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Thursday, 25 April, 2024
होमदेशअरुण जेटली और प्रशांत किशोर के बिना नीतीश को भाजपा से तालमेल बिठाने में करना पड़ रहा संघर्ष

अरुण जेटली और प्रशांत किशोर के बिना नीतीश को भाजपा से तालमेल बिठाने में करना पड़ रहा संघर्ष

अभी विवाद का सबसे नया मुद्दा बिहार में एनआरसी की भाजपा की मांग है, जो दोनों के बीच दरारें पैदा कर रही है.

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पटना : बिहार में गठबंधन के साथी भाजपा और जद (यू) में विवाद चल रहा है, वे दो लोग जो दोनों पार्टियों में सामंजस्य स्थापित करने का काम करते थे अब आस-पास नहीं हैं. पहले, पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली जिनका पिछले महीने निधन हो गया और दूसरे प्रशांत किशोर चुनावी रणनीतिकार जो अमित शाह की सिफारिश पर जद (यू) के उपाध्यक्ष बने थे. लेकिन अब वे अब ममता बनर्जी की मदद करने के लिए कोलकाता चले गए हैं.

भले ही भाजपा और जेडीयू दोनों अपने गठबंधन की कसम खा रहे हों, लेकिन इन दोनों की अनुपस्थिति में दोनों पार्टियों के बीच विधानसभा चुनाव के एक साल पहले से ही तनाव बढ़ रहा है.

इसमें सबसे नया मुद्दा बिहार में नागरिकों के एनआरसी की भाजपा की मांग है, जो दोनों के बीच दरारें पैदा कर रही हैं.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता और नीतीश कुमार सरकार में मंत्री विनोद सिंह बिहार में ‘बांग्लादेशी घुसपैठियों’ को निष्कासित करने के लिए एनआरसी चाहते हैं. जद (यू) ने मांग को खारिज करते हुए कहा कि बिहार में कोई अवैध अप्रवासी नहीं है.

इससे पहले जद (यू), जो मुसलमानों को लुभाने की कोशिश कर रही थी तीन तलाक़ के अपराधीकरण और धारा 370 को हटाने के केंद्र सरकार के फैसलों से खुद को दूर कर लिया था.

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जद (यू) के नेताओं का कहना है कि उनकी पार्टी प्रशांत किशोर से अधिक जेटली को याद कर रही है, किशोर की अनुपस्थिति का लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन पर कोई असर नहीं पड़ा. पार्टी ने जिन 17 सीटों पर चुनाव लड़ा उनमें से 16 पर जीत हासिल की.

वे जेटली ही थे, जिनके कारण नीतीश कुमार भाजपा नेतृत्व के साथ समझौता करने के लिए तैयार होते थे.


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स्पिन डॉक्टर -जेटली

भाजपा और जेडीयू (जो पहले समता पार्टी थी) का गठजोड़ 1996 से ही था. लेकिन, 2005 में बिहार की राजनीति में जेटली की एंट्री एक स्पिन डॉक्टर के रूप में हुई, जिन्होंने विधानसभा चुनाव में अजेय लालू प्रसाद को हराने के लिए एनडीए को पर्याप्त रूप से बदल दिया था.

2005 में राज्य में दो विधानसभा चुनाव हुए. फरवरी में हुए पहले चुनाव के बाद बिहार को एक खंडित जनादेश मिला.

भाजपा और जेडीयू दोनों ही दलों ने सहयोगी के रूप में पहला चुनाव नहीं लड़ा था, लेकिन दूसरे चुनाव के बाद एक साथ आए. नवंबर में हुए चुनाव से पहले, जेटली ने गैर-यादव पिछड़ी जातियों को लुभाने के लिए नीतीश को सीएम उम्मीदवार के रूप में पेश करने के लिए भाजपा के नेतृत्व को तैयार किया.

उन्होंने भाजपा और जेडीयू दोनों के नेतृत्व को भी आश्वस्त किया कि जिन सीटों पर जेडीयू दूसरे और एनडीए तीसरे स्थान पर आई हैं. जेडीयू को एक बार फिर मैदान में उतारा जाए. इस निर्णय से विधानसभा चुनाव में एनडीए को 50 से ज्यादा सीटें मिलीं. फरवरी में हुए चुनाव में गठबंधन जीत हासिल नहीं कर सका. लेकिन, लालू को सत्ता से बाहर कर दिया.

