अलवर: राजस्थान के अलवर जिले में 17 अप्रैल को लगभग 11:00 बजे, राजगढ़ के सराय मोहल्ला के निवासियों का सामना कथित अतिक्रमण विरोधी अभियान के तहत इस क्षेत्र में लगभग 90 घरों को तोड़ते हुए एक बुलडोजर की परेशान करने वाली गड़गड़ाहट के साथ हुआ.
लेकिन यहां लोगों को अपनी निजी संपत्ति के नुकसान से भी ज्यादा झटका जिस बात से लगा, वह था इस इलाके के तीन प्राचीन, 250 साल से अधिक पुराने मंदिरों का विध्वंश. इस अभियान में एक शिव मंदिर, भगवन राम को समर्पित एक और मंदिर तथा ‘चौथ माता का मंदिर’ को धराशायी कर दिया गया.
स्थानीय निवासी इस सारी घटना को अत्यंत डरावने रूप में याद करते हैं और बताते हैं कि विध्वंस अभियान का हिस्सा रहे कुछ कर्मी कथित तौर पर मंदिर परिसर में घुस गए और उन्होंने मंदिरों से देवताओं की मूर्तियों हटाने के लिए कटर का इस्तेमाल किया.
45 वर्षीय सतीश मीणा, जो पास में ही स्थित एक दवा की दुकान के मालिक हैं, ने दिप्रिंट को बताया, ‘हां, यह हमारे लिए एक बड़ा नुकसान है. पिछले दो साल की कोविड महामारी की कठिनाइयों के बाद हम अपनी जिंदगी को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे थे और अब हम पर इस अभियान की मार पड़ गयी है.‘
उन्होंने आगे कहा: ‘लेकिन उन्होंने मंदिरों के साथ जो कुछ किया उसकी तो कल्पना करना भी असंभव है. उन्हें कम से-कम पहले देवताओं की मूर्तियों को हटा देना चाहिए था और फिर ढांचे को गिराया चाहिए था. इस तरह से कटर का उपयोग करने से ऐसा होते देखने का दुर्भाग्य रखने वाले लोग बहुत आहत हुए हैं. हमने कभी उम्मीद नहीं की थी कि सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) इतनी चरम सीमा तक जायेंगे.’
इन तीनों मंदिरों के विध्वंश से उपजे सार्वजनिक आक्रोश ने कांग्रेस और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप का खेल शुरू कर दिया – हालांकि राज्य में कांग्रेस सत्ता में है, मगर नगर निकाय भाजपा के नेतृत्व में है.
इन मंदिरों को तोड़े जाने की कार्रवाई के खिलाफ राजगढ़ थाने में गुरुवार को एक प्राथमिकी दर्ज की गई, जिसमें राजगढ़ नगरपालिका के कार्यकारी अधिकारी बनवारी लाल मीणा, अनुमंडल पदाधिकारी केशव कुमार और कांग्रेस विधायक जौहरी लाल मीणा का नाम लिया गया है. राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार पर हिंदू विरोधी भावनाओं को पालने का आरोप लगाते हुए कई हिंदू धार्मिक समूहों ने भी पुलिस और जिला मजिस्ट्रेट के पास शिकायत दर्ज कराई है.
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दिप्रिंट से बात करते हुए, भाजपा सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने कहा, ‘भाजपा कभी भी हिंदू देवताओं की मूर्तियों को अपवित्र नहीं कर सकती है. हालांकि स्थानीय निकाय पार्टी का ही है तो भी वहां ऐसा काम कोई नहीं कर सकता. राजगढ़ नगरपालिका के जिन अध्यक्ष को कांग्रेस निशाना बना रही है, वह इस अभियान के चालू रहने के दौरान राज्य में थे ही नहीं. यह सच है कि भाजपा का इरादा यहां ‘गौरव पथ’ (सड़क चौड़ीकरण के साथ) बनाने का था, लेकिन इस कीमत पर नहीं. यह तो कांग्रेस पार्टी है जिसने हिंदू समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है.‘
इस बीच, भाजपा के इन आरोपों का खंडन करते हुए कांग्रेस विधायक जौहरी लाल मीणा ने ‘भाजपा शासित स्थानीय निकाय’ को ही ‘राजगढ़ में हिंदुओं की दुर्दशा’ के लिए जिम्मेदार ठहराया.
