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Friday, 27 September, 2024
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जीवन प्रत्याशा बढ़ने से भारत में बुजुर्गों के देखभाल की जरूरत ने एक अच्छे कारोबार की संभावनाएं पैदा की हैं

देश में बुजुर्गों का आंकड़ा लगभग 138 मिलियन होने के बीच उनकी जरूरतें पूरी करने के लिए असंख्य कंपनियां आगे आ रही हैं. लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि व्यावसायिक पहल तो बढ़ रही हैं लेकिन जेरिएट्रिक यानी वृद्धावस्था से जुड़ी बीमारियों के इलाज की व्यवस्था जरूरत के अनुरूप नहीं है.

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नई दिल्ली: वरिष्ठ नागरिकों का साथ देने के लिए युवा स्नातकों को नियुक्त करने वाले एक परोपकारी स्टार्टअप गुडफेलो ने पिछले हफ्ते अपने सेलिब्रिटी निवेशक टाटा संस के चेयरमैन एमेरिटस रतन टाटा की वजह से काफी सुर्खियां बटोरीं.

हालांकि, यह ऐसी अकेली कंपनी नहीं है. जीवन प्रत्याशा बढ़ने के बीच अब जब अधिक युवा भारतीय विदेश में बसने का विकल्प चुन रहे हैं और न्यूक्लियर फैमिली वाली पहली पीढ़ी अपनी सेवानिवृत्ति की आयु पार कर चुकी है, बुजुर्गों की देखभाल का बिजनेस शहरों में एक तेजी से बढ़ता सेवा क्षेत्र बनकर उभरा है. इसमें न केवल स्वास्थ्य देखभाल बल्कि अपने दम पर जीवन जीने वाले बुजुर्गों का हाथ थामना भी शामिल है.

अच्छे-खासे वित्त पोषण और सेलिब्रिटी-समर्थित पहलों की वजह से एल्डरकेयर की उभरती और लगातार बढ़ती मांग पूरी करने के लिए कई छोटी कंपनियां आगे आ रही हैं और इस क्षेत्र के भविष्य में और तेजी से बढ़ने के आसार हैं.

शुरुआती खिलाड़ी ये कंपनियां छोटी-बड़ी हर आकार की हैं. कोलकाता की एक उभरती कंपनी पिछले दो वर्षों से इस सेवा में है, जबकि हैवीवेट मैक्स हेल्थकेयर की वरिष्ठ जीवन पहल ‘अंतरा’—जिसके तहत देहरादून में वरिष्ठ नागरिकों के लिए देश की एक बेहतर आवासीय कम्युनिटी स्थापित की गई है—अब असिस्टेड केयर सर्विस और मेडिकल प्रोडक्ट के क्षेत्र में कदम रख दिया है.

हालांकि, डॉक्टरों का कहना है कि देश में बुजुर्गों की देखभाल की व्यावसायिक पहल भले ही बढ़ रही हों लेकिन वृद्धावस्था संबंधी बीमारियों के इलाज की व्यवस्था उससे तालमेल करती नहीं दिख रही है.


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भारत में बुजुर्ग आबादी

बेहतर स्वास्थ्य देखभाल और जीवनस्तर में सुधार ने पिछले कुछ दशकों में भारत की जीवन प्रत्याशा में उल्लेखनीय वृद्धि सुनिश्चित की है और यही वजह है कि भारत में बुजुर्गों की आबादी बढ़ रही है.

सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के सोशल स्टेटिस्टिक डिवीजन की तरफ से पिछले साल जारी की गई ‘एल्डरली इन इंडिया 2021’ रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 में भारत में करीब 138 मिलियन बुजुर्ग थे, जिनमें 67 मिलियन पुरुष और 71 मिलियन महिलाएं शामिल थीं.

रिपोर्ट में बताया गया है कि मुख्यत: 1981 की जनगणना के बाद स्वास्थ्य क्षेत्र में तमाम बदलावों के कारण मृत्यु दर में कमी आने से देश में बुजुर्गों की आबादी तेजी से बढ़ी है.

