नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (आप) ने 2015 के विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान फ्री वाई-फाई देने का वादा किया था. 2020 दिल्ली विधानसभा चुनाव का समय एक साल से कम बचा है. इसके पहले दिल्ली सरकार ने एक नया शिगूफा छोड़ा है. अरविंद केजरीवाल सरकार का कहना है कि वो दिल्ली मेट्रो और बसों में सफर करने वाली महिलाओं का पूरा किराया माफ कर देगी. ऐसे में सवाल उठता है कि फ्री वाई-फाई के अधूरे वादे वाली सरकार के इस वादे में कितना दम है?
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क्या हैं अड़चनें?
दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा ने सीएम केजरीवाल की इस घोषणा पर कहा कि अभी तो सीएम ने बस अपने अधिकारियों से इस पर राय मांगी है. हो सकता है कि स्कीम इस स्तर पर डगमगा जाए. शर्मा कहते हैं कि ऐसी स्कीम लागू करना इतना आसान नहीं होगा. उन्होंने ये जानकारी भी दी कि दिल्ली मेट्रो में केंद्र और दिल्ली सरकार का आधा-आधा हिस्सा है और दिल्ली सरकार चाहे तो सब्सिडी लागू कर सकती है.
शर्मा बताते हैं कि दिल्ली का बजट एलजी यानी भारत सरकार से होकर जाता है. जब भारत सरकार इसे हरी झंडी दे देती है तो विधानसभा इससे जुड़ी औपचारिकताएं पूरी करती है. ट्रांज़ैक्शन ऑफ बिज़नेस रूल के मुताबिक दिल्ली सरकार इसमें कोई बदलाव नहीं कर सकती.
उन्होंने ये भी कहा कि कंसोलिडेटिड फंड ऑफ दिल्ली से जब पैसा निकाला जाता है तो केंद्र सरकार (एलजी) को जानकारी देनी होती है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि जो भी नया काम है उसकी जानकारी केंद्र सरकार को हो, ताकि केंद्र सरकार अगले बजट में नए फंड के लिए बढ़ाकर पैसे दे. ऐसे में आशंका है कि अगले बजट में भारत सरकार दिल्ली सरकार को बढ़ाकर पैसे न दे और किराया माफी की योजना मुंह के बल गिर जाए.
शर्मा कहते हैं कि अभी दिल्ली सरकार किराया माफी कर सकती है. लेकिन इसके लिए उन्हें एलजी से संपर्क करना पड़ेगा जिसकी वजह से केंद्र और दिल्ली में एक बार फिर टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है. वहीं, इतनी बड़ी रकम के कहीं और ख़र्च की वजह से बाकी स्कीमों को भी धक्का लग सकता है.
शर्मा ये भी कहते हैं कि ये फ्री नहीं बल्कि सब्सिडी आधारित होगा. यानी पैसा दिल्ली सरकार दे रही होगी और बोझ टैक्स भरने वालों की जेब पर पड़ेगा. इसके लिए वो बिजली का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जो 200 यूनिट से कम इस्तेमाल करते हैं उनके लिए तो बिजली फ्री है, लेकिन इसके ऊपर वालों के लिए ऐसा नहीं है. इसका भार किसी पर तो पड़ रहा है.
वो ये भी कहते हैं कि महिला को परिभाषित करने से लेकर किस उम्र तक की महिलाओं को ये सुविधा मिलेगी, इन सारी बातों पर ग़ौर करना पड़ेगा. ये देखना होगा कि इसमें ट्रांसजेंडर भी शामिल होंगे या नहीं. इससे अपराध बढ़ने की आशंका भी है.
‘दिल्ली सरकार ठान ले तो ऐसा होना संभव है’
मामले पर दिल्ली मेट्रो से जुड़े एक अधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, ‘इस पर बातचीत चल रही है. हम इसी पर चर्चा कर रहे हैं.’ अधिकारी ने कहा कि दिल्ली मेट्रो 50-50 का वेंचर है. इसमें आधा केंद्र सरकार और आधा दिल्ली सरकार का हिस्सा है.
