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Friday, 26 April, 2024
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एमपी सरकार पहले कमाने वाला पैरेंट गंवा चुके ‘कोविड अनाथों’ के लिए योजना लाई और फिर क्यों पलट गई

एमपी सरकार ने सबसे पहले 'कोविड अनाथ' योजना शुरू की थी. लेकिन कई लोग शिकायत कर रहे हैं कि इसमें काफी गैप्स हैं – इसमें केवल उन बच्चों को शामिल किया गया है जिन्होंने माता-पिता दोनों को खो दिए हैं और मौतें दूसरी लहर के दौरान हुई हैं.

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भोपाल: 13 मई को मध्य प्रदेश ऐसे बच्चों पर ध्यान देने वाला, देश का पहला सूबा बन गया, जिनके माता-पिता कोविड का शिकार हो गए हैं.

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘सीएम कोविड-19 बाल कल्याण योजना’ की घोषणा की, जिसके तहत ‘कोविड अनाथों’ के लिए 5,000 रुपए प्रतिमाह दिए जाएंगे- वो बच्चे जिनके माता-पिता दोनों कोविड की भेंट चढ़ गए, और साथ ही ‘वो परिवार भी, जिन्होंने पिता या कमाने वाले अभिभावक को गंवा दिया’.

सीएम ने उस समय कहा था, ‘ऐसे सभी बच्चों के लिए शिक्षा मुफ्त कर दी जाएगी, ताकि वो अपनी पढ़ाई जारी कर सकें’.

लेकिन एक हफ्ते के बाद, जब स्कीम की गाइडलाइन्स जारी की गईं, तो वो सीएम के बयान से मेल नहीं खातीं थीं.

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स्कीम के पात्रता मानदंडों में कहा गया, कि बच्चों के ‘माता-पिता दोनों कोविड-19 से मरे हों’, और मौतें दूसरी लहर के दौरान, 1 मार्च से 30 जून के बीच हुई हों.

अधिकारियों ने स्वीकार किया कि नियमों में बदलाव किए गए हैं.

राज्य महिला एवं बाल कल्याण विकास निदेशक, स्वाती मीणा ने कहा कि स्कीम के अंतिम रूप में, सिर्फ दोनों मां-बाप खोने वाले बच्चों के लिए होने का कारण ये है, कि उनके सामने बाल तस्करी, और अवैध रूप से गोद लिए जाने का ख़तरा बढ़ जाता है, इसलिए उन्हें ‘प्राथमिकता के आधार’ पर सुरक्षित करने की ज़रूरत है.

मीणा ने कहा,‘जो बच्चे पूरी तरह अनाथ हो जाते हैं, उनपर ज़्यादा ख़तरा रहता है, और उनके सामने बाल तस्करी तथा अवैध दत्तक ग्रहण के जाल में फंसने का ख़तरा रहता है’. उन्होंने आगे कहा, ‘हमारा बुनियादी लक्ष्य इन बच्चों को सुरक्षा देना था, ताकि सुनिश्चित हो सके कि उनके खून के रिश्तेदार या नए अभिभावक, ऐसे कठिन समय में उन्हें छोड़ न दें’.

लेकिन सरकार के सूत्रों ने बताया, कि जब नीति तैयार की जा रही थी, तो पता चला कि केवल एक पेरेंट के खोने वाले बच्चों की संख्या ‘बहुत अधिक थी’, इसलिए स्कीम को केवल ऐसे बच्चों तक सीमित रखा गया, जिन्होंने दोनों पेरेंट्स गंवाए हैं.

एमपी सरकार के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में ऐसे बच्चों की संख्या 1,200 हैं, जिन्होंने दूसरी लहर के दौरान अपने एक पेरेंट को कोविड-19 के हाथों गंवाया है, जबकि 250 बच्चों ने अपने माता-पिता दोनों खो दिए हैं.

मीणा ने ज़ोर देकर कहा कि जिन परिवारों ने, अपने कमाने वाले पेरेंट को खो दिया, ‘उनके बारे में भी ग़ौर किए जाने की ज़रूरत है’, लेकिन फिलहाल ‘अनाथों का ग्रुप फोकस में है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘अगर हम स्कीम को ऐसे सभी बच्चों पर लागू कर देते, तो ये संख्या बहुत बढ़ गई होती, जबकि फिलहाल एक बहुत ही केंद्रित दृष्टिकोण की ज़रूरत है, ताकि ऐसे बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके, जिनके कोई पेरेंट नहीं हैं’.

राज्य के डब्लूसीडी मंत्रालय के संयुक्त निदेशक, विशाल नादकर्णी ने स्कीम के घटनाक्रम का बचाव किया, जिसमें केवल उन्हें रखा गया है जिन्होंने अपने माता-पिता दूसरी लहर में खोए हैं.

