scorecardresearch
Friday, 19 April, 2024
होमदेशमारने के लिए चलाईं गोलियां- हैदराबाद मुठभेड़ पैनल क्यों चाहता है 10 पुलिसकर्मियों पर मुकदमा

मारने के लिए चलाईं गोलियां- हैदराबाद मुठभेड़ पैनल क्यों चाहता है 10 पुलिसकर्मियों पर मुकदमा

SC-नियुक्त पैनल ने कोर्ट में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा कि अभियुक्तों पर ‘उन्हें मारने की मंशा से जानबूझकर गोलियां चलाई गईं.' SC ने इस मामले को तेलंगाना हाईकोर्ट को सौंप दिया है.

Text Size:

हैदराबाद: 2019 में हैदराबाद की एक पशु चिकित्सक के गैंगरेप और हत्या के चार आरोपियों की कथित मुठभेड़ की जांच कर रहा सुप्रीम कोर्ट-नियुक्त जांच आयोग इस नतीजे पर पहुंचा है, कि ‘उन्हें मारने की मंशा से जानबूझकर गोलियां चलाई गईं थीं.’

अपनी रिपोर्ट में- जिसे दिप्रिंट ने देखा है- आयोग ने ये भी सिफारिश की है कि कम से कम 10 हैदराबाद पुलिसकर्मियों पर, जो ‘मुठभेड़’ के समय घटनास्थल पर मौजूद थे, हत्या के लिए मुक़दमा चलाया जाना चाहिए.

तीन-सदस्यीय पैनल- जिसमें पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज वीएस सिरपुरकर, पूर्व सीबीआई चीफ डीआर कार्तिकेयन, और पूर्व बॉम्बे हाईकोर्ट जज आरपी सोंदरबालदोता शामिल थे- यह पैनल दिसंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित किया गया था. उसने 47 दिनों की अवधि में अलग-अलग चरणों में 45 गवाहों की जांच की, जिनमें 15 पुलिसकर्मी शामिल थे.

कमेटी ने, जिसका कोविड-19 प्रतिबंधों के चलते जांच के लिए कार्यकाल बढ़ाया भी गया था, इस साल फरवरी में अपनी अंतिम रिपोर्ट शीर्ष अदालत को सौंप दी थी.

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने शुक्रवार को केस की कार्यवाही तेलंगाना उच्च न्यायालय के हवाले कर दी, ताकि रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई पर निर्णय लिया जा सके.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

बेंच ने कमीशन रिपोर्ट को सीलबंद रखने की तेलंगाना सरकार की अपील भी ये कहते हुए ख़ारिज कर दी, कि ये एक सार्वजनिक जांच थी.

इस कथित मुठभेड़ से एक हफ्ता पहले 28 नवंबर 2019 को हैदराबाद में, एक 27 वर्षीय पशु चिकित्सक की कथित तौर पर गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गई थी. 29 नवंबर को चार अभियुक्तों को पकड़ लिया गया और 4 दिसंबर को पुलिस को उनकी न्यायिक हिरासत मिल गई.

6 दिसंबर की सुबह तेलंगाना पुलिस ने चारों अभियुक्तों- मोहम्मद आरिफ, जोलू शिवा, जोलू नवीन, और चेन्नाकेसवालू- की उस समय गोली मारकर हत्या कर दी, जब उन्होंने कथित तौर पर भाग निकलने की कोशिश की. मौक़ा-ए-वारदात को फिर से तैयार करने के लिए, उन्हें हैदराबाद-बेंगलुरू हाईवे पर एक अंडरपास में ले जाया गया था.

‘मुठभेड़’ के एक हफ्ते के भीतर शीर्ष अदालत ने तीन-सदस्यीय जांच आयोग का गठन कर दिया था.


यह भी पढ़ें : पाप स्वीकारना और 5 रुपए की किताब: आंध्र में अपने फॉलोअर्स के रेप के आरोपी ‘पादरी’ की गंदी दुनिया


क्या कहती है रिपोर्ट

387 पन्नों की फाइनल रिपोर्ट में जांच आयोग ने कहा कि कथित मुठभेड़ में शामिल सभी पुलिसकर्मी, अभियुक्तों को मारने की साझा मंशा के काम कर रहे थे.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘हमारी सुविचारित राय में अभियुक्तों पर उन्हें मारने की मंशा से जानबूझकर गोलियां चलाई गईं और ये जानते हुए भी कि गोलीबारी के नतीजे में निरपवाद रूप से संदिग्धों की मौत हो जाएगी.’

