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Wednesday, 18 December, 2024
होमदेश‘ULFA’ पर कविता के लिए 64 दिन जेल में रहकर घर लौटी असम की किशोरी, कोई चार्जशीट नहीं, कर्ज में परिवार

‘ULFA’ पर कविता के लिए 64 दिन जेल में रहकर घर लौटी असम की किशोरी, कोई चार्जशीट नहीं, कर्ज में परिवार

बरसाश्री बुरागोहेन को अपनी फेसबुक पोएम के कारण गिरफ्तार किया गया था जो कथित तौर पर प्रतिबंधित संगठन उल्फा-आई की प्रशंसा करने वाली मानी गई. गणित की प्रोफेसर बनने का सपना देखने वाली बरसाश्री घर लौटने के बाद अभी पूरी तरह संभल नहीं पाई है.

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असम की रहने वाली 19 वर्षीय बरसाश्री बुरागोहेन को गणित की व्यवस्थित और तार्किक दुनिया बेहद पसंद है. वह गणित की प्रोफेसर बनने का सपना देखती है, लेकिन फिलहाल तो उसकी पहचान एक पोएट के तौर पर है. एक ऐसी कवयित्री जिसकी एक कविता ने उसे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

पुलिस ने 17 मई को उसे ट्रैक किया और फेसबुक पर पोस्ट एक कविता के सिलसिले में पूछताछ के लिए उसे हिरासत में ले लिया. लाइनों की व्याख्या प्रतिबंधित विद्रोही समूह यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम-इंडिपेंडेंट (उल्फा-आई) के समर्थन के तौर पर की गई थी. उसे अगले दिन गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) की दो धाराओं के तहत गिरफ्तार कर लिया गया, और 21 जुलाई को जमानत मिलने तक वह 64 दिन जेल में रही. मामला चल रहा है, लेकिन उसके भाई के मुताबिक, अदालत की अगली सुनवाई पुलिस की तरफ से चार्जशीट दाखिल करने के बाद ही तय होगी.

इस घटनाक्रम से उसका पूरा परिवार स्तब्ध है और उसके माता-पिता कर्ज के बोझ में दब गए हैं, जबकि वह अभी भी यह समझ नहीं पा रही है कि आखिर उसने गलत क्या किया है.

बुरागोहेन अब अपने माता-पिता के साथ जोरहाट के तेओक शहर से लगभग 5 किलोमीटर दूर बनाई कटारिखम गांव स्थित अपने घर वापस आ गई है. लेकिन वह जेल में बिताए अपने समय के बारे में बात नहीं करती. हालांकि, वहां की यादों ने उसका पीछा नहीं छोड़ा है.

बुरागोहेन ने कहा, ‘मैं वास्तव में बहुत दुखी हूं. मुझे सिर्फ कविता लिखने के लिए गिरफ्तार किया गया…अब अपनी डायरी में कविता लिखने में भी डर लगता है. मैं अपने करियर को लेकर भी आशंकित हूं.’

एक असहज सुबह

कविता में सूर्य शब्द के इस्तेमाल ने ही पुलिस को बुरागोहेन पर नजर रखने के लिए प्रेरित किया.

जोरहाट स्थित डीसीबी गर्ल्स कॉलेज में विज्ञान स्नातक की छात्रा बुरागोहेन बताती है, ‘उन्होंने (पुलिस) कहा कि मैंने (अपनी कविता में) ‘सूर्य’ शब्द का इस्तेमाल किया है, इसका मतलब है कि मैं उल्फा की बात कर रही थी.’

कविता की वो पंक्ति—जिसे एफआईआर में भी दर्ज किया गया है—कुछ इस तरह है—‘स्वाधीन जुरुजोर डिक्से एको एकुज, एको कोरिम रस्त्रो द्रुह’

(यानी आजादी के सूर्य की ओर एक और कदम, मैं एक बार फिर विद्रोह करूंगा).

स्थानीय संस्कृति में उगते सूरज को अमूमन क्रांति से जोड़ा जाता है, जो एक नए दिन की, एक बेहतर भविष्य शुरुआत होगा. उल्फा-आई के झंडे में भी यही एक प्रमुख प्रतीक है: पीले और हरे रंग की पृष्ठभूमि वाले झंडे में बना उगता लाल सूरज.

अलगाववादी समूहों का भर्ती अभियान बढ़ने की खबरों के बीच पुलिस प्रतीकात्मक तौर पर सूर्य शब्द के इस्तेमाल को लेकर गंभीरता से विचार कर रही है.

