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Thursday, 2 May, 2024
होमदेशम्याऊ-म्याऊ में छिपा है जवाब: फ्रेंच स्टडी ने बताया कि अपने परिचित इंसानों की कही बातें समझ लेती हैं बिल्लियां

म्याऊ-म्याऊ में छिपा है जवाब: फ्रेंच स्टडी ने बताया कि अपने परिचित इंसानों की कही बातें समझ लेती हैं बिल्लियां

हालांकि, जब कोई अजनबी बात कर रहा होता है तो बिल्लियों के लिए उसे समझना आसान नहीं होता है. यह बात यूनिवर्सिटी पेरिस नैनटेरे के वैज्ञानिकों के एक अध्ययन में सामने आई है जो जर्नल एनिमल कॉग्निशन में प्रकाशित हुआ है.

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बेंगलुरू: फ्रांस में किए गए एक नए अध्ययन से पता चलता है कि वयस्क इंसान अगर अपनी परस्पर बातचीत के तरीके के विपरीत सीधे तौर पर बिल्लियों को संबोधित करके कुछ बोलते हैं तो वह उसे समझ सकती हैं. हालांकि, इस पालतू जानवर को कोई बात थोड़ी अच्छी तरह तभी समझ आती है जब वह उनके मालिकों द्वारा बोली गई हो. इसी सप्ताह जर्नल एनिमल कॉग्निशन में प्रकाशित फ्रांसीसी अध्ययन के मुताबिक, बिल्लियां अजनबियों की कही बात को समझने में असमर्थ होती हैं.

मनुष्य कुत्तों, बिल्लियों और घोड़ों आदि पालतू जानवरों से जो बातचीत करते हैं वो वयस्क-निर्देशित बातचीत (एडीएस) यानी वयस्कों के बीच आपसी बातचीत के तरीके से एकदम भिन्न होती हैं और काफी हद तक छोटे बच्चों या शिशु-निर्देशित स्पीच (आईडीएस) की तरह होती है. इसे लेकर तो तमाम अध्ययन हुए हैं कि कुत्तों को संबोधित बातचीत (डीडीएस) पर कुत्ते कैसे रिएक्ट करते हैं लेकिन बिल्लियों को संबोधित बातचीत (सीडीएस) पर इनकी संख्या अपेक्षाकृत कम ही है.

यूनिवर्सिटी पेरिस नैनटेरे का नया अध्ययन ह्यूमन-कैट वोकल कम्युनिकेशन को समझने की कोशिश से जुड़े एक बड़े प्रोजेक्ट का एक हिस्सा है.

अध्ययन के नतीजे एक खास कम्युनिकेशन स्टाइल के बारे में बताते हैं जो किसी एक बिल्ली और किसी एक इंसान के बीच बातचीत के आधार पर विकसित होती है और यह उनके परस्पर अनुभव पर निर्भर करता है. इससे ये बात भी सामने आती है कि बिल्लियां इंसानों के साथ मजबूत वन-टू-वन रिलेशनशिप बनाती हैं.


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वेटेरनरी स्टूडेंट की थीं सारी बिल्लियां

इस अध्ययन का मूल उद्देश्य यह पता लगाना था कि क्या बिल्लियां एडीएस की तुलना में सीडीएस के प्रति अधिक रिस्पांस देती है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या वह अपने परिचित इंसान की कही बात को समझने में समर्थ होती हैं. शोधकर्ता यह पता लगाने की भी कोशिश कर रहे थे कि क्या बिल्लियां अपने मालिक की कही बात और किसी अजनबी की कही बात के बीच अंतर कर सकती हैं.

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ऐसे में रिसर्च के दौरान मानव-बिल्ली के समूह या जोड़े पर फोकस किया गया.

अध्ययन में 16 बिल्लियों को शामिल किया गया जिन्हें पालने वाले सभी लोग इकोले नेशनले वेटेरनायर डी’अल्फोर्ट (एनवा) या पेरिस के पास अल्फोर्ट स्थित नेशनल वेटेरनरी स्कूल में पशु चिकित्सा की पढ़ाई करने वाले छात्र थे. सभी बिल्लियां इनडोर कैट्स थीं, इसमें 12 सिंगल कैट थी जो एक महिला मालकिन के साथ रहती थीं, जबकि चार को हेट्रोसेक्सुअल कपल्स के साथ जोड़ों में रखा गया था. एक मेल कैट को छोड़कर बाकी सारी बिल्लियों को न्यूटर्ड (बांझ) कर दिया गया था. इनकी उम्र आठ महीने से लेकर 24 महीने के बीच थी.

बिल्लियां अपने आसपास के माहौल को लेकर एकदम सहज रहे, इसलिए उन्हें उनके घरों में ही रखकर अध्ययन का हिस्सा बनाया गया.