नादकर्णी ने कहा कि कड़ी टाइमलाइन का मक़सद ये था, कि इस ‘प्रक्रिया को बेहद आसान’ बनाया जा सके’.

नादकर्णी ने कहा, ‘इस स्कीम के लिए हम इस अवधि के बीच हुई किसी भी मौत को, कोविड मौत की तरह ले रहे हैं. इसलिए अगर किसी बच्चे ने इस दौरान अपने दोनों पेरेंट्स गंवा दिए हैं, तो हम उसे कोविड मौत मानेंगे- कोई सवाल नहीं किए जाएंगे. इससे सारी प्रक्रिया परेशानी रहित हो जाएगी’.

उन्होंने आगे कहा कि ऐसे बच्चों के लिए एक दूसरी स्कीम है, जिन्होंने इस संकट में केवल एक पेरेंट को खोया है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘राज्य में पहले से ही एक स्पॉन्सरशिप स्कीम है, जिसमें ज़रूरतमंद बच्चों को 2,000 रुपए प्रतिमाह दिए जाते हैं. वो बच्चे इस स्कीम में कवर किए जा सकते हैं’.

जिस स्कीम का उल्लेख किया जा रहा है, वो समेकित बाल संरक्षण योजना (आईसीपीएस) है, जिसके अंतर्गत ऐसे बच्चों को, जो विभिन्न पारिवारिक समस्याओं से जूझ रहे हैं- पेरेंट्स को खो देना, आर्थिक संकट, मरणासन्न रूप से बीमार पेरेंट्स-18 वर्ष का होने तक 2,000 रुपए मासिक दिए जाते हैं. लेकिन इस स्कीम में ऐसे दूसरे अहम फायदे शामिल नहीं हैं, जो कोविड अनाथ पहल के तहत घोषित किए गए हैं.

मसलन, कोविड अनाथों की स्कीम में, 21 वर्ष की उम्र तक मुफ्त शिक्षा का वादा किया गया है. इसके अलावा अगर बच्चा 21 वर्ष की आयु के बाद भी पढ़ाई जारी रखता है, तो 24 की आयु तक उसकी पढ़ाई का प्रबंध किया जाएगा. आईसीपीएस स्कीम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.

डब्लूसीडी के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया, कि संवेदनशील बच्चों के लिए आईसीपीएस स्कीम में, आने वाले हफ्तों में सुधार किया जाएगा, ताकि सुनिश्चित किया जा सके, कि जिन्होंने कमाने वाले पेरेंट खो दिए हैं, उनके लिए भी बेहतर प्रावधान किए जाएं.


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कमाने वाले पेरेंट को खोने वाले परिवारों ने की ‘छोड़े जाने’ की शिकायत

लेकिन ये सब ऐसे परिवारों के लिए कोई सांत्वना नहीं है, जिन्होंने अपने कमाने वाले सदस्य को खो दिया है.

15 वर्षीय ह्रदेश और 7 साल के जीत ने, अपने पिता संतोष मालवीय को गंवा दिया, जो अप्रैल में कोविड का शिकार हो गए.

ये दोनों भोपाल के दामखेड़ा में अपनी मां के साथ एक छोटे से कमरे में रहते हैं, और मालवीय की मौत के बाद, परिवार की आय को बड़ा धक्का लगा है. वो ड्राइवर का काम करता था, और उसकी पत्नी शगुन मालवीय के अनुसार, महीने में 5,000 से 7,000 रुपए तक कमा लेता था.

शगुन ने, जो एक गृहिणी है बताया, ‘उनकी मौत के बाद हम मुश्किल से भोजन जुटा पाए हैं. मुझे नहीं पता कि अब मैं बच्चों को कैसे पालूंगी’. उसने आगे कहा, ‘काफी मुश्किलों के बाद हमने अपने छोटे बच्चे का एक निजी स्कूल में दाख़िला कराया था. लेकिन अब मेरे पास उसकी फीस भरने का कोई रास्ता नहीं है’.

शगुन ने कहा कि उसे राहत महसूस हुई थी, जब उसने ‘कोविड अनाथ’ स्कीम के बारे में सुना था, लेकिन जब उसने इसके लिए आवेदन देना चाहा, तो उसे बताया गया कि उसके बच्चे इसके पात्र नहीं हैं, चूंकि उन्होंने दोनों पेरेंट्स नहीं खोए हैं.

उसने कहा, ‘लेकिन हमारे लिए, ये बच्चे अनाथ जैसे ही हैं. वो (मेरे पति) परिवार में अकेले कमाने वाले थे, इस स्कीम से हमारी काफी सहायता हो गई होती’.

लेकिन, एक उप-नियम ज़रूर है, जिसके तहत वो बच्चे वित्तीय सहायता के पात्र हो जाते हैं, जिन्होंने सिर्फ एक पेरेंट को कोविड की दूसरी लहर में खोया है, बशर्ते कि उनका दूसरा पेरेंट किसी भी कारण से पहले मर चुका हो.


