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Saturday, 16 November, 2024
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जुबैर का दिल्ली HC में दावा- पुलिस ने गलत इरादे से छापा मारा, लोकप्रियता के लिए नहीं पोस्ट की सामग्री

जुबैर ने दावा किया कि दिल्ली पुलिस ने ‘खुलासा बयानों’ के नाम पर उन्हें ‘झूठी और मनगढ़ंत बातों’ के लिए जिम्मेदार ठहराया है, जो कि 'कानून के शासन को कमतर करता’ है.

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नई दिल्ली: ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष दिल्ली पुलिस के इस दावे को खारिज किया कि उन्होंने लोकप्रियता हासिल करने के लिए धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाली सामग्री पोस्ट की थी. वर्ष 2018 में एक हिंदू देवता के संबंध में कथित आपत्तिजनक ट्वीट पोस्ट करने के मामले में जुबैर के खिलाफ जांच की जा रही है.

जुबैर ने दावा किया कि दिल्ली पुलिस ने ‘खुलासा बयानों’ के नाम पर उन्हें ‘झूठी और मनगढ़ंत बातों’ के लिए जिम्मेदार ठहराया है, जो कि ‘कानून के शासन को कमतर करता’ है और ‘उचित प्रक्रिया का मजाक’ बनाता है. जुबैर ने साथ ही यह भी दावा किया कि उनके आवास पर छापेमारी और जब्ती दुर्भावनापूर्ण कारणों से की गई थी.

मामले की जांच पर दिल्ली पुलिस द्वारा स्थिति रिपोर्ट दायर किए जाने के बाद, जुबैर ने दावा किया कि उन्होंने कुछ उपकरणों की बरामदगी के संबंध में एजेंसी को कोई खुलासा बयान नहीं दिया है और ऐसा कोई भी खुलासा ‘पूरी तरह से गलत और मनगढ़ंत है और कानून में अस्वीकार्य है.’


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दिल्ली पुलिस ने सितंबर में दायर अपनी स्थिति रिपोर्ट में अदालत को बताया था कि जुबैर की पुलिस हिरासत के दौरान, भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत स्वीकार्य एक खुलासा बयान के आधार पर बेंगलुरु स्थित उनके आवास से एक लैपटॉप, दो बिल और एक हार्ड डिस्क बरामद की गई थी और सुनवाई के दौरान इस पर गौर किया जाना चाहिए.

स्थिति रिपोर्ट जुबैर द्वारा अपनी गिरफ्तारी और मामले में तलाशी तथा जब्ती कार्रवाई के खिलाफ एक याचिका के जवाब में दायर की गई थी.

जुबैर ने अपने हलफनामे में स्थिति रिपोर्ट के जवाब में कहा, ‘यह आरोप लगाया गया है कि … मो. जुबैर ने खुलासा किया कि उपरोक्त सामग्री पोस्ट करने के लिए उनके द्वारा इस्तेमाल किया गया लैपटॉप और मोबाइल फोन उनके आवास पर है’… (इससे) स्पष्ट रूप से और पूरी तरह से गलत, झूठा और मनगढ़ंत के तौर पर इनकार किया जाता है.’

हलफनामे में कहा गया, ‘इस पर जोर दिया जाता है कि मैंने इस तरह का कोई खुलासा नहीं किया क्योंकि जो ट्वीट सवालों के घेरे में है वह 2018 से पहले का है और मैंने स्पष्ट रूप से और विशेष रूप से पुलिस या जांच अधिकारी को बताया कि मेरे आवास पर अब वह मोबाइल फोन नहीं है जिसका मैं 2018 में उपयोग कर रहा था क्योंकि यह खो गया था.’

उन्होंने कहा, ‘मेरे द्वारा जो खुलासा बयान देने का दावा किया जा रहा है वह स्पष्ट रूप से गलत, झूठा और मनगढ़ंत है, वह मेरे आवास पर अवैध रूप से छापेमारी करने और मेरे लैपटॉप और हार्ड डिस्क को जब्त करने के लिए एक गैर-मौजूद आधार बनाने के लिए है, जिसका उपयोग मैं अपने पत्रकारिता के तथ्यान्वेषी जांच कार्य के लिए करता हूं.’