उसमें 10 पुलिसकर्मियों का नाम लिया गया- वी सुरेंदर, के नरसिम्हा रेड्डी, शेक लाल मधर, मोहम्मद सिराजुद्दीन, कोचेरला रवि, के वेंकटेश्वरलू, एस अरविंग गौड़, डी जानकीराम, आर बालू राठौड़ और डी श्रीकांत- और सिफारिश की गई कि उनपर आईपीसी की धारा 302 (हत्या) तथा धारा 34 (सामान्य आशय) के तहत अपराधों के लिए मुक़दमा चलाया जाए.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘इनमें से हर एक ने अलग-अलग कार्यों को अंजाम दिया, जिनका एक सामान्य आशय संदिग्धों की हत्या करना था.’

तीन पुलिसकर्मियों- शेक लाल मधर, मोहम्मद सिराजुद्दीन, और कोचेरला रवि- का उल्लेख करते हुए रिपोर्ट में कहा गया, कि वो ‘आईपीसी की धारा 76 और आईपीसी की ही धारा 300 के अपवाद 3 का सहारा नहीं ले सकते, क्योंकि उनकी इस दलील पर यक़ीन नहीं किया गया है कि उन्होंने साफ नीयत से गोली चलाई थी’.

आईपीसी की धारा 76 का संबंध ‘विधि द्वारा आबद्ध या तथ्य की भूल के कारण अपने आप के विधि द्वारा आबद्ध होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किए गए कार्य से है.’ धारा 300 में उन मामलों की व्याख्या की गई है जिनमें ग़ैर- इरादतन हत्या का मतलब हत्या हो जाता है.

आईपीसी की धारा 300 के अपवाद 3 में कहा गया है कि ग़ैर-इरादतन हत्या उस स्थिति में हत्या नहीं है, यदि अपराधी, ‘जन सेवक के नाते या सार्वजनिक न्याय को आगे बढ़ाने में किसी जन सेवक की सहायता करने में, उसे क़ानून द्वारा प्रदत्त अधिकारों से आगे बढ़ जाता है, और ऐसा कार्य करके किसी की मौत का कारण बन जाता है, जिसे एक जन सेवक के नाते साफ नीयत से वो अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन में वैध और आवश्यक समझता है, और उस व्यक्ति के प्रति कोई दुर्भावना नहीं रखता, जिसकी उसके कृत्य से मौत हो जाती है’.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘साफ नीयत जो आईपीसी की धारा 76 के लिए एक आवश्यक शर्त है और आईपीसी की धारा 300 का अपवाद 3, दोनों इस मामले में ग़ायब पाए गए’.

कमीशन ने ये भी कहा कि उसकी जांच इस नतीजे पर पहुंची है कि मृतकों ने 6 दिसंबर की घटना के सिलसिले में ऐसा कोई अपराध अंजाम नहीं दिया, जैसे हथियार छीनना, हिरासत से भागने की कोशिश करना, और पुलिस दल पर हमला करके गोली चलाना.


यह भी पढ़ें : बढ़ती मांग, कोयले की कमी, ऊंचे दाम मांगती निजी कंपनियां- बिजली संकट से क्यों जूझ रहा है आंध्र प्रदेश


पुलिस विवरण ‘मनगढ़ंत, विरोधाभासी’

रिपोर्ट में आगे कहा गया कि घटनाक्रम के बारे में पुलिस का पूरा विवरण- न्यायिक हिरासत के दौरान अभियुक्तों के एक ‘सुरक्षित घर’ में रखे जाने से लेकर, मौक़ा-ए-वारदात को फिर से तैयार किए जाने के लिए उन्हें ले जाने तक- सब कुछ ‘मनगढ़ंत’ लगता है.

मसलन, कमीशन ने बताया कि किस तरह एक पुलिसकर्मी का पिस्टल छीने जाने के दावे का दूसरे पुलिसकर्मियों ने खंडन किया.

रिपोर्ट में कहा गया कि हालांकि कुछ गवाहों ने एक बार दावा किया था, कि उन्होंने पिस्टल छीने जाते हुए देखा था, लेकिन कुछ दूसरे मौक़ों पर ये कहते हुए अपने ही बयानों का खण्डन किया, कि उन्होंने सिर्फ पिस्टल छीने जाने के बारे में सुना था.

जिस पुलिसकर्मी ने दावा किया कि उसका पिस्टल छीना गया, उसने कहा था कि हथियार को उसके पाउच से निकाला गया था, लेकिन रिपोर्ट के अनुसार वो पाउच उसकी बेल्ट से जुड़ा ही रहा था.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘कमीशन ये समझने में असमर्थ है कि ऐसा कैसे संभव है क्योंकि छीनने के लिए पाउच को खोलकर उसमें से पिस्टल निकालने की ज़रूरत होती है, जबकि उसका पाउच बेल्ट के साथ ही हुक किया हुआ था’. उसमें आगे कहा गया कि पाउच सही सलामत था लेकिन उसका एक पीस कथित मुठभेड़ के घंटों बाद बरामद हुआ था’.

