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Sunday, 22 December, 2024
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ज़हरीली राख- आखिर क्यों पंजाब में प्रदर्शनकारी पिछले पांच महीने से कर रहे हैं शराब फैक्ट्री का घेराव

ग्रामीणों का आरोप है कि पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और एनजीटी द्वारा पेश की गई रिपोर्ट दोषपूर्ण थी. अदालत अब पूरे मामले की गहन जांच कराने पर सहमत है, बशर्ते वे अपना आंदोलन खत्म करें.

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चंडीगढ़: पंजाब के फिरोजपुर जिले में बड़ी संख्या में आंदोलनरत ग्रामीण पिछले पांच महीनों से मंसूरवाल गांव में स्थित एक शराब फैक्ट्री के बाहर ‘पक्का धरना’ दे रहे हैं. इस फैक्ट्री द्वारा आसपास के गांवों की हवा, पानी और मिट्टी को प्रदूषित करने का आरोप लगाते हुए ये प्रदर्शनकारी इसे स्थायी रूप से बंद किए जाने की मांग कर रहे हैं.

इस सप्ताह यह मामला तब और बिगड़ गया जब पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेशों का पालन करते हुए जिला प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों को फैक्ट्री के मुख्य द्वार से बाहर हटाने की कोशिश की.

यह आंदोलन 24 जुलाई को शुरू हुआ था, जिसके कारण फैक्ट्री बंद हो गई और फिर इसके प्रबंधन ने मजबूरन अक्टूबर में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.

बता दें कि 36 एकड़ में फैली इस फैक्ट्री के मालिक शराब कारोबारी और अकाली दल के पूर्व विधायक दीप मल्होत्रा हैं. इसकी पहली इकाई साल 2006 में 100 किलो लीटर प्रति दिन (केएलडी) की क्षमता वाली अनाज-आधारित आसवनी (ग्रेन बेस्ड डिस्टलरी) के रूप में स्थापित की गई थी, जबकि इसकी एक विस्तारित इकाई ने इस साल फरवरी में काम करना शुरू किया था.

फिर, इस साल अक्टूबर में, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दिल्ली आबकारी नीति की फिलहाल चल रही जांच के सिलसिले में मल्होत्रा के दो परिसरों पर छापा मारा. इसने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को आरोपित किए जाने के बाद उन पर मनी लॉन्ड्रिंग का भी एक मामला दर्ज किया है.


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यह सब कैसे शुरू हुआ?

2015-16 में, फरीदकोट के तत्कालीन विधायक मल्होत्रा ने इस फैक्ट्री का विस्तार करने और दो चरणों में 250 केएलडी की ग्रेन बेस्ड डिस्टिलरी की दो और इकाइयां स्थापित करने का प्रस्ताव दिया था. इन्हें ‘जीरो एफ्लुएंट डिस्चार्ज’ के सिद्धांत पर स्थापित करने का प्रस्ताव दिया गया था, जिसमें पूरे एफ्लुएंट (दूषित जल) को शोधित किए जाने के बाद इसका औद्योगिक परिचालन में दोबारा उपयोग किया जाता है. बढ़ी हुई क्षमता वाली इकाइयों की स्थापना के लिए मई 2016 में एक जन सुनवाई आयोजित की गई थी. इस प्रस्ताव और इससे जुड़ी जन सुनवाई के दस्तावेज की एक प्रति दिप्रिंट के पास है.

इन बढ़ी हुई क्षमता वाली इकाइयों के लिए, मल्होत्रा के मालब्रोस इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड को जनवरी 2018 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से पर्यावरण संबंधी मंजूरी भी मिल गई. पिछले साल नवंबर में इसे 280 केएलडी क्षमता वाली ग्रेन बेस्ड डिस्टिलरी के लिए पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अंतिम अनापत्ति प्रमाण पत्र (नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट) भी जारी किया गया था. इस प्रक्रिया के बाई-प्रोडक्ट में पशु/ मुर्गों का चारा शामिल था.

इस सब के बाद, इस साल फरवरी में इस फैक्ट्री ने बढ़ी हुई क्षमता के साथ काम करना शुरू किया. इस उद्यम को मिली पर्यावरण मंजूरी प्रमाणपत्र की प्रतियां और साथ ही पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा दी गई मंजूरी की प्रति भी दिप्रिंट के पास मौजूद हैं.


