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Friday, 3 May, 2024
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सुप्रीम कोर्ट ने जहांगीरपुरी अतिक्रमण मामले में कहा, कोई नोटिस नहीं मिला तो इसका हलफनामा दाखिल करें

उत्तरी दिल्ली नगर निगम और दिल्ली पुलिस द्वारा 20 अप्रैल को जहांगीरपुरी में अतिक्रमण हटाए जाने की अपनी कार्रवाई को सही बताने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी किए हैं.

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नई दिल्ली: जिन लोगों की संपत्ति को पिछले दिनों दिल्ली के जहांगीरपुरी में अतिक्रमण हटाए जाने की कार्रवाई के दौरान नुकसान पहुंचाया गया था, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उन सभी को निर्देश जारी किया है. कोर्ट ने कहा कि वे यह पुष्टि करते हुए हलफनामा दाखिल करें कि कार्रवाई से पहले नगरपालिका प्राधिकरण ने उन्हें कोई नोटिस जारी नहीं किया था.

उत्तरी दिल्ली नगर निगम (नॉर्थ एमसीडी) और दिल्ली पुलिस द्वारा उत्तर पश्चिमी दिल्ली इलाके में अतिक्रमण हटाए जाने की 20 अप्रैल को की गई कार्रवाई का बचाव करने के बाद अदालत ने यह निर्देश जारी किया है.

जहांगीरपुरी में उत्तरी दिल्ली नगर निगम की अतिक्रमण पर कार्रवाई के खिलाफ दायर की गई कई याचिकाओं पर जस्टिस एलएन राव और बीआर गवई सुप्रीम कोर्ट की बेंच सुनवाई कर रही है. इलाके में हनुमान जयंती पर निकाली गई एक शोभायात्रा के दौरान दो समुदायों को बीच झड़प हुई थी. इस दौरान पथराव और आगजनी भी हुई जिसमें 9 लोग घायल हो गए थे. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि नगर निगम का ये कदम ‘अनुचित’ और ‘असंवैधानिक’ था.

इनमें से एक याचिका वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने दायर की थी, जो खास जहांगीरपुरी के मामले को लेकर थी. दूसरी याचिका जमीयत-उलमा-ए-हिंद की थी. इनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल केस लड़ रहे हैं.

हालांकि पीठ ने कहा कि हमारे आदेश के बाद भी कार्रवाई चलती रही है, हम इसे गंभीरता से लेते हैं. कोर्ट ने साफ कर दिया कि यथास्थिति का आदेश सिर्फ दिल्ली के लिए है. अदालत ने देशभर में किए जा रहे किसी भी अतिक्रमण अभियान को रोकने के लिए सामान्य निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया. मध्य प्रदेश के खरगोन सहित जिन क्षेत्रों में हाल ही में सांप्रदायिक झड़पें हुई हैं, वहां इसी तरह की कार्रवाई की गई है.

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मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने बुधवार को यथास्थिति का आदेश दिया था. याचिका में कहा गया था कि मामले की सुनवाई जल्द से जल्द की जाए.

गुरुवार को सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद जस्टिस राव और गवई ने अतिक्रमण की कार्रवाई पर रोक जारी रखी है. कोर्ट इस मामले में दो हफ्ते बाद सुनवाई करेगा. इसके अलावा कोर्ट ने सभी पक्षों से जवाब मांगा है. कोर्ट के अनुसार, इस दौरान प्रभावित पक्षों को अपना हलफनामा दाखिल करना होगा और उत्तरी एमसीडी को अपना जवाब दाखिल करना होगा.


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‘अतिक्रमण हटाने के अभियान का पहला दिन नहीं’

सुनवाई के दौरान नॉर्थ एमसीडी और दिल्ली पुलिस ने दावा किया कि बुधवार पहला दिन नहीं था, जब जहांगीरपुरी में बुलडोजर भेजा गया.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया, ‘फुटपाथ और सार्वजनिक सड़कों पर किए गए अतिक्रमण को हटाने का अभियान 19 जनवरी को शुरू हुआ था. उसके बाद ये कार्रवाई 2 फरवरी, 17 फरवरी और 11 अप्रैल को भी की गई.

मेहता ने बेंच से कहा, कार्रवाई 19 अप्रैल को होनी थी, लेकिन अगले दिन की गई. सड़कों को साफ करने के लिए ये कार्रवाई जरूरी थी और अभियान का यह पांचवां दिन था.

याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि यह कवायद दिल्ली भाजपा प्रमुख आदेश कुमार गुप्ता के कहने पर की गई और यह दिल्ली नगर निगम अधिनियम-1957 के कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन है. क्योंकि बिना नोटिस जारी किए तथाकथित अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की गई थी.

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि इस कानून के तहत नोटिस मिलने के बाद, उसके खिलाफ अपील करने का अधिकार दिया जाता है, जो उनसे छीन लिया गया.