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और भी हैं समस्याएं

लेकिन ‘कोविड अनाथ’ स्कीम में कुछ और भी समस्याएं हैं.

बाल अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है, कि वो सभी बच्चे जिनके पेरेंट्स 1 मार्च से पहले कोविड से मरे, उन्हें ऐसे ही छोड़ दिया जाएगा.

मध्य प्रदेश में एक बाल अधिकार एनजीओ आवाज़ के संस्थापक, प्रशांत दूबे ने कहा, ‘ऐसे बहुत बच्चे हैं जिनके पेरेंट्स मार्च 2021 से पहले कोविड से मरे हैं. वो भी दयनीय स्थिति में हैं, और उन्हें भी मदद की ज़रूरत है’.

परिवार सरकारी स्कीम के परेशानी-रहित होने के दावे पर भी सवाल खड़े करते हैं, और आरोप लगाते हैं कि सभी कागज़ात जुटाने की प्रक्रिया का अनुभव ‘बहुत कड़वा’ रहा है.

वनीशा,16, और विवान,10, ने मई में दस दिन के अंतर से अपने पेरेंट्स कोविड के हाथों गंवा दिए थे. वो अभी स्कूल ही में थे, और विपत्ति को ठीक से समझ भी नहीं पाए थे, जब उनके रिश्तेदारों तथा शुभ-चिंतकों ने, स्कीम की पीडीएफ फाइलें थमा दीं थीं.

उनके एक रिश्तेदार 23 वर्षीय कज़िन रचित शर्मा ने कहा, ‘सबको लगा था कि ये उनके लिए, कुछ सुरक्षा सुनिश्चित करने का ये एक अच्छा तरीक़ा होगा’.

लेकिन कागज़ात का बंदोबस्त करना- मृत्यु प्रमाण पत्र जिसमें लिखा हो कि उनकी मौत कोविड से हुई, दोनों बच्चों के आधार कार्ड, उनके मृत पेरेंट्स के आधार कार्ड्स, स्कूल प्रमाण पत्र, और अन्य ज़रूरतें, परिवार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गईं.

रचित ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम भावनात्मक रूप से परेशान थे, और पूरी तरह टूट चुके थे. लेकिन एक के बाद एक डॉक्युमेंट की ज़रूरत ने, हर चीज़ को इतना मुश्किल बना दिया था’.

पैसे के हस्तांतरण के लिए स्कीम के तहत ज़रूरत होती है, कि अनाथ बच्चे और उसके नए क़ानूनी अभिभावक का एक संयुक्त खाता चलाया जाए. इस मामले में अभिभावक रचित के पिता होने वाले थे. उन्होंने कहा, ‘लेकिन जब हम बैंक गए तो हमसे कहा गया, कि लॉकडाउन की वजह से वो नए खाते नहीं खोल रहे हैं. तो फिर ऐसे में इस सब का क्या मतलब था?’

सूबे में कोविड अनाथों का जो पहला मामला उजागर हुआ, वो था पांच साल की जुड़वां बहनें रूही और माही, जिन्होंने मई में अपने मां-बाप को खो दिया.

Twins Ruhi and Mahi | Photo: Nirmal Poddar/ThePrint
रूही और माही जुड़वां हैं/फोटो: निर्मल पोद्दार/दिप्रिंट

उनके नाना सुभाष रायकवाड़ ने उनके क़ानूनी अभिभावक बनने का फैसला किया, लेकिन जब उन्होंने स्कीम का फायदा उठाना चाहा, तो उनसे कहा गया कि दोनों मृतकों के मृत्यु प्रमाण पत्रों में, कोविड लिखा होना चाहिए.

रायकवाड़ ने दिप्रिंट से कहा, ‘उनके पिता की मौत अस्पताल में हुई, इसलिए वहां से जारी मृत्यु प्रमाणपत्र में साफ-साफ कोविड लिखा था. उनकी मां की मौत कुछ दिन के बाद घर में हुई, इसलिए उसके मृत्यु प्रमाणपत्र में वो नहीं लिखा है’. उन्होंने आगे कहा, ‘शुरू में मृत्यु प्रमाण पत्र पर ज़ोर देने के बाद, अधिकारी उसकी कोविड पॉज़िटिव रिपोर्ट से काम चलाने पर सहमत हो गए’.

कोविड अनाथों के लिए एमपी सरकार की स्कीम देखने के बाद, दूसरे बहुत से राज्यों ने भी इसी तरह की अपनी स्कीमें शुरू कीं.

कुछ दिन पहले ही, केंद्र ने भी ‘पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रन’ स्कीम की घोषणा की, लेकिन मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को निर्देश दिया, कि इस पहल का विस्तृत ब्योरा पेश करें, और कहा कि ‘स्कीम के बारे में तफसीली ब्योरा उपलब्ध नहीं है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढने के लिए यहां क्लिक करें)


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