारतीय सरकार इनकार की स्थिति में नहीं है, जैसा कि चीन के साथ बदलते कूटनीतिक रुख से साफ है.

शीला भट्ट दिल्ली स्थित सीनियर पत्रकार हैं. वह @sheela2010 से ट्वीट करती हैं. यह उनके निजी विचार हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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