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Thursday, 25 April, 2024
होमदेश‘हमारी बेसिक जरूरतें हैं, सुरक्षा चाहिए’: महामारी में MP के 3,500 डॉक्टरों ने क्यों दिया इस्तीफा

‘हमारी बेसिक जरूरतें हैं, सुरक्षा चाहिए’: महामारी में MP के 3,500 डॉक्टरों ने क्यों दिया इस्तीफा

डॉक्टर जहां पूरी जोरदारी से कह रहे हैं कि वो ये सुनिश्चित कर रहे हैं कि विरोध का उन मरीजों पर कोई असर न पड़े जिनकी देखभाल करना उनके जिम्मे है, वहीं राज्य सरकार ने उन पर महामारी के चरम पर होने के बीच मरीजों को ‘ब्लैकमेल’ करने का आरोप लगाया है.

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भोपाल: भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज और हमीदिया अस्पताल में स्नातकोत्तर प्रथम वर्ष की छात्रा झलक अग्रवाल ने प्रवेश परीक्षा और उसके बाद के काउंसलिंग सेशन में बैठने के 3 साल बाद प्रतिष्ठित ओबी-जीवाईएन (प्रसूति-स्त्री रोग विशेषज्ञ) ब्रांच में एक सीट हासिल की है, जिसे एक कठिन प्रक्रिया का हिस्सा माना जाता है. यह सब पांच साल के एमबीबीएस कोर्स के बाद हुआ है, जिसकी अवधि तैयारी के लिए पूरे एक साल के अंतराल के कारण और भी बढ़ जाती है.

आज वह जहां है, वहां तक पहुंचने के लिए उसे एक दशक तक कड़ी मेहनत करनी पड़ी, लेकिन 28 वर्षीय मेडिकल छात्रा ने पिछले हफ्ते इस्तीफा दे दिया. वह मध्य प्रदेश के छह सरकारी अस्पतालों के उन 3,500 जूनियर डॉक्टरों में से एक है जिन्होंने अपनी कुछ मांगों के लिए दबाव बनाने के लिए इस्तीफा दे दिया है, जिसमें डॉक्टरों पर हमला करने वाले नाराज़ रिश्तेदारों से सुरक्षा का मसला भी शामिल है. डॉक्टरों को पता है कि इस्तीफा देना उनके लिए एक बड़ी कीमत चुकाने जैसा है, लेकिन उनका दावा है कि कोई अन्य विकल्प ही नहीं बचा था.

अग्रवाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘आखिरी बार जब मैं आराम से अपने माता-पिता के साथ रही थी तब से अब तक 10 साल बीत चुके हैं. मैंने अपनी पूरी युवावस्था पढ़ाई और डॉक्टर बनने के लिए कड़ी मेहनत करने में बिता दी है. ये ऐसा नहीं है जिसे कोई भी आसानी से छोड़ दे.’

उन्होंने कहा, ‘हमें एकदम दर-किनार कर दिया गया और हमारे पास इस्तीफे के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा था. हमें तो बदले में बुराई ही मिली है.’

डॉक्टर पिछले सोमवार को हड़ताल पर चले गए, लेकिन मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की तरफ से गुरुवार को विरोध प्रदर्शन को ‘गैरकानूनी’ करार दिए जाने, और डॉक्टरों को 24 घंटे के भीतर अपने ड्यूटी संभालने का निर्देश दिए जाने के बाद उन्होंने इस्तीफे का फैसला किया.

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मेडिकल शिक्षा के मामले में राज्य का सबसे बड़ा संस्थान भोपाल स्थित गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) विरोध जताने के लिए ग्राउंड जीरो बनकर उभरा है. प्रदर्शनकारी डॉक्टर अपनी दलीलों को मजबूती से रखने के लिए नुक्कड़ नाटक कर रहे हैं. इसमें इस विसंगति को पूरे जोरशोर से उठाया जा रहा है कि कैसे एक तरफ उन्हें ‘कोविड योद्धा’ के तौर पर सराहा जा रहा है लेकिन दूसरी तरफ उन्हें हिंसा झेलनी पड़ती है.

जीएमसी में विरोध प्रदर्शन में शामिल एक जूनियर डॉक्टर सौरभ तिवारी ने ताली और थाली बजाकर फ्रंटलाइन वर्कर्स को सम्मानित करने की मोदी सरकार की 2020 की पहल का जिक्र करते हुए कहा, ‘हम थाली या ताली नहीं चाहते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘हम नहीं चाहते कि आप हम पर फूल बरसाएं, या अनावश्यक प्रशंसा करें. हम चाहते हैं कि हमें सुरक्षा मिले और हमारी बुनियादी जरूरतों को पूरा किया जाए.’

