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Saturday, 20 April, 2024
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चुनाव से गायब है महिला सुरक्षा का मुद्दा, तो क्या बिलकुल सुरक्षित हो गई हैं महिलाएं?

एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 2012 से 2018 के बीच रेप के मामले 202% प्रतिशत बढ़े हैं और 2012 की तुलना में छेड़खानी के मामले 355% बढ़े हैं.

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नई दिल्ली: 16 दिसम्बर 2012 को निर्भया के साथ हुए गैंगरेप ने भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था. इस घटना के बाद महिला सुरक्षा का मुद्दा देशभर की बहस के केंद्र में आ गया था. लेकिन 2019 के चुनाव से यह मुद्दा गायब है. 2014 के आम चुनाव के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी के चुनावी कैंपेन में महिला सुरक्षा से जुड़े बड़े-बड़े पोस्टर लगे थे. इनमें लिखा था ‘बहुत हुआ नारी पर वार, अबकी बार मोदी सरकार.’ लेकिन 2019 में भारतीय जानता पार्टी (भाजपा) का चुनाव का मुद्दा पूरी तरह से राष्ट्रीय सुरक्षा की ओर मुड़ गया है.

भाजपा, आप और कांग्रेस के कैंपेन महिला सुरक्षा मुद्दा नहीं

वहीं, देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में महिलाओं को आरक्षण देने की बात तो की है. लेकिन उसके चुनाव अभियान में भी महिला सुरक्षा किसी हाशिए के मुद्दे की तरह नज़र आती है. आधे राज्य दिल्ली की सरकार केजरीवाल के हाथों में है. 2015 के विधानसभा चुनाव में उनसे पूछा गया था कि जब पुलिस उनके हाथ में नहीं है तो वो महिलाओं को कैसे सुरक्षित करेंगे? इसके जवाब में आम आदमी पार्टी (आप) का कहना था कि वो बसों में सीसीटीवी और गार्ड्स लगवाने से लेकर स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था इतनी पुख़्ता करेंगे कि महिलाओं को असुरक्षित महसूस नहीं होना पड़ेगदा लेकिन वादों की ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है.

क्या पर्याप्त सुरक्षित हैं महिलाएं?

देश की राजधानी से राजनीति करने वाली पार्टियों के लिए महिलाओं का सुरक्षा जब मुद्दा नहीं है तो संभव है कि यहां की महिलाएं बिल्कुल सुरक्षित हो गई हों. ऐसे में दिप्रिंट ने दिल्ली के सबसे पॉश इलाके यानी दक्षिणी दिल्ली में महिलाओं से बात करके जानने की कोशिश की कि क्या सच में महिलाएं पर्याप्त सुरक्षित हो गई हैं?

काफी सुधार आना बाकी है

दिप्रिंट ने इसकी शुरुआत मुनिरका के उस इलाके से की जहां से निर्भया ने अपने ‘आख़िरी सफर’ की बस पकड़ी थी. इस इलाके की सांसद भाजपा की मीनाक्षी लेखी हैं. वहीं, आरकेपुरम विधानसभा में पड़ने वाले इस क्षेत्र की विधायक एक और महिला और आम आदमी पार्टी नेता प्रमीला टोकस हैं. इलाके में मिली दो छात्राओं ने दिप्रिंट से कहा कि महिलाओं की सुरक्षा की स्थिति में थोड़ा सुधार आया है लेकिन अभी काफी सुधार आना बाकी है.

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रात 9 बजे के बाद बाहर निकलने में सुरक्षित महसूस नहीं होता

एक छात्रा ने कहा, ‘पहले रात में निकलने में दिक्कत होती थी. लेकिन अब 9 बजे तक तो आराम से निकल सकते हैं. लेकिन उसके बाद दिक्कत होती है.’ रात 9 बजे तक निकलने में सहूलियत वाली बात को इलाके में बने मेट्रो से जोड़ा जा सकता है. मेट्रो बन जाने से वहां काफी चहल-पहल थी. वहीं, दूसरी लड़की का कहना था कि हालात नहीं बदले और काफी कुछ बदलना बाकी है.

