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Friday, 1 November, 2024
होमदेशरंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला सुनवाई से पीछे हटी

रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला सुनवाई से पीछे हटी

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व कर्मी ने दावा किया कि तीन जजों की कमेटी का माहौल बहुत भयावह था और उसके वकील को इस दौरान मौजूद रहने की इजाजत नहीं थी.

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नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट के पूर्व कर्मचारी, जिसने भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर उसका यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया था ने कहा है कि वह अब उस इन-हाउस कमेटी की कार्यवाही में भाग नहीं लेगी जिसे उसकी शिकायत पर गौर करने के लिए गठित किया गया है.

उन्होंने मीडिया को दिए बयान में कहा, ‘मैंने समिति के माहौल को बहुत भयावह पाया और मेरे वकील / समर्थक व्यक्ति की मौजूदगी के बिना सर्वोच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों का सामना करने के कारण मैं बहुत घबरा गई थी.’ अपने बयान में, उसने कहा कि वह आज कार्यवाही से बाहर निकलने के लिए मजबूर थी क्योंकि समिति इस तथ्य को  मानने को तैयार नहीं लग रही थी कि यह सामान्य शिकायत नहीं है. यह एक मौजूदा मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत थी और इसके लिए ऐसी प्रक्रिया अपनाने की जरूरत थी जिससे कि निष्पक्षता और समानता सुनिश्चित हो सके.


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35 वर्षीय पूर्व कर्मचारी ने कहा, ‘मुझे उम्मीद थी कि समिति का दृष्टिकोण मेरे प्रति संवेदनशील होगा और ऐसा नहीं होगा कि जिससे मुझे और अधिक भय, चिंता और नाटक का सामना करना पड़ेगा.’ ‘मुझे लगा कि मुझे इस समिति से न्याय मिलने की संभावना नहीं है और इसलिए मैं अब 3 न्यायाधीशों की समिति की कार्यवाही में भाग नहीं ले रही हूं.’

अनुचित कार्यवाही

पिछले हफ्ते सर्वोच्च न्यायालय ने एक आंतरिक समिति गठित की थी जो कि मुख्य न्यायाधीश गोगोई पर उनके ही स्टाफ की एक पूर्व सदस्य द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच कर रही है. ये महिला गोगोई के घर पर स्थित कार्यालय में काम करतीं थी. समिति के अध्यक्ष जस्टिस एसए बोबडे हैं जो कि सुप्रीम कोर्ट में दूसरे नंबर पर हैं. इसमें दूसरे सदस्य इंदु मल्होत्रा और इंदिरा बनर्जी हैं.

पैनल की पहली बैठक शुक्रवार 26 अप्रैल को हुई. फिर उनकी शिकायत पर सुनवाई की बैठक सोमवार को हुई और आज हुई. ये पहली बार नहीं है कि उस शिकायतकर्ता ने सुनवाई के तरीके पर सवाल उठाया हैं. पैनल विशाखा गाइडलान के अनुसार नहीं स्थापित किया गया फिर भी वो पैनल पर ‘विश्वास करते हुए’ उसमें शामिल हुई.

पर उनको अपना वकील लाने की अनुमति नहीं दी गई. प्रक्रिया का ऑडियो और वीडिया रिकॉर्डिंग भी नहीं की जा रही. साथ ही उनको आपत्ति थी कि उनकी शिकायत की सुनवाई के लिए जो प्रक्रिया इंक्वाइरी कमेटी ने अपनाई थी- उसके बारे में उन्हें नहीं बताया गया. साथ ही अब तक उनके द्वारा दिए गए वक्तव्यों की प्रति उन्हें नहीं सौंपी गई.

उन्होंने कहा कि, ‘मुझे नहीं बताया गया कि समिति ने चीफ जस्टिस से मेरी शिकायत पर क्या कोई जवाब मांगा और मैं चिंता में घिरी बैठी हूं क्योंकि मुझे अंधेरे में रखा जा रहा है.’


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पूर्व कर्मचारी ने उस फोन के कॉल रिकार्ड मांगे थे जिससे वो मुख्य न्यायाधीश से बात करतीं थी, उसे भी नहीं मंगाया गया. उन्होंने कहा, कि ‘उसी अर्जी को कमिटी ने 30 अप्रैल 2019 को फिर सुना. मैं बेबस और व्यथित महसूस कर रहीं हूं और मैं इस सुनवाई में आगे भाग नहीं ले सकती.’

‘ज़रूरत से ज्यादा दबाव’

शिकायतकर्ता का कहना था कि तनाव के कारण वो एक कान से ठीक से सुन भी नहीं पा रहीं.

इसका नतीजा ये हुआ कि मैं कई बार सुन नहीं पाई की जस्टिस बोबडे अदालत के अधिकारी को मेरे वक्तव्य का रिकार्ड क्या बता रहे हैं. समिति ने मेरे वक्तव्य की वीडियो रिकार्डिंग से भी इंकार किया था. मुझे साफ तौर पर कहा गया कि ‘कोई वकील या सहायता के लिए कर्मी मेरी सुनवाई में शामिल नहीं हो सकता. मुझे मौखिक रूप से निर्देश दिया गया है कि मैं कमिटि की सुनवाई का कोई ब्यौरा मीडिया को न दूं और इसकी जानकारी अपनी वकील व्रिंदा ग्रोवर को भी न बताऊं.’


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उस महिला का ये भी दावा है कि समिति कि सुनवाई के बाद ‘दो लोग मोटरसाइकलों से उसका पीछा कर रहे थे जिनकी गाड़ी का आधा नंबर ही वो नोट कर पाईं.’

वे बार बार कह रहीं थी कि इस प्रक्रिया को औपचारिक सुनवाई के रूप में देखा जाए, एक विभागीय जांच की तरह नहीं. पर उनकी गुज़ारिश को अभी तक माना नहीं गया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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