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मंगलवार, 10 जून, 2025
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आम की हुस्नआरा, तोतापरी, रटौल और लंगड़ा जैसी लुप्तप्राय किस्मों की फिर से बढ़ने लगी है मांग

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(मुहम्मद मजहर सलीम)

लखनऊ, एक जून (भाषा) अपनी खुशबू और बेहतरीन जायके के लिये पूरी दुनिया में मशहूर दशहरी आम वैसे तो हर खास-ओ-आम की पहली पसंद है, मगर अब आम के शौकीन लोग दशहरी के अलावा ‘फलों के राजा’ की अन्य खास किस्मों को भी अपने भोजन का हिस्सा बनाने के 50—60 साल पुराने दौर की तरफ लौट रहे हैं। इससे लुप्त हो रही आम की अनेक प्रजातियों को नया जीवन मिला है।

खासकर मलीहाबाद के दशहरी आम ने अपने स्वाद से दुनिया में अपने अनेक दीवाने पैदा किये हैं लेकिन आम की अन्य किस्मों से जुड़ी यादें आम के शौकीनों को एक बार फिर लुभा रही है। दशहरी के अलावा हुस्नआरा, तोतापरी, रटौल और लंगड़ा जैसी अनेक लुप्तप्राय हो चुकी किस्मों की मांग भी हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ी है।

आम उत्पादक किसानों के संगठन ‘ऑल इंडिया मैंगो ग्रोअर्स एसोसिएशन’ के अध्यक्ष इंसराम अली ने रविवार को ‘पीटीआई—भाषा’ को बताया कि बढ़ती मांग को देखते हुए किसान अब दशहरी के साथ—साथ आम की अन्य किस्मों की पैदावार पर भी ध्यान दे रहे हैं।

उन्होंने बताया कि 50—60 साल पहले आम के किसान दशहरी के साथ—साथ अन्य किस्मों को भी पैदा करते थे, क्योंकि उस वक्त दूसरी किस्मों के आम भी शौक से खाये जाते थे। मगर बाद में सिर्फ दशहरी, चौसा और सफेदा का ही आम बाजार पर दबदबा हो गया। हालांकि हाल के वर्षों में आम के शौकीनों का अन्य किस्मों की तरफ रुझान बढ़ा है इसीलिये आम उत्पादक पुराने दौर में लौटते हुए अब दशहरी को कम करके अन्य किस्मों की पैदावार की तरफ ध्यान दे रहे हैं।

अली ने कहा, ”आम के किसान अब खासकर ‘रेड वेरायटी’ (लाल रंग वाले आम) पर ध्यान दे रहे हैं। एक बड़े बाजार की आहट में आम उत्पादक अब सुर्खा मटियारा, आम्रपाली, मलका, टॉमी ऐटकिंस, हुस्नआरा, तोतापरी, रटौल और तुक़मी जैसी किस्मों के उत्पादन को बढ़ा रहे हैं। ऐसा इसलिये क्योंकि इनका जायका और खुशबू अलग—अलग होती है और बाजार में इनकी ऊंची कीमत भी मिलती है।’’

उन्होंने कहा कि जहां दशहरी, चौसा और सफेदा आम 40 से 60 रुपये प्रति किलोग्राम मिलते हैं, वहीं उक्त किस्मों की कीमत आमतौर पर 80 से 120 रुपये प्रतिकिलो तक मिल जाती है।

अली ने एक सवाल पर कहा कि अभी इन किस्मों के उत्पादन के सही आंकड़ों का पता लगना मुश्किल है क्योंकि अभी ये शुरुआती दौर में है।

लखनऊ के आम उत्पादक परवेज खान ने बताया कि पिछले दो वर्षों में आम की बाकी किस्मों की तरफ रुझान बढ़ा है।

उन्होंने कहा, ”करीब 50 साल पहले हमने अन्य किस्मों के पेड़ इसलिये कटवा दिये गये थे, क्योंकि उनकी ज्यादा मांग नहीं थी लेकिन अब आम के शौकीनों की जुबान पर अन्य किस्मों का जायका चढ़ रहा है। अब बहुत अच्छी मांग आ रही है इसलिये बागवानों ने उन्हें फिर से लगाना शुरू कर दिया है। ये किस्में विलुप्ति की कगार पर थीं। बदलती मांग से उन्हें नया जीवन मिला है।”