बुरागोहेन बताती है कि जब वह पड़ोसी गोलाघाट जिले के जया पत्थर गांव में एक दोस्त के घर जा रही थी, तब पुलिस ने उसे पकड़ लिया. वह कहती है, ‘मैं अपनी एक दोस्त के साथ उसके दादा के घर गई थी. पुलिस आई और इलाके के लोगों से पूछने लगी कि क्या उन्होंने दो लड़कियों को देखा है…फिर उन्होंने पूछा कि हममें से बरसाश्री बुरागोहेन कौन है और क्या मैंने फेसबुक पर कविता लिखी है.’

पुलिस ने उसका फोन लेकिन और उसका फेसबुक अकाउंट खोला. बुरोगोहेन ने बताया, ‘फिर मुझे अपने फेसबुक पर स्क्रॉल करके उस कविता को निकालने के लिए कहा गया. फिर उन्होंने मुझसे पूछा कि मैंने इसे क्यों लिखा है.’

गुलाबी पजामे के साथ एक काले रंग की टी-शर्ट पहने बरसाश्री किसी भी अन्य 19-वर्षीय किशोरी की तरह ही दिखती है, जिसे गहरे लाल रंग की लिपस्टिक लगाना पसंद है. उसके कंधे तक लंबे गहरे काले कानों में पहने छोटे-छोटे टॉप्स को ढक लेते हैं. इयररिंग्स के अलावा वह चांदी की एक चेन में दिल के आकार का पैंडेंट भी पहने है.

बुरागोहेन अब अपने शब्दों को लेकर बेहद सतर्क है, ऐसा लगता है कि उसे डर है कि उनकी वजह से कहीं फिर उसे गिरफ्तार न कर लिया जाए. हालांकि वह बचपन से ही कविताएं लिखती रही है, लेकिन 19 वर्षीया इस किशोरी के लिए यह सिर्फ शौकिया है. वह तो गणित ही है जिसे उसने अपने सपनों का मुकाम बना रखा है.


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64 दिनों के बाद घर वापसी

बनई कटारिखम गांव की सड़क खेत के बीच से होकर गुजरती है जिसमें जगह-जगह घास के टीले नजर आते हैं. बुरागोहेन के 26 वर्षीय बड़े भाई अरिंदोम के मुताबिक, इसे 17वीं शताब्दी में मुगलों के साथ युद्ध के दौरान अहोमों ने बनाया था.

21 जुलाई को गुवाहाटी हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद बुरागोहेन के लिए यहां आना मुमकिन हो पाया. शाम को सूरज ढलने के साथ मिट्टी और ईंट के घरों में बनी छप्पर या टिन की छतों से टकराकर रोशनी की छाया जब हरे धान के खेतों पर पड़ती है तो एक बेहद खूबसूरत नजारा दिखता हैं—वह बचपन से ही इसी सुकूनभरे माहौल की आदी रही है.

इस किशोरी के लिए घर लौटकर आना किसी कठिन लड़ाई से कम नहीं था.

तमाम रिश्तेदार, दोस्त और पड़ोसी उसके स्वागत के लिए पहुंचे. जैसे ही बुरागोहेन घर के पास पहुंची—फूस के नामघर (पूजाघर) वाले एक छोटे से मिट्टी के घर और वहां जुटे लोगों को देखकर वह फूट-फूट कर रोने लगी.

फिलहाल, उसके माता-पिता ने अपनी आर्थिक परेशानियों को ताक पर रख दिया है. उनके लिए बेटी का घर आ जाना ही एक बड़ी बात है. अपनी पुश्तैनी जमीन पर खेती करने वाले बरसाश्री के पिता अजीत बुरागोहेन ने कानूनी फीस और अन्य खर्चों के भुगतान के लिए कर्ज लिया है. उन्होंने कहा, ‘वो मेरी बेटी है. मुझे वह सब करना था जो मैं कर सकता था, भले ही इसके लिए दूसरों से उधार लेना पड़ा.’

उसे घर लौटकर आने के बाद थोड़ी राहत तो मिली, लेकिन बुरागोहेन ने अपने परिवार के सदस्यों के सवालों पर चुप्पी साध रखी है.

परिवार के एक सदस्य ने कहा, ‘मेरे रिश्तेदार बरसाश्री से मिलने गए थे. मुझे बताया गया कि वह शारीरिक तौर पर तो ठीक लग रही थी, लेकिन मानसिक तौर पर एकदम हिल गई है. वह पूछती रहती थी कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ था.’

बचपन से लिख रही कविताएं

बुरागोहेन के परिवार के सदस्यों और दोस्तों को हमेशा से पता रहा है कि उसे कविताएं लिखने का शौक है. लेकिन वे जोर देकर कहते हैं कि यह कभी राजनीति से जुड़ी नहीं रही हैं.

