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Thursday, 25 April, 2024
होममत-विमतजिग्नेश, हार्दिक, अल्पेश ने 2017 में मोदी-शाह को कड़ी टक्कर दी थी, मगर 2022 में हालात अलग हैं

जिग्नेश, हार्दिक, अल्पेश ने 2017 में मोदी-शाह को कड़ी टक्कर दी थी, मगर 2022 में हालात अलग हैं

अल्पेश और हार्दिक दोनों बीजेपी में तो हैं, लेकिन वे अब पार्टी के भीतरी ताकतों के साथ नहीं जुड़ सकते. इकलौते झंडाबरदार जिग्नेश को खुद को वैकल्पिक आवाज के रूप में स्थापित करने के लिए एक लंबा सफर तय करना है जिसे गंभीरता से सुना जाए, और जिसके साथ चला जाए.

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हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी जैसे युवा नेताओं की तिकड़ी गुजरात में 2017 में पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी-विरोधी अभियान का चेहरा थी. पटेल समुदाय की ताकत का प्रतिनिधित्व हार्दिक कर रहे थे, अल्पेश का असर बड़ी संख्या में ओबीसी वोट बैंक पर था और जिग्नेश का अपनी प्रगतिशील आवाज के साथ दलित वोटरों पर असर था. तीनों की मिलीजुली ताकत ने वाकई बीजेपी को काफी कड़ा मुकाबला दिया था, भले पार्टी अपनी अजेयता की शेखी बघार रही थी.

राहुल गांधी का गहन प्रचार अभियान और ‘विकास गांडो थयो छे’ (विकास पगला गया है) के नारे ने कुलमिलाकर भारी असर पैदा किया था. इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके चुनाव रणनीतिकार अमित शाह के होश फाख्ता हो गए थे. मोदी ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी, चुनाव प्रचार के आखिरी दिन वोटरों को लुभाने के लिए सीप्लेन उड़ान का उद्घाटन भी कर दिया (जो अब बेकार पड़ा है).

नतीजों से साबित हुआ कि युवा तिकड़ी को दी गई अहमियत बेमानी नहीं थी. बीजेपी को 99 सीटें मिलीं, उसके कई उम्मीदवारों ने मामूली अंतर से जीत हासिल की. दो दशक बाद बीजेपी की सीटों की संख्या दो अंकों में ठहर गई थी. अल्पेश कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते. हार्दिक और जिग्नेश उस समय कांग्रेस में शामिल नहीं हुए थे.
कांग्रेस ने उत्तरी गुजरात की वडगाम सीट पर जिग्नेश मेवाणी (निर्दलीय) के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारकर उनकी मदद की. 1993 में जन्मे हार्दिक चुनाव नहीं लड़ सके क्योंकि उनकी उम्र चुनाव में उतरने के लिए न्यूनतम आयु 25 वर्ष से कुछ महीने कम थे.

पिछले पांच वर्षों में तिकड़ी

लंबे समय तक दूर रहने के बाद, हार्दिक मार्च 2019 में कांग्रेस में शामिल हो गए. वे गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए, जो उनकी उम्र के मद्देनजर काफी बड़ा ओहदा था. दूध का जला छाछ भी फूंककर पीने वाली बीजेपी इस तिकड़ी को तोड़ने में लगी थी. हार्दिक और जिग्नेश के बीच कुछ नजदीकियां थीं. लेकिन तीनों के बीच ज्यादा आपसी सामंजस्य नहीं था. वे बीजेपी-विरोध की वजह से ही एकजुट थे.

हार्दिक के औपचारिक रूप से कांग्रेस में शामिल होने के चार महीने बाद बीजेपी अल्पेश ठाकोर को लुभाने में सफल रही. अल्पेश को लगा था कि पार्टी ने उनकी इच्छाओं को अहमियत नहीं दी. खबरों के मुताबिक, वे लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे. अल्पेश ने अपने लोगों और अपने समुदाय के हितों का हवाला देकर कांग्रेस छोड़ दिया.

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अल्पेश कांग्रेस छोड़ गए, तब भी मेवाणी कांग्रेस में शामिल नहीं हुए. उन्होंने अपने विकल्पों पर विचार किया और आखिरकार सितंबर 2021 में दिल्ली में कन्हैया कुमार के साथ कांग्रेस में आए. हार्दिक पटेल पहले से ही कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में पार्टी में थे और मेवाणी के साथ उनके रिश्ते अच्छे थे. लेकिन हार्दिक अपने खिलाफ तमाम पुलिसिया मामलों के भारी दबाव की अटकलों के बीच मई 2022 में बीजेपी में लाए गए. वरना, नेताओं के कबाड़खाने के रूप में मशहूर बीजेपी शायद हार्दिक को आकर्षित करने से तो रही.