उसमें आगे कहा गया, ‘आप सिर्फ सोच सकते हैं कि एक ही पिस्टल का पाउच कैसे अलग अलग समय पर कई जगहों से बरामद किया जा सकता है’.

‘जांच में ख़ामियां’

आयोग ने जांच और सबूत जुटाने में ‘ख़ामियों’ का भी ज़िक्र किया. ‘रिकॉर्ड के हिसाब से शव एक ट्रेपीज़ियम के चार कोनों में पड़े हुए थे, जिनमें मृत संदिग्ध शिवा और नवीन सामने हैं जिनके हाथों में कोई हथियार नहीं हैं, और आरिफ तथा चेन्नाकेसवलू पिस्टल्स के साथ पीछे की ओर हैं’.

उसमें आगे कहा गया कि गवाहों की ओर से फायरिंग की घटना के ‘बयान का बनावटीपन’ उस सवाल से सबसे अच्छे से ज़ाहिर हो जाता है, जो ट्रिब्युनल ने सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) वी सुरेंदर से किया था.

जब ये पूछा गया कि क्या ‘दूसरे दो व्यक्ति, भागने की बजाय वहां खड़े होकर गोली मारे जाने का इंतज़ार कर रहे थे’, तो एसीपी ने कहा: ‘मैं ये नहीं कह सकता’. रिपोर्ट में कहा गया कि इससे भी ‘साफ ज़ाहिर होता है कि गवाह एक तर्कसंगत जवाब देने से विवश थे’.

कमीशन ने ये भी कहा कि एक बैलिस्टिक्स विशेषज्ञ के अनुसार, ‘किसी अप्रशिक्षित व्यक्ति के लिए संभव नहीं था कि उन पिस्टल्स के सेफ्टी स्विच की पहचान कर ले’, जिन्हें पुलिसकर्मी लेकर चलते हैं और फिर उनसे फायर करे.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता कि एक छोटे से समय में, जैसा कि पुलिस का आरोप है, मृत संदिग्धों ने हथियार छीने, पिस्टल उठाए और उनसे फायर कर दिया’. उसमें आगे कहा गया कि अभियुक्तों के पास पहले से हथियारों का कोई अनुभव नहीं था.

‘मिट्टी फेंकने’ की थ्योरी

जांच पैनल के अंतरिम निष्कर्षों में, जिनके बारे में पिछले नवंबर में ख़बर दी गई थी, कहा गया था कि जिरह किए जाने पर पुलिसकर्मियों के विवरण में कई ख़ामियां सामने आईं थीं. पुलिसकर्मियों ने एक दावा ये किया था कि मौक़ा-ए-वारदात को फिर से तैयार करने के लिए ले जाते समय, अभियुक्तों ने उनकी आंखों में मिट्टी फेंक दी थी.

पैनल की रिपोर्ट में कहा गया, ‘सभी फोटोग्राफ्स और वीडियोज़ में नज़र आता है कि जिस जगह घटना हुई वहां की ज़मीन परती थी और उसपर हरे भरे खरपतवार थे, और वहां ज़मीन से मिट्टी उठाना तक़रीबन नामुमकिन है. काफी कोशिश के बाद ज़मीन को खुरचकर ही मुठ्ठीभर मिट्टी हासिल की जा सकती है, लेकिन वो कहीं से भी इतनी नहीं होगी कि एक साथ 12 लोगों की आंखों में फेंककर उन्हें बिल्कुल असमर्थ कर दिया जाए और उनपर हमला कर दिया जाए’.

कमीशन ने ये भी कहा कि उनमें से तीन अभियुक्त नाबालिग़ थे, जिसका पता उनके स्कूल रिकॉर्ड्स, प्रामाणिक प्रमाण पत्रों और आधार कार्ड्स से चलता है.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘जिस तरह मॉब लिंचिंग अस्वीकार्य है ठीक उसी तरह तत्काल न्याय का विचार भी स्वीकार्य नहीं है. किसी भी समय पर क़ानून का राज चलना चाहिए. किसी भी अपराध की सज़ा क़ानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के ज़रिए ही होनी चाहिए’.

कमीशन ने ये भी कहा कि संदिग्धों की गिरफ्तारी के समय उनके संवैधानिक और वैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें : आंध्र में सेक्स ट्रैफिकिंग, रेप का खौफ: दलित किशोरी के मामले ने 65 पुरुषों,15 महिलाओं के रैकेट का भंडाफोड़


 

share & View comments