वो आगे कहते हैं कि अगर सीएम केजरीवाल इस पर अड़ जाएं तो ऐसा हो सकता है. वो ये भी कहते हैं, ‘दिल्ली मेट्रो उनकी भी (केजरीवाल) एन्टिटी है, हम अलग से कुछ नहीं कर रहे.’ इसके बाद वो एक बार फिर इसी बात पर ज़ोर देते हैं कि अगर सरकार ठान ले तो ऐसा करना पड़ेगा.
क्या है फ्री किराए के अर्थशास्त्र से जुड़े सवाल?
इस मामले पर अर्थशास्त्री आकाश जिंदल का कहना है कि जब तक इससे जुड़े आंकड़े साफ नहीं हो जाते, कोई अर्थशास्त्री इस पर साफ राय नहीं दे सकता. इससे जुड़े अहम सवाल ये हैं कि 700-800 करोड़ रुपए की रकम का अनुमान किस आधार पर लगाया गया है?
वो पूछते हैं, ‘मैं दिल्ली के बजट का विश्लेषण करता रहा हूं. जो बजट है उसके ख़र्च का हिसाब पहले से तय है. ऐसे में दिल्ली सरकार अगर इतनी बड़ी रकम ख़र्च करने को तैयार है तो किस ख़र्च में कटौती की जाएगी या फिर इनकम बढ़ाई जाएगी?’ वो ये भी पूछते हैं कि अगर इनकम बढ़ाई जाएगी तो इसके लिए क्या तैयारी है?
आकाश ये भी कहते हैं कि इसमें कार और ऑटो से सफर करने वाली महिलाओं का भी मेट्रो और बसों में शिफ्ट होने की संभावना है. उनका सवाल है कि क्या इनकी संख्या पर ग़ौर किया गया है? वहीं, वो ये भी पूछते हैं कि अगर ऐसा होता है तो मेट्रो में एक्स्ट्रा कोच लगाने से लेकर ऑफिस के समय होने वाली भीड़ के लिए क्या तैयारी है?
हालांकि, वो ये भी कहते हैं कि सरकार जब ऐसे प्लान के साथ आई है तो उन्होंने इसे लेकर गणित भी बिठाया होगा. ऐसे में सबको पहले इससे जुड़े आंकड़ों का इंतज़ार करना चाहिए. सोमवार को दिल्ली सरकार ने जब इससे जुड़ी घोषणा की तो ये सवाल किया गया कि क्या ऐसा संभव है? इसके जवाब में सरकार ने कहा कि इससे जुड़ी रिपोर्ट एक हफ्ते में आ जाएगी और फिर सारी संभावनाओं का पता चल जाएगा.
पूर्ण राज्य के मुद्दे पर 2019 का आम चुनाव लड़ने वाली आप सरकार ने अपनी इस नई घोषणा को महिला सुरक्षा से जोड़ा है. उनका दावा है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट मुफ्त होने से महिलाएं सुरक्षित महसूस करेंगी लेकिन सरकार ने अभी तक महिला सुरक्षा से जुड़े वादों के तहत न तो सीसीटीवी लगाने का काम पूरा किया और न ही बसों में ठीक से मार्शल ही दे पाई है.
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दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी का कहना है कि दिल्ली की आबादी सवा दो करोड़ है. इसमें एक से सवा करोड़ महिलाएं हैं. इनके उचित ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था के लिए 20,000 बसों की दरकार होगी. दिल्ली में 3500-3800 बसें रह गई हैं. बसें हैं ही नहीं तो इनको बैठाएंगे कहां और जो बसें हैं उनकी भी हालत ख़राब है.
पिछले चुनाव में किए गए फ्री वाई-फाई जैसे वादे अब तक अधूरे हैं जिनके लिए केंद्र को दोष दिया जाता रहा है. ऐसे में एसके शर्मा एक आशंका ये जताते हैं कि दिल्ली सरकार ने आने वाले विधानसभा चुनाव से पहले एक दांव चला है, ताकि अगर केंद्र सरकार इसमें अड़ंगा लगा दे तो दोष उसके माथे मढ़ा जा सके.