इकलौते झंडाबरदार

मेवाणी विचारधारा और जमीनी राजनैतिक काम के अनुभव के मामले में तीनों में सबसे मजबूत हैं. वे वकील हैं और ऑल्ट न्यूज के प्रतीक सिन्हा के पिता दिग्गज मानवाधिकार वकील मुकुल सिन्हा और गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता चुनीभाई वैद्य के साथ वर्षों काम कर चुके हैं. भाजपा के लालच या दबाव के आगे उनके घुटने टेक देने की संभावना कम ही थी. गुजरात में 2022 के विधानसभा चुनाव की वेला में मेवाणी 2017 के चुनावों की दुर्जेय तिकड़ी में इकलौते हैं, जो बीजेपी विरोधी खेमे में हैं.

पिछले चुनावों के मुकाबले मौजूदा चुनावी परिदृश्य में आम आदमी पार्टी (आप) एक नई और आक्रामक ताकत बनकर उभरी है. जिग्नेश मेवाणी आप के सदस्य थे और एक समय अरविंद केजरीवाल के करीबी थे. उन्होंने 2016 में दलित नेता के रूप में अपने उभरने के साथ पार्टी छोड़ दी. उन्होंने उना में दलितों की पिटाई की घटना सहित दलित उत्पीड़न के खिलाफ मजबूत आवाज बनकर उभरे. औपचारिक रूप से कांग्रेस में शामिल होना वाकई मेवाणी के लिए कठिन फैसला रहा होगा क्योंकि पार्टी में उनके तेजतर्रार तेवरों और तौर-तरीकों पर थोडीबहुत रोक लगना स्वाभाविक था.

बीजेपी को बदले की कार्रवाई से कोई परहेज नहीं है, इसलिए मेवाणी को भी छोटे-मोटे पुलिसिया मामलों और मुकदमों का सामना करना पड़ा, जिनमें एक असम में था. उन पर हमेशा पुराने मुकदमों की तलवार लटकती हुई है. कांग्रेस में शामिल होने से उन्हें कोई राहत नहीं मिली है. हालांकि अप्रैल 2022 में जब उन्हें असम ले जाया गया तो कांग्रेस ने कुछ विरोध प्रदर्शन किया.

तिकड़ी का नुकसान और राजनीतिक अधिग्रहण

गुजरात में कांग्रेस न तो जोरदार चुनावी मशीन के लिए जानी जाती है और न ही बढ़-चढ़कर नेतृत्व करने वाले नेता उसके पास हैं. मेवाणी की राहुल गांधी तक पहुंच है. लेकिन चुनाव प्रचार के मामले में इससे शायद ही कोई मदद मिले. राहुल गांधी ने खुद अपनी भारत जोड़ो यात्रा के मार्ग से गुजरात को अलग रखा है, जो वहां कांग्रेस में जान फूंक सकती थी.

अल्पेश ठाकोर और हार्दिक पटेल बीजेपी में भी कुछ खास नहीं कर रहे हैं. हार्दिक बीजेपी में शामिल होने के दौरान ‘प्रसिद्ध पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय सेवा के महती कार्य में एक विनम्र सिपाही’ बनना चाहते थे. शायद उनकी इस बात को कुछ ज्यादा ही गंभीरता से लिया गया. क्युं कि स्टार प्रचारक के रूप में उनकी हैसियत अब इतिहास बन गई है. उन्हें उम्मीद है कि एक न एक दिन वह फिर से अपना जल्वा दिखा सकेंगे, लेकिन 2022 में उसकी संभावना कम ही है. पटेल वोट बैंक पर अब उनकी पकड़ ढीली पड़ गई है. बीजेपी से नाखुश वोटरों में ओवैसी की एआईएमआईएम और केजरीवाल की आप भी कुछ हिस्सा बटोरना चाहती है. ऐसे में बीजेपी नेतृत्व शायद ही हार्दिक के साथ स्टार की तरह बर्ताव करे. हार्दिक अपने लिए टिकट ही हासिल कर लें तो वही उनके खुश होने के लिए काफी हो सकता है.

अल्पेश ओबीसी वोटों के मामले में अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में हैं. वे नशे के खिलाफ प्रतिज्ञा जैसे गैर-राजनीतिक कार्यक्रमों के लिए जब तक भीड़ जुटाते रह सकते है, तब तक उनकी अहमियत बनी रह सकती है. अल्पेश और हार्दिक दोनों बीजेपी में तो हैं, लेकिन वे अब पार्टी के भीतरी ताकतों के साथ नहीं जुड़ सकते. इकलौते झंडाबरदार जिग्नेश को खुद को वैकल्पिक आवाज के रूप में स्थापित करने के लिए एक लंबा सफर तय करना है जिसके चलते उनकी बातों को ध्यान से सुना जाए-गंभीरता से लिया जाऐ और उनका अनुसरण किया जाए.

(उर्विश कोठारी अहमदाबाद स्थित एक वरिष्ठ स्तंभकार और लेखक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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