इसमें आगे बताया गया, ‘2001-2011 के दौरान बुजुर्गों की संख्या 27 मिलियन से अधिक थी…1961 में 5.6% आबादी 60 वर्ष या उससे अधिक आयु वर्ग की थी और 2021 में यह अनुपात बढ़कर 10.1% हो गया है और आगे 2031 में बढ़कर 13.1% पहुंच जाने की उम्मीद है.’

हालांकि, उम्रदराज आबादी की समस्याओं से निपटने की चुनौती एक वैश्विक मुद्दा है. संयुक्त राष्ट्र की तरफ से वर्ष 2021-2030 को ‘डिकेड ऑफ हेल्दी एजिंग’ घोषित किया गया है.

भारत सरकार भी इस चुनौती से वाकिफ है. पिछले दो सालों के दौरान सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने भारत की बढ़ती आबादी की समस्याएं पता लगाने के लिए कम से कम सात समितियों का गठन किया है. इसके अलावा अन्य पहल भी की गई हैं. जून 2021 में सरकार ने एसएजीई (सीनियरकेयर एजिंग ग्रोथ इंजन) पहल और एसएजीई पोर्टल लॉन्च किया.

एक सरकारी बयान के मुताबिक, ‘एसएजीई पोर्टल विश्वसनीय स्टार्ट-अप की तरफ से मुहैया कराए जाने वाले बुजुर्ग की देखभाल संबंधी उत्पादों और सेवाओं का ‘वन-स्टॉप एक्सेस’ होगा…स्टार्ट-अप का चयन इनोवेटिव उत्पादों और सेवाओं के आधार पर किया जाएगा, जिन्हें वे फाइनेंस, फूड एंड वेल्थ मैनेजमेंट और कानूनी सलाह से जुड़ी तकनीकी पहुंच के अलावा स्वास्थ्य, आवास, देखभाल केंद्रों जैसे क्षेत्रों में प्रदान करने में सक्षम हों.’

पिछले साल सितंबर में वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक टोल-फ्री हेल्पलाइन शुरू की गई थी जो पेंशन से संबंधित, सामाजिक और कानूनी मुद्दों पर उनका मार्गदर्शन करेगी.


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देखभाल का व्यवसाय

बुजुर्गों की देखभाल और उन्हें घर जैसा ही माहौल मुहैया कराने वाले कोलकाता स्थित स्टार्ट-अप बडी बैक होम के संस्थापकों में से एक नबामिता भट्टाचार्य का कहना है कि यह विचार उन्हें कोविड महामारी के शुरुआती दिनों में आया जब उन्हें अपने आसपास ऐसे कई बुजुर्ग मिले थे जिनके बच्चे विदेश में रहते थे, और उन्हें लग रहा था कि बीमार पड़ने पर उनकी देखभाल कौन करेगा.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘यह न केवल अकेले रहने वाले इन बुजुर्गों बल्कि हजारों मील दूर बसे उनके बच्चों के लिए भी चिंता का एक विषय बना हुआ था. मैं इस एहसास से पहले से ही वाकिफ थी. जब मैं विदेश में रह रही थी तो हमें लगातार अपने माता-पिता, और अपने सास-ससुर की चिंता सताती रही थी. हम इसका कोई हल चाहते थे.’

भट्टाचार्य ने अपने दो दोस्तों के साथ मिलकर बडी बैक होम की शुरुआत की. उन्होंने बताया, ‘हमारे सभी ‘बडी’ स्नातक हैं, और इसमें ज्यादातर महिलाएं हैं, हम इनकी पृष्ठभूमि की अच्छी तरह जांच करते हैं. हमारा पांच सी में विश्वास है—और ये हैं केयर, कम्पैशन, कमिटमेंट, कस्टम और कम्युनिकेशन.’