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परेशानियों की शुरुआत

इस फैक्ट्री को पहली बार मार्च 2022 में तब संकट का सामना करना पड़ा, जब आसपास के गांवों के किसानों के स्वामित्व वाले 50 से अधिक मवेशियों की एक अज्ञात बीमारी से मौत हो गई. किसानों का आरोप है कि इस फैक्ट्री से निकलने वाली ज़हरीली राख के हवा में मिल जाने के चलते उन मवेशियों का चारा विषाक्त हो गया था.

इस विरोध प्रदर्शन के नेताओं में से एक, सुखजिंदर सिंह खोसा ने कहा, ‘स्थानीय निवासियों द्वारा हल्ला-गुल्ला किए जाने के बाद, फैक्ट्री ने उन किसानों को आर्थिक रूप से मुआवजा दिया, जिन्होंने अपने मवेशियों को उस अज्ञात बीमारी की वजह से खो दिया था.’

फिर जुलाई में गांव ‘महियां वाला कलां’ में गुरुद्वारा स्मध भगत धूनीचंद में एक ट्यूबवेल की खुदाई के दौरान ग्रामीणों को करीब 650 फीट पर खारा पानी नज़र आया.

इस बारे में उन्होंने 18 जुलाई को पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में शिकायत की, जिसके बाद बोर्ड की एक टीम जीरा तहसीलदार के साथ भूजल के नमूने लेने गुरुद्वारे में गई. महियां वाला कलां के अलावा रटौल रोही और मंसूरवाल के उसके आस-पास के गांवों से भी नमूने लिए गए. इस दल ने कारखाने के परिसर के अंदर से भी भूजल के नमूने एकत्र किए और बताया कि वे सभी प्रदूषकों से मुक्त और मानवीय उपभोग के लिए उपयुक्त हैं. इस रिपोर्ट की एक प्रति भी दिप्रिंट के पास है.

इसके बाद 24 जुलाई को मंसूरवाल और आस-पास के इलाकों के निवासियों ने जल, वायु और मिट्टी के प्रदूषण को फैलाने के लिए इस फैक्ट्री को बंद करने की मांग को लेकर इसके मुख्य द्वार के बाहर ‘पक्का धरना’ शुरू कर दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि इस फैक्ट्री से निकलने वाली जहरीली राख ग्रामीणों में कैंसर सहित कई गंभीर बीमारियों का कारण बन रही है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि फैक्ट्री से निकलने वाली ज़हरीली राख को फैक्ट्री प्रबंधन द्वारा पास के एक हिस्से पर डंप किया जा रहा था, जहां अवैध रूप से 40 फीट तक खनन किया गया था.

उन्होंने आगे आरोप लगाया कि फैक्ट्री रिवर्स बोरिंग (उल्टी खुदाई) और मिट्टी में प्रदूषित अपशिष्ट को डंप करने में भी शामिल है. उन्होंने कहा कि भूजल भी दूषित हो गया है और पीने योग्य नहीं रहा है. प्रदर्शनकारियों ने विभिन्न बोरवेलों से निकाले गए पानी के नमूने एकत्र किए और उन्हें बोतलों में भरकर विरोध स्थल के चारों ओर लटका दिया.

चूंकि कारखाने का मुख्य द्वार बंद कर दिया गया था और प्रदर्शनकारी किसी को भी अंदर नहीं जाने दे रहे थे, इसलिए इसे बंद कर दिया गया.


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फैक्ट्री मालिक गए अदालत, प्रदर्शनकारी एनजीटी के पास

इसके बाद कारखाने के मालिकों ने फैक्ट्री को खोलने की मांग को लेकर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 29 जुलाई को, उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि मुक्त आवाजाही की अनुमति देने के लिए इस विरोध प्रदर्शन को फ़ैक्टरी के गेट से 300 मीटर दूर स्थानांतरित किया जाए. हालांकि, प्रदर्शनकारियों ने उच्च न्यायालय के आदेशों का पालन करने से इनकार कर दिया और उन्होंने मांग रखी कि पहले फैक्ट्री को सील किया जाए.

