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Friday, 22 November, 2024
होमदेश'वह एक्सट्रोवर्ट हो सकती है, झूठी नहीं': क्यों HC ने बरकरार रखी ओपी जिंदल विवि रेप मामले में सजा

‘वह एक्सट्रोवर्ट हो सकती है, झूठी नहीं’: क्यों HC ने बरकरार रखी ओपी जिंदल विवि रेप मामले में सजा

यह कहते हुए कि 'केवल इस वजह से कि पीड़िता पर 'इजी वर्चु' वाली महिला होने का आरोप लगाया गया है, उसकी गवाही को खारिज नहीं किया जा सकता है,' पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने 2 आरोपियों की सजा की पुष्टि की और तीसरे को बरी कर दिया.

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नई दिल्ली: सोनीपत स्थित ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के दो पूर्व छात्रों द्वारा अपने ही विश्वविद्यालय की एक साथी छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके ब्लैकमेल की 2015 की घटना के संबंध में उन्हें सुनाई गई 20 साल की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखते हुए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि ‘केवल इस वजह से कि पीड़िता पर ‘इजी वर्चु’ वाली (झट से राजी हो जाने वाली) महिला होने का आरोप है, उसकी गवाही को खारिज नहीं किया जा सकता है.

जस्टिस तेजिंदर सिंह ढींडसा और जस्टिस पंकज जैन की पीठ ने हार्दिक सीकरी और करण छाबड़ा की सजा की पुष्टि की, लेकिन तीसरे आरोपी विकास गर्ग को बरी कर दिया. शिकायतकर्ता ने अप्रैल 2015 में इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करवाई थी और सोनीपत की एक अदालत ने हार्दिक और करण को सामूहिक बलात्कार का दोषी पाया था, जबकि विकास को बलात्कार के लिए दोषी ठहराया गया था.

यह मामला तब सुर्खियों में आया था जब उच्च न्यायालय ने सितंबर 2017 में तीनों आरोपियों को जमानत दे दी थी और उनकी 20 साल की सजा को निलंबित करने का आदेश दिया था, जिसमें पीड़िता की ‘संलिप्तता’, ‘दुस्साहसपन’ और ‘यौन संसर्ग में किये गए प्रयोगों’ से जुड़े कई संदर्भ थे. अदालत ने तब कहा था, ‘उसका बयान एक स्वच्छंद रवैये और एक वोएयरिस्टिक माइंड (गुप्त रूप से दूसरे लोगों, खासकर यौन स्थितियों को देखकर, लेने वाले दिमाग) से उपजे दुस्साहस का एक वैकल्पिक निष्कर्ष प्रस्तुत करता है.’ इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2017 में आरोपियो की जमानत पर रोक लगाने का कदम उठाया था.

उनकी सजा को बरकरार रखते हुए माननीय उच्च न्यायालय ने ने शुक्रवार को कहा कि शिकायतकर्ता ने सफलतापूर्वक साबित कर दिया था कि उसे ‘ब्लैकमेल किया जा रहा था और दुर्व्यवहारपूर्ण रिश्ते में बने रहने को मजबूर किया जा रहा था’.

अदालत ने कहा कि आरोपी ने शिकायतकर्ता द्वारा अन्य लड़कों के साथ बातचीत करने को उसकी गवाही पर सवाल खड़े करने के लिए संदर्भित किया था. हालांकि, इसने यह कहते हुए इस तरह का निष्कर्ष निकालने से इंकार कर दिया कि, ‘स्थापित कानून के अनुसार, केवल इसलिए कि पीड़िता पर ‘इजी वर्चु’ वाली महिला होने का आरोप लगाया जाता है, उसकी गवाही को खारिज नहीं की जा सकता है. उसे अपनी गरिमा की रक्षा करने का अधिकार है.’


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अदालत ने शिकायतकर्ता के बयान को ‘भरोसे के लायक’ पाया और यह भी पाया कि व्हाट्सएप चैट और अन्य गवाहों के बयानों से इसकी पुष्टि होती है. इसने जोर देकर कहा, ‘व्हाट्सएप चैट और ट्रायल कोर्ट के समक्ष अभियोक्त्री (प्रॉसेक्यूटरीक्स या अभियोग लगाने वाले) की गवाही को जोड़कर पढ़ने से, अभियोक्त्री के संस्करण की पूरी तरह से पुष्टि हो जाती है. वह एक ऐसे शख्स के रूप में सामने आती है, जिन्हें एक खुले और बहिर्मुखी विचार वाला कहा जा सकता है, लेकिन निश्चित रूप से उन्हें एक फिब्सटर (मिथ्यावादी या झूठ बोलने वाला) नहीं कहा जा सकता है.‘

‘मौन रहना सहमति नहीं है.. उसे उसकी बुनियादी मर्यादा से वंचित किया गया’

