नई दिल्ली: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने पिछले बजट भाषण में विनिवेश का जिक्र नहीं किया था और वास्तव में इसके बारे में बोलने के लिए बहुत कुछ था भी नहीं. बजट दस्तावेज बताते हैं कि सरकार ने पिछले साल के 1.75 लाख करोड़ रुपये के लक्ष्य की तुलना में काफी कमी लाकर वित्त वर्ष 2022-23 के लिए 65,000 करोड़ रुपये का मामूली विनिवेश लक्ष्य ही रखा है.
निवेश और लोक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) की वेबसाइट के मुताबिक, सरकार को जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) से 20,560 करोड़ रुपये मिले हैं और इसके साथ ही कुल विनिवेश प्राप्तियां 23,575 करोड़ रुपये हो गई हैं.
इसका मतलब है कि इस वित्तीय वर्ष के विनिवेश लक्ष्य का एक तिहाई से ज्यादा हिस्सा पहले ही पूरा किया जा चुका है.
हालांकि, इस साल विनिवेश के लिए सूचीबद्ध उच्च मूल्य वाली कंपनियों, जिनमें सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स, पवन हंस, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एससीआई), भारत अर्थ मूवर्स (बीईएमएल), कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (कॉनकॉर) और भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) को लेकर कानूनी या प्रक्रियात्मक देरी के मद्देनजर अभी यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि क्या सरकार अपना बाकी मामूली लक्ष्य हासिल कर पाएगी या नहीं.
सुनिधि सिक्योरिटीज के एक अर्थशास्त्री सिद्धार्थ कोठारी ने कहा, ‘मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह मुश्किल लग रहा है कि चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में किसी भी सार्वजनिक उपक्रम का निजीकरण हो सकता है. अगर कुछ संभव भी हुआ तो संभावित हिस्सेदारी की बिक्री साल की दूसरी छमाही में ही हो सकती है.
इस बीच, वित्त मंत्रालय के शीर्ष सरकारी अधिकारियों ने संकेत दिया कि अब आईडीबीआई बैंक की बिक्री सुनिश्चित करने पर ध्यान दिया जाएगा, जहां सरकार की 45.48 प्रतिशत हिस्सेदारी है और एलआईसी की हिस्सेदारी 49.24 प्रतिशत है. कुल मिलाकर उनकी हिस्सेदारी 40,000 करोड़ रुपये की है.
दिप्रिंट ने सरकारी स्वामित्व वाली इन सभी कंपनियों की स्थिति को देखा और यह जानने की कोशिश की कि किन समस्याओं ने उनके विनिवेश को अटका दिया है.
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बीपीसीएल और कॉनकॉर
भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड में सरकार की 41,000 करोड़ रुपये की हिस्सेदारी के साथ यह इस साल विनिवेश के लिए सूचीबद्ध सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों में अब तक की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है.
2020 में शुरू हुई भारत पेट्रोलियम के निजीकरण की प्रक्रिया जब तक अपने अंतिम चरण में पहुंची, तब तक सिर्फ एक ही बोली लगाने वाला दौड़ में रह गया. दीपम के एक अधिकारी ने कहा, ‘प्रक्रिया को अब फिर से शुरू करना होगा क्योंकि वित्तीय बोलियों के समय कोई प्रतिस्पर्धी बोली नहीं थी.’
जैसा कि दिप्रिंट ने पहले बताया था, एक साथ कई फैक्टर निवेशकों को भारत की सबसे बड़ी तेल विपणन कंपनियों में से एक से दूर कर रहे हैं. इनमें यह डर भी शामिल है कि तेल विपणन कंपनियों को ईंधन मूल्य निर्धारित करने और अक्षय ऊर्जा की ओर वैश्विक प्रयासों के मामले में पूरी आजादी हासिल नहीं है.