2013 में नीतीश के बीजेपी छोड़ने से पहले, जेटली ने उन्हें गठबंधन नहीं तोड़ने के लिए समझाया था.

जेडीयू से गठबंधन टूटने के बाद जेटली पर गहरा प्रभाव पड़ा. भाजपा नेता और 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह जो उस समय जेडीयू के सांसद थे के अनुसार बीजेपी के साथ जेडीयू का गठबंधन टूटने से ठीक पहले जब वह और जेटली रात के खाने के लिए बैठे थे. जेटली ने टिप्पणी की कि यह उनका ‘सहयोगी के रूप में अंतिम रात्रिभोज था.’

चार साल बाद, जेटली ने एनडीए की वापसी में नीतीश से बातचीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.


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राजद के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी, जो कि कांग्रेस-राजद-जद (यू) महागठबंधन सरकार में मंत्री रह चुके हैं. उन्होंने दिप्रिंट को नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने से ठीक पहले उनके साथ कार यात्रा के बारे में बताया.

उन्होंने कहा, नीतीश की अरुण जेटली के साथ लंबी बातचीत चल रही थी, जो कि उस समय वित्त मंत्री थे. जैसे ही नीतीश वापस लौटे, जेटली ने 2019 के लोकसभा चुनावों में नीतीश को बराबर सीटें देने के लिए बीजेपी के नेतृत्व को समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

31 अगस्त को पटना में जेटली की शोकसभा के दौरान नीतीश ने इस बात को स्वीकार किया. उन्होंने कहा, ‘अगर मुझे बिहार के लोगों की सेवा करने का अवसर मिला है, तो यह काफी हद तक अरुण जेटली के कारण था और मैं इसे अपने जीवन में कभी नहीं भूलूंगा, जब भी मतभेद होते थे तो उन्होंने बताया कि इससे बातचीत से निपटा जा सकता है.’

उन्होंने यह भी घोषणा की कि बिहार में जेटली की प्रतिमा लगाई जाएगी उनको सम्मानित किया जाएगा और उनका जन्मदिवस राजकीय समारोह के रूप में मनाया जायेगा. यह एक ऐसा सम्मान था, जिसे उन्होंने भाजपा की एक और दिग्गज नेता सुषमा स्वराज को दिया था. जिन्होंने बिहार में भी प्रचार किया था और जेटली से कुछ दिन पहले ही उनकी मृत्यु हो गई थी.

नीतीश कुमार के करीबी सूत्रों का कहना है कि जेटली के जाने से नीतीश ने भाजपा में अपना सबसे भरोसेमंद और विश्वसनीय दोस्त खो दिया है.

राज्य सरकार के मंत्री और जद (यू) के सदस्य ने कहा कि नीतीश कुमार के साथ अमित शाह की मित्रता वैसी नहीं है जैसी अरुण जेटली के साथ थी. अभी विधानसभा चुनाव के लिए सीट का बंटवारा होना है, नीतीश ऐसे समय में अपने मित्र को सबसे ज्यादा याद करेंगे.

मंत्री ने कहा, ‘नीतीश केंद्रीय मंत्रिमंडल के गठन के दौरान उन्हें अतिरिक्त मंत्री पद देने के लिए वर्तमान भाजपा नेतृत्व को समझाने में सक्षम नहीं थे.’ इस असहमति के बाद, जेडीयू केंद्रीय मंत्रिमंडल से पूरी तरह से अलग हो गया था. मंत्री ने यह भी बताया कि जेडीयू और बीजेपी के बीच खटपट चल रही थी. जेडीयू और भाजपा एनआरसी, ट्रिपल तालक और अनुच्छेद 370 जैसी मुद्दों पर अलग-अलग सोच रखती हैं. यह तब हुआ जब जेटली मौजूद थे, लेकिन हम हमेशा से जानते थे कि जेटली अपनी तरफ से कुछ पहल करेंगे.

