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Sunday, 24 November, 2024
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सिकुड़ते जलाशय, बड़े पैमाने पर अतिक्रमण, ‘विभागों की मिलीभगत’ — चेन्नई में हर साल क्यों आती है बाढ़

एक विशेषज्ञ के अनुसार, उत्तर में एन्नोर पुलिकट क्रीक और दक्षिण में पल्लीकरनई दलदली भूमि चेन्नई के लिए वरदान हैं, लेकिन वहां बड़े पैमाने पर अतिक्रमण अनियंत्रित रूप से जारी है.

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चेन्नई: पिछले हफ्ते चेन्नई में चार दिनों के लिए जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया क्योंकि शहर में 47 साल बाद 44 घंटे तक लगातार 40 सेंटीमीटर तक बारिश रिकॉर्ड की गई, जिससे शहर लगभग चार दिन के लिए जलमग्न रहा.

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, चक्रवात मिचौंग के बाद बारिश से जुड़ी घटनाओं में 20 लोगों की जान चली गई, जबकि नवंबर-दिसंबर 2015 में 200 से ज्यादा लोगों की जान गई थी.

हालांकि, चेन्नई के कुछ हिस्सों में हर साल भारी बारिश और बाढ़ का खतरा रहता है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि शहर की योजना जैसे बड़े मुद्दों पर ध्यान देने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा कि झीलों और दलदली भूमि के आसपास अनियंत्रित विकास और अतिक्रमण ने शहर की प्राकृतिक आर्द्रभूमि को नष्ट कर दिया है.

उदाहरण के लिए चक्रवात मैंडोस के कारण पिछले साल अंबत्तूर और पेरम्बूर सहित अन्य क्षेत्रों में गंभीर जलजमाव हो गया था. उससे एक साल पहले 2021 में मडिपक्कम, कोविलंबक्कम और वेल्लाचेरी सहित शहर भर में लगभग 200 स्थानों से बाढ़ की सूचना मिली थी, जहां से निवासियों को राज्य आपदा राहत अधिकारियों ने नावों में बचाया था.

तमिलनाडु स्थित पर्यावरण संगठन, पूवुलागिन नानबर्गल (फ्रेंड्स ऑफ द अर्थ) से जुड़े पर्यावरणविद् जी सुंदरराजन ने कहा, “चेन्नई पूरी तरह से अनियोजित शहर है जो 500 से 600 साल पहले हरे-भरे खेतों और झीलों और मछली पकड़ने की बस्तियों वाले छोटे गांवों से विकसित हुआ है जिसे आज हम देख रहे हैं.”

उन्होंने कहा, चेन्नई “केवल जल निकायों और कृषि भूमि को नष्ट करने और अतिक्रमण करने से” एक शहर बन गया है.

इस बीच ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन के आयुक्त डॉ. जे. राधाकृष्णन ने दिप्रिंट को बताया कि पिछले हफ्ते आई बाढ़ भारी उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम मानसून की “दोहरी मार” का परिणाम थी. उनका कहना है कि नगर निकाय अतिक्रमणों के खिलाफ कार्रवाई करने के अलावा जल निकायों से लगातार गाद निकाल रहा है और उनकी धारण क्षमता में सुधार कर रहा है.

उनके मुताबिक, चेन्नई के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यह शहर समुद्र तल से महज 6.7 मीटर ऊपर है. चेन्नई परिदृश्य की ढाल या प्राकृतिक ढलान, पश्चिम से पूर्व तक, लगभग 6-2 मीटर है और सतही अपवाह केवल तीन नदी मुहाने और बकिंघम नहर के माध्यम से निकलता है.

हालांकि, पर्यावरणविदों का ये भी कहना है कि सरकारी संस्थाओं द्वारा इन जल निकायों के किनारों पर अतिक्रमण करने और संवेदनशील क्षेत्रों की भूमि का उपयोग औद्योगिक या आवासीय में बदलने के मामले सामने आए हैं.

भ्रष्टाचार रोधी गैर सरकारी संगठन अरप्पोर इयक्कम के संयोजक जयराम वेंकटेशन ने कहा, “जल निकायों का कुप्रबंधन और प्रशासन द्वारा बड़े पैमाने पर अतिक्रमण जहां भूमि (नदी के किनारे) को औद्योगिक या आवासीय भूमि में बदल दिया जाता है, यही कारण है कि शहर अब इस संकट का सामना कर रहा है.”