रिसर्च टीम ने सीधे तौर पर बिल्लियों के साथ उनके मालिकों की बातचीत के दौरान इंसानी आवाजें रिकॉर्ड कीं और फिर अजनबियों को वही बात उसी स्वर में कहते हुए रिकॉर्ड किया. फिर इन रिकॉर्डिंग को बिल्लियों के सामने चलाया गया और उनकी प्रतिक्रिया देखी गई.

इस पूरे इंटरैक्शन को चार कैटेगरी में बांटकर अध्ययन किया गया— प्ले, ट्रीट, सेपरेशन और रीयूनियन. इनमें से हर इंटरैक्शन के दौरान मनुष्यों को अपनी बिल्लियों का नाम लेने के साथ-साथ कुछ खास कीवर्ड और वाक्यों का इस्तेमाल करने को कहा गया (‘क्या आपको खेलना हैं?’, ‘क्या आपको ट्रीट चाहिए?’, ‘फिर मिलते हैं.’ और ‘आप कैसे हो?’).

रिसर्च के दौरान शोधकर्ताओं ने मालिक की आवाज में एडीएस रिकॉर्डिंग तीन बार चलाई, उसके बाद वही वाक्यांश सीडीएस में चलाया और फिर एक बार एडीएस में. बिल्लियों ने अपने मालिक की कही बात की रिकॉर्डिंग पर तब रिस्पांस दिया है जब वह सीडीएस में थी और एडीएस के प्रति उदासीन दिखीं.

प्रयोग के दौरान अजनबियों ने लगातार तीन बार बिल्ली का नाम पुकारा, फिर मालिक ने ऐसा किया और उसके बाद फिर अजनबी ने पुकारा. चार स्थितियों के दौरान कमांड और स्पीच के लिए भी यही प्रोटोकॉल अपनाया गया.

हर बार, बिल्लियों ने उस आवाज में दिलचस्पी दिखाई या प्रतिक्रिया दी जो उनके अपने मालिक की थी, लेकिन अजनबियों की आवाजों पर कोई खास ध्यान नहीं दिया. तब भी नहीं जब सीडीएस का इस्तेमाल किया गया.


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पालतू जानवरों से बतियाना

छोटे बच्चों को ध्यान में रखकर की जाने वाली बातचीत यानी आईडीएस और पालतू पशु-निर्देशित बातों (पीडीएस) में कई समानताएं पाई जाती हैं मसलन पिच थोड़ी ऊंची होती है और उसमें भिन्नता अपनाई जाती है, बातों में कई बार दोहराव होता है, छोटे-छोटे शब्दों में भावनाओं को पूरी तरह व्यक्त किया जाता है. जबकि आम तौर पर एडीएस इससे एकदम अलग होती है और जब साथी जानवरों से बातचीत की जाती है तो इसे केयरगिवर स्पीच कहा जाता है.

केयरगिवर स्पीच और पीडीएस इस आधार पर अलग-अलग होती है कि उन्हें सुनने वाला कौन है. वयस्क कुत्तों की तुलना में पिल्लों से बात करते समय मनुष्य अक्सर पिच बढ़ा देते हैं. इसी तरह, मनुष्य कुत्तों से बात करते समय तो पिच बढ़ाते हैं लेकिन बिल्लियों के साथ बातचीत के दौरान इन्हें उतना नहीं बढ़ाया जाता. हालांकि, सामान्य तौर पर हम बिल्लियों से बात करते समय भी कई बार अपनी पिच बढ़ाते हैं.

डीडीएस और उन पर कुत्तों के रिस्पांस को लेकर बड़े पैमाने पर अध्ययन हुए हैं और यह बात सभी को पता है कि कुत्ते हाई पिच की आवाजों और डीडीएस पर बेहतर प्रतिक्रिया देते हैं.

हालांकि, मानव-बिल्ली संबंधों पर अपेक्षाकृत कम ही अध्ययन हुए हैं, क्योंकि बिल्लियां अपने परिवेश से बाहर जाते ही असहज हो जाती हैं और इन्हें आमतौर पर कुत्तों की तुलना में कम सामाजिक माना जाता है. लेकिन पिछले कुछ सालों में बिल्लियों पर रिसर्च बढ़ रही है.

अध्ययन के लेखकों का मानना है कि नया अध्ययन अन्य बातों के अलावा यह भी पुष्ट करता है कि बिल्लियां मनुष्यों के साथ करीबी बांडिंग कायम करने में सक्षम होती हैं, भले ही पूर्व में उन्हें ‘स्वतंत्रता पसंद और मतलबी’ माना जाता रहा हो.

अध्ययनों से पता चलता है कि बिल्लियां इंसानों, खासकर महिलाओं के साथ अच्छी बांडिंग बनाती हैं. वे अपना खुद का नाम पहचान सकती हैं और कई बिल्लियों को तो खाने और खिलौनों से ज्यादा इंसानों का साथ पसंद आता है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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