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Wednesday, 24 April, 2024
होमदेश‘हर तरफ बस छर्रे और पत्थर बिखरे थे’—असम और मिजोरम पुलिस कैसे एक-दूसरे से भिड़ी थी

‘हर तरफ बस छर्रे और पत्थर बिखरे थे’—असम और मिजोरम पुलिस कैसे एक-दूसरे से भिड़ी थी

सीआरपीएफ अब विवादित क्षेत्र के 4 किलोमीटर के दायरे में ‘नो मैन्स लैंड’ सुनिश्चित करेगी, जहां सोमवार की झड़पों में असम पुलिस के छह जवान शहीद हो गए थे.

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लैलापुर, वैरेंगटे: असम और मिजोरम पुलिस बलों के बीच हाल में हिंसक संघर्ष, जिसमें छह कर्मियों की मौत हो गई और 50 अन्य घायल हो गए, के पीछे वजह 8X8 फीट की एक निर्माणाधीन पोस्ट है जो सिर्फ लकड़ी के ढांचे से बनी हुई है.

मिजोरम की इंडिया रिजर्व बटालियन (आईआरबी) ने 15 जुलाई को ही असम के लैलापुर और मिजोरम में वैरेंगटे से होकर गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 306 पर स्थित एक पहाड़ी के ऊपर चौकी का निर्माण शुरू किया था.

हालांकि, पिछले साल अक्टूबर से ही यहां तनाव उपज रहा था, जब असम के गांवों की तरफ से एनएच 306 के किनारे बनाई गई 20 अस्थायी बांस की झोपड़ियों को कथित तौर पर मिजोरम के लोगों ने जला दिया था. इसके बाद लैलापुर और वैरेंगटे के ग्रामीणों के बीच झड़प हुई थी.

हिंसा के जवाब में मिजोरम पुलिस ने विवादित इलाके में अपने जवानों को तैनात करने के लिए 16X32 फीट की दो चौकियां बनाई थीं. चौकियों से महज 60 मीटर की दूरी पर असम पुलिस ने भी सीमा चौकी बना दी थी.

मिजोरम का दावा है कि उसकी तीनों चौकियां वैरेंगटे क्षेत्र में आती हैं, जबकि असम का मानना है कि वे रेंगती बस्ती में आती है जो इसकी सीमा के अंदर संरक्षित वन क्षेत्र का हिस्सा है.

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The disputed site | Map: Soham Sen

आखिरकार सोमवार (26 जुलाई) को सुबह 11 बजे स्थिति बिगड़ गई.

सीआरपीएफ, जिनकी विवादित सीमा के दोनों ओर दो चौकियां हैं, के सूत्रों और प्रत्यक्षदर्शियों ने दिप्रिंट को बताया कि असम के लगभग 250 लोग घटनास्थल पर पहुंचे थे. इनमें असम पुलिस के वरिष्ठ कर्मी, डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर, वरिष्ठ अधिकारी और आसपास गांवों में रहने वाले लोग शामिल थे.

असम पुलिस ने दिप्रिंट को बताया कि वे निर्माण कार्य रोकने के लिए मिजोरम आईआरबी को नोटिस देना चाहते हैं. आईआरबी का दावा है कि असम का दल शुरू से ही टकराव के लिए तैयार नजर आ रहा था.

दोनों पक्ष एकदम आमने-सामने आ गए और एक घंटे के अंदर ही काफी गर्म माहौल में जारी बहस देखते-देखते धक्का-मुक्की, तोड़फोड़ और आंसू गैस के गोले छोड़े जाने में बदल गई. फिर एकदम सैन्य तरीके से हुए संघर्ष में न केवल असम पुलिस के छह कर्मी मारे गए बल्कि दोनों बलों के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को पास के जंगल में भागकर और चौकियों के पास लगे पर रेत के बोरों के पीछे छिपकर जाना बचानी पड़ी.

दिप्रिंट ने बुधवार को जब क्षेत्र का दौरा किया, तो यहां पर किसी युद्ध के बाद जैसा नजारा दिख रहा था.

मिजोरम की तीन चौकियों पर जगह-जगह गोलियों के निशान थे, जबकि टूटी ईंटें, बड़े-बड़े पत्थर और छर्रे सड़कों पर बिखरे पड़े थे.

