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Wednesday, 13 August, 2025
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ओडिशा में किशोरी को जलाए जाने पर न्यायालय ने कहा, ‘हम शर्मिंदा हैं’

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नयी दिल्ली, 21 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने ओडिशा में 15 वर्षीय किशोरी पर हमले को सोमवार को ‘‘शर्मनाक’’ और ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण’’ बताया तथा महिलाओं को सशक्त बनाने और विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित आश्रय प्रदान करने की आवश्यकता पर बल दिया।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा, ‘‘हमें सभी से सुझाव चाहिए कि स्कूली लड़कियों, गृहिणियों, ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों, जो सबसे कमजोर और ऐसे लोग जो अपनी बात कहने में असमर्थ होते हैं, को सशक्त बनाने के लिए क्या ठोस कदम उठाए जा सकते हैं। हमारे निर्देशों का कुछ प्रभाव और स्पष्ट छाप होनी चाहिए।’’

इसने कहा कि तत्काल और भविष्य के लिए कुछ अल्पकालिक और दीर्घकालिक दिशा-निर्देश जारी किए जाने की आवश्यकता है ताकि तालुका स्तर पर रहने वाली महिलाओं को जागरूक और सशक्त बनाया जा सके।

पीठ ने कहा कि ‘पैरा-लीगल’ स्वयंसेवकों, खासकर महिलाओं को तालुका स्तर पर प्रशिक्षित और नियुक्त किया जा सकता है तथा महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की भी मदद ली जा सकती है।

याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट वूमेन लायर्स एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता महालक्ष्मी पावनी ने कहा कि कुछ दिन पहले नाबालिग को जला दिया गया था और महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु में भी ऐसी ही घटनाएं हुई हैं।

पावनी ने कहा, ‘‘यह कब तक चलेगा? इस अदालत को महिलाओं की सुरक्षा के लिए कुछ निर्देश देने चाहिए।’’

पीठ ने कहा, ‘‘हम शर्मिंदा हैं और यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ये घटनाएं अब भी हो रही हैं। यह कोई विरोधात्मक मुकदमा नहीं है। हमें केंद्र और सभी पक्षों से सुझाव चाहिए।’’

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि रजिस्ट्री ने केंद्र के हलफनामे को रिकॉर्ड में नहीं रखा है और मामले की अगली सुनवाई अगले सप्ताह करना निर्धारित किया।

केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि केंद्र ने उठाए गए कदमों का विवरण दिया है और कहा है कि यौन अपराधियों की पहचान करने और समय पर कार्रवाई करने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे और फेस स्कैन सिस्टम लगाए जाएंगे।

उन्होंने कहा कि अब हर जिले में ‘वन-स्टॉप सेंटर’ काम कर रहे हैं जो संकटग्रस्त महिलाओं के लिए मददगार साबित होंगे।

हालांकि, पीठ ने कहा कि वन-स्टॉप सेंटर अच्छा तो है, लेकिन इसे तालुका स्तर तक ले जाने की ज़रूरत है।

पिछले साल 16 दिसंबर को, शीर्ष अदालत महिलाओं, बच्चों और ट्रांसजेंडर के लिए सुरक्षित वातावरण के लिए अखिल भारतीय दिशानिर्देश तैयार करने के निर्देश देने के अनुरोध वाली एक याचिका पर विचार करने के लिए सहमत हुई थी।

जनहित याचिका में कहा गया था कि देश भर में महिलाओं, लड़कियों और शिशुओं के खिलाफ यौन अपराध विभिन्न राज्यों में जारी हैं।

भाषा

अमित नेत्रपाल

नेत्रपाल

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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