डॉक्टर जहां पूरी जोरदारी से कह रहे हैं कि वो ये सुनिश्चित कर रहे हैं कि विरोध का उन मरीजों पर कोई असर न पड़े जिनकी देखभाल करना उनके जिम्मे है, वहीं राज्य सरकार ने उन पर महामारी के चरम पर होने के बीच मरीजों को ‘ब्लैकमेल’ करने का आरोप लगाया है.

मध्य प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा आयुक्त निशांत वारवाडे ने दिप्रिंट से कहा कि मांगों को सामने रखने के लिए विरोध प्रदर्शन सही तरीका नहीं हैं.


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डॉक्टरों की मांग क्या है

अन्य बातों के अलावा, डॉक्टरों ने जान गंवाने वाले कोविड मरीजों के रिश्तेदारों की तरफ से हमलों की रिपोर्ट के बीच अपने लिए बेहतर सुरक्षा की मांग की है.

जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन (जेडीए) ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सरकारी अस्पतालों में हर कोविड ब्लॉक/वार्ड के सामने पुलिस चौकी बनाने पर जोर दे रहा है.

तिवारी, जो जेडीए के कार्यकारी सदस्य भी हैं, ने कहा, ‘हम अपनी क्षमता के मुताबिक मरीजों का हरसंभव इलाज करने की कोशिश करते हैं लेकिन हम भगवान नहीं हैं. अगर हमारे सारे प्रयासों के बावजूद किसी की मौत हो जाती है, तो हम पिटने के लायक तो नहीं हो जाते.’

Doctors' protest at GMC | Nirmal Poddar | ThePrint
जीएमसी पर विरोध प्रदर्शन कर रहे डॉक्टर | निर्मल पोद्दार | दिप्रिंट

एक और मांग छात्रों का स्टाइपेंड 24 फीसदी बढ़ाने को लेकर है. जेडीए ने कहा कि मध्य प्रदेश अपने जूनियर डॉक्टरों को दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान जैसे अन्य स्थानों की तुलना में बहुत कम भुगतान करता है.

जेडीए के संयुक्त सचिव अमित तांडिया ने कहा, ‘हमें प्रथम वर्ष में केवल 55,000 रुपये प्रति माह का स्टाइपेंड मिलता है जबकि अन्य राज्यों में यह 1 लाख रुपये तक है. हमने केवल 24 प्रतिशत की वृद्धि की मांग रखी है ताकि हम भी अन्य राज्यों के बराबर महसूस कर सकें.’

राज्य सरकार से मिले आंकड़ों के मुताबिक, ज्यादा स्टाइपेंड वाले राज्यों में महाराष्ट्र (64,000 रुपये), गुजरात (60,000 रुपये) और राजस्थान (55,200 रुपये) शामिल हैं.

डॉक्टरों ने यह भी मांग की है कि कोविड संक्रमण की स्थिति को देखते हुए अस्पताल में उनके और उनके रिश्तेदारों का इलाज सुनिश्चित करने के लिए बेड आरक्षित किए जाएं. छात्रों का आरोप है कि कई बार ऐसा भी हुआ है जब जूनियर डॉक्टरों को पॉजिटिव पाए जाने के बावजूद उन्हें उन्हीं अस्पतालों में भर्ती नहीं किया गया जहां वे काम करते हैं, जबकि खाली बेड मौजूद थे.

जीएमसी के कई डॉक्टरों ने दिप्रिंट को बताया कि कई बेड आईएएस अधिकारियों या राजनेताओं के परिवारों जैसे वीआईपी मरीजों के लिए आरक्षित हैं.

जीएमसी और हमीदिया अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक लोकेंद्र दवे ने इस आरोप का खंडन किया. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘इसमें कोई सच्चाई नहीं है.’ हालांकि, उन्होंने कहा कि उन्हें छात्रों से पूरी सहानुभूति है, खासकर बेहतर सुरक्षा की उनकी मांग को लेकर.

दवे ने कहा, ‘मृतक के परिजनों के गुस्से और आक्रोश का सबसे ज्यादा सामना जूनियर डॉक्टरों को ही करना पड़ता है. इसलिए, ऐसे व्यवहार से उन्हें बचाने के लिए बेहतर सुरक्षा मिलनी चाहिए.’

प्रदर्शनकारी डॉक्टरों की एक और मांग एक साल का ‘रूरल बांड’ खत्म करने की भी है, जिस पर उन्होंने प्रवेश के समय हस्ताक्षर किए थे. इसके तहत सरकारी डॉक्टरों के लिए स्नातक होने के बाद एक साल तक ग्रामीण क्षेत्रों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में अपनी सेवाएं देना अनिवार्य है. लेकिन कई डॉक्टरों का तर्क है कि उन्होंने पिछला एक साल अपनी विशेषज्ञता की कीमत पर कोविड मरीजों का इलाज करने में बिताया है, जिनमें ग्रामीण क्षेत्रों के लोग भी शामिल रहे हैं, जो इलाज के लिए शहरों में आते हैं.