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चेन्नई की आर्द्रभूमियां और जल निकाय

26,902 प्रति वर्ग मीटर (2011 की जनगणना के अनुसार) जनसंख्या घनत्व वाले चेन्नई को तीन नदियों का आशीर्वाद प्राप्त है: कोसस्थलैयार, कूउम और अडियार.

सुंदरराजन के अनुसार, लगभग 500 साल पहले चेन्नई में 30-50 बड़े नाले और 540 छोटे नाले थे. उन्होंने आगे बताया कि जब बारिश होती थी, तो छोटी नालियां सतही जल को बड़े नालों में ले जाती थीं, जो आगे चलकर इसे प्रमुख नदियों तक ले जाती थीं और अंततः नदियां समुद्र में विलीन हो जाती थीं.

उनका यह भी कहना है कि चेन्नई को एक प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का आशीर्वाद मिला है जिसमें उत्तर में एन्नोर पुलिकट क्रीक और दक्षिण में पल्लीकरनई दलदली भूमि शामिल है.

हालांकि, इन संवेदनशील क्षेत्रों में अतिक्रमण बड़े पैमाने पर अनियंत्रित रूप से जारी है, जो एक प्राकृतिक स्पंज के रूप में कार्य करता है जो बारिश के पानी को इकट्ठा कर जलाशयों को फिर से भरता है.

2020 में सेव एन्नोर क्रीक अभियान ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को सौंपी एक रिपोर्ट में आरोप लगाया था कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) द्वारा कोसस्थलैयार नदी के 660 एकड़ से अधिक बैकवाटर का अतिक्रमण किया गया था. दावा किया गया कि कामराजार बंदरगाह ने 114 एकड़ ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया है, जबकि एनटीपीसी तमिलनाडु एनर्जी कंपनी लिमिटेड (एनटीईसीएल) के लिए कोयला राख डंप ने 203 एकड़ और भारत पेट्रोलियम ने 100 एकड़ जमीन पर कब्जा कर लिया है.

साउथ एशिया कंसोर्टियम फॉर इंटरडिसिप्लिनरी वॉटर रिसोर्सेज स्टडीज के अध्यक्ष प्रोफेसर एस. जनकराजन ने कहा, “एन्नोर क्रीक भूमि, जो 10,000 एकड़ से अधिक में फैली हुई थी, चेन्नई मेट्रो रेल लिमिटेड (सीएमआरएल), कामराजार बंदरगाह और कट्टुपल्ली बंदरगाह जैसे बंदरगाहों के अतिक्रमण के परिणामस्वरूप सिकुड़ गई है. एन्नोर पूरी तरह से विकृत हो गया है, कई थर्मल पावर स्टेशनों के कारण यह खारा हो गया है, हर जगह फ्लाई ऐश जमा है और इसमें पारा जमा होने के निशान हैं.”

उन्होंने कहा, “एन्नोर पूरी तरह प्रदूषित है और इसकी जैव विविधता खत्म हो गई है.”

जनकराजन ने दोहराया कि आर्द्रभूमि, दलदली भूमि और अंतर्देशीय जल निकाय “बहुत महत्वपूर्ण महत्वपूर्ण पारिस्थितिक इकाइयां हैं जो जैव विविधता की रक्षा करती हैं, भूजल का पुनर्भरण करती हैं और वर्षा जल का भंडारण करती हैं; जब आप उन्हें विकृत करते हैं, उनका अतिक्रमण करते हैं, तो इससे पारिस्थितिक क्षरण होता है.”

विशेषज्ञ यह भी बताते हैं कि अतिक्रमण और पूंडी और पुझल जलाशयों से 45,000 क्यूसेक पानी छोड़े जाने के बावजूद, एन्नोर पुलिकट आर्द्रभूमि ने उत्तरी चेन्नई को पूरी तरह से जलमग्न होने से बचाने में मदद की.

सुंदरराजन ने बताया, “इसकी बाढ़ वहन करने की विशाल क्षमता है. यही एकमात्र कारण है कि हम कहते हैं कि कट्टुपल्ली बंदरगाह का विस्तार नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह पुलिकट, एन्नोर के लिए बड़ा खतरा लाएगा और भविष्य में उत्तरी चेन्नई को पूरी तरह से जलमग्न कर देगा.”