फिर 18 अगस्त को पड़ोसी गांव रटौल रोही की ग्राम पंचायत ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पंजाब निगरानी समिति के पास इस फैक्ट्री के बारे में शिकायत की. पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जसबीर सिंह की अध्यक्षता और पंजाब के पूर्व मुख्य सचिव एससी अग्रवाल तथा जल संरक्षणवादी बलबीर सिंह सीचेवाल की सदस्यता वाले एनजीटी पैनल ने इन आरोपों की जांच शुरू की. एनजीटी की टीम ने प्रभावित गांवों का दौरा किया, प्रदर्शनकारियों और फैक्ट्री प्रबंधन से मुलाकात की. उन्होंने फैक्ट्री और उसके आसपास के विभिन्न स्थानों से पानी और मिट्टी के नमूने भी एकत्र किए.

इस निगरानी समिति ने 21 सितंबर को एनजीटी को एक रिपोर्ट सौंपी, जिसमें फैक्ट्री को मिट्टी, वायु और जल के प्रदूषण के मामले में क्लीन चिट दी गई थी. हालांकि, इसने यह जरूर ध्यान दिया कि फैक्ट्री पास के एक भूखंड पर अवैध रूप से खनन कर रही थी, जिस पर आवश्यक कार्रवाई शुरू की गई और खनन विभाग द्वारा नोटिस जारी किए गए थे.

एनजीटी टीम ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि इस इलाके में उगाए जाने वाले चारे में नाइट्रेट की मात्रा थी और यह पशुओं के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक था. निगरानी समिति की इस रिपोर्ट की एक प्रति दिप्रिंट के पास है.

इसके एक समानांतर कदम के रूप में एक गैर सरकारी संस्था (एनजीओ), पब्लिक एक्शन कमेटी, द्वारा अगस्त 2022 में दिल्ली में एनजीटी के समक्ष एक याचिका दायर की गई थी.

30 अगस्त को इस याचिका पर विचार करते हुए, एनजीटी ने एक संयुक्त समिति के गठन का आदेश दिया, जिसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य भूजल बोर्ड और जिला प्रशासन के प्रतिनिधि शामिल होंगें और अपनी एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे. सागर सेतिया, एडीसी फिरोजपुर की अध्यक्षता वाली इस संयुक्त समिति ने 7 अक्टूबर को बैठक की और फिर यह निष्कर्ष निकाला कि चूंकि इस मामले की जांच पहले से ही एनजीटी की निगरानी समिति द्वारा की जा रही है, इसलिए समानांतर जांच करने का कोई उद्देश्य नहीं होगा. हालांकि, इसने एक स्टेटस रिपोर्ट को तैयार किया जिसमें (फैक्ट्री को दिए गए) क्लीन चिट शामिल थे और इसे 21 अक्टूबर को एनजीटी को सौंप दिया. इस स्टेटस रिपोर्ट की एक प्रति भी दिप्रिंट के पास है.

फिर 8 दिसंबर को एनजीटी में हुई अगली सुनवाई के दौरान, एनजीओ ने संयुक्त समिति की बनावट में बदलाव की मांग करते हुए एक आवेदन दिया, जिसमें कहा गया था कि इसमें राज्य के बाहर के विशेषज्ञों को भी शामिल किया जाना चाहिए. हालांकि, एनजीटी ने दो महीने के भीतर पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, प्रमुख सचिव, उद्योग, पंजाब और कारखाना प्रबंधन से इस पूरे मामले पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया. यह मामला अब 23 फरवरी को इसके सामने सुनवाई के लिए आएगा.

हालांकि, एक ओर जहां एनजीटी में इस मामले की कार्यवाही चल रही थी, वहीँ पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति विनोद भारद्वाज ने फैक्ट्री मालिक द्वारा दायर याचिका पर कई सिलसिलेवार आदेश जारी किये.

11 अक्टूबर को, उच्च न्यायालय ने कहा कि जुलाई में कारखाने के बंद होने के बाद से इसे 13 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ और उसके (अदालत के) आदेशों के बावजूद, पंजाब सरकार प्रदर्शनकारियों को स्थानांतरित करने और कारखाने को फिर से शुरू करने में विफल रही है. न्यायमूर्ति भारद्वाज ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि राज्य इस मुद्दे में काफी नरमी बरत रहा है. बार-बार दिए गए आश्वासन और पंजाब के महाधिवक्ता द्वारा किए गए कठिन प्रयासों के बाद भी यह याचिकाकर्ताओं द्वारा आंदोलन का सामना किये जाने और आर्थिक बोझ सहित वित्तीय दायित्व को पूरा करने में हुए भारी नुकसान को सहने के बावजूद इस मामले में कोई प्रगति नहीं कर पा रहा है.