तीन व्यापक स्तर के पैकेज हैं जिनमें से ग्राहक—जो अमूमन बुजुर्गों के बच्चे होते हैं—कोई भी एक चुन सकते हैं.

बडी ब्लैक होम वरिष्ठ नागरिकों को भी हेल्थकेयर सुविधा देता है । क्रेडिटः ब्लैक बडी होम

एक टॉप पैकेज में एक समर्पित पर्सनल ‘बडी’ की वीकली विजिट के साथ यूटिलिटी बिल भुगतान, किराना खरीदना, विशेष मौकों पर समारोह का आयोजन, डॉक्टर के यहां जाने के दौरान मदद, स्वास्थ्य देखभाल की जरूरतें आदि पूरी की जाती हैं. इसके अलावा इसमें किसी सर्जरी के बाद 21 दिनों तक एक डेली ‘बडी’ मुहैया कराना और मामूली सेवा शुल्क के साथ योग और फिजियोथेरेपी सत्र में भागीदारी भी शामिल है.

पूरी सेवाएं देने वाला ‘बडी ऑल अलॉन्ग’ प्रोग्राम पैकेज किसी दंपति के लिए 5,999 रुपये प्रति माह से लेकर किसी एकल व्यक्ति के लिए 999 रुपये प्रतिमाह तक है.

भट्टाचार्य ने कहा, ‘सभी ‘बड़ी’ को भुगतान किया जाता है लेकिन इस बात पर जोर दिया जाता है कि उनका व्यक्तिगत कनेक्शन बने. यह कोई लाभ कमाने वाला उद्यम नहीं है.’

अकेले ही रहने वाली 66 वर्षीय एक सेवानिवृत्त शिक्षिका स्वाति मुखर्जी करीब एक साल से बडी बैक होम की ग्राहक हैं और वह सभी की प्रशंसा करती हैं.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरी बेटी कनाडा में रहती है. मैं अकेले ही रहती हूं, इसलिए उसकी याद बहुत सताती है. जब ये (बडी बैक होम की) लड़कियां आ जाती हैं, तो ऐसा लगता है जैसे मेरी बेटी घर आ गई है. वे हर हफ्ते आती हैं, मुझसे बातें करती हैं, यहां तक कि छोटे-मोटे काम भी कर देती हैं जैसे फोटो फ्रेम की मरम्मत करवाना या बल्ब खरीदना जिसकी सुविधा मुझे अपने स्थानीय स्टोर से नहीं मिल पाती.’

उन्होंने बताया, ‘ये 100 प्रतिशत ईमानदारी से अपना काम करती हैं. ऐसा लगता है कि परिवार का कोई सदस्य ही मेरी देखभाल कर रहा है. मुझे देखने में कुछ समस्या हो रही थी, उन्होंने इसे दूर करने में मेरी मदद की. जब मैं अपनी बेटी से मिलने गई, तो एयरपोर्ट पर बीबीएच की तरफ से ही कोई मौजूद था. रिश्तेदारों से कोई एहसान मांगने से यह बेहतर है.’

इस बीच, हाल ही में मुंबई में शुरू हुआ गुडफेलो अपनी सेवाओं के तहत वरिष्ठ नागरिकों के साथ क्वालिटी टाइम बिताने के लिए युवा ग्रेजुएट, तमाम तरह के कार्यों के लिए सहयोगी, प्रौद्योगिकी के साथ सहायता, मेडिकल विजिट के दौरान एक साथी की मौजूदगी जैसे अनूठे अनुभव मुहैया करा रहा है.


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बुजुर्गों की देखभाल से जुड़ी दवाएं

भारत में बुजुर्गों की बढ़ती आबादी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के लिए बड़ी चुनौती पेश कर रही है.