एलएंडटी द्वारा विकसित, कट्टुपल्ली बंदरगाह को 2018 में अडाणी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन लिमिटेड (एपीएसईज़ेड) द्वारा अधिग्रहित किया गया था. अगले साल, समूह ने कहा कि उसने बंदरगाह को मौजूदा 330 एकड़ से 6,111 एकड़ तक विस्तारित करने की योजना बनाई है. इसमें से 2,250 एकड़ से अधिक भूमि समुद्र में खोदी गई रेत से ढकी जानी थी.

दिप्रिंट ने ईमेल के जरिए टिप्पणी के लिए अडाणी ग्रुप से संपर्क किया था, लेकिन रिपोर्ट के छपने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई थी. प्रतिक्रिया मिलने पर रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

दक्षिणी चेन्नई के लिए, जयरामन का कहना है कि पल्लीकरनई दलदली भूमि में कम से कम 1,000 एकड़ भूमि 1990 और 2014 के बीच अवैध रूप से पंजीकृत की गई थी.

मद्रास हाई कोर्ट द्वारा नियुक्त एक न्याय मित्र ने 2019 की अपनी रिपोर्ट में बताया था कि शहर की एकमात्र शहरी आर्द्रभूमि, पल्लीकरनई दलदली भूमि 1965 में 5,500 हेक्टेयर से घटकर 2013 में मात्र 600 हेक्टेयर रह गई.


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अतिक्रमण, भूमि उपयोग का पुनर्वर्गीकरण

हालांकि, तमिलनाडु टैंक संरक्षण और अतिक्रमण बेदखली अधिनियम, 2007 जल निकायों के पुनर्वर्गीकरण पर रोक लगाता है. 2019 में अरप्पोर इयक्कम द्वारा दायर एक जनहित याचिका ने राज्य सरकार को परेशानी में डाल दिया था, जब यह आरोप लगाया गया था कि सेमेनचेरी में थमराईकानी झील को एक पुलिस स्टेशन के निर्माण के लिए ‘संस्थागत उपयोग क्षेत्र’ में बदल दिया गया था.

कोर्ट ने थाने के उपयोग पर रोक लगा दी और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) की दो सदस्यीय टीम को यह निर्धारित करने का आदेश दिया कि विचाराधीन भूमि जल निकाय है या नहीं. अपनी टिप्पणियों में अदालत ने कहा था कि अगर यह स्थापित हो जाता है कि थाना एक जल निकाय पर बनाया गया था तो थाने को ध्वस्त करना होगा.

मामला अभी भी न्यायालय में विचाराधीन है.

जयरामन ने दिप्रिंट को बताया, “सीएमडीए, शहरी विकास प्राधिकरण ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के यह कहने के बावजूद कि जल निकायों को पुनर्वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है, राजस्व और पंजीकरण विभागों के अनुरोधों के आधार पर भूमि को पुनर्वर्गीकृत किया है. यह खतरनाक है क्योंकि तीन विभाग मिलीभगत कर रहे हैं और भूमि का पुनर्वर्गीकरण कर रहे हैं.”

सुंदरराजन ने बताया कि कैसे चेन्नई के लॉन्ग टैंक और लेक व्यू में कभी जल निकाय हुआ करते थे.

उन्होंने कहा, “लंबा टैंक विल्लिवक्कम से माम्बलम (लगभग 11 किमी) तक था, लेकिन अब टैंक के अवशेष एकमात्र चेटपेट टैंक हैं जो अभी भी वहां हैं.” उन्होंने कहा कि चेन्नई में वल्लुवर कोट्टम स्मारक कभी एक झील थी.

उन्होंने आगे कहा, “विडंबना यह है कि वल्लुवर कोट्टम, तमिल कवि दार्शनिक तिरुवल्लुवर को समर्पित एक स्मारक, एक झील पर बनाया गया है और तिरुवल्लुवर ने कहा था कि ‘पानी के बिना कोई भी जीवन जीवित नहीं रह सकता’.”

डिसिल्टिंग, नदियों का पुनर्जीवन

पिछले सप्ताह आई बाढ़ के बाद मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने कहा था कि 2021 से चरणबद्ध तरीके से लागू की गई 4,000 करोड़ रुपये की तूफानी जल निकासी प्रणाली ने बारिश के प्रभाव को कम कर दिया है.