उन्होंने कहा: ‘कांग्रेस का इस अभियान से कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि नागरिक सुविधाओं के बारे में सभी फैसले नगर निगम द्वारा लिए जाते हैं, जो पूरी तरह से भाजपा की मुट्ठी में है. यह इस कांग्रेस शासित राज्य में (चुनावों में) हार का मुंह देखने का बदला लेने के लिए घृणास्पद माहौल बनाने हेतु भाजपा की एक और चाल है. वे राष्ट्रीय राजधानी में हुई बुलडोजर वाली राजनीति को एक और रूप दे रहे हैं (राष्ट्रीय राजधानी के जहांगीरपुरी में चलाये गए विध्वंस अभियान के संदर्भ में).’
इस बीच, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनिया ने इस पूरी घटना की जांच के लिए शुक्रवार को एक पांच सदस्यीय तथ्यान्वेषी समिति (फैक्ट -फाइंडिंग कमिटी) का गठन किया. इसके सदस्य विध्वंश वाले स्थान का दौरा करेंगे, स्थानीय निवासियों के साथ बात करेंगे और एक रिपोर्ट तैयार करेंगे जिसे उनके द्वारा पूनिया के सामने प्रस्तुत किए जाने की उम्मीद है.
जब दिप्रिंट ने शनिवार तड़के इस इलाके का दौरा किया, तो भाजपा कार्यकर्ता उस इलाके में आने वाले पार्टी नेताओं की मेजबानी के लिए एक पंडाल लगाने में व्यस्त थे. पुलिस और भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा सड़क के दोनों सिरों पर बैरिकेडिंग की गई थी और जिस इलाके में विध्वंस अभियान हुआ था, वहां पुलिस ने वाहनों की आवाजाही रोक लगा दी थी.
‘दोनों दलों को दोष दिया जाना चाहिए’
अलवर शहर के मुख्य स्थल से लगभग एक घंटे की दूरी पर स्थित सराय मोहल्ला ने स्थानीय लोगों के बीच एक तरह की निराशाजनक ख्याति हासिल कर ली है, जिससे किसी भी बाहरी व्यक्ति के लिए इस इलाके तक पहुंचना आसान हो गया है.
विध्वंस अभियान ने क्षेत्र को बिजली और पानी के कनेक्शन से वंचित कर दिया है. 55 वर्षीया स्थानीय निवासी वसुधा देवी ने दिप्रिंट को बताया, ‘पिछले तीन दिनों से पानी और बिजली नहीं है. हम पानी के टैंकरों की व्यवस्था कर रहे हैं और यहां तक कि स्ट्रीट लाइट ने भी काम करना बंद कर दिया है. किसी ने भी सड़कों को साफ करने की जिम्मेदारी नहीं ली.’
ध्वस्त हुए ढांचे के मलबे – बोल्डर, सीमेंट की चट्टानें, धूल आदि – के बीच एक गुंबद भी है जो कभी अब टूटे चुके शिव मंदिर पर सुशोभित था.
इसी इलाके में एक छोटी सी स्टेशनरी (कॉपी-किताब) की दुकान के मालिक सत्येंद्र लाल ने कहा कि उनके आस-पड़ोस की स्थिति ‘चौंकाने वाली’ है. 17 अप्रैल के अभियान के दौरान उनके घर और गोदाम के उन कुछ हिस्सों को ध्वस्त कर दिया गया था, जहां उन्होंने अपनी दुकान के लिए सामान रखा हुआ था.
वे बताते हैं, ‘मेरे दादा, मेरे पिता, मैं और मेरा बेटा, हम सभी 250 साल पुराने इस शिव मंदिर में हुई सभी महत्वपूर्ण पूजाओं का हिस्सा रहे हैं. ऐसे लोगों की कई पीढ़ियां हैं जिनकी धार्मिक आस्था हमारे इलाके के इन तीन मंदिरों से जुड़ी हुई है. जब ये हुआ तो हम सभी ने कभी विनती की, लेकिन एसडीएम केशव कुमार लोगों को कॉलर पकड़ कर खींच रहे थे. जिसने भी बुलडोजर द्वारा शिव मंदिर को छूने से रोकने की कोशिश की उसे पुलिसकर्मियों द्वारा पीटा जा रहा था.’