‘कुछ भी नहीं बदला’

थोड़ी ही दूर पर मिलीं मंजुला नाम की एक और महिला ने जो बताया वो काफी भयानक था. उनका कहना था, ‘कुछ भी नहीं बदला.’ उनका आरोप था कि महिलाओं के लिए अकेले सफर करना किसी नर्क के समान है. एक दिन की घटना का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि एक बार वो ऑफिस के बाहर खड़ी थीं और तभी एक बाइक वाला आ गया. वह उन्हें जबर्दस्ती लिफ्ट देने पर तुल गया. महिला का कहना था कि अकेली लड़की अगर कहीं खड़ी हो तो लोग उसे ‘ग़लत तरह’ की ही समझते हैं.

इन महिलाओं से बात करके लगा कि स्थिति में कोई क्रांतिकारी बदलाव तो नहीं आया है. इनसे बातचीत के बाद दिप्रिंट जब हौज़ ख़ास के एसडीए मार्केट के इलाके में पहुंचा तो वहां काफी चहल-पहल थी. रात 10 बजे के करीब वहां काफी लड़कियां घूमती-फिरती नज़र आईं. पास में ही दक्षिणी दिल्ली स्थित हौज़ खास का मेट्रो स्टेशन है. यहां लड़कियां कैमरे पर बात करने को राज़ी नहीं हो रही थीं.

पॉश इलाके की लड़कियों के लिए भी कुछ नहीं बदला

वहां से जब वापस एसडीए मार्केट आने के लिए एक रास्ता लिया गया तो रास्ते में काफी अंधेरा था. ये रास्ता हौज़ ख़ास विलेज की तरफ से एक रिहायशी आवासीय इलाके होता हुआ एसडीए मार्केट की तरफ आता है. इस अंधेरे रास्ते में हमें तीन लड़कियां मिलीं, जिनके साथ एक लड़का भी था. इन लड़कियों में से दो विदेश में रहने वाली थीं. उनका कहना था कि कुछ भी तो नहीं बदला.

‘महिला सुरक्षा होना चाहिए हर चुनाव का मुद्दा’

इन तीन लड़कियों से जब हमारी बात हुई तो इनका कहना था कि दिल्ली या भारत में ही नहीं, बल्कि अमेरिका जैसे देशों में भी ऐसे ही हालात हैं. उनमें से भारत के बाहर रहने वाली रूपाली ने कहा कि वहां भी अकेली लड़की देर रात बाहर नहीं जाती. उसे भी किसी पुरुष के साथ की ज़रूरत महसूस होती है. लेकिन तभी उनमें से एक ने कहा कि भले ही पूरी दुनिया में हालात एक जैसे हों, लेकिन महिला सुरक्षा तो मुद्दा है ही. वहीं, उनका कहना था कि नेताओं के नेतृत्वकर्ता की भूमिका की वजह से उनकी एक आवाज़ होती है और इस आवाज़ क इस्तेमाल उन्हें समाज के बदालव में करना चाहिए.

दिप्रिंट ने उनसे जब महिला सुरक्षा के लिए ‘अबकी बार मोदी सरकार’ और केजरीवाल के वादों की याद दिलाते हुए ये सवाल पूछा कि क्या महिला सुरक्षा से जुड़े वादे पूरे हुए तो उन्होंने कहा कि हालात बिलकुल नहीं बदले. वहीं, जब उनसे पूछा गया कि क्या महिला सुरक्षा को एक मुद्दे के तौर पर चुनाव से गायब होना चाहिए तो सबने एक सुर में न में जवाब दिया और कहा कि इसे हर चुनाव में मुद्दा होना चाहिए.

