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Friday, 29 March, 2024
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‘धन, संसाधनों के कारण अभी भी पनप रहा है आतंकवाद’ – UNSC की बैठक में जयशंकर ने जताई चिंता

जयशंकर ने कहा कि एक आतंकवादी को भारत ने जिंदा पकड़ लिया, उस पर मुकदमा चलाया और उसे दोषी ठहराया लेकिन 26/11 के हमलों के प्रमुख साजिशकर्ता और योजनाकार अभी भी सुरक्षित हैं.

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नई दिल्ली: धन को आतंकवाद का ‘जीवन आधार’ करार देते हुए, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शुक्रवार को इस बात पर रोशनी डालते हुए कहा कि कैसे आतंकवादियों को अपने संगठनात्मक कार्यों को बनाए रखने के लिए वित्तीय संसाधन मिलते रहते हैं. उन्होंने कहा कि हकीकत यह है कि आतंकवाद मौजूद है और एक अंतर्निहित सच्चाई की ओर विस्तार करता है.

नवंबर में 2008 के मुंबई हमलों की 14वीं बरसी से पहले, भारत शुक्रवार से आरंभ होने वाली संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की दो दिवसीय आतंकवाद विरोधी बैठक की मेजबानी कर रहा है.

काउंटर-टेररिज्म कमेटी (सीटीसी) की नई दिल्ली की अध्यक्षता में यूएनएससी की प्रमुख बैठक मुंबई के ताज होटल में हो रही है जहां आतंकी हमले हुआ था.

जयशंकर ने कहा, ‘हम सभी जानते हैं कि पैसा आतंकवाद की जीवनदायिनी है. आतंकवादी संगठनों को अपने संगठनात्मक कार्यों को बनाए रखने और गतिविधियों को चलाने के लिए धन और संसाधनों की जरूरत होती है. यह हकीकत है कि आतंकवाद का अस्तित्व बना हुआ है और इसका विस्तार एक अंतर्निहित सत्य की ओर इशारा करता है: कि आतंकवाद को फलने-फूलने के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधन मिल रहे हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘आतंकवाद का मुकाबला करने का एक प्रमुख पहलू आतंकवाद के वित्तपोषण को प्रभावी ढंग से रोकना है. आज आतंकवाद रोधी समिति भी स्थानीय और क्षेत्रीय संदर्भ में आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने के लिए विशेषज्ञों से विचार विमर्श करेगी.’

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26 नवंबर, 2008 को, पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के 10 आतंकवादियों ने मुंबई के कई जगहों पर हमलें किए थे, जिसमें 166 लोग मारे गए थे.

जयशंकर ने कहा कि एक आतंकवादी को भारत ने जिंदा पकड़ लिया, उस पर मुकदमा चलाया और उसे दोषी ठहराया लेकिन 26/11 के हमलों के प्रमुख साजिशकर्ता और योजनाकार अभी भी सुरक्षित हैं.

मंत्री ने कहा कि जब इन आतंकवादियों में से कुछ को प्रतिबंधित करने की बात आती है, तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद कुछ मामलों में राजनीतिक कारणों से कार्रवाई करने में असमर्थ रही है. उन्होंने कहा, ‘यह हमारी सामूहिक विश्वसनीयता और हमारे सामूहिक हितों को कमजोर करता है.’


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