टांडिया ने कहा, ‘मैं यहां आर्थोपेडिक सर्जरी की पढ़ाई करने आया था. जो कि मेरी डिग्री होनी चाहिए. लेकिन पिछले डेढ़ साल से मैं सिर्फ कोविड ड्यूटी कर रहा हूं. इसलिए उचित तो यही होगा कि एक बार यह खत्म हो जाने के बाद मैं अपनी विशेषज्ञता पर ध्यान केंद्रित कर अच्छे संस्थानों में प्रवेश ले पाऊं, जो मैं यहां नहीं कर सकता था.’


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छात्रावास खाली करने, बांड का पैसा जमा करने को कहा

मार्च में पहली बार इन मांगों को उठाए जाने के बाद से जेडीए कई बार सरकारी प्रतिनिधियों से मिल चुका है. 6 मई को मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री विश्वास सारंग ने जेडीए के सदस्यों के साथ एक तस्वीर ट्वीट करते हुए कहा, ‘सरकार उनकी मांगों पर सहमत हो गई है.’

सरकार डॉक्टरों से महामारी के दौरान अपनी हड़ताल खत्म करने और ‘मरीजों को ब्लैकमेल न करने’ का आग्रह करती रही है. 4 जून को सारंग के हवाले से यह जानकारी दी गई थी कि स्टाइपेंड की उनकी मांग को चरणबद्ध तरीके से पूरा किया जाएगा.

साथ ही उन्होंने ग्रामीण क्षेत्र में सेवा देने से छूट की मांग की आलोचना की. सारंग ने कहा था, ‘डॉक्टरों को ऐसे संकट के समय में लोगों को ब्लैकमेल नहीं करना चाहिए. यदि हाई कोर्ट ने कुछ निर्देश जारी किए हैं, तो सभी को उनका पालन करना चाहिए.’

दिप्रिंट से बातचीत में चिकित्सा शिक्षा आयुक्त निशांत वारवाड़े ने कहा, ‘यह शर्मनाक है कि छात्र महामारी के चरम पर होने के बीच हड़ताल करना चाहते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘बिहार जैसे कुछ राज्य हैं जो मध्यप्रदेश की तुलना में जूनियर डॉक्टरों को अधिक स्टाइपेंड देते हैं. लेकिन यह तो हमेशा से ही रहा है. फिर इन डॉक्टरों ने यहां एडमिशन क्यों लिया? उन्हें बिहार चले जाना चाहिए था.’

उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश में जूनियर डॉक्टरों को दिया जाने वाला स्टाइपेंड कुछ राज्यों की तुलना में कम हो सकता है, लेकिन आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे अन्य राज्यों की तुलना में अधिक भी है.

उन्होंने कहा, ‘यह एक अंतहीन बहस है, लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि चीजों को सामने रखने का एक तरीका होता है, और वो यह नहीं है.’

वहीं डॉक्टरों ने अपनी ओर से जोर देकर कहा कि उनकी हड़ताल के कारण मरीजों को किसी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ रहा है.

तिवारी ने कहा, ‘पहली बात को हम कभी भी हड़ताल पर नहीं जाना चाहते थे. अब भी, हमने दूसरी लहर कम होने के बाद हड़ताल करना चुना ताकि मरीजों पर कोई गंभीर असर न पड़े. अगर कभी कोई आपात स्थिति होती है, तो हम हड़ताल छोड़ देते हैं और उनके पास भी जाते हैं.’

इस बीच, जेडीए ने राज्य सरकार के आश्वासन को खारिज कर दिया और दावा किया है कि उनकी मांगों को लागू नहीं किया गया है.

जेडीए अध्यक्ष हरीश पाठक ने कहा, ‘पिछले कई महीनों से वे हमें केवल आश्वासन दे रहे हैं, इसके अलावा कुछ नहीं मिल रहा. लेकिन हम भी अड़े हैं, हम हार नहीं मानेंगे.’

हाई कोर्ट के आदेश के बाद जबलपुर में सरकार संचालित एमपी मेडिकल यूनिवर्सिटी ने 450 जूनियर डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया है.

शनिवार को राज्य सरकार ने इस्तीफा देने वाले प्रदर्शनकारी डॉक्टरों को बेदखली नोटिस भेजकर छात्रावास खाली करने और अपनी सीट छोड़ने पर बांड की राशि जमा करने को कहा.

दिल्ली स्थित एम्स और सफदरजंग अस्पतालों के रेजिडेंट डॉक्टरों ने रविवार को मध्य प्रदेश में प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों के समर्थन में कैंडल मार्च निकाला.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के जूनियर डॉक्टरों के नेटवर्क ने शनिवार को एक बयान जारी कर कहा कि वे ‘मध्य प्रदेश की नौकरशाही की तरफ से राज्य के जूनियर डॉक्टरों के खिलाफ डराने-धमकाने की रणनीति अपनाए जाने के बारे जानकर स्तब्ध हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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