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Wednesday, 24 April, 2024
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बिहार में सत्ता परिवर्तन के बीच JDU ने कहा- हरिवंश को राज्यसभा के उपसभापति पद से इस्तीफा देने की जरूरत नहीं

नीतीश कुमार के एनडीए से बाहर होने के बाद खासकर राज्यसभा के आंकड़ों में आए बदलाव को देखते हुए उनके भविष्य को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं.

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नई दिल्ली: जनता दल (यूनाइटेड) ने फैसला किया है कि राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) उम्मीदवार के रूप में चुने जाने के बावजूद पद से हटने की कोई जरूरत नहीं है. गौरतलब है कि बिहार में बदलाव के बाद जदयू अब एनडीए का हिस्सा नहीं है.

जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘पार्टी ने इस पर आंतरिक चर्चा की और यह तय किया कि हरिवंश को पद छोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है. यह पद सदन का है. उन्हें निर्णय से पहले ही अवगत करा दिया गया है.’

गौरतलब है कि कि पिछले हफ्ते बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एक नई सरकार ने कार्यभार संभाला, जो अब इस पद पर अपना आठवां कार्यकाल पूरा कर रहे हैं. इस बीच, दिल्ली में सबकी निगाहें हरिवंश पर थीं. उनके भविष्य को लेकर अटकलें तेज हो गई थीं, खासकर यह देखते हुए कि नीतीश कुमार के एनडीए से बाहर होने के बाद राज्यसभा में संख्याबल को लेकर आंकड़े थोड़ी बराबरी पर आ गए हैं.

दिप्रिंट ने फोन कॉल और व्हाट्सएप मैसेज के जरिये से हरिवंश की टिप्पणी जाननी चाही, और एक सहयोगी को भी मैसेज भेजे लेकिन उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.

जदयू के फैसले के बारे में पूछे जाने पर एनडीए का नेतृत्व का करने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक प्रवक्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘अगर जदयू ने यह रुख अपनाया है तो ठीक है. लेकिन इस पर बात करने के लिए संसदीय कार्य मंत्री ही उपयुक्त व्यक्ति होंगे.’

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दिप्रिंट ने फोन कॉल और टेक्स्ट मैसेज के जरिये संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी और राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन दोनों से संपर्क साधा और दोनों में से किसी की भी प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.


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राज्यसभा में कैसे बदला समीकरण

आठ सीटें खाली होने के साथ अभी राज्यसभा में कुल सांसदों की संख्या 237 है. आठ खाली सीटों में तीन पर सदस्यों को नामित किया जाना जाना है जबकि चार सीटें जम्मू और कश्मीर से और एक त्रिपुरा से खाली है.

सदन में आधे यानी बहुमत का साधारण आंकड़ा 119 है जो कि विधेयकों को पारित करने के लिए महत्वपूर्ण संख्याबल है.

यदि हरिवंश सहित राज्यसभा के पांच जदयू सांसदों को विपक्षी खेमे में जोड़ लिया जाए तो उसका आंकड़ा 107 पर पहुंच जाएगा—इसमें कांग्रेस (31), तृणमूल कांग्रेस (13), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम और आम आदमी पार्टी (10 प्रत्येक), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और जदयू (प्रत्येक के पांच), तेलंगाना राष्ट्र समिति (7), राष्ट्रीय जनता दल (6), समाजवादी पार्टी (3), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (4), शिवसेना (3) , भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (2), झारखंड मुक्ति मोर्चा (2), जनता दल (सेक्युलर), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, राष्ट्रीय लोक दल, मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, केरल कांग्रेस-एम (सभी के एक-एक सदस्य) और एक निर्दलीय शामिल हैं.

भाजपा के पास राज्यसभा में अभी 91 सांसद हैं, जिसमें नौ मनोनीत सांसद हैं. एनडीए के छोटे घटक दलों और निर्दलीयों को जोड़ लें तो एनडीए की संख्या लगभग 114 सांसदों की है. ज्यादातर मौकों पर सरकार के पक्ष में मतदान करने वाले बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस के नौ-नौ सांसद हैं.

उच्च सदन के एक सदस्य ने कहा, ‘पक्ष-विपक्ष के बीच आंकड़ों का अंतर बहुत बारीक है और यहां तक कि कुछ अनुपस्थित सांसद ही राज्यसभा में समीकरणों को नाटकीय ढंग से बदल सकते हैं.’

यही कारण है कि विपक्षी खेमे में कई लोगों को लगता है कि हरिवंश को हटाने के लिए सत्ताधारी पार्टी कोई कदम उठा सकती है. संविधान का अनुच्छेद 90 (सी) काउंसिल ऑफ स्टेट के सदस्यों के बहुमत से पारित प्रस्ताव के आधार पर राज्यसभा के उपसभापति को हटाने की अनुमति देता है, बशर्ते कि ऐसा कोई प्रस्ताव तब तक पेश नहीं किया जाता जब तक उन्हें कम से कम 14 दिनों का नोटिस न दिया गया हो.

विपक्ष के एक सांसद ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘उनका अपनी पार्टी की सहमति से कुर्सी पर बने रहना एक ऐसी स्थिति है जिसे विपक्षी दल पसंद करेंगे.’

सांसद ने आगे कहा, ‘लेकिन व्यावहारिक रूप से, भाजपा की इच्छा के बिना कुर्सी पर बने रहना उनके लिए मुश्किल होगा, इसलिए बहुत संभव है कि वह उन्हें बाहर करने की कोशिश करें, और (शायद) उपाध्यक्षों के पैनल (जो सांसद समय-समय पर उपसभापति की जगह सदन चलाने की जिम्मेदारी संभालते हैं) में से किसी और को मैदान में उतारे.’ साथ ही जोड़ा, ‘ऐसी स्थिति में अगर सस्मित पात्रा जैसे बीजद उम्मीदवार को चुना जाता है, तो इस पर बीजद का समर्थन मिलेगा.’

हालांकि, एक अन्य सांसद ने बताया कि एक उदाहरण वो भी है जिसमें बीजद ने लोकसभा उपाध्यक्ष के पद से इनकार कर दिया था क्योंकि पार्टी सरकार की पसंद भर्तृहरि महताब होने को लेकर सहज नहीं थी.

बीजद और वाईएसआर कांग्रेस दोनों के पास नौ-नौ सदस्य होने के मद्देनजर दक्षिण की किसी पार्टी को इस पद के लिए मैदान में उतारे जाने की पूरी संभावना है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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