दूसरी ओर, कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के निजीकरण की प्रक्रिया पिछले कुछ सालों से ठप पड़ी है. इसकी एक बड़ी वजह काफी हद तक रेलवे स्टेशनों के आसपास कॉनकॉर के स्वामित्व वाली भूमि के उपयोग को लेकर किसी नीति को अंतिम रूप देने में सरकार की ओर से की जा रही देरी है.
रिपोर्टों के मुताबिक, कॉनकॉर के रणनीतिक विनिवेश को गति देने के लिए भूमि लाइसेंस शुल्क को 6 प्रतिशत से घटाकर 3.5 प्रतिशत किया जा सकता है, जिससे सरकार को 8,000 करोड़ रुपये और मिल सकते हैं. लेकिन, यह प्रक्रिया अपने आप में ही काफी लंबी है.
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एससीआई और बीईएमएल
सरकार की शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया में अपनी पूरी 64 प्रतिशत हिस्सेदारी 4,000 करोड़ रुपये में बेचने की योजना है, जिसके लिए वह अब महाराष्ट्र में एससीआई की अचल संपत्ति का डी-मर्जर भी कर रही है. दीपम के अधिकारी के मुताबिक, इस प्रक्रिया में कम से कम चार-छह महीने लग सकते हैं.
उदाहरण के तौर पर, महाराष्ट्र की राज्य सरकार ने सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए एक ऐसी संपत्ति को किसी निजी खिलाड़ी को ट्रांसफर करने पर आपत्ति व्यक्त की थी क्योंकि संपत्ति— शिपिंग हाउस— मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के कार्यालय के सामने स्थित है.
भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड के मामले में एक पृथक इकाई— बीईएमएल लैंड एसेट्स— को इससे अलग किया गया है, जिसमें बीईएमएल की गैर-प्रमुख संपत्तियां शामिल हैं. इन संपत्तियों में से कुछ के ट्रांसफर के लिए डी-मर्जर इकाई को कर्नाटक और पश्चिम बंगाल की राज्य सरकारों से अनुमति लेने की जरूरत पड़ेगी.
भारत सरकार ने बीईएमएल में अपनी 26 प्रतिशत हिस्सेदारी को प्रबंधन अधिकार सौंपने के साथ 1,400 करोड़ रुपये में बेचने का प्रस्ताव किया है.
दीपम के सूत्रों के मुताबिक, डी-मर्जर प्रक्रिया से एससीआई और बीईएमएल के रणनीतिक विनिवेश में देरी की संभावना है.
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सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स
पिछले साल नवंबर में सरकार ने सौर उत्पाद निर्माता कंपनी सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स— जो वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग के अंतर्गत आती है— में अपनी सारी हिस्सेदारी एक वित्तीय सेवा प्रदाता नंदल फाइनेंस एंड लीजिंग को 210 करोड़ रुपये में बेचने की घोषणा की थी.
हालांकि, कंपनी के मूल्यांकन को लेकर सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स के कर्मचारी संघ के दिल्ली हाई कोर्ट चले जाने के बाद विनिवेश रोक दिया गया था. संघ की तरफ से दी गई प्रमुख दलीलों में यह भी शामिल था कि बोली में सफलता हासिल करने वाली कंपनी को सौर उत्पादों के निर्माण का कोई पूर्व अनुभव नहीं है.
मामला फिलहाल कोर्ट में विचाराधीन है और सरकार ने संघ की चिंताओं के बाबत जांच के लिए एक अंतर-मंत्रालयी समूह भी गठित किया है.
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पवन हंस
इसके अलावा इस साल विनिवेश पाइपलाइन में हेलीकॉप्टर निर्माता और एयरो-मोबिलिटी सेवा प्रदाता पवन हंस भी है, जिसे निजीकरण के तीन असफल प्रयासों के बाद इस साल अप्रैल में स्टार9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड को 211 करोड़ रुपये में बेच दिया गया था.