बुजुर्गों के इलाज से जुड़ी दवाएं (जीएम) देश में अभी एक नई विधा है. चिकित्सा अनुसंधान परिषद (एमसीआई) द्वारा 1999 में ही इस बाबत ये फैसला लिए जाने के बावजूद—जब बुजुर्ग व्यक्तियों से जुड़ी राष्ट्रीय नीति को लागू किया गया—कि सभी मेडिकल कॉलेजों में जेरिएट्रिक मेडिसिन से जुड़ा एक एमडी पाठ्यक्रम होना चाहिए, अभी भी इस क्षेत्र में विशेषज्ञता से जुड़ी 6-70 सीटें ही हैं.

इंडियन एकेडमी ऑफ जेरिएट्रिक्स द्वारा पिछले साल प्रकाशित इस विधा की वस्तुस्थिति से जुड़े एक पेपर के मुताबिक, भारत में बड़े पैमाने पर जीएम विशेषज्ञों की आवश्यकता है.

पेपर में कहा गया है, ‘वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत की कुल आबादी में बुजुर्गों का अनुपात 8.3 फीसदी था, जो 2020 तक बढ़कर 10 फीसदी तक पहुंच गया है. 138 करोड़ की कुल जनसंख्या के हिसाब से अभी अनुमानित तौर पर 13.8 करोड़ बुजुर्ग भारत में रह रहे हैं. इस आंकड़े के आधार पर हम अनुमान लगा सकते हैं कि भारत में कितनी संख्या में बुजुर्गों की देखभाल से जुड़े विशेषज्ञों की आवश्यकता है.’

भारत में बुजुर्ग आबादी की स्वास्थ्य से जुड़ी जरूरतें पूरी करने के लिए करीब 59 हजार ऐसे विशेषज्ञों की जरूरत बताते हुए पेपर में कहा गया है, ‘आरपीसी (यूके) की सिफारिशों के मुताबिक अगर हम 50 हजार की आबादी में एक ऐसे विशेषज्ञ की आवश्यकता को मानें तो 138 करोड़ की आबादी में हमें 27,600 एक्सपर्ट की जरूरत होगी. अमेरिकन जेरिएट्रिक सोसायटी (एजीएस) के मुताबिक, 30 फीसदी बुजुर्गों को ऐसी स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत पड़ती है. इस लिहाज से भारत में करीब 4.14 करोड़ बुजुर्ग व्यक्तियों को ऐसी स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता है. बुजुर्गों की स्वास्थ्य देखभाल संबंधी एक विशेषज्ञ अधिकतम 700 ऐसे मरीजों की देखभाल कर सकता है. लिहाजा भारत में 59 हजार ऐसे विशेषज्ञों की जरूरत है.’

एकेडमी ने अपनी वेबसाइट में कहा है कि उसके पास देश में करीब स्वास्थ्य विशेषज्ञों का एक नेटवर्क है.

देश में जेरिएट्रिक मेडिसिन के क्षेत्र में पहला एमडी कोर्स मद्रास मेडिकल कॉलेज में 1998 में शुरू हुआ था. लेकिन उसके बाद से कई प्राइवेट संस्थानों जैसे कोच्चि स्थित अमृता इंस्टीट्यूट और सीएमसी वेल्लोर ने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता से जुड़े पाठ्यक्रम की पहल की है. एम्स दिल्ली में इस फील्ड का एमडी प्रोग्राम एक दशक पहले 2012 में शुरू किया गया था.

सरकारी क्षेत्र की बात करें तो बुजुर्गों के स्वास्थ्य देखभाल संबंधी जीएम एमडी प्रोग्राम की शुरुआत एम्स दिल्ली ने की. जोधपुर स्थित एसएन मेडिकल कॉलेज, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी, कलकत्ता मेडिकल कॉलेज, पुणे का आर्म्ड फोर्सेस मेडिकल कॉलेज और एम्स ऋषिकेश भी इस फेहरिस्त में शामिल हो चुके हैं.