अधिकारियों का कहना है कि इस प्रणाली के कारण ही जल स्तर कम होने में उतना समय नहीं लगा, जितना पहले लगता था. राधाकृष्णन ने कहा कि बारिश रुकने के 48 घंटों के भीतर साठ प्रतिशत बारिश का पानी निकल गया.

उन्होंने दोहराया कि उत्तर-पूर्व मानसून के दौरान शहर में सामान्य से अधिक बारिश हुई और दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान सामान्य से दोगुनी बारिश हुई.

इसका मतलब यह हुआ कि शहर की वर्षा जल धारण क्षमता लगभग संतृप्त हो गई थी.

राधाकृष्णन ने कहा, “दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान शहर में औसतन 44 सेमी बारिश होती है, लेकिन इस साल 1 जनवरी से शहर में 82 सेमी बारिश हुई है. इसके अलावा, चेन्नई में औसत पूर्वोत्तर मानसून 79 सेमी है, लेकिन इस बार शहर पहले ही 114 सेमी दर्ज कर चुका था.”

उनका कहना है कि ग्रेटर चेन्नई कॉर्पोरेशन 33 सूक्ष्म नहरों का रखरखाव करता है, जबकि जल संसाधन विभाग बकिंघम नहर और तीन नदियों के अलावा 14 नहरों का रखरखाव करता है.

वर्तमान में शहर में 3,331 किमी लंबे तूफानी जल के नाले हैं.

राधाकृष्णन कहते हैं, “तूफान के समय समुद्र का जल स्तर ऊंचा होने के कारण तीन नदियों के मुहाने बंद हो गए और शहर लगभग 44 घंटों तक 67 टीएमसी (हज़ार मिलियन क्यूबिक फीट) पानी के जलाशय जैसा बन गया.”

उनका कहना है कि नगर निकाय ने पूर्वोत्तर मानसून की प्रत्याशा में सभी प्रमुख नहरों से गाद निकालने की कोशिश की और लगभग 3,900 सड़कें फिर से बनाईं.

उन्होंने कहा, “2021 से बकिंघम नहर से 12,000 अतिक्रमण हटा दिए गए हैं और अडियार नदी के पास के अतिक्रमण भी काफी हद तक हटा दिए गए हैं.” उन्होंने कहा कि चेन्नई रिवर रेस्टोरेशन ट्रस्ट (सीआरआरटी) नदियों के पुनर्स्थापन, गहराई और सफाई के लिए काम कर रहा है.

शुरुआत में इसे अडियार पूंगा ट्रस्ट कहा जाता था, सीआरआरटी का गठन 2006 में राज्य सरकार द्वारा जल निकायों की रक्षा के लिए किया गया था. राज्य के मुख्य सचिव ट्रस्ट के पदेन अध्यक्ष होते हैं.

राज्य सरकार के अनुसार, ट्रस्ट ने अपनी स्थापना के बाद से 790 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, जिसमें से 129.22 करोड़ रुपये दो नदियों — अडियार और कूम के किनारों को खोदने, चौड़ा करने और मजबूत करने पर खर्च किए गए, जबकि परिधि दीवारों और बाड़ के निर्माण पर 122.99 करोड़ रुपये और वृक्षारोपण और सौंदर्यीकरण पर 20.75 करोड़ रुपये खर्च किए गए.

जल जमाव को रोकने के अन्य उपायों में 1,387 करोड़ रुपये की लागत से अडियार और कूम बेसिन को कवर करते हुए 406 किमी तक फैले तूफानी जल निकासी का निर्माण शामिल है. कोसास्थलैयार बेसिन में 769 किलोमीटर लंबे तूफानी जल नाले पर भी काम अगले साल मार्च तक पूरा होने की उम्मीद है, जबकि कोलावम बेसिन में 360 किलोमीटर लंबे नाले पर भी काम चल रहा है.

सरकार ने इस वर्ष के अपने बजट में सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल के माध्यम से अड्यार नदी के 44 किमी लंबे हिस्से की बहाली के लिए 1,500 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की थी.

हालांकि, सुंदरराजन ने रेखांकित किया कि मौजूदा जल निकायों को अतिक्रमण से मुक्त रखने के अलावा, गाद निकालना और उनका रखरखाव करना यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि सतही अपवाह को बाद में उपयोग के लिए संग्रहीत किया जा सकता है.

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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