एक क्षतिग्रस्त बस पर ‘मिजोरम’ का छिड़काव कर राजमार्ग को जाम कर दिया गया।

इलाके में तीन अलग-अलग बलों—असम पुलिस, मिजोरम पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ)—की भारी मौजूदगी थी.

संयम बरते जाने के बावजूद स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है.

यह संघर्ष विराम मंगलवार की एक बैठक का नतीजा है, जिसे केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने दोनों राज्यों के बीच मध्यस्थता के लिए बुलाया था. तय किया गया कि दोनों राज्य अपने-अपने पुलिस बलों को वापस बुलाएंगे और सीआरपीएफ को चार किलोमीटर के विवादित क्षेत्र में तैनात किया जाएगा, जो स्थायी समाधान मिलने तक ‘नो मैन्स लैंड’ बना रहेगा.

The vandalised bus at the middle of the highway | Photo: Praveen Jain/ThePrint
हाईवे के बीचों बीच बस को तोड़ फोड़ दिया/फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

कैसे भड़की हिंसा

सूत्रों ने बताया कि जिस दिन हिंसा की घटना हुई उस दिन सुबह असम के आईजी अनुराग अग्रवाल, कछार के एसपी निंबालकर वैभव चंद्रकांत (जिनका बाद में ट्रांसफर हो गया), और डीआईजी, सिलचर ज्योति बनर्जी वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ ‘नोटिस देने’ के मिजोरम की चौकी पहुंचे थे.’

असम का दल चाहता था कि मिजोरम आईआरबी कर्मी, जो संख्या में बहुत कम थे, इस क्षेत्र को खाली कर दें. लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया.

इसके बाद मिजोरम पुलिस की तरफ से कोलासिब के एसपी वनलालफाका राल्ते के साथ बातचीत शुरू हुई, जो इलाके में असम के पुलिस कर्मियों की मौजूदगी की सूचना मिलते ही मौके पर पहुंच गए थे.

हालांकि, असम पुलिस ने क्षेत्र का नियंत्रण करने से पहले कथित तौर पर उनके साथ धक्का-मुक्की और उन्हें वहां से खदेड़ दिया.

हिंसा की इस घटना के चश्मदीद रहे सीआरपीएफ के एक अधिकारी ने कहा कि ‘चारों ओर गोलियों की बौछार और पथराव जारी था और एक घंटे से अधिक समय तक गोलीबारी हुई.’

उन्होंने बताया, ‘असम की तरफ से 25 वाहनों में सवार होकर 200 से ज्यादा लोग आए थे. उन्होंने मिजोरम पुलिस से पूछा कि पहाड़ी पर चौकी क्यों बना रहे हैं जो कि वन क्षेत्र है.’

उन्होंने आगे बताया, ‘बातचीत का एक दौर चला लेकिन कारगर नहीं रहा. असम पुलिस आगे बढ़ी और वहां मौजूद मिजोरम आईआरबी के 15-20 कर्मियों को खदेड़ दिया.

अधिकारी के मुताबिक, देखते ही देखते आईआरबी के जवान मिजोरम की तरफ पहाड़ियों पर चढ़ गए और उन्होंने मदद मंगा ली. वे कथित तौर पर पहाड़ियों पर बैठ गए और ‘प्रमुख ठिकानों’ से हमला करने लगे. उन्होंने कहा कि हालांकि दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर गोलियां दागीं लेकिन मिजोरम की ओर से इसका इस्तेमाल काफी ज्यादा किया गया.

मौके पर ही मौजूद रहे एक दूसरे सीआरपीएफ अधिकारी ने कहा कि यहां तक कि ‘दोनों पक्षों की तरफ से स्थानीय नागरिक भी इसमें शामिल हो गए और एक-दूसरे पर ईंट-पत्थर बरसाने लगे.’

उन्होंने आगे बताया, ‘उन लोगों ने कैटापोल्ट्स और पैलेट गन का भी इस्तेमाल किया. असम पुलिस इसकी चपेट में ज्यादा आई क्योंकि मिजोरम के लोग, जिनमें पुलिसकर्मी भी शामिल थे, पहाड़ी की चोटी से हमला कर रहे थे. असम पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े और हवाई फायरिंग भी की. इसके बाद मिजोरम पुलिस ने भी अपने स्वचालित हथियारों का उपयोग करके नीचे की ओर गोलियां चलाना शुरू कर दिया. चारों तरफ से गोलियां चल रही थीं, वरिष्ठ अधिकारी कवर के लिए इधर-उधर भाग रहे थे. यह सब एक घंटे से अधिक समय तक चलता रहा.’