इसकी पर्याप्त वजहें हैं कि हर चिकित्सक बुजुर्गों का इलाज नहीं कर सकता. इस बारे में एम्स दिल्ली में जेरिएट्रिक मेडिसिन के पूर्व प्रोफेसर डॉ. ए.बी. डे, जो मौजूदा समय में वेणु जेरिएट्रिक केयर से जुड़े हैं, कहते हैं, ‘पहले बुजुर्गों का इलाज सामान्य चिकित्सक ही करते थे. लेकिन समय के साथ बढ़ती उम्र के कॉन्सेप्ट में काफी बदलाव आया है. पहली बात तो, निश्चित तौर पर वित्तीय बाध्यताएं है, लेकिन साथ ही यह समझ भी बढ़ी है कि कुछ अलग ही तरह की बीमारियों और विभिन्न डिसएबिलिटी के कारण बुजुर्गों का मामला अलग होता है.’

उन्होंने कहा कि बदलती सामाजिक हकीकतों और परिवार टूटने की वजह से बुजुर्गों में बेचैनी और अवसाद की समस्या बढ़ी है. उन्होंने कहा, ‘यह एक सोच बनी है कि हाई ब्लड प्रेशर और प्रदूषण के कारण मस्तिष्क की कार्यक्षमता में गिरावट आती है. सुनने की क्षमता में कमी पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता. यहां तक कि कैटरैक्ट सर्जरी के मामले बढ़े हैं और जरूरतें पूरी करने में एक बड़ा अभाव बना हुआ है. हमने बुजुर्ग लोगों के पुनर्वास पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया और सिर्फ दर्द घटाने पर जोर देते रहे. लेकिन बढ़ती उम्र कई तरह की शारीरिक जटिलताएं लेकर आती है. वास्तव में, हम वृद्धावस्था की समस्याओं को बेहतर ढंग से समझने के लिए अब नए आयाम तय कर रहे हैं.’

इसका एक उदाहरण देते हुए डॉ. डे ने कहा, दरअसल जिसे एक ‘कमजोर वृद्ध व्यक्ति’ के तौर पर देखा जाता है, जो एकदम लाचार है, दरअसल उसे उसकी कमजोरियों को देखते हुए देखभाल की जरूरत होती है.


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सहायता के साथ आराम से जीवन जी रहे

अपने आखिरी वर्षों में पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर अल्जाइमर की बीमारी से पीड़ित थीं, उन्होंने रिट्ज होटल में रहना शुरू किया. डे ने बताया कि थैचर का उदाहरण यह दर्शाता है कि कैसे बुजुर्गों का रहन-सहन अपने-आप में एक विशिष्ट क्षेत्र है.

भारत के लिए बुजुर्गों की देखभाल से जुड़ा एक निरंतर बड़ा होता सवाल यह है कि रहन-सहन की देखभाल के क्षेत्र को कैसे किफायती और सबकी पहुंच वाला बनाया जाए. मसलन, मेमोरी केयर होम्स, जहां डिमेंशिया के मरीजों को विशेष प्रकार की स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया हो सकें.

देश में 60 फीसदी से अधिक आबादी में से 8.5 फीसदी लोग डिमेंशिया से पीड़ित हैं. डॉ. डे ने यह भी बताया कि देश में करीब 85 लाख से एक करोड़ के बीच लोग अभी डिमेंशिया से पीड़ित हो सकते हैं.

अंतरा के निवासी लंच का आनंद ले रहे हैं.

बुजुर्गों की देखभाल के इस नए क्षेत्र में आने वाले शुरुआती खिलाड़ियों में अंतरा सीनियर केयर रहा है. उसने बुजुर्गों के लिए विशेष आवासीय क्षेत्र 2010 में लांच किया था. यहां सिर्फ 55 साल से अधिक उम्र के व्यक्तियों को अपार्टमेंट मिल सकता है. उनका उत्तराधिकारी (संतान या अन्य) उस अपार्टमेंट में रह सकते हैं, लेकिन यहां रहने के लिए तय न्यूनतम आयु सीमा के बाद.