करीब 25 बीघे में फैले आम के बाग के मालिक खान ने बताया कि वह सुर्खा मटियारा, गिलास, जौहरी सफेदा, खासुल खास, पाकीजा, हाथी झूल, हामिल तहसील, बनारसी लंगड़ा, चौसा, आमिन अब्दुल अहद, हुस्नआरा और लखनउवा सफेदा समेत करीब 22 किस्मों के आम का उत्पादन करते हैं। अब इनका रकबा भी बढ़ाया जा रहा है।

खासतौर से बागपत जिले के रटौल गांव में उगाये जाने वाले ‘रटौल’ आम का जायका भी लोगों के जुबान पर चढ़ रहा है। प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉक्टर मेराजुद्दीन अहमद ने इस आम के अनोखे जायके को अमेरिका, चीन, सऊदी अरब, दुबई और ओमान जैसे देशों तक फैलाने में अहम भूमिका निभायी थी।

अहमद के बेटे फैज़ महमूद ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि रटौल आम अपनी मिठास और खुशबू के लिए जाना जाता है। छोटे आकार के इस आम की खुशबू इतनी तेज होती है कि डाल पर पकने पर दूर से ही अहसास हो जाता है।

उन्होंने बताया कि उनके पिता द्वारा रटौल आम की कई भव्य प्रदर्शनियों का आयोजन किया जा चुका है, जिसमें देश-विदेश से आम प्रेमियों ने शिरकत की थी। अब वह खुद इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं ताकि रटौल का शाही स्वाद भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की जुबान पर छा जाए।

हालांकि जहां आम के उत्पादक किसान इस फल के शौकीनों को नयी—नयी किस्मों के स्वाद चखाने की लगातार कोशिशें कर रहे हैं वहीं उनके सामने कुछ समस्याएं भी हैं। इस बार जहां अनुकूल मौसम नहीं होने की वजह से आम की अपेक्षित पैदावार नहीं हो पा रही है, वहीं लागत बढ़ने से मुनाफा भी घटने की आशंका है।

इंसराम अली ने बताया कि इस बार उत्तर प्रदेश में करीब 30 लाख मीट्रिक टन आम उत्पादन की सम्भावना है जो इस साल पेड़ों पर आये बौर से जगी उम्मीदों के हिसाब से काफी कम है। हालांकि, यह पिछले साल हुए 20 लाख मीट्रिक टन उत्पादन से ज्यादा है मगर उत्पादन की लागत बढ़ जाने से लाभ घटना तय है।

उन्होंने बताया कि बाजार में नकली कीटनाशक बिक रहे हैं, नतीजतन पेड़ों में लगने वाले कीड़ों को मारने के लिये ज्यादा मात्रा में कीटनाशक का छिड़काव करना पड़ रहा है। इससे लागत बढ़ रही है। असली कीटनाशक से जहां एक बीघा के बाग में छिड़काव की लागत 10 हजार रुपये आती थी, वहीं अब 18 से 20 हजार रुपये आ रही है।

उन्होंने कहा कि एक बीघा बाग में औसतन 40 हजार रुपये का आम पैदा होता है। ऐसे में पहले प्रति बीघा जो मुनाफा 30 हजार रुपये होता था वह अब घटकर 20—22 हजार रुपये ही रह गया है।

अली ने बताया कि नकली कीटनाशकों पर रोक लगाने के लिए सरकार से कई बार शिकायत की गयी लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि वह प्रदेश में एक प्रयोगशाला की स्थापना करे जहां न सिर्फ बाजार में बेचे जा रहे कीटनाशकों की जांच हो, बल्कि आम के पेड़ों में लगने वाली बीमारियों का भी सही तरीके से पता लग सके।

भाषा सलीम नेत्रपाल वैभव

वैभव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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