उन्होंने आगे कहा, ‘यह एक शर्मनाक घटना थी. दो पुलिस बलों को आपस में इस तरह भिड़ते और एक-दूसरे पर गोलियां चलाते पहले कभी नहीं सुना था. इसे बातचीत के जरिए सुलझाया जाना चाहिए था.’

दूसरे अधिकारी के मुताबिक, तत्कालीन कछार एसपी चंद्रकांत, जिन्हें अब ट्रांसफर कर दिया गया है, ने बालू के बोरों के पीछे छिपकर अपनी जान बचाई लेकिन उनकी जांघ पर गोली लग गई. जबकि एसपी राल्ते पास के जंगल में भागकर शरण लेने से पहले खुद को गोलियों की बौछार से बचाने के लिए जमीन पर लेट गए थे.

Bullet holes at one of the three posts of the Mizoram Police | Photo: Praveen Jain
मिजोरम पुलिस की तीन चौकियों में से एक पर गोली के छेद/फोटो: प्रवीण जैन

एसपी राल्ते ने दिप्रिंट को बताया कि उनके पास भागकर जंगल में छिपने के अलावा कोई चारा नहीं था. उन्होंने असम पुलिस पर गोलीबारी करने और स्थिति को बिगाड़ने का आरोप लगाया, जिस बात को उसकी तरफ से इनकार किया जा रहा है.

उन्होंने कहा, ‘फायरिंग का पहला राउंड असम पुलिस की तरफ से ही शुरू किया गया. मेरा बल यह जानकर कि मैं यहां पर बैठा हूं, फायरिंग क्यों करेगा? वे मेरे जीवन को खतरे में नहीं डालेंगे. लेकिन जब असम पुलिस ने पहली गोली चलाई, तो जवाबी गोलीबारी शुरू हो गई और सभी लोग बचने के लिए इधर-उधर भागने लगे. गोलियों से बचने के लिए मुझे खुद जमीन पर लेटना पड़ा. फिर मैं जंगल की ओर भागा. चूंकि मैं नीचे था और मेरी तरफ के लोग पहाड़ी पर थे, मैं उन्हें नियंत्रित करने की स्थिति में नहीं था. अगर फायरिंग की चपेट में आ जाता तो मैं भी मारा जाता.

राल्ते ने बताया कि बातचीत के दौरान उन्होंने असम पुलिस के आईजी और एसपी से ‘कड़ाई से’ कहा कि वह यहां से चले जाएं या फिर गंभीर नतीजे भुगतने को तैयार रहे, ‘लेकिन उन्होंने एक नहीं सुनी.’

उन्होंने दावा किया, ‘जब मैं अधिकारियों से बात कर ही रहा था, असम पुलिस के कर्मियों ने हमारे जवानों को निकालना शुरू कर दिया. उन्होंने मिजो फोर्स के साथ भी धक्का-मुक्की की और उन्हें बाहर खींच लिया, जबकि हमने अत्यधिक संयम दिखाया. जब आसपास के मिजो गांवों के लोगों ने देखा कि असम पुलिस क्या कर रही है, तो वे भी भड़क गए.’

उन्होंने कहा कि थोड़ी ही देर में हालात बेकाबू होने लगे. राल्ते ने कहा, ‘मैं अभी भी बातचीत की कोशिश कर रहा था, लेकिन असम पुलिस आगे बढ़ आई और उनकी तरफ के नागरिकों ने पथराव शुरू कर दिया. मिजो लोगों ने भी इसका जवाब दिया. भीड़ तितर-बितर करने के लिए असम पुलिस ने मिजो पुलिस और स्थानीय लोगों पर आंसू गैस के गोले दागे, जिससे गुस्सा और भड़क गया और उसके बाद स्थिति बेकाबू हो गई.’

Kolasib SP Vanlalfaka Ralte of the Mizoram Police | Photo: Praveen Jain/ThePrint
मिज़ोरम पुलिस के एसपी राल्ते/फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

असम पुलिस के एसपी वैभव चंद्रकांत ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि उनके बल ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए केवल ‘गैर-घातक’ तरीकों का इस्तेमाल किया.

