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Thursday, 28 March, 2024
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जंगलों में ‘अवैध’ मजारों, मस्जिदों, मंदिरों और चर्चों पर उत्तराखंड सरकार क्यों कस रही है नकेल

मुख्यमंत्री धामी के द्वारा यह कहे जाने के बाद कि अतिक्रमित सरकारी जमीन पर स्थित मजारों के खिलाफ 'कार्रवाई की जाएगी'- के कई हफ्तों बाद उत्तराखंड वन विभाग 'अतिक्रमण विरोधी अभियान' के तहत 'अवैध' धार्मिक संरचनाओं की पहचान कर रहा है.

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देहरादून: ‘अवैध’ धार्मिक संरचनाएं अब उत्तराखंड सरकार की जांच के दायरे में आ गईं हैं. दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार वन विभाग को अनाधिकृत मजारों (मकबरे), मस्जिदों, मंदिरों और चर्चों की पहचान करने के लिए एक विशेष अभियान चलाने का निर्देश दिया गया है.

मुख्यमंत्री कार्यालय के एक सूत्र के अनुसार, विभाग को इस बारे में एक रिपोर्ट पेश करने और जल्द से जल्द ऐसी संरचनाओं को ध्वस्त करने की योजना बनाने का निर्देश दिया गया है. इसी तरह के ‘अतिक्रमण विरोधी अभियान’ जल्द ही अन्य विभागों द्वारा भी चलाए जाएंगे.

यह घटनाक्रम उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा यह कहे जाने के तीन हफ्ते बाद हुआ है कि उनकी सरकार को ‘अतिक्रमित सरकारी भूमि पर बन रहे मजारों’ के बारे में भी जानकारी है.

उत्तराखंड के फॉरेस्ट फोर्स के प्रमुख और प्रधान मुख्य वन संरक्षक विनोद कुमार सिंघल ने इस बात की पुष्टि की कि उनके विभाग ने वन क्षेत्रों में स्थित सभी अवैध धार्मिक संरचनाओं की पहचान करने की कवायद शुरू कर दी है. 6 जून को, सिंघल ने सभी संभागीय वन अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए लिखा था कि इस तरह के ढांचे वन भूमि पर न बन पाएं.

सिंघल ने कहा, ‘पूरा विवरण उपलब्ध होने के बाद सरकार को इस बारे में एक रिपोर्ट सौंपी जाएगी…. सभी वन संभागों से जानकारी इकट्ठा की जा रही है.’ उत्तराखंड में 30 से अधिक वन प्रभाग हैं.

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इस बीच, इस सारे घटनाक्रम के बारे में जानकारी रखने वाले अधिकारी उम्मीद कर रहे हैं कि 14-30 दिनों की समय अवधि के भीतर एक व्यापक रिपोर्ट तैयार होने की संभावना है.


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‘मजारों के खिलाफ होगी कार्रवाई’

पिछली 22 मई को दिल्ली में आयोजित एक समारोह में धामी ने कथित तौर पर अतिक्रमित की गई सरकारी जमीन पर बने मजारों की बढ़ती संख्या पर चिंता व्यक्त की थी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की पत्रिका ‘ऑर्गेनाइज़र’ और ‘पांचजन्य’ के शुभारंभ की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था, ‘सरकार अपनी जमीन का अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं करेगी और इन मजारों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.’

धामी ने यह भी कहा कि उनकी सरकार ने ‘घुसपैठियों’ की पहचान करने के लिए एक सत्यापन अभियान शुरू किया है, क्योंकि उत्तराखंड के कुछ इलाकों में ‘जनसांख्यिकीय बदलाव’ देखा जा रहा है.

मुख्यमंत्री धामी ने यह भी घोषणा की थी कि उनका राज्य 2018 के धर्मांतरण विरोधी कानून को और मजबूत करेगा. उनका यह भी कहना था कि इस पहाड़ी राज्य में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का मसौदा तैयार करने के लिए एक पांच सदस्यीय समिति का गठन किया गया है.