‘क्या बुलडोजर राज्य का एक काम करने का तरीका बन गया है?’

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने जहांगीरपुरी में अतिक्रमण की कार्रवाई की निंदा की और कहा कि जहां भी दंगे हो रहे हैं, वहां बुलडोजर भेजे जा रहे हैं.

मामले की सुनवाई में याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने जहांगीरपुरी में किए गए डिमोलिशन की निंदा की और कहा, ‘जब भी कहीं दंगे होते हैं तो तुरंत बुलडोजर भेज दिए जाते हैं. क्या राज्यों में कार्य करने का यही तरीका है? हमने 1984 और 2002 में ऐसी कोई घटना नहीं देखी थी. जहां तक दिल्ली की बात है तो यहां एक ऐसा कानून है जो अवैध निर्माण को 2023 दिसंबर तक संरक्षण देता है.’

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है, ‘पुलिस की आपत्ति के बावजूद शोभायात्रा इलाके से होकर निकाली गई. जो कुछ भी हुआ उसकी सही ढंग से जांच होनी चाहिए. लेकिन जांच से पहले ही वे एक खास समुदाय के लोगों को बड़ी संख्या में गिरफ्तार कर लिया जाता हैं.

जमीयत उलेमा ए हिंद की तरफ से बोलते हुए सिब्बल ने जजों से कहा कि सबसे परेशान करने वाली बात ये है कि डिमोलिशन के बाद सामुदायिक दंगे होते हैं. इन दंगों में मुख्य रूप से मुसलमानों को निशाना बनाया जाता है.

याचिकाकर्ता के मुस्लिमों को टारगेट करने के सवाल पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा, एमपी के खरगोन में मुस्लिमों से ज्यादा हिंदुओं के घर गिराए गए थे. वहां 88 घर हिंदुओं के थे जबकि 26 मुस्लिम के थे. मेहता ने बेंच से कहा, ‘ये सरकारी रिकॉर्ड हैं. सरकार अपने डेटा में इस तरह को कोई विभाजन नहीं करती है, लेकिन याचिकाकर्ता ने मुझे ऐसा करने के लिए मजबूर किया है ताकि मैं अदालत के सामने अपना पक्ष सही ढंग से रख सकूं’

उन्होंने कहा, खरगोन में 2021 में अतिक्रमण के खिलाफ नोटिस जारी किए गए थे. उसी साल सुनवाई हुई थी. 2021 या 2022 में कार्रवाई करने के आदेश पारित कर दिए गए थे. बस उन्हीं आदेशों को लागू किया जा रहा था.

जहांगीरपुरी के मामले में मेहता ने कहा, ‘अतिक्रमण हटाने का अभियान दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद शुरू हुआ, जिसमें याचिकाकर्ताओं को अतिक्रमण की कार्रवाई से बचाने से इनकार किया गया था.’

उन्होंने अदालत को आगे बताया कि जहांगीरपुरी के एक व्यापारी संघ ने मामला दर्ज कराया था. उन्होंने कहा, ‘सरकारी जमीन को खाली करने के न्यायिक आदेश हैं और यह कार्रवाई हाईकोर्ट के आदेशों के बाद की जा रही थी.’

‘उन्हें बताना होगा कि कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था’

मेहता ने आगे कहा कि किसी भी व्यक्ति ने इस अभियान के खिलाफ अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाया. यह एक संगठन (जमीयत) है जो न्यायिक हस्तक्षेप की मांग को लेकर आगे आया था. मेहता ने कहा, ‘एक व्यक्ति को वह जगह दिखानी होगी और यह भी सिद्ध करना होगा कि उसे कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था.’

उन्होंने ऐसे मामलों में याचिका दायर करने वाले संगठनों पर आपत्ति जताई और अदालत से अतिक्रमण अभियान से प्रभावित व्यक्तियों को सुनने के लिए कहा. उन्होंने कहा ‘जिनके घरों को गिराया गया है, उन सभी को नोटिस जारी किया गया था.’

लेकिन जब सॉलिसिटर ने नगरपालिका कानून के तहत प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि अतिक्रमण अभियान बिना सूचना के भी चलाया जा सकता है, तो अदालत ने टिप्पणी की कि यह केवल सार्वजनिक सड़कों पर रखी बेंच, कुर्सियों या बक्सों को हटाने तक सीमित है. और इसके लिए, अथॉरिटी को बुलडोजर की जरूरत नहीं पड़ती है.

न्यायमूर्ति राव ने कहा, ‘आपको बेंच, कुर्सी या बॉक्स को हटाने के लिए बुलडोजर की जरूरत नहीं हुई होगी’ जस्टिस गवई ने आगे कहा कि अगर निगम की तरफ से नोटिस जारी किया गया था तो भी इतनी जल्दी कार्रवाई नहीं की जा सकती है. कानून 5 से 15 दिनों के नोटिस और उसके खिलाफ अपील की अनुमति देता है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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