उन्होंने कहा, ‘हमने गोली नहीं चलाई. हम अपने ही देश के लोगों पर गोलियां क्यों चलाएंगे? मिजोरम पुलिस के हावी होने और हम पर हमला कर देने के बाद ही हमारी तरफ से आंसू गैस का इस्तेमाल किया गया. अगर हमने पहले गोलियां चलाईं, तो मिजोरम का कोई भी पुलिसकर्मी घायल क्यों नहीं हुआ? दूसरी ओर हमारे छह लोगों की जान चली गई.’

एसपी चंद्रकांत ने कहा कि असम की टुकड़ी सिर्फ नोटिस देना चाहती थी. उन्होंने कहा, ‘हम उन्हें नोटिस देने के लिए वहां गए थे और उनसे इन चौकियों और जंगल के अंदर सड़कों का निर्माण कर अतिक्रमण न करने को कहा था. हमने उन्हें बताया कि असम के लोगों को आशंका है कि मिजोरम पुलिस कहीं यहां की जमीन पर अतिक्रमण न कर ले और उन्हें निर्माण रोकना चाहिए, नहीं तो स्थानीय लोगों में आक्रोश भड़क सकता है.’

उन्होंने कहा, ‘इस सब पर बातचीत चल ही रही थी जब मिजोरम की ओर आक्रोश में आ गए और उन्होंने पथराव शुरू कर दिया. हमने अपने लोगों को जवाबी कार्रवाई को नियंत्रित किया और उन्हें ऐसा करने से रोका. मुझे चोट लगी, एक पीएसओ को पीटा गया और हमारे वाहन तोड़ डाले गए. मैंने दूसरी तरफ के लोगों से भी शांत रहने की अपील की, लेकिन उन्होंने एक नहीं सुनी. दूसरी तरफ के नागरिकों के पास भी बंदूकें थीं और वे गोलियां चलाने से हिचकिचा नहीं रहे थे.’

एक बार संघर्ष थमा तो मिजोरम पुलिस ने पहाड़ियों से नीचे उतरकर फिर से चौकियों पर कब्जा कर लिया.


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विवादित क्षेत्र

अक्टूबर में हिंसा के बाद मिजोरम पुलिस की तीन चौकियां बनी थी. इससे पहले मिजोरम की आखिरी सीमा चौकी 100 मीटर पीछे थी.

असम का कहना है कि नई चौकियों ने उसके क्षेत्र में अतिक्रमण किया है.

कछार की नई एसपी रमनदीप कौर ने कहा, ‘यहां मुद्दा मिजोरम आईआरबी की तरफ से संरक्षित वन क्षेत्र की जमीन पर अतिक्रमण का था, जो गैरकानूनी है. उन्होंने उस जमीन पर न केवल दो चौकियों का निर्माण कर लिया और एक अन्य का निर्माण कर रहे हैं, बल्कि उन चौकियों तक आपूर्ति बहाल करने के लिए जंगल के रास्ते से सड़क भी बना रहे थे. उस जमीन पर कोई बस्ती या कोई ढांचा नहीं बनाया जा सकता है.’

कौर ने बताया, ‘डिवीजनल कमिश्नर और डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर के अनुरोध पर पुलिस को इन ढांचों को हटाने में मदद के लिए बुलाया गया था.’

दोनों राज्यों के पुलिस बलों के बीच एक बफर के तौर पर कार्य करने के लिए मिजोरम और असम में सशस्त्र सीमा बल की तरफ से बीएसएफ को साइट पर तैनात किया गया है.

सीआरपीएफ ने इस साल मार्च में असम की ओर से एसएसबी से और 6 जून 2021 को मिजोरम की ओर से बीएसएफ से नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया था. बीएसएफ की दो चौकियां असम सीमा चौकी और मिजोरम की तीन चौकियों के बीच में है.

Mizoram Police
राष्ट्रीय राजमार्ग 306 . से सटे एक पहाड़ी से देख रही मिजोरम पुलिस/प्रवीण जैन/दिप्रिंट

राल्ते ने भी बताया कि दोनों बलों के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच एक अनौपचारिक मौखिक समझौता हुआ था, जिसके तहत ‘यथास्थिति बनाए रखी जानी है.’