धामी की यह टिप्पणी फरवरी में हुए राज्य विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के घोषणापत्र में की गई उस घोषणा के अनुरूप थी, कि वह ‘लव जिहाद‘ की रोकथाम के लिए एक सख्त कानून लाएगी, और पहाड़ी जिलों में कथित तौर पर हो रहे जनसांख्यिकीय परिवर्तन पर लगाम लगाने के लिए भी कदम उठाएगी.

यह पूछे जाने पर कि केवल एक विभाग ही ऐसा सर्वेक्षण क्यों कर रहा है जबकि लगभग सभी तरह की सरकारी भूमि पर कथित रूप से ऐसी अवैध धार्मिक संरचनाएं मौजूद हैं, मुख्यमंत्री के दफ्तर (सीएमओ) के अधिकारी ने दावा किया कि निकट भविष्य में अन्य विभागों में भी इसी तरह की कार्रवाई होने वाली है.

अधिकारी ने कहा, ‘यह सरकार द्वारा शुरू किए गए एक बड़े कार्य की शुरुआत भर है. अभी और बहुत कुछ होना बाकी है. यह मुख्यमंत्री द्वारा दिल्ली में गई घोषणा के अनुरूप किया जा रहा है. फिलहाल, वन विभाग को ही सर्वेक्षण करने के लिए कहा गया है क्योंकि ऐसी धार्मिक संरचनाएं ज्यादातर वन क्षेत्रों के अंदर स्थित हैं.’ साथ ही, उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में अन्य सरकारी जमीनों पर बने ‘अवैध’ मजारों और मस्जिदों के मसले का भी समाधान किया जाएगा.

उन्होने कहा, ‘सरकार अपनी अतिक्रमित भूमि को मुक्त करने के लिए प्रतिबद्ध है. अब जब मुख्यमंत्री ने रिकॉर्ड अंतर से उपचुनाव जीत लिया है, तो धामी सरकार इस बारे में एक मिसाल कायम करेगी कि अपनी अतिक्रमित जमीन को कैसे मुक्त किया जाए. एक बड़ा अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाया जाना अभी बाकी है.’

बता दें कि मौजूदा मुख्यमंत्री धामी हाल के विधानसभा चुनावों के दौरान अपनी पार्टी को मिली भारी जीत के बावजूद अपनी सीट हार गए थे और अब उन्हें चंपावत निर्वाचन क्षेत्र में हुए उपचुनाव, जिसे उन्होंने 55,000 से अधिक मतों से जीता है, के माध्यम से राज्य के सदन के लिए फिर से चुना गया है.


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सर्वेक्षण में तेजी लाने के लिए लगाया जा रहा है ज़ोर

वन अधिकारियों का कहना है कि हालांकि वन विभाग को रिपोर्ट देने के लिए कोई समय सीमा नहीं दी गई है, लेकिन उन्हें प्रक्रिया में तेजी लाने के निर्देश दिए गए हैं.

सिंघल के आदेश का हवाला देते हुए, कई वन अधिकारियों ने दिप्रिंट को जानकारी दी कि राज्य के सभी डीएफओ को सरकारी आदेश के अनुसार निर्देश जारी किए गए हैं.

इसी तरह, मुख्य वन संरक्षक और मुख्य वन्यजीव वार्डन पराग मधुकर धाकाटे ने कहा कि वन विभाग को पहले ही वन क्षेत्रों के अंदर बनी अवैध धार्मिक संरचनाओं की पहचान करने के लिए एक सर्वेक्षण के लिए सरकारी निर्देश मिल चुके हैं.

उन्होंने कहा, ‘अवैध धार्मिक संरचनाओं के बारे में अंतिम आंकड़ा सर्वेक्षण के पूरा होने के बाद ही पता चलेगा लेकिन यह सच है कि लगभग हर डिवीजन में उनकी अच्छी खासी संख्या है. अतिक्रमित सरकारी भूमि को धार्मिक संरचनाओं से मुक्त करने के बारे में सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी है. सरकार का यह निर्देश सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर आधारित है.’

धाकाटे ने कहा कि सर्वे रिपोर्ट सरकार को सौंपे जाने के बाद ही इन्हें ध्वस्त करने की कारवाई की जाएगी.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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