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Sunday, 22 December, 2024
होमदेश'राजनीति पर बात नहीं करते': गांधी शांति पुरस्कार को लेकर विपक्ष की आलोचना पर बोले गीता प्रेस के ट्रस्टी

‘राजनीति पर बात नहीं करते’: गांधी शांति पुरस्कार को लेकर विपक्ष की आलोचना पर बोले गीता प्रेस के ट्रस्टी

दिप्रिंट से बातचीत में ट्रस्टी देवी दयाल ने गीता प्रेस के लिए महात्मा गांधी की सलाह, 'नो प्रॉफिट, नो लॉस' पब्लिशिंग हाउस चलाने और ‘हिंदुत्व बनाम हिंदुत्व’ की बहस के बारे में बातचीत की.

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नई दिल्ली: गोरखपुर स्थित गीता प्रेस को प्रतिष्ठित ‘गांधी शांति पुरस्कार’ दिए जाने पर विपक्ष के नेता जयराम रमेश के तीखे हमले के बीच प्रेस के एक ट्रस्टी ने कहा है कि लोग जो कुछ भी कहना चाहते हैं, कहने के हकदार हैं.

दिप्रिंट से बातचीत में उन्होंने कहा, “जयराम रमेश जो चाहें कह सकते हैं, हम अपना काम करते रहेंगे. हम एक स्वतंत्र देश में रहते हैं. दूसरे क्या कह रहे हैं हम इसे नियंत्रित नहीं कर सकते. हम खुद को किसी भी राजनीतिक चर्चा में शामिल नहीं करते हैं.”

गीता प्रेस को “अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में उत्कृष्ट योगदान” के लिए गांधी शांति पुरस्कार 2021 से सम्मानित किया गया है. हालांकि, प्रेस के ट्रस्टी देवी दयाल ने कहा कि वह “कोई लाभ नहीं, कोई नुकसान नहीं” की अपनी परंपरा पर चलते हुए “किसी भी प्रकार का दान लेने” और 1 करोड़ रुपये के नकद पुरस्कार को स्वीकार करने से इनकार कर दिया.

गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देने के केंद्र सरकार के फैसले की आलोचना करते हुए कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने रविवार को एक ट्वीट में कहा था कि यह “सावरकर और गोडसे को पुरस्कृत करने” जैसा है.

1923 में स्थापित गीता प्रेस कथित तौर पर दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है, जिसने 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित की हैं, जिसमें श्रीमद भगवद गीता की 16.21 करोड़ प्रतियां शामिल हैं. कोरोना महामारी के दौरान जब दूसरे प्रकाशकों को काफी वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ा, गीता प्रेस ने 77 करोड़ रुपये का भारी मुनाफा दर्ज किया.

देवी दयाल ने कहा कि प्रेस ने कभी भी राजस्व सृजन के लिए कभी भी अपने प्रकाशनों में विज्ञापन पर भरोसा नहीं किया है. उन्होंने इसका श्रेय महात्मा गांधी को दिया.

उन्होंने कहा कि प्रेस और महात्मा गांधी के बीच दोस्ती 1926 से है, जब कल्याण पत्रिका के संस्थापक हनुमान प्रसाद पोद्दार गांधी से मिले और उन्हें पत्रिका का पहला संस्करण भेंट किया.  

दयाल बोले, “इसके बाद, गांधीजी ने पोद्दार को बधाई दी और उन्हें दो सुझाव दिए. पहला यह कि प्रेस को किसी भी तरह के विज्ञापन को स्वीकार नहीं करना चाहिए और दूसरा यह कि संस्था को राजनीति से दूर रखना चाहिए और सनातन धर्म (धार्मिक कर्तव्य) के प्रसार के लिए काम करना चाहिए.”


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राम जन्मभूमि और कृष्णभूमि

पत्रकार से लेखक बने अक्षय मुकुल ने अपनी किताब ‘गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया ‘ में लिखा है कि कल्याण पत्रिका के संस्थापक पोद्दार राम जन्मभूमि आंदोलन को जिंदा रखने के लिए हर महीने अपना योगदान देते थे.

देवी दयाल के अनुसार, मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान के निर्माण में भी पोद्दार और गीता प्रेस का योगदान है.

दयाल याद करते हुए कहते हैं, “जब पोद्दार मथुरा गए, तो यह खंडहर में था. यह देखकर उनकी आंखों से आंसु निकल गए. उन्होंने इसके बाद प्रण लिया कि वह शहर कृष्ण जन्मभूमि बनाएंगे.”

‘हिंदू धर्म और हिंदुत्व एक हैं’

गीता प्रेस बदलते समय के साथ चलने और नई तकनीक अपनाने के बावजूद, जिसमें जापान, जर्मनी और फ्रांस से मशीनरी में लगभग 25 करोड़ रुपये का निवेश शामिल है, इसने हिंदू धर्म की मूल परंपराओं को कायम रखा है. संगठन के प्रबंधन में दलित समुदाय का कोई भी व्यक्ति शामिल नहीं है. गीता प्रेस के प्रोडक्शन मैनेजर आशुतोष उपाध्याय ने दिप्रिंट से बात करते हुए पुष्टि की कि अल्पसंख्यक समुदाय के किसी भी व्यक्ति को किसी भी पद पर संगठन में नियुक्त नहीं किया गया है.

जबकि गीता प्रेस भारतीय घरों में सनातन धर्म का प्रसार करने में गर्व महसूस करता है, उसका मानना ​​है कि हिंदू धर्म और हिंदुत्व एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. दयाल कहते हैं, “हिंदू धर्म और हिंदुत्व अलग-अलग नामों से एक हैं. और हिंदुस्तान स्पष्ट रूप से एक हिंदू राष्ट्र है. हिंदू जहां भी रहेंगे, वही हिंदू राष्ट्र होगा.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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