उन्होंने कहा, ‘हमारे समझौते के मुताबिक, अगर किसी राज्य की पुलिस—चाहे मिजोरम की हो या असम की—को पार करके दूसरे राज्य में जाना है तो उसे सीआरपीएफ को इसकी सूचना देनी होगी. असम पुलिस ने ऐसा नहीं किया. सीआरपीएफ को दरकिनार करते हुए वह चौकियों पर नियंत्रण के लिए टेंट, निर्माण सामग्री, एंबुलेंस से लैस 250 लोगों को लेकर यहां पहुंचे. उनका इरादा हमसे जगह खाली कराना और खुद अपनी चौकियां बनाना शुरू करना था. इसे घुसपैठ के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता.’

हालांकि, एसपी वैभव ने कहा कि यह मिजोरम था जिसने कम से कम पांच घटनाओं में यथास्थिति की धज्जियां उड़ाईं.

उन्होंने आरोप लगाया, ‘उन्होंने अग्रिम ठिकानों पर आगे बढ़कर कम से कम कम पांच मौकों पर समझौते का उल्लंघन किया है. इसी महीने ही कुलीचेरा इलाके के पास, उन्होंने दो स्कूलों को उड़ा दिया. वे सीआरपीएफ के शिविरों से बहुत आगे आ गए और फिर हमें उन्हें फिर पीछे धकेलना पड़ा. अब, उन्होंने असम के तहत आने वाली रेंगती बस्ती के वन क्षेत्र में सड़कों और चौकियों का निर्माण शुरू कर दिया है. क्या ये सब समझौते और यथास्थिति का उल्लंघन नहीं है?’

उन्होंने कहा, ‘अगर वे हमारी जमीन पर अतिक्रमण करते रहते हैं, तो हमारे पास हस्तक्षेप करने के अलावा कोई चारा नहीं है.’

गोलीबारी के बीच सीआरपीएफ सक्रिय

हालांकि, सीआरपीएफ इलाके में तैनात है, लेकिन उसके अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें दोनों राज्यों के पुलिस बलों के बीच के मामलों में दखल देने का अधिकार नहीं दिया गया है.

सीआरपीएफ सूत्रों ने बताया कि हालात बेकाबू होने की स्थिति आने पर ही उन्हें कार्रवाई में शामिल किया गया और उन्हें इसके लिए गृह मंत्रालय की ओर से औपचारिक आदेश मिला था.

A CRPF patrol at the disputed site Wednesday | Photo: Praveen Jain/ThePrint
बुधवार को विवादित स्थल पर सीआरपीएफ का गश्ती दल/फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

एक तीसरे अधिकारी ने कहा, ‘हमारे पास दो राज्यों के पुलिस बलों के बीच दखल देने का अधिकार नहीं है. जब स्थितियां नियंत्रण से बाहर होने लगीं, तो हमने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत कराया, जिन्होंने इस मुद्दे फिर प्रशासनिक अधिकारियों के समक्ष उठाया. हमने अपने नोडल प्राधिकरण एमएचए से औपचारिक आदेश आने के बाद ही हस्तक्षेप किया, जिसने हमें ऐसा करने को कहा.’

सूत्रों ने बताया कि बराक घाटी के सीआरपीएफ डीआईजी शाहनवाज खान बुलेटप्रूफ बंकर के अंदर बैठे और सफेद झंडा लहराते हुए दोनों बलों से पीछे हटने का अनुरोध किया.

तीसरे अधिकारी ने बताया कि उन्होंने हालात बेकाबू होने से पहले भीड़ हिंसा को नियंत्रित करने का प्रयास किया. अधिकारी ने कहा, ‘हमने दोनों पक्षों की भीड़ पर काबू पाने के लिए क्विक रिस्पांस टीमें बुलाईं और बाकायदा एनाउंसमेंट शुरू किया जिसमें दोनों बलों से पीछे हटने का आग्रह किया गया.’

उन्होंने कहा, ‘एक बचाव अभियान भी शुरू किया गया और सभी घायल कर्मियों को अस्पताल ले जाया गया. रेत के एक ढेर के पीछे खून से लथपथ पड़े घायल एसपी को भी निकाला गया.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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