साथ ही, अदालत ने पंजाब सरकार को उसकी रजिस्ट्री में 5 करोड़ रुपए जमा कराने का आदेश भी दिया.


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टस से मस नहीं हुए प्रदर्शनकारी

अदालत से मिली फटकार के बाद, जिला प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों से बातचीत करने के कई प्रयास किए, लेकिन उन्होंने उनकी कोई भी बात मानने से इनकार कर दिया.

उन्होंने आरोप लगाया कि पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और एनजीटी की निगरानी समिति की टीमों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट की व्याख्या गलत तरीके से की गयी है और इसकी गहन जांच की आवश्यकता है. खोसा का दावा है, ‘नमूने बदले जा सकते हैं और परिणामों की गलत व्याख्या की जा सकती है.’

22 नवंबर को हुई मामले की अगली सुनवाई के दौरान, उच्च न्यायालय ने जोर देकर कहा कि पंजाब सरकार यह सुनिश्चित करें कि फैक्ट्री को फिर से कार्यरत बनाया जाए, जिसमें विफल रहने पर वरिष्ठ अधिकारियों को अवमानना का सामना करना पड़ेगा.

राज्य सरकार को फैक्ट्री को हुए नुकसान के मुआवजे के रूप में उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री को और 15 करोड़ रुपये का भुगतान करने के लिए कहा गया था. अदालत ने यह भी कहा कि विरोध प्रदर्शन करने वालों के नाम उनकी संपत्ति के तमाम विवरण के साथ जमा किए जाएं.

अदालत के आदेश में कहा गया है, ‘यही समय है कि अधिकारी एक ऐसा उपयुक्त तंत्र स्थापित करें ताकि सार्वजनिक या निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाले उल्लंघनकर्ता इसकी तपिश महसूस करें, जिम्मेदारी के साथ विरोध करना सीखें और उन्हें अपने कृत्यों के नतीजों के लिए जवाबदेह ठहराया जाए.’

लेकिन प्रदर्शनकारी टस से मस नहीं हो रहे हैं. खोसा कहते हैं, ‘हम उच्च न्यायालय, एनजीटी, पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जिला प्रशासन और पंजाब कैबिनेट में से किसी को भी एक महीने के लिए इस गांव में रहने और इस पानी को पीने की चुनौती देते हैं. अगर सरकार हमें जेल में डाल देती है या हमारी सारी संपत्ति भी ले लेती है, तो भी हमें कोई समस्या नहीं है; लेकिन हम अपनी तमाम पीढ़ियों को भयानक बीमारियों से मरने नहीं देंगे.’

20 दिसंबर को निर्धारित अदालत की अगली सुनवाई की तारीख से पहले, जिला प्रशासन ने बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों को गांव में तैनात किया और प्रदर्शनकारियों को बलपूर्वक हटाने की कोशिश की. इस कदम के कारण प्रदर्शनकारियों को पूरे पंजाब से भारतीय किसान यूनियनों और अन्य किसान संगठनों का समर्थन मिला और ‘ज़ीरा सांझा मोर्चा’ के तत्वावधान में विरोध स्थल पर भारी भीड़ उमड़ पड़ी.

18 दिसंबर से शुरू कर के लगातार तीन दिनों तक धरना स्थल पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुईं.

20 दिसंबर को फिर से शुरू हुई सुनवाई के दौरान, सरकार ने उच्च न्यायालय को बताया कि वह कारखाने के एक गेट को (प्रदर्शनकारियों से) मुक्त करवाने में कामयाब रही है, जो जल्द ही काम करना शुरू कर देगा ताकि कर्मचारी परिसर में प्रवेश कर सकें.

हालांकि, न्यायमूर्ति विनोद भारद्वाज ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने पर जोर दिया. अदालत ने अब प्रदर्शनकारियों द्वारा लगाए गए आरोपों की गहन जांच कराने वाली मांग पर सहमति जताते हुए उनके वकीलों को उन्हें यह इलाका खाली करने के लिए राजी करने के लिए दो दिन का समय दिया है. इस मामले की अगली सुनवाई अब 23 दिसंबर को होगी.

(अनुवादः राम लाल खन्ना | संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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