इसी बीच, शुक्रवार को जारी एक बयान में राजगढ़ जिला प्रशासन ने दावा किया कि 6 सितंबर 2021 को हुई नगरपालिका की एक बैठक में इस सड़क के चौड़ीकरण हेतु सड़क के किनारे हुए अवैध अतिक्रमण को हटाने का निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया था.
हालांकि, मीडिया में राजगढ़ नगरपालिका अध्यक्ष सतीश गुरिया को यह कहते हुए उद्धृत किया जा रहा है कि नगरपालिका ने अपने प्रस्ताव में कभी भी मंदिरों को तोड़े जाने का जिक्र नहीं किया था. इन समाचारों में गुरिया के हवाले से कहा गया है, ‘बोर्ड ने मंदिरों को गिराने के अपने प्रस्ताव में कभी जिक्र नहीं किया… प्रशासन ने ही सब कुछ किया.’
इस सब के बीच अलवर जिला कलेक्टर और मजिस्ट्रेट के आधिकारिक हैंडल से पोस्ट किए गए एक ट्वीट में कहा गया है कि ब्रजभूमि कल्याण परिषद के कुछ लोगों ने मंदिरों के विध्वंस की जांच के लिए उनके कार्यालय से संपर्क किया था और उन्हें इस मामले में की जा रही जांच के बारे में अवगत कराया गया था. लेकिन कोई बयान नहीं जारी किया गया था. इस ट्वीट में परिषद पर झूठ फैलाने का आरोप लगाया गया है.
— District Collector & Magistrate, Alwar (@DMDCAlwar) April 22, 2022
स्थानीय निवासियों के अनुसार, तोड़फोड़ की इस कार्रवाई के दौरान जिला प्रशासन के अधिकारी और पुलिस के जवान मौजूद थे.
हालांकि कई निवासियों ने दिप्रिंट को यह भी बताया कि उन्हें इस सारे विध्वंस के बारे में कोई पूर्व सूचना नहीं मिली थी, जिला प्रशासन के सूत्रों ने यह दावा किया है कि कार्रवाई के सात दिन पहले निवासियों को एक पत्र भेजा गया था, जिसमें उन्हें अभियान के बारे में जानकारी दी गई थी.
अतिरिक्त जिलाधिकारी सुनीता पंकज को एक समाचार एजेंसी के हवाले से यह कहते हुए भी बताया गया कि पिछले साल की बैठक के बाद स्थानीय लोगों को मंदिरों को गिराने और उन्हें हटाने की जानकारी दी गई थी, लेकिन उस समय कोई विरोध नहीं हुआ.
नगरपालिका पिछले साल सितंबर में प्रस्ताव लेकर आई थी, जिसका क्रियान्वयन 17 अप्रैल को किया गया था. लोगों को पहले सूचित किया गया था कि इसे (मंदिर) हटा दिया जाएगा, तब से लेकर अब तक हमें स्थानीय लोगों की तरफ से किसी भी तरह का विरोध करने का आवेदन नहीं मिला है: सुनीता पंकज,ADM, अलवर
नगर पालिका ने पिछले साल सितंबर में प्रस्ताव लेकर आई थी, जिसका क्रियान्वयन 17 अप्रैल को किया गया था। लोगों को पहले सूचित किया गया था कि इसे (मंदिर) हटा दिया जाएगा, तब से लेकर अब तक हमें स्थानीय लोगों की तरफ से किसी भी तरह का विरोध करने का आवेदन नहीं मिला है: सुनीता पंकज,ADM, अलवर pic.twitter.com/1Yxh80wFY6
— ANI_HindiNews (@AHindinews) April 23, 2022
इस बीच, अपने नुकसान से टूट चुके अधिकांश निवासियों को इस विध्वंश के इर्द-गिर्द चल रहे राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप की कोई परवाह नहीं है और वे दोनों दलों को इसके लिए दोषी मानते हैं.
35 वर्षीय स्थनीय निवासी मेहुल पारेख ने दिप्रिंट को बताया, ‘कांग्रेस पार्टी ‘शिकार बनाये जाने’ का खेल नहीं खेल सकती, क्योंकि ये हम लोग हैं जिन्हें इस सबका सीधा खामियाजा भुगतना पड़ा. क्या अभी तक किसी ने मुआवजे के बारे में कोई बात की है? किसी ने भी नहीं. वे अलग नहीं हैं और वे इस सारे तोड़-फोड़ के लिए अकेले भाजपा को दोष नहीं दे सकते हैं.’
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