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Thursday, 2 May, 2024
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2020 चुनाव: ‘आप’ का नारा- ‘दिल्ली में तो केजरीवाल’, तो क्या अधूरा रहेगा दिल्ली का सम्मान?

आम चुनाव में करारी हार के बाद 'आप' ने अगला चुनाव अभियान अभी से शुरू कर दिया. पूर्ण राज्य के मुद्दे की जगह पार्टी का नारा है- 'दिल्ली में तो केजरीवाल!'

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नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव में अभी छह महीन से ज़्यादा का समय है. लेकिन 2019 के आम चुनाव में करारी हार के बाद आम आदमी पार्टी (आप) ने अपना चुनाव अभियान अभी से शुरू कर दिया है. एक तरफ लोकसभा में उम्मीदवार रहीं आतिशी हार के बाद रोज़ाना सोशल मीडिया पर तस्वीरें शेयर कर बता रही हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में कौन से काम हुए हैं. दूसरी तरफ आधिकारिक कैंपेन में पूर्ण राज्य के मुद्दे को बैकसीट पर बिठाते हुए ‘आप’ का नया नारा है- ‘दिल्ली में तो केजरीवाल!’

‘दिल्ली के दिल में है केजरीवाल, दिल्ली में तो केजरीवाल’

पार्टी ने ट्वीट करके अपने नए कैंपेन का पहला पोस्टर सार्वजनिक किया. पार्टी का नारा है- ‘दिल्ली के दिल में है केजरीवाल, दिल्ली में तो केजरीवाल.’ ‘आप’ के राजस्थान प्रभारी संजय सिंह का कहना है कि ये पार्टी के आधिकारिक नारा है.

‘आप’ का दावा- ‘छोटे चुनाव’ में दिल्ली वाले पार्टी को देंगे वोट

बुधवार को ‘आप’ प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने पार्टी के कार्यकर्ताओं को एक चिट्ठी लिखी है. चिट्ठी में केजरीवाल ने अप्रत्यक्ष तौर पर माना है कि ‘बड़े चुनाव’ (लोकसभा चुनाव) में ‘मोदी लहर’ थी. उन्होंने ये भी माना कि ‘आप’ लोगों को अपने मुद्दे नहीं समझा पाई. हालांकि, दावा ये भी है कि दिल्ली के लोगों ने भले ही ‘बड़े चुनाव’ में पीएम नरेंद्र मोदी को वोट दिया हो, लेकिन ‘छोटे चुनाव’ (विधानसभा चुनाव) में वो केजरीवाल को वोट देंगे.

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इसी चिट्ठी में उनका दावा है कि वोट नहीं देने के बावजूद लोगों ने माना कि ‘आप’ ने बहुत अच्छे उम्मीदवार उतारे थे. बावजूद इसके ऐसा लग रहा है कि 70 विधानसभा सीटों वाली दिल्ली में अगले चुनाव में ‘आप’ उम्मीदवारों के ऊपर केजरीवाल की छवि हावी रहेगी.

लोकसभा चुनाव में भाजपा की रणनीति ये थी कि मोदी के नाम पर वोट मांगे जाएं. ऐसा करके उन्होंने उम्मीदवारों के खिलाफ संभावित सत्ता विरोधी लहर को भी काट दिया. हर जगह एक बात देखने को मिली की भाजपा के उम्मीदवार अपने नहीं बल्कि पीएम मोदी के नाम पर वोट मांग रहे थे. भाजपा ने संदेश को इस तरह से आसान बनाया था कि कमल का बटन दबाने पर वोट मोदी को जाएगा. संभव है, आने वाले चुनाव में ‘आप’ भी इसी पैटर्न को दोहराती दिखे. ऐसे में सवाल ये है जिस पूर्ण राज्य के मुद्दे पर ‘आप’ ने आम चुनाव लड़ा था, क्या पार्टी उसे तिलांजलि दे देगी?

बैकसीट पर बैठेगा पूर्ण राज्य का मुद्दा, आगे होंगे केजरीवाल?

लोकसभा चुनाव में पूर्ण राज्य के मुद्दे को पार्टी ने ज़ोर शोर से उठाया था. इस मुद्दे के भविष्य पर 2019 के आम चुनाव में ‘आप’ के उम्मीदवार रहे दिलीप पांडे ने कहा, ‘ये 2020 विधानसभा चुनाव के आधिकारिक कैंपेन की शुरुआत है. लाइन यही रहेगी कि ‘दिल्ली में तो केजरीवाल.’ हालांकि, संजय सिंह का कहना है कि पूर्ण राज्य का मुद्दा भी कैंपेन का हिस्सा रहेगा.