30 सितंबर को पारित किये गए 73 पन्नों के फैसले में हार्दिक और शिकायतकर्ता के बीच 20 पेज की व्हाट्सएप चैट भी शामिल है. यह पीड़िता जिस वजह से अपीलकर्ता-हार्दिक के हाथों बर्बरता का सामना कर रही थी, उसकी भयावह स्थिति को समझने के लिए किया गया है. अदालत ने कहा, ‘यह स्पष्ट है कि यह अभियोक्त्री की ओर से ‘सबमिशन’ (समर्पण करने) का मामला है. उसकी चुप्पी या उसके द्वारा आरोपी की मांगों को माने जाने को ‘सहमति’ नहीं कहा जा सकता. व्हाट्सएप चैट, जो दोनों पक्षों के बीच के संबंधों से जुड़े रिकॉर्ड को लेकर सबसे भौतिक सबूत है, का अध्ययन किये जाने के बाद, यह स्पष्ट है कि अभियोक्त्री हार्दिक के साथ दुर्व्यवहारपूर्ण संबंधों का सामना कर रही थी.’

शिकायतकर्ता और हार्दिक के बीच हुई बातचीत का जिक्र करते हुए अदालत ने कहा कि वह ‘हार्दिक के आदेश पर काम कर रही थी’ और वह उसे ब्लैकमेल करता था.

आदेश में कहा गया है, ‘कभी-कभी, उसे रात के खाने के लिए या यहां तक कि पानी पीने के लिए भी उसकी अनुमति लेनी पड़ती थी… उसे एक सेक्स टॉय खरीदने के लिए मजबूर किया गया था. उसे बार-बार उसकी अंतरंग/अश्लील तस्वीरें प्रकाशित करने की धमकी दी जा रही थी.’

इसी वजह, अदालत ने यह निष्कर्ष निकाला कि वह सेक्स के लिए सहमति देने वाली पक्षकार नहीं थी. इसने कहा, ‘पूरी चैट को पढ़ने से पता चलता है कि हार्दिक द्वारा अभियोक्त्री के साथ किस तरह की अश्लीलता के साथ व्यवहार किया गया था.‘

उसके साथ न केवल दुर्व्यवहार किया गया और चोट पहुंचाई गई, बल्कि उसे उस बुनियादी गरिमा से भी वंचित कर दिया गया, जिसका एक जीवित प्राणी हकदार होता है; किसी इंसान द्वारा अपने साथी को प्रदान किए जाने वाले शिष्टाचार और सहानुभूति की तो बात ही छोड़ दें.’

अदालत ने कहा, ‘उसके गले में फंदा डाल दिया गया था और वह जिस दुविधा का सामना कर रही थी, वह न केवल उस फंदे को ढीला रखना था बल्कि उसे सबसे छुपाना भी था. पूरे समय वह आरोपी के शैतानी मंसूबों का बोझ ढो रही थी.’

‘एक इच्छुक साथी से कहीं अधिक’

सोनीपत सेशन कोर्ट की एक विशेष अदालत ने मई 2017 में हार्दिक और करण को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (बलात्कार), 376 डी (सामूहिक बलात्कार), 376 (2) (एन) (एक ही महिला का बार-बार बलात्कार करना), 292 (अश्लील किताबें आदि के बिक्री, वितरण) और 120-बी (आपराधिक साजिश), के साथ साथ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 (इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करना) के लिए दोषी ठहराया था.

उन्हें 20 साल कैद की सजा सुनाई गई थी. तीसरे आरोपी, विकास को आईपीसी की धारा 376, 120बी और 292 के साथ-साथ आईटी अधिनियम की धारा 67ए के तहत दोषी ठहराया गया था और उसे सात साल कैद की सजा सुनाई गई थी.

उच्च न्यायालय में, करण के वकील ने दलील दी थी कि शिकायतकर्ता ने चुनिंदा व्हाट्सएप चैट पेश किये हैं, और वह ‘अंतरंग मुलाकातों’ में एक मर्जी की भागीदार से कहीं अधिक’ थी. उन्होने अन्य लड़कों के साथ उसकी चैट पर यह साबित करने के लिए भरोसा किया कि वह ‘एक आउटगोइंग पर्सन (बाहर आने-जाने वाली शख्स)’ थी. हार्दिक के वकील ने (बयान के) उसके संस्करण पर भी यह कहते हुए सवाल उठाये थे कि ‘आम तौर माना जाने वाला यह नियम की कोई महिला अपने ‘शील’ को दांव पर नहीं लगाएगी’ अपने आप में पूर्ण नहीं है.

आरोपियों ने यह भी आरोप लगाया था कि शिकायतकर्ता ने पहली शिकायत से लेकर पुलिस के सामने और अदालत के समक्