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Saturday, 4 May, 2024
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कुणाल कामरा के ट्वीट्स पर अवमानना का मामला चलेगा या नहीं, इस पर कल फैसला करेगा सुप्रीम कोर्ट

न्यायमूर्ति अशोक भान, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की बेंच ने कहा कि वो अपना फैसला शुक्रवार को सुबह 10.30 बजे सुनाएगी.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को कॉमेडियन कुणाल कामरा को कारण बताओ नोटिस दिए जाने के मामले में, अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. कोर्ट में दायर याचिकाओं में कामरा के ट्वीट्स के लिए उनपर अदालत की अवमानना की कार्यवाही की मांग की गई थी.

न्यायमूर्ति अशोक भान, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की बेंच ने कहा कि वो अपना फैसला शुक्रवार को सुबह 10.30 बजे सुनाएगी.

12 नवंबर को अटॉर्नी जनरल (एजी) केके वेणुगोपाल ने आठ लोगों को जिनमें वकील भी शामिल थे, कामरा के ट्वीट्स के लिए उनके खिलाफ कोर्ट की अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की अनुमति दे दी थी. अपने ट्वीट्स में कामरा ने सुप्रीम कोर्ट और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की आलोचना की थी.

बृहस्पतिवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कुछ मिनटों के लिए वकील निशांत कटनेश्वारकर को सुना और मामले को शुक्रवार के लिए पोस्ट कर दिया.

कटनेश्वारकर ने बताया कि कामरा ने क्या ट्वीट्स किए थे और कहा कि अपने खिलाफ अवमानना आरोप सुनने के बाद, कामरा ने कोई खेद नहीं जताया था.

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माफी मांगने से कामरा ने किया था इनकार

आत्महत्या के लिए उकसाने के 2018 के एक मामले में रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्नब गोस्वामी को ज़मानत देने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कामरा ने अपने सिलसिलेवार ट्वीट्स में गोस्वामी की अपील पर तेज़ी से सुनवाई करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की थी.

कामरा के ट्वीट्स पर अटार्नी जनरल के ऑफिस को उनके खिलाफ कई शिकायतें प्राप्त हुईं थीं.

न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 के अनुसार, निजी व्यक्तियों को किसी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए एजी की सहमति लेनी होती है.

सहमति देते हुए एजी वेणुगोपाल ने कहा था, ‘मैं देखता हूं कि लोगों को लगता है कि बोलने के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए वो निडरता के साथ भारत के सुप्रीम कोर्ट और उसके जजों की निंदा कर सकते हैं. लेकिन संविधान के तहत बोलने की आज़ादी, अवमानना कानून के आधीन है और मेरा मानना है कि लोगों को समझना होगा कि अकारण सुप्रीम कोर्ट की आलोचना पर उन्हें न्यायालय अवमानना अधिनयम, 1971 के तहत दंडित किया जा सकता है’.

एजी के पत्र में कामरा के ट्वीट्स का हवाला दिया गया था, जिसमें इस तरह के बयान थे जैसे ‘सम्मान बिल्डिंग (सुप्रीम कोर्ट) को बहुत पहले छोड़ चुका है’ और ‘देश का सुप्रीम कोर्ट, देश का सबसे सुप्रीम जोक है’.

एजी ने ये भी कहा कि इन टिप्पणियों के आलावा, कामरा ने सुप्रीम कोर्ट की एक तस्वीर भी पोस्ट की थी, जो सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के भगवा रंग में रंगा था और साथ ही भाजपा का झंडा भी लगा था.

एजी ने वकीलों को लिखे अपने पत्र में कहा, ‘ये भारत के सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ घोर कटाक्ष है कि भारत का सुप्रीम कोर्ट एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्था नहीं है और यही हाल इसके जजों का है लेकिन दूसरी ओर, क्या कोर्ट सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के फायदे के लिए वजूद में है. मेरी राय में ये सब अदालत की आपराधिक अवमानना है’.

लेकिन, एजी के कामरा के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की अनुमति देने के एक दिन बाद कॉमेडियन ने कहा कि वो न तो अपनी टिप्पणियां वापस लेंगे और न ही उनके लिए माफी मांगेंगे.

ट्विटर पर पोस्ट किए गए अपने खुले पत्र में, कामरा ने कहा कि एजी की सहमति मिलने के बाद, उनके विचारों में बदलाव नहीं हुआ है क्योंकि ‘दूसरों की निजी आज़ादी के मामलों में सुप्रीम कोर्ट की खामोशी बिना आलोचना के नहीं रह सकती’.

कामरा ने लिखा, ‘मैंने जो ट्वीट किया वो मेरा विचार था, जिस तरह से भारत के उच्चतम न्यायालय ने भारत के प्राइम टाइम लाउडस्पीकर के पक्ष में एक पक्षपातपूर्ण फैसला दिया’.

वकील-एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण के खिलाफ, अवमानना कार्यवाही के मामले में, अगस्त में दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए, उन्होंने आगे कहा, ‘मैं स्वेच्छा से अपनी अवमानना याचिका की सुनवाई के लिए आवंटित समय (कम से कम 20 घंटे, अगर प्रशांत भूषण की सुनवाई कोई पैमाना है) को, उन मामलों और पक्षों को देना चाहूंगा, जो मेरे जितने भाग्यशाली और विशेषाधिकार वाले नहीं हैं, कि कतार को तोड़ सकें’.

भूषण को उनके ट्वीट्स के लिए आपराधिक अवमानना का दोषी करार दिया गया लेकिन उनसे केवल एक रुपया जुर्माना भरने को कहा गया था.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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