जुबैर ने कहा, ‘मेरे आवास से उक्त तलाशी और जब्ती इस प्रकार दुर्भावनापूर्ण कारणों से की गई जो जांच की आवश्यकता से बाहर है.’

उन्होंने कहा, ‘एक श्रृंखलाबद्ध झूठे और मनगढ़ंत सिद्धांत के लिए मेरे द्वारा खुलासा बयान देने का दावा किया जा रहा है. उन्हें गलत, झूठा, मनगढ़ंत और निराधार के तौर पर अस्वीकार और खारिज किया गया है. मैं यह कहता हूं कि मैंने जांच के दौरान ऐसा कोई खुलासा नहीं किया था.’

जुबैर ने अपने जवाब में कहा कि वह एक ‘फैक्ट चेकर’ (तथ्यों की जांच करने वाला) हैं जो गलत सूचना और फर्जी खबरों को खारिज करने के लिए सोशल मीडिया पर सामग्री पोस्ट करते हैं और उनका काम किसी विशेष प्रकार के पोस्ट तक सीमित नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘मैं स्पष्ट रूप से और विशेष रूप से इससे इनकार करता हूं कि लोकप्रियता हासिल करने के लिए मैं ऐसी सामग्री पोस्ट करता हूं जो धार्मिक भावनाओं को भड़काती है. मैं एक ‘फैक्ट चेकर’ हूं और मैं सोशल मीडिया पर फेक न्यूज (फर्जी खबर), गलत सूचना को खारिज करने वाली सामग्री पोस्ट करता हूं और मेरा काम किसी विशेष प्रकार के पोस्ट तक सीमित नहीं है, न ही मैं लोकप्रियता या किसी अन्य भौतिक लाभ के लिए सामग्री पोस्ट करता हूं.’

जुबैर की ओर से पेश वकील वृंदा ग्रोवर और सौतिक बनर्जी ने कहा कि पुलिस जांच के दौरान बरामदगी की स्वीकार्यता पर विवाद बना हुआ है क्योंकि वे पूरी तरह से अवैध है और तलाशी और जब्ती सहित कथित खुलासे पर आधारित सभी जांच कदम अस्वीकार्य हैं.

जवाब में कहा गया, ‘जांच को बनाए रखने के लिए झूठे और मनगढ़ंत खुलासा बयान गढ़ने में जांच अधिकारी का कदम कानून का उल्लंघन है और यह उचित प्रक्रिया का मजाक बनाना है. उक्त खुलासा बयान कथित तौर पर मेरी जानकारी के बिना पुलिस हिरासत में रहने के दौरान तैयार किया गया है और मुझे इसके बारे में केवल 14.09.2022 की स्थिति रिपोर्ट से ही पता चला है जो प्रतिवादी द्वारा उपरोक्त कार्यवाही में दायर की गई है.’

जुबैर ने इस साल की शुरुआत में निचली अदालत के 28 जून के आदेश की वैधता और औचित्य के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख किया था, जिसमें मामले में पुलिस को चार दिन की हिरासत देने का आदेश दिया गया था.

उन्होंने अनुरोध किया कि जब तक उच्च न्यायालय द्वारा याचिका पर फैसला नहीं किया जाता है, पुलिस जुबैर के लैपटॉप की पड़ताल नहीं करे क्योंकि ट्वीट एक मोबाइल फोन से किया गया था, न कि कंप्यूटर से.

उच्च न्यायालय ने एक जुलाई को जुबैर की याचिका पर नोटिस जारी किया था और जांच एजेंसी को याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए समय दिया था.

जुबैर को 27 जून को दिल्ली पुलिस ने एक ट्वीट के जरिये धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में गिरफ्तार किया था और बाद में निचली अदालत ने उन्हें जमानत दे दी थी.


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