202% तक बढ़ गए हैं रेप के मामले 

देश से महिला सुरक्षा का मुद्दा तब गायब है जब 22 फरवरी 2019 को आए एक सर्वे में ये बात सामने आई है कि राजधानी में महिलाएं और बच्चे सुरक्षित नहीं हैं. न्यूज़ क्लिक पर पोस्ट इस सर्वे से जुड़ी एक रिपोर्ट में लिखा है कि जिन लोगों ने ऐसे मामलों में केस दर्ज कराया उनमें से 68 प्रतिशत लोग पुलिस से नाख़ुश हैं. प्रजा फाउंडेशन के इस सर्वे में बताया गया है कि 2016-17 की तुलना में 2017-18 में दिल्ली में रेप के मामले बढ़े हैं.

मेल टुडे की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 2012 से 2018 के बीच रेप के मामले 202% प्रतिशत बढ़े हैं. 2012 में एक तरफ जहां रेप के 706 मामले थे तो वहीं 2018 में इन मामलों की संख्या बढ़कर 2,135 हो गई. वहीं, 2012 की तुलना में 2018 में छेड़खानी के मामले 355% बढ़े हैं. हालांकि, इसके पीछे हवाला ये दिया जाता है कि तब की तुलना में दिल्ली की आबादी भी बढ़ी है जिसकी वजह से ऐसी घटनाएं बढ़ गई हैं. इस संख्या को तोड़ते हुए रिपोर्ट में बताया गया है कि 2018 में दिल्ली में हर रोज़ छह रेप के मामले दर्ज हुए.

बस की तुलना में मेट्रो ज्यादा सुरक्षित, सड़कें जगमग लेकिन गलियों में अंधेरा

इंटरनेट ऐसी रिपोर्टों से भरा हुआ है और इन्हें देखकर आपको लगेगा कि महिलाओं के लिए हालात जस के तस हैं. उनके घर में रहने से बाहर निकलने तक सभी जगह मुहाल है. ऐसे में जब हमने दक्षिणी दिल्ली में मिली महिलाओं से सफर साधने के तौर पर मेट्रो और बस में से बेहतर विकल्प चुनने को कहा तो जवाब था कि वैसे तो ऐसी घटनाएं कहीं भी हो सकती हैं लेकिन बस की तुलना में मेट्रो काफी बेहतर है. वहीं, उनका ये भी कहना था कि उन्हें किसी बस में सीसीटीवी तो नज़र आता है. लेकिन किसी भी बस में गार्ड नहीं दिखता और दिल्ली के ज़्यादातार इलाकों की मुख्य सड़कें तो जगमग हैं. लेकिन सड़कों से गलियों की ओर मुड़ने पर अंधेरा छा जाता है.

इलाके की सांसद मीनाक्षी लेखी को भाजपा ने फिर से इसी सीट पर टिकट दिया है. उनके चुनाव प्रचार में कहीं महिला सुरक्षा की बात नहीं है. इस प्रचार से जुड़े एक पर्चे में उन्होंने अपने इलाके में ओपन जिम खुलवाने से लेकर पहला शूटिंग रेंज बनवाने की बात की है, लेकिन महिला सुरक्षा यहां से भी गायब है. वहीं, आम आदमी पार्टी 2019 का चुनाव पूर्ण राज्य के मुद्दे पर लड़ रही है और पार्टी का कहना है कि जब पूर्ण राज्य बन जाएगा तो पार्टी महिलाओं को सुरक्षा देने में सक्षम हो जाएगी. वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी गाहे-बगाहे महिला सुरक्षा पर बात कर लेते हैं, लेकिन इसमें कोई गंभीरता नज़र नहीं आती.

ऐसे में 2019 के चुनाव में भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी को लगता हो कि राष्ट्रवाद सबसे बड़ा मुद्दा है और महिला सुरक्षा पर बात करने की दरकार नहीं है. आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल को भले ही लगता हो कि दिल्ली के पूर्ण राज्य बनने तक महिलाएं ख़ुद को जैसे-तैसे सुरक्षित रख सकती हैं. कांग्रेस या राहुल गाधीं को भले ही लगता हो इस मुद्दे पर खानापूर्ति करके काम चल जाएगा. लेकिन जिन महिलाओं से दिप्रिंट की बात हुई और जिन तथ्यों पर नज़र पड़ी वो कुछ और ही कहानी कहते हैं.

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