परिवार के एक सदस्य ने कहा, ‘बरसाश्री कभी ऐसे माहौल में पली-बढ़ी नहीं जहां (राजनीति के बारे में) इस तरह की कोई चर्चा होती हो. मुझे नहीं लगता कि वह इस तरह के किसी काम में शामिल हो सकती है.’

गुवाहाटी में एक स्थानीय अखबार के लिए काम करने वाले अरिंदम इससे पूरी तरह सहमत नहीं हैं. जब वही छोटी थी और चौथी कक्षा में पढ़ती थी तभी से उसने कविता करना शुरू कर दिया था. उसकी कविताएं बचपन के दिनों की मासूमियत को दर्शाती है. उन्होंने कहा, ‘पहले बरसाश्री प्राकृति के बारे में जैसे पहाड़ों और फूलों आदि के बारे में लिखती थी, लेकिन फिर कविता का स्वरूप बदल गया. वह सामाजिक मुद्दों पर लिखने लगी, उदाहरण के तौर पर जब सीएए आंदोलन हो रहा था. लेकिन मैं यह नहीं कहूंगा कि वे कविताएं बहुत ज्यादा राजनीतिक थीं.’

वह उसकी कुछ कविताएं साझा करते हैं, जो प्रमुख तौर पर प्रेम और नफा-नुकसान पर केंद्रित हैं.

ऐसी ही एक कविता है—‘मैंने उसकी आँखों में प्यार का एक सागर देखा/लेकिन मुझे नहीं पता था/कि मैं उसे आखिरी बार देख रही हूं/मैं अकेली रह गई थी/मेरे पेट में हमारे प्यार की एकमात्र निशानी थी.’

बरसाश्री इस बातचीत के दौरान मौजूद नहीं थी. वह पहले ही चुपचाप लिविंग रूम में जा चुकी है. एक कोने में गणित और अंग्रेजी टेक्स्टबुक से भरी स्टडी टेबल के ऊपर लगे गुलाबी रंग के चार्ट में डेरिवेटिव फॉर्मूले लिखे हुए हैं. घर के दो अन्य कमरों के दरवाजे बंद हैं.

वह धीरे से कहती है, ‘मुझे हिरेन भट्टाचार्य और भाभेंद्र नाथ सैकिया की रचनाएं पढ़ना पसंद है.’

सैकिया, एक उपन्यासकार और लघु-कथा लेखक हैं, और ‘हिरुदा’ के नाम से ख्यात कवि हिरेन भट्टाचार्य असमिया साहित्य की एक दिग्गज हस्ती हैं.

जेल से लौटने के बाद से बुरागोहेन ने खुद को गणित और कॉलेज कोर्स तक ही सीमित कर लिया है. गिरफ्तारी के बाद से ही ‘सामाजिक मुद्दों’ पर उसकी कविताओं को फेसबुक प्रोफाइल से हटा दिया गया है. उनकी कविताओं की नोटबुक जोरहाट में उनके छात्रावास के कमरे में है.

और अब उसने कोई नई कविता भी नहीं लिखी है. फिलहाल तो नहीं. वह अपने हालिया अनुभव से अपने अंदर के कवि को शायद मरने तो न दे लेकिन उसका मकसद अब सामाजिक परिवर्तन और न्याय बना रहना मुश्किल ही है. उसका कहना है, ‘मैं अभी भी कविताएं लिखना जारी रखूंगी, लेकिन ‘असंवैधानिक’ कविताएं नहीं लिखूंगी.’

पुलिस की तरफ से शिकायत के आधार पर दर्ज प्राथमिकी के मुताबिक, फेसबुक पोस्ट संकेत देती है कि प्रतिबंधित उल्फा-आई की मतलब है कि ‘लड़की किसी आपराधिक साजिश में शामिल है’ और उसने ‘भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की कोशिश की है.’

यह एक ऐसा आरोप है जिसका बुरागोहेन ने जोरदारी से खंडन किया है. वह करती है, ‘सिर्फ इसलिए कि मैंने राष्ट्रद्रोह शब्द का इस्तेमाल किया, इसका मतलब यह नहीं है कि इससे मेरा आशय अक्षरश: य़ही है. एक कवि के तौर पर उस समय बस यही लिखने का मेरा मन हुआ. इसके अलावा, ऐसा तो है नहीं कि सूर्य का इस्तेमाल केवल उल्फा के लिए ही किया जाता हो.’

हाई कोर्ट ने उसे जमानत देते हुए कहा कि कॉलेज छात्रा ने ‘किसी भी संगठन के संदर्भ के बिना अपनी भावनाएं व्यक्त की थीं.’

असम पुलिस फिलहाल उल्फा-आई से संबंधित किसी भी ‘संदिग्ध’ पोस्ट या टिप्पणियों के लिए सोशल मीडिया को खंगाल रही है. और इसी क्रम में बुरागोहेन की पोस्ट उनके रडार पर आ गई.