‘आप’ के इस कैंपेन में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कैंपेन की झलक नज़र आती है. भाजपा ने आम चुनाव में ‘फिर एक बार मोदी सरकार’ और ‘आएगा तो मोदी’ जैसे नारे उछाले थे. इस पर दिलीप पांडे का कहना है कि उनका कैंपेन अलग है. वो कहते हैं, ‘मोदी का कैंपेन पर्सनैल्टी सेंट्रीक (व्यक्ति केंद्रीत) था, जबकि दिल्ली में पांच साल लोगों ने हमारा काम देखा है, अब केजरीवाल के नाम पर वोट मांगेगे.’ दिलीप के इस बयान से ये तो साफ नहीं होता कि उनका कैंपेन भाजपा के कैंपेन से कैसे अलग है. लेकिन एक बात साफ है कि पूर्ण राज्य का मुद्दा बैकसीट पर होगा.

भाजपा ने कहा- जाएगा तो केजरीवाल

भाजपा विधायक जगदीश प्रधान ने ‘आप’ के इस कैंपेन पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘हमारा नारा है कि दिल्ली से तो जाएगा केजरीवाल.’ उन्होंने आरोप लगाए कि पार्टी ने दिल्ली के विकास की जगह विनाश किया जिसकी वजह से लोग इनसे काफी ख़फा हैं. उन्होंने दिप्रिंट को जानकारी देते हुए कहा, ‘हमारी सरकार आई तो अनाधिकृत कॉलनियों को तीन महीने में अधिकृत कर देंगे.’

‘आप’ में क्रिएटिविटी की कमी- कांग्रेस

‘आप’ के इस कैंपेन पर कांग्रेस नेता शर्मिष्ठा मुखर्जी का कहना है, ‘ये दिखाता है कि ‘आप’ में रचनात्मकता की कमी है.’ उनका कहना है कि आम चुनाव में ‘आप’ ने लोगों को पूर्ण राज्य के नाम पर बेवकूफ बनाया. उन्हें पता था कि ये संभव नहीं है. इसी वजह से वो बुरी तरह से फेल हुए. शर्मिष्ठा ने ये भी कहा कि कांग्रेस कैंपेन की जगह पूरे साल काम करने में विश्वास रखती है.

केजरीवाल केंद्रीत कैंपेन पर ‘आप’ का क्या कहना है

संजय सिंह केजरीवाल केंद्रित कैंपेन की बात से इंकार करते हैं. खासकर ऐसे में जब ‘आप’ ने लोकसभा में मोदी के इर्द-गिर्द किए गए कैंपेन पर हमलावर तेवर अपनाये थे. संजय सिंह का कहना था, ‘ऐसी बात है तो भाजपा को मोदी का नाम लेना बंद कर देना चाहिए.’ वो कहते हैं जिस आदमी (केजरीवाल) ने पांच साल काम किया है और सरकार का मुखिया है, उसका नाम लेने में बुराई क्या है?

संजय सिंह ने आगे कहा, ‘पिछले पांच सालों में केजरीवाल सरकार ने शहीदों को एक करोड़ मुआवज़ा देने से लेकर गेस्ट टीचर की तनख़्वाह के अलावा विधवा और दिव्यागों को मिलने वाली सहायता राशि को दोगुना करने जैसे काम किए हैं. ऐसे में ‘दिल्ली में तो केजरीवाल’ हमारा ज़मीनी नारा है.’ हालांकि, संजय सिंह का कहना है कि पूर्ण राज्य का मुद्दा मेनिफेस्टो का हिस्सा रहेगा, जबकि कैंपेन का चेहरा केजरीवाल होंगे.

2015 के विधानसभा चुनाव में भी ‘आप’ ने केजरीवाल को अपना चेहरा बनाया था. तब पार्टी के कैंपेन का सबसे चर्चित नारा था ‘पांच साल केजरीवाल.’ पिछले चुनाव में पार्टी के 70 में 67 सीटें मिली थीं. इसका एक बड़ा कारण ये बताया गया था कि भाजपा के पास राज्य में कोई चेहरा नहीं था और कांग्रेस अपने सबसे बुरे राजनीतिक दौर से ग़ुजर रही थी. हालांकि, इतनी सीटें मिलने के पीछे पार्टी के ज़मीनी काम के अलावा दमदार कैंपेन को भी बड़ी वजह माना गया था.

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