नई दिल्ली: राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने मंगलवार को बॉम्बे हाई कोर्ट पर 2018 भीमा कोरेगांव हिंसा के आरोपियों में से एक, सामाजिक कार्यकर्ता और गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के पूर्व प्रोफेसर आनंद तेलतुंबड़े को जमानत देते समय ‘मिनी-ट्रायल’ चलाने का आरोप लगाने के साथ-साथ उन्हें मिली राहत को ‘कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण’ करार दिया.
इस केंद्रीय एजेंसी ने अब तेलतुंबड़े की जमानत को रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जहां उसने अभियोजन पक्ष द्वारा इस मामले में दी गई इन दलीलों को दोहराया है कि यह समाजिक कार्यकर्ता सीपीआई (माओवादी) से जुड़ा था और उसने ‘अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट संगठनों’ द्वारा आयोजित सम्मेलनों में भाग लेने के लिए व्यापक रूप से यात्रा की थी.
बंबई उच्च न्यायालय द्वारा तेलतुंबड़े को 18 नवंबर को जमानत दे दी गई थी. अपने फैसले में उच्च न्यायालय ने एनआईए की एक विशेष अदालत के पिछले साल के उस आदेश को रद्द कर दिया था जिसने उन्हें (तेलतुंबड़े को) कोई राहत देने से इनकार कर दिया गया था.
तेलतुंबड़े को जमानत देते समय, उच्च न्यायालय की खंडपीठ में शामिल न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी और न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव ने टिप्पणी की थी कि प्रथम दृष्टया, इसके सामने रखे गए साक्ष्य ‘यह विश्वास नहीं जगाते’ कि पूर्व प्रोफेसर ने उस गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, जिसे यूएपीए के रूप में जाना जाता है, के तहत आतंकवादी कार्य किए थे जिसके तहत उन पर आरोप लगाए गए हैं.
हालांकि, एनआईए की चार्जशीट (आरोप पत्र) में तेलतुंबड़े की व्यापक तौर पर की गई यात्राओं को उनके कथित ‘माओवादी’ फंडिंग और गतिविधियों के संकेत के रूप में इंगित किया गया था, अदालत ने इस बात पर ध्यान दिया कि वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी जैसे विदेशों और भारत में स्थित प्रतिष्ठित संस्थानों में व्याख्यान दे रहे थे.
एनआईए ने यह भी निवेदित किया था कि इन सामाजिक कार्यकर्ता के भाई, मिलिंद तेलतुंबडे, भाकपा (माओवादी) से जुड़ा एक वांछित आरोपी था जो एक मुठभेड़ में मारा गया था. हालांकि, इस पर अदालत ने कहा कि यह आनंद तेलतुंबड़े पर ‘अभियोग लगाने’ और उन्हें इस संगठन की गतिविधियों से जोड़ने का ‘एकमात्र आधार’ नहीं हो सकता है.
सुप्रीम कोर्ट में दी गई अपनी अर्जी में एनआईए ने कानूनी आधार पर हाई कोर्ट के जमानत आदेश पर अपनी आपत्तियां दर्ज की हैं और साथ ही अपने इन आरोपों को भी रेखांकित किया है कि तलतुंबडे माओवादी साजिश का हिस्सा हैं.
क्या कहती है एनआईए की अर्जी?
एनआईए के अनुसार, अपनी अकादमिक यात्राओं की आड़ में तेलतुंबड़े अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट संगठनों के साथ सीपीआई (माओवादी) की विचारधारा, प्रशिक्षण और कार्यनीति से सम्बंधित साहित्य (या कागजात) का आदान-प्रदान करने के लिए ही अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लिया करते थे.
एनआईए की अपील में कहा गया है कि इसके बाद इन सम्मेलनों में एकत्रित साहित्य का इस्तेमाल पार्टी के सदस्यों को प्रशिक्षित करने और संगठन के रणनीतिक विकास के लिए किया जाता था.
तेलतुंबड़े के खिलाफ अपने आरोपों को सही ठहराने के लिए एजेंसी ने यह भी दावा किया कि वह सीपीआई (माओवादी) के निर्देश पर ‘तथ्य-खोज मिशन’ के आयोजन में सहायक बने थे, और इस संगठन ने कथित तौर पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसके एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें 10 लाख रुपये आवंटित किए थे.
एनआईए ने दावा किया कि भीमा कोरेगांव मामले की जांच से पता चला है कि तेलतुंबडे ने भाकपा (माओवादी) सदस्यों मुरुगन और जी.एन. साईंबाबा, जो अन्य मामलों में जेल के अंदर बंद थे, की रिहाई के लिए ढेर सारे प्रयास भी किए थे.
जिन अन्य आधारों पर एनआईए यह चाहती है कि शीर्ष अदालत बॉम्बे हाई कोर्ट के ज़मानत आदेश को रद्द कर दे, उनमें नागपुर विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर तथा इसी मामले में सह-आरोपी शोमा सेन,और पूर्व सीपीआई (माओवादी) केंद्रीय समिति के दिवंगत सदस्य श्रीधर श्रीनिवासन के काम के लिए तेलतुंबड़े द्वारा की गई कथित प्रशंसा भी शामिल है.
एनआईए ने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के साल 2020 के आदेश की अवहेलना की थी जिसमें तेलतुंबडे को गिरफ़्तारी से पहले की अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया गया था. उस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उसकी राय में अभी ‘यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रथम दृष्टया मामला कोई नहीं बनता है’.
एनआईए के अनुसार, उच्च न्यायालय ने एक ‘मिनी ट्रायल आयोजित किया, एक रोविंग इंक्वायरी (घुमंतू पूछताछ) की और प्रत्येक दस्तावेज़ और 164 बयानों का गहनता के साथ विश्लेषण किया’.
एनआईए ने शीर्ष अदालत को बताया कि ‘गवाहों के बयानों और प्रत्येक दस्तावेज की इस तरह की सूक्ष्म परीक्षा एनआईए के अपने परीक्षण और जांच को प्रभावित करेगी, जो न्यायिक निर्णयों के विपरीत है.’
एनआईए की याचिका में आगे यह भी दावा किया गया है कि हाई कोर्ट का जमानत आदेश इस बात को ध्यान में रखने में विफल रहा है कि राहत पाने के लिए तेलतुंबड़े द्वारा किए गए अन्य सभी प्रयासों को यह मानते हुए ख़ारिज कर दिया गया थे कि ‘प्रतिवादी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है.’
तेलतुंबड़े पर 31 दिसंबर 2017 को पुणे में ‘एल्गार परिषद’ के उस कार्यक्रम के मुख्य संयोजकों में से एक होने का आरोप लगाया गया है, जिसके तुरंत बाद दलितों और मराठा समूहों के बीच हिंसा भड़क उठी थी. इसके बाद, ‘माओवादी लिंक वाले वामपंथी समूहों’ पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया.
अप्रैल 2020 में अपनी गिरफ्तारी के बाद से नवी मुंबई जेल में बंद तेलतुंबड़े ने दावा किया है कि वह उस समय शहर में थे ही नहीं और उन्होंने कोई भड़काऊ भाषण नहीं दिया था. एनआईए अदालत द्वारा जमानत दिए जाने से इनकार किये जाने के बाद उन्होंने पिछले साल बॉम्बे उच्च न्यायालय का का रुख किया था.
(अनुवाद: रामलाल खन्ना | संपादन: कृष्ण मुरारी)
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