गोलाघाट के एसपी सुमीत शर्मा ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह गिरफ्तारी फेसबुक पोस्ट पर आधारित थी..अगर कोई संदिग्ध गतिविधि होती है तो मुख्यालय सूचना देता है. लेकिन अभी कोई आरोपपत्र दाखिल नहीं किया गया है क्योंकि इस पर ‘सरकार की तरफ से केस चलाने की मंजूरी लंबित है.’

बुरागोहेन के पिता ऐसा नहीं मानते कि वह किसी राजनीतिक गतिविधि में शामिल थी. वे कहते हैं, ‘उसका कविताएं लिखने का अपना एक लहजा है, बस.’

क्या है असली सपना

पिछले कुछ महीनों में असम पुलिस विशेष रूप से सक्रिय रही है. पुलिस के मुताबिक, इस साल भर्ती में तेजी आई है और अगस्त 2021 से इस साल अप्रैल के बीच के कथित तौर पर 40 से अधिक युवक-युवतियों विद्रोही समूह में शामिल हुए हैं.

जून में, ऊपरी असम के मोरानहाट की रहने वाली 23 वर्षीय मैना चुटिया को एक फेसबुक पोस्ट पर एक टिप्पणी में उल्फा-आई का समर्थन करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. वुशु खिलाड़ी और बॉक्सर मैना चुटिया को 6 अगस्त को रिहा कर दिया गया था, जब उनके माता-पिता ने मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा से इसकी अपील की थी ताकि वह ऑल-असम इंटर-डिस्ट्रिक्ट सीनियर वुशु चैंपियनशिप में भाग ले सके.

फिर जुलाई में उदलगुरी जिले के तंगला कॉलेज के छात्र 22 वर्षीय प्रमोद कलिता को इसी तरह के आरोपों में गिरफ्तार किया गया.

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि ‘नई भर्ती’ में शामिल किए गए मुख्य तौर पर ऊपरी असम के बेरोजगार युवा थे, जिन्हें सोशल मीडिया के जरिये ‘लुभाया’ गया था.

लेकिन दोस्तों, पड़ोसियों और शिक्षकों का कहना है कि बुरागोहेन इस प्रोफाइल में फिट नहीं बैठती. डीसीबी गर्ल्स कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर कृष्णा गोगोई कहती हैं, ‘वह अपने स्कूल के दिनों से ही मेधावी छात्रा रही हैं…उसका करियर उज्ज्वल होगा.’

वास्तव में, उसके सभी शिक्षक उसे ‘अच्छे ग्रेड’ वाली एक ‘अच्छी छात्रा’ मानते हैं. कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर कुकिला गोस्वामी कहती हैं, ‘वह पिछले सेमेस्टर में नियमित रूप से कक्षाओं में शामिल होती थी. इसके अलावा, वह अच्छा लिखती है, मैंने इसे उसके फेसबुक स्टेटस में पढ़ा है, वह राजनीतिक और सामाजिक रूप से जागरूक है.’

बुरागोहेन के सहपाठियों का कहना है कि वह इन मुद्दों पर शायद ही कभी चर्चा करती थी. नाम न छापने की शर्त पर बरसाश्री के एक सहपाठी ने कहा, ‘मैं उसे एक साल से जानता हूं, वह मेरी दोस्त है, कक्षाओं के बाद हम कैंटीन में जाते थे और ज्यादातर कक्षाओं और अन्य चीजों के बारे में बात करते थे, जिस तरह सामान्य कॉलेज स्टूडेंट करते हैं.’

जेल में बिताए अपने सबसे बुरे पलों में भी बुरागोहेन ने अपने अंतिम लक्ष्य से नजरें नहीं हटाईं—जो कि गणित की प्रोफेसर बनना है.

वह एक भी परीक्षा छूटने का जोखिम नहीं उठा सकती थी. न्यायिक हिरासत में रहते हुए उसने एक स्थानीय कोर्ट में याचिका दायर करके 16 जुलाई से शुरू होने वाली अपनी परीक्षा में बैठने की अनुमति मांगी थी. वह बताती है, ‘मुझे जेल परिसर के दूसरे कमरे में ले जाया गया जहां एक परीक्षा निरीक्षक मौजूद रहे. यह थोड़ा अजीब लग रहा था.’

अपनी महत्वाकांक्षाओं को व्यक्त करने को लेकर डरी-सहमी नजर आ रही बुरागोहेन साथ ही कहती हैं, ‘मेरे सपने (गणित की प्रोफेसर बनना) अभी पूरे नहीं हुए हैं, अभी एक लंबा रास्ता तय करना है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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