कंपनी ने ऐसा ही प्रोजेक्ट नोएडा में लांच किया है और वह अगले महीने गुरुग्राम में अपना पहला मेमोरी होम शुरू करने की ओर बढ़ रही है. मेमोरी होम डिमेंशिया मरीजों के लिए एक विशेष प्रकार की आवासीय इकाई होगी, जहां उन्हें खास तरह की देखभाल मिलती है-यहां अतिरिक्त सुरक्षा व्यवस्था होती है, ताकि वे इधर-उधर भटक न जाएं और ऐसे मरीजों को विशिष्ट प्रकार की थेरेपी भी दी जाती है.

अंतरा सीनियर केयर के सीईओ और एमडी रजित मेहता ने दिप्रिंट से कहा, ‘इसके चार मुख्य पहलू हैं—बुजुर्गों के लिए आवासीय यूनिट, जहां ऐसे समुदाय के सभी लोग एक साथ रहते हैं, केयर होम्स—जहां बुजुर्गों को दैनिक गतिविधियों के लिए सहायता की जरूरत होती है. केयर एट होम—जो उन लोगों के लिए है जो अपना घर छोड़कर जाना नहीं चाहते, लेकिन उन्हें अतिरिक्त देखभाल की दरकार होती है, और चौथा पहलू है मेडकेयर प्रोडक्ट, जो खासतौर पर बुजुर्गों की जरूरत को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं.’

मेहता ने कहा, लेकिन इस क्षेत्र में एक बुनियादी समस्या है, ‘इसके लिए भुगतान कौन करेगा, पश्चिमी देशों से अलग भारत में बीमा क्षेत्र बुजुर्गों के जीवनयापन या देखभाल के क्षेत्र को कवर नहीं करता. हम सरकार और बीमा कंपनियों से वार्ता कर समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं.’

यद्यपि अंतरा मैक्स हेल्थकेयर समूह का हिस्सा है, इसमें रियल्टी सेक्टर में बुजुर्गों के आवास से जुड़े क्षेत्र पर खास ध्यान गया है. आशियाना ग्रुप के पास बुजुर्गों के रहने के लिए खास तौर पर तैयार आवासीय परियोजनाएं हैं. इसमें केयर होम्स और केयर ऐट होम्स के विकल्प शामिल हैं.

बिना किसी सहारे के जीने वाले बुजुर्गों की कुछ अन्य चिंताओं को दूर करने का भी प्रयास किया गया है, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है साथ रहना और उनके मनोरंजन पर ध्यान देना. मेहता के मुताबिक, जब अंतरा ने 2020 में तीन हजार लोगों के बीच बुजुर्गों से जुड़ा पहला सर्वे किया तो पाया कि उनमें से 77 प्रतिशत बुजुर्ग अकेले रह रहे थे.

आशियाना हाउसिंग के सीनियर सेल्स एक्जीक्यूटिव विकास कुमार ने कहा, उनकी कंपनी ने सीनियर लिविंग के लिए काम करीब 20 साल पहले शुरू किया था.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, हमारे कैंपस में पूरी तरह संचालित रेस्तरां है, जहां ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर मिलता है और होम डिलिवरी की सुविधा भी है. यहां सभी चिकित्सा सुविधाएं और सामुदायिक केंद्र भी है. इसमें जीवन-यापन के लिए मासिक मेंटीनेंस शुल्क 3 से 6 हजार के बीच है, जो फ्लैट की श्रेणी पर निर्भर करता है. यहां हर हफ्ते तीन-चार तरह की गतिविधियां भी होती हैं, जिनमें चहलकदमी, योग सत्र और कैंपस थियेटर में हफ्ते में दो बार फिल्में दिखाना आदि शामिल है.

आशियाना की प्रापर्टी में बुजुर्गों के रहने का मासिक खर्च 40 से 70 हजार रुपये के बीच है, इसके अलावा सिक्योरिटी डिपॉजिट भी है. केयर ऐट होम में खर्च 35 से 40 हजार रुपये के बीच है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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