श्रीनगर, नई दिल्ली: जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोगों पर अब शेष भारत की तरह ही सारे केंद्रीय कानून लागू हो जाएंगे क्योंकि आज से अनुच्छेद 370 समाप्त करने और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने का सरकार का 5 अगस्त का फैसला प्रभावी हो रहा है.
दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार दोनों नए केंद्रशासित प्रदेशों – जम्मू कश्मीर और लद्दाख – पर नए सिरे से राष्ट्रपति शासन लगाया जाएगा, जबकि एक अन्य आदेश के जरिए जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक के आज से अप्रभावी अलग संविधान संबंधी प्रावधानों को निलंबित कर दिया जाएगा.
दो अलग-अलग शपथ ग्रहण समारोहों – एक लेह में और दूसरा श्रीनगर में – में गुरुवार को जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल जम्मू कश्मीर और लद्दाख के लेफ्टिनेंट गवर्नरों (एल-जी) को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिला रही हैं. गिरीश चंद्र मुर्मू जम्मू कश्मीर के और राधाकृष्ण माथुर लद्दाख के एल-जी बनाए गए हैं.
मुख्य न्यायाधीश गुरुवार की सुबह लद्दाख पहुंच चुकी थीं, जहां से दोपहर बाद वापस आकर उन्हें श्रीनगर के समारोह में शामिल होना है.
अब राज्य के कानूनों को रद्द कर उनकी जगह केंद्रीय कानून लागू किए जाएंगे. जम्मू कश्मीर सरकार के एक अधिकारी के अनुसार 31 अक्टूबर से दोनों नए केंद्रशासित प्रदेशों पर कुल 106 केंद्रीय कानून लागू हो रहे हैं, जबकि पूर्ववर्ती राज्य के 153 कानून रद्द किए जा रहे हैं. हालांकि अधिकारियों के अनुसार इन परिवर्तनों का कोई खास असर नहीं दिखेगा क्योंकि अधिकांश केंद्रीय कानून पहले से ही स्थानीय कानूनों के रूप में जम्मू कश्मीर में मौजूद हैं.
ज़मीनी बदलाव क्या होंगे
सर्वाधिक स्पष्ट दिखने वाला बदलाव राज्य के प्रतीक चिन्हों – ध्वज और राज्य-चिन्ह – का अस्तित्व नहीं रहने के रूप में दिखेगा. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों के तहत अभी तक जम्मू कश्मीर का एक अलग ध्वज होता था. सरकारी भवनों और बड़े अधिकारियों की गाड़ियों पर तिरंगा और जम्मू कश्मीर का ध्वज दोनों ही लगे होते थे. आज से सिर्फ राष्ट्रीय ध्वज का ही इस्तेमाल होगा.
प्रशासनिक क्षेत्र में सबसे बड़ा परिवर्तन राज्य विधानसभा को लेकर होगा. नवनिर्मित केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में कोई विधानसभा नहीं होगी, जबकि जम्मू-कश्मीर में एकल सदन वाली विधानसभा होगी. अभी तक जम्मू-कश्मीर में विधान सभा और विधान परिषद वाली द्विसदनीय विधानसभा थी. इस तरह जम्मू कश्मीर और लद्दाख के भीतर 36 विधान पार्षदों के पद खत्म हो गए हैं. साथ ही. नई जम्मू कश्मीर विधानसभा में अब मुख्यमंत्री के अलावा अधिकतम नौ अन्य मंत्री ही हो सकेंगे.
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जम्मू-कश्मीर के अगले निर्वाचित मुख्यमंत्री को तीन प्रमुख क्षेत्रों – कानून और व्यवस्था, स्थानान्तरण और नियुक्ति, तथा नवगठित भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो – में कोई अधिकार नहीं होगा. राज्यपाल का पद भंग होने के बाद अब इनसे संबंधित अधिकार एल-जी के नवसृजित पद में समाहित होगा.
कश्मीर प्रशासनिक सेवा (केएएस) और कश्मीर पुलिस सेवा (केपीएस) के अधिकारियों का मौजूदा राज्य कैडर अपरिवर्तित रहेगा. हालांकि, नई नियुक्तियां एजीएमयूटी कैडर से की जाएंगी.
जम्मू-कश्मीर में जहां मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक के पद बने रहेंगे, वहीं लद्दाख के बारे में इससे संबंधित निर्णय गुरुवार को बाद में किया जाएगा. राज्यपाल के सलाहकारों की जगह एल-जी के नए सलाहकारों के लाए जाने की संभावना है.
राज्य सरकार के कर्मचारियों को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित किया जाएगा. अधिकारियों को दोनों में से किसी एक के लिए काम करने का विकल्प दिया गया है, और अधिकारियों का कहना है कि अधिकतर कर्मचारी जम्मू-कश्मीर का विकल्प चुन रहे हैं.