प्रशांत किशोर

चुनावी रणनीतिकार और जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किशोर 29 मार्च से बिहार की राजनीति से बाहर हैं, जब उन्होंने ट्वीट किया था कि ‘बिहार में, एनडीए माननीय मोदीजी और नीतीश जी के नेतृत्व में मजबूती से चुनाव लड़ रहा है. जेडीयू द्वारा चुनाव और प्रबंधन की जिम्मेदारी पार्टी के पसंदीदा नेता श्री आरसीपी सिंह जी के मजबूत कंधों पर है. मेरी राजनीति के शुरुआती दौर में मेरी भूमिका सीखने और सहयोग करने की है.’

हालांकि, प्रशांत किशोर ने राज्यसभा सदस्य आरसीपी सिंह की चुनाव में भूमिका पर खुशी प्रकट की. लेकिन, किशोर इस बात नाखुश थे कि नीतीश के विश्वासपात्रों को चुनाव में प्राथमिकता दी जा रही है, जबकि उन्हें दरकिनार किया जा रहा है. किशोर तब से पश्चिम बंगाल में एनडीए प्रतिद्वंद्वी तृणमूल कांग्रेस और महाराष्ट्र में एनडीए सहयोगी शिवसेना के लिए काम कर रहे हैं.

हालांकि, राजद के साथ उनके हालिया पोस्टर युद्ध ने जद (यू) के कई नेताओं को गायब कर दिया है. जेडीयू के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर इस पोस्टर से गायब नजर आ रहे हैं.


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पोस्टर युद्ध रविवार से शुरू हुआ, जब पटना में जद (यू) के कार्यालय के बाहर एक नया होर्डिंग लगाया गया था. जिसमें नारा दिया गया ‘क्यूं करे विचार, ठीके तो है नीतीश कुमार. इस होर्डिंग में कथित तौर पर आरसीपी सिंह के समर्थक हैं. राजद ने तब अपना नारा दिया ‘क्यू न करे विचार, बिहार जो है बीमार.’

जद (यू) नेताओं का एक वर्ग महसूस करता है कि पोस्टर इस समय अनावश्यक था और यह सवाल उठाता है.

जद (यू) के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘चुनाव में एक साल से अधिक का समय है और नारे का शब्दांकन अच्छा नहीं था. ऐसा लगता है जैसे नीतीश कुमार को कामचलाऊ नेता के रूप में पेश किया गया है.’

जेडीयू के एक नेता ने कहा कि प्रशांत किशोर ने 2015 में नीतीश के लिए बेहतर नारे गढ़े थे जैसे ‘बिहार में बहार है, नीतीश कुमार है.’ मंत्री ने यह भी कहा, ‘प्रशांत ऐसे समय में ऐसा कभी नहीं करते. वह जानते हैं कि गठबंधन में कई बाधाएं आती हैं.’

जब प्रशांत किशोर सितंबर 2018 में जद (यू) में शामिल हुए थे, तो नीतीश ने किशोर को पार्टी की ओर से युवाओं का ध्यान आकर्षित करने के लिए कहा. किशोर ने छात्रों, युवा पंचायत और वार्ड प्रतिनिधियों से मुलाकात की और पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष का चुनाव के लिए जद (यू) के युवा विंग को जिताने में कामयाब रहे, जिसे भाजपा के स्टूडेंट विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और आरएसएस का गढ़ माना जाता है.

जद (यू) के एक नेता ने कहा, ‘प्रशांत के चले जाने के बाद बिहारियों की युवा पीढ़ी के साथ बातचीत में वास्तव में एक ठहराव की स्थिति में आ गई हैं. चुनावी रणनीति बनाने के मामले में जेडीयू में कोई भी नहीं है, जो प्रशांत किशोर की बराबरी कर सकता हो.’

हालांकि, नीतीश के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने किशोर पर विश्वास नहीं किया, जैसा कि उन्होंने 2015 में किया था. फिर भी, 17 महीनों से बिहार की राजनीति से दूर रहने के बावजूद किशोर को उनके पद से नहीं हटाया गया है.

जेडीयू के मंत्री ने कहा, ‘अगर उनकी आवश्यकता होती है, तो उन्हें विधानसभा चुनावों के दौरान वापस बुलाया जा सकता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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