(लक्ष्मी गोपालकृष्णन)
तिरुवनंतपुरम, 31 अगस्त (भाषा) ओणम नजदीक आने के साथ ही केरल के लोग तिरुवोणम के दिन अपने प्रियजन को उपहार देने के लिए नए कपड़े खरीदने में व्यस्त हैं।
इतिहास के रिकॉर्ड बताते हैं कि ओनाक्कोडि (नए कपड़े) भेंट करने की परंपरा पूर्ववर्ती त्रावणकोर (दक्षिण केरल) में लोगों के बीच सदियों पुरानी है।
एक ऐतिहासिक दस्तावेज के अनुसार, त्रावणकोर की एक रानी ने लगभग दो सौ साल पहले एक ‘ब्रिटिश रेजिडेंट’ को ओनाक्कोडि भेंट में दी थी और उनसे अनुरोध किया था कि वह इसे त्रावणकोर राजघराने के कुलदेवता भगवान श्री पद्मनाभ के ‘प्रसाद’ के रूप में स्वीकार करें।
रानी गौरी लक्ष्मी बाई ने तत्कालीन ब्रिटिश रेजिडेंट कर्नल जॉन मुनरो को ओणम उत्सव के उपलक्ष्य में नए वस्त्र भेंट किए थे। रानी गौरी लक्ष्मी बाई ने 1810-1812 तक रानी के रूप में और फिर 1815 में अपनी मृत्यु तक रीजेंट के रूप में त्रावणकोर रियासत पर शासन किया था।
कर्नल मुनरो त्रावणकोर के पहले यूरोपीय दीवान भी थे। उन्होंने रियासत में प्रशासन के आधुनिकीकरण की शुरुआत की थी।
रानी लक्ष्मी बाई द्वारा कर्नल मुनरो और उनकी पत्नी को ओनाक्कोडि भेंट करते समय भेजे गए दो अलग-अलग पत्र ‘केरल सोसाइटी पेपर्स’ में देखे जा सकते हैं। यह संकलन राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित दुर्लभ ऐतिहासिक दस्तावेजों और शाही आदेशों पर आधारित है।
रानी ने 1812 में भेजे गए पत्र में लिखा था कि दस दिन तक मनाए जाने वाले ओणम उत्सव का सबसे शुभ दिन तिरुवोणम, भगवान पद्मनाभ का तिरुनाल (जन्मोत्सव) भी होता है।
पत्र में रानी ने उल्लेख किया था कि मलयालम माह चिंगम में तिरुवोणम के दिन अपने प्रियजनों को ओनाक्कोडि भेंट करने की परंपरा रही है, क्योंकि उसी दिन ओणम और भगवान पद्मनाभ का जन्मोत्सव दोनों एक साथ आते हैं।
रानी ने यह भी लिखा था कि यह भेंट पूरी श्रद्धा, प्रेम और स्नेह के साथ दी जाती है।
मलयालम कैलेंडर के 988वें वर्ष की चिंगम 11 तिथि को भेजे गए पत्र में लक्ष्मी बाई ने लिखा, “इसलिए, मैं भाई समान कर्नल साहब, आपकी पत्नी और बच्चों को ओनाक्कोडि भेज रही हूं। मुझे आशा है कि आप मेरा यह उपहार स्वीकार करेंगे, जिससे मुझे अत्यंत प्रसन्नता होगी।”
इतिहासकार टी. पी. शंकरनकुट्टी नायर ने बताया कि मलयालम माह चिंगम में आने वाला तिरुवोणम का दिन त्रावणकोर के राजपरिवार के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि उनकी आस्था के अनुसार इसी दिन भगवान पद्मनाभ का जन्मोत्सव भी मनाया जाता है।
उन्होंने बताया कि ओणम उत्सव के दौरान नए वस्त्र भेंट करने सहित उपहारों का आदान-प्रदान सदियों से यहां के राजघरानों में प्रचलित था और इसके प्रमाण 1800 के दशक से ही मौजूद हैं।
शंकरनकुट्टी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “ऐसे रिकॉर्ड भी उपलब्ध हैं जिनसे पता चलता है कि कर्नल मुनरो ने बदले में रानी को ओनाक्कोडि भेंट दी थी। इसका मतलब है कि उस समय यह परंपरा सामाजिक रीति-रिवाज का हिस्सा थी।”
केरल विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष ने बताया कि कभी ओणम पूरे दक्षिण भारत में मनाया जाता था, लेकिन समय के साथ यह उत्सव केवल केरल तक ही सीमित रह गया।
उन्होंने यह भी बताया कि ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, अन्य राज्यों के शासक ओणम के दौरान त्रावणकोर आते थे और भगवान पद्मनाभ को भेंट देते थे तथा तत्कालीन शासकों को उपहार देते थे।
भाषा खारी सिम्मी
सिम्मी
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