राज्य के 153 कानून निरस्त होंगे
हालांकि पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर राज्य को अनुच्छेद 370 के ज़रिए मिले विशेष दर्जे के कारण केंद्रीय कानूनों से छूट मिली हुई थी, पर अधिकतर केंद्रीय कानून राज्य विधानमंडल द्वारा जम्मू कश्मीर के संविधान के तहत पारित स्थानीय कानूनों के रूप में पहले से ही मौजूद हैं.
उदाहरण के लिए, आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम, 2016 राज्य में लागू नहीं था, पर वहां जम्मू कश्मीर आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवा का लक्षित वितरण) अधिनियम 2018 मौजूद था, जिसके तहत राज्यवासियों को शेष भारत की तरह ही सेवाओं की प्राप्ति के लिए आधार नंबर रखना होता था.
इसी तरह, राज्य में शिक्षा के अधिकार संबंधी कानून का एक स्थानीय संस्करण लागू था. इस बारे में जम्मू कश्मीर सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘वास्तव में राज्य का आरटीई कानून केंद्रीय कानून से बेहतर था क्योंकि उसमें विश्वविद्यालय स्तर तक मुफ्त शिक्षा का प्रावधान था.’
एक अन्य अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि अधिकांश केंद्रीय कानून के समतुल्य स्थानीय कानून मौजूद थे. ‘हमारे पास 2013 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम जैसे कुछेक कानूनों के अलावा राज्य स्तर पर सारे कानून हैं.’ उदाहरण के लिए, केंद्र के बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम के समतुल्य राज्य कानून है – जम्मू कश्मीर बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम.
अब जम्मू कश्मीर किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2013 को निरस्त किया जाएगा और उसकी जगह केंद्रीय कानून लागू किया जाएगा. इसी तरह जम्मू कश्मीर रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) को भी रद्द कर उसे केंद्रीय कानून से प्रतिस्थापित किया जाएगा.
फिर भी, राज्य की विशेष परिस्थिति के अनुरूप बने कुल 166 राज्य कानून लागू रहेंगे. इनमें जम्मू कश्मीर केसर अधिनियम 2007, जम्मू कश्मीर हवाई रोपवे अधिनियम 2002, जम्मू कश्मीर राज्य भेड़ एवं भेड़ उत्पाद विकास बोर्ड अधिनियम 1979, शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अधिनियम 1982, जम्मू कश्मीर श्री माता वैष्णो देवी श्राइन अधिनियम 1988 आदि शामिल हैं.
आरपीसी की जगह आईपीसी
गुरुवार के बाद, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) अब तक जम्मू कश्मीर राज्य में लागू रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) की जगह ले लेगी – जिसका नाम राज्य के पूर्व डोगरा महाराजा रणबीर सिंह के नाम पर रखा गया था.
वैसे कुछ अपवादों को छोड़कर आईपीसी की अधिकतर धाराएं आरपीसी में मौजूद थीं. कंप्यूटर संसाधनों से संबंधित आईपीसी की धारा 4 इन अपवादों में शामिल है. इसी तरह आईपीसी की धारा 153एए के समतुल्य भी कोई प्रावधान भी आरपीसी में नहीं था, जिसमें किसी सामूहिक ड्रिल में जानबूझकर हथियार ले जाने को दंडनीय बनाया गया है. आरपीसी में आईपीसी की धारा 195A के समान भी कोई धारा नहीं है, जो कि धमकी देने वाले तथा झूठे सबूत या बयान देने वाले व्यक्ति को सजा का पात्र बनाती है. साथ ही, आरपीसी में दहेज हत्या से संबंधित आईपीसी की धारा 304 के समतुल्य प्रावधान भी नहीं है.
श्रीनगर में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि अब आपराधिक मामले आरपीसी के बजाय आईपीसी के तहत दर्ज किए जाएंगे. अधिकारी ने कहा, ‘इससे पुलिस के कामकाज पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, बस पुलिसकर्मियों को उन अतिरिक्त धाराओं के बारे में प्रशिक्षण देना होगा जिनके तहत अब आपराधिक मामले दर्ज किए जा सकते हैं.’
घाटी में बंद जारी
एक ओर जहां नए एल-जी शपथ ग्रहण कर रहे हैं, वहीं घाटी में स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है. अगस्त में शुरू हुआ जनकर्फ्यू जारी है जिसके कारण दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को अब भी बंद रखा जा है, बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं और सार्वजनिक परिवहन ठप पड़ा है.
यूरोपीय सांसदों की दो-दिवसीय यात्रा के दौरान भी घाटी में सख्त सुरक्षा तैनाती जारी रही थी. यूरोपीय सांसदों का दल बुधवार को अपने दौरे से वापस लौट गया. इस बीच, घाटी के विभिन्न इलाकों में पथराव की 10 से अधिक वारदातें हुई हैं.
नई शासन व्यवस्था लागू होने के मौके पर पूरे केंद्रशासित प्रदेश में, और विशेष कर कश्मीर में सुरक्षा व्यवस्था और सख्त कर दी गई है. अधिकारी गुरुवार का दिन शांतिपूर्वक गुजरने की उम्मीद कर रहे हैं.
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