स्टार9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड तीन कंपनियों का एक संघ है, जिसमें शामिल बिग चार्टर प्राइवेट लिमिटेड, महाराजा एविएशन प्राइवेट लिमिटेड और अल्मास ग्लोबल अपॉर्चुनिटी फंड, जो कंसोर्टियम की फाइनेंसिंग इकाई है.
नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) ने अप्रैल में ईएमसी लिमिटेड— जो कंपनी फिलहाला दिवाला प्रक्रिया से गुजर रही है— के लिए सफल बोली के बावजूद अपने दायित्वों को पूरा करने में विफल रहने के कारण अल्मास ग्लोबल को इससे बाहर कर दिया था.
एक सरकारी अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘एक कंपनी से संबंधित कई मुद्दे होते हैं क्योंकि ये बड़ी कंपनियां हैं. एनसीएलटी का आदेश हमारे पास है और हम इसका अध्ययन कर रहे हैं. हम बोली जीतने वाली कंपनी को लेटर ऑफ अवार्ड देने पर जल्द ही अंतिम निर्णय लेंगे.’
निजीकरण के नियमों के मुताबिक, जो कंपनी अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में विफल रहती है, उसे अयोग्य करार दे दिया जाता है.
अल्मास ग्लोबल ने एक बयान में कहा, ‘अल्मास ग्लोबल ने बाजार की ऐसी अनिश्चितताओं के बावजूद एनसीएलटी द्वारा अनुमोदित रिजोल्यूशन प्लान के मुताबिक ईएमसी लिमिटेड के अधिग्रहण के लिए दृढ़ प्रतिबद्धता जारी रखी है और यही कारण है कि कंपनी ने फोर्स मेजेर क्लाज लागू करने के प्रावधान का इस्तेमाल नहीं किया, जो कि अनुमोदित रिजोल्यूशन में आता है, क्योंकि ऐसे क्लाज केवल इसी तरह की स्थितियों में लागू होते हैं.’
मीडिया रिपोर्ट्स ने सोमवार को बताया कि सरकार ने पवन हंस के निजीकरण को रोकने का फैसला किया है.
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आईडीबीआई बैंक की बिक्री, सुधारों पर फोकस
दीपम के अधिकारियों ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि विभाग का नजरिया अब न केवल कंपनियों में सरकारी हिस्सेदारी बेचकर वांछित प्राप्ति हासिल करने का होगा बल्कि ऐसे सुधारों को भी आगे लेकर जाएगा जो कंपनी, शेयरधारकों और दीर्घकालिक निवेशकों के हितों की रक्षा करें.
ऊपर उद्धृत दीपम अधिकारी ने कहा, ‘आप देख सकते हैं कि हमने एलआईसी के मामले में क्या किया है, कंपनी के पास अब पेशेवर तौर पर प्रबंधित एक बोर्ड है, एक नया मुख्य वित्तीय अधिकारी है और कंपनी नीतियों के संदर्भ में बदलते समय के अनुरूप रणनीतियों और उत्पादों की बेहतर पहचान के लिए नवीनतम सॉफ्टवेयर अपना रही है.’
अधिकारी ने कहा कि आईडीबीआई बैंक में हिस्सेदारी बेचते समय भी इसी तरह का प्रयास किया जाएगा.
अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारा ध्यान अब आईडीबीआई बैंक के लिए एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (ईओआई) लाने पर है. हिस्सेदारी बिक्री के लिए रास्ता खोला जा रहा है. यह भी निजीकरण के लिए एक बड़ा मुद्दा होगा क्योंकि अभी तक किसी बैंक के मामले में ऐसा नहीं हुआ है.’
उन्होंने कहा कि सरकार एलआईसी के साथ प्रबंधन कमान सौंपने के साथ-साथ इस बात पर भी चर्चा कर रही है कि दोनों कंपनियां रणनीतिक विनिवेश में कंपनी की कितनी हिस्सेदारी बेचेंगी. दीपम फिलहाल निवेशकों की रुचि का पता लगाने के लिए प्री-ईओआई रोड शो कर रहा है.
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