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Monday, 25 August, 2025
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हिमाचल प्रदेश में ‘पारिस्थितिक असंतुलन’ पर शीर्ष अदालत ने न्यायमित्र नियुक्त करने का फैसला किया

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नयी दिल्ली, 25 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश में पारिस्थितिक असंतुलन से जुड़े एक मामले में सोमवार को न्यायमित्र नियुक्त करने का फैसला किया।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ हिमाचल प्रदेश में पारिस्थितिक और पर्यावरणीय परिस्थितियों को लेकर स्वतः संज्ञान वाले मामले की सुनवाई कर रही थी।

न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की एक अन्य पीठ ने 28 जुलाई को कहा था कि अगर स्थिति नहीं बदली, तो पूरा राज्य “विलुप्त’’ हो सकता है।

हिमाचल प्रदेश के महाधिवक्ता और अतिरिक्त महाधिवक्ता ने पीठ को अवगत कराया कि राज्य सरकार द्वारा 23 अगस्त को एक रिपोर्ट दाखिल की गयी है।

शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई चार सप्ताह के लिए स्थगित कर दी।

शीर्ष अदालत ने हिमाचल प्रदेश में बिगड़ती स्थिति को देखते हुए जुलाई में कहा था कि जलवायु परिवर्तन का राज्य पर ‘‘स्पष्ट और चिंताजनक प्रभाव’’ पड़ रहा है।

शीर्ष अदालत उस समय हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका पर विचार कर रही थी। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की जून 2025 की उस अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था, जिसमें कुछ क्षेत्रों को ‘‘हरित क्षेत्र’’ घोषित किया गया था।

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा था कि अधिसूचना जारी करने का स्पष्ट कारण एक विशेष क्षेत्र में निर्माण गतिविधियों पर अंकुश लगाना था।

पीठ ने कहा था कि विशेषज्ञों और विभिन्न रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में विनाश के प्रमुख कारण जलविद्युत परियोजनाएं, चार-लेन सड़कों और बहुमंजिला इमारतों का निर्माण तथा वनों की कटाई आदि हैं।

पीठ ने कहा था कि हिमाचल प्रदेश हिमालय पर्वत की गोद में बसा है और विकास परियोजनाओं को शुरू करने से पहले भूवैज्ञानिकों, पर्यावरण विशेषज्ञों और स्थानीय लोगों की राय लेना महत्वपूर्ण है।

शीर्ष अदालत ने पर्यटन को राज्य में आय का एक प्रमुख स्रोत बताया था, लेकिन यह भी कहा था कि ‘‘पर्यटन के अनियंत्रित विकास’’ से वहां के पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

पीठ ने कहा था, ‘‘अगर इसे अनियंत्रित छोड़ दिया गया, तो पर्यटन का दबाव राज्य के पारिस्थितिक और सामाजिक ताने-बाने को गंभीर रूप से कमजोर कर सकता है।’’

पीठ ने हिमालयी क्षेत्र की विशिष्टताओं का उल्लेख करते हुए सभी हिमालयी राज्यों के लिए संसाधनों और विशेषज्ञता को समतुल्य करने की आवश्यकता को रेखांकित किया था, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विकास योजनाएं ऐसी चुनौतियों से अवगत हों।

पीठ ने कहा था, ‘‘आज हम बस इतना ही कहना चाहते हैं कि अब समय आ गया है कि हिमाचल प्रदेश राज्य हमारी देखी गई बातों पर ध्यान दे और जल्द से जल्द सही दिशा में आवश्यक कार्रवाई शुरू करे।’’

पीठ ने कहा था कि केंद्र का यह भी दायित्व है कि वह यह सुनिश्चित करे कि राज्य में पारिस्थितिक असंतुलन और न बिगड़े या उसे प्राकृतिक आपदाओं का सामना न करना पड़े।

पीठ ने कहा था, ‘‘बेशक बहुत नुकसान हुआ है, लेकिन एक कहावत है कि ‘कुछ न होने से कुछ होना बेहतर है’।’’

पीठ ने शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री को इस मामले में जनहित के मद्देनजर एक रिट याचिका दर्ज करने का निर्देश दिया।

पीठ ने कहा, ‘‘हम उम्मीद करते हैं कि राज्य एक उचित जवाब दाखिल करेगा, जिसमें यह बताया जाएगा कि क्या उनके पास उन मुद्दों से निपटने के लिए कोई कार्य योजना है, जिन पर हमने चर्चा की है और भविष्य में वे क्या करने का प्रस्ताव रखते हैं।’’

भाषा

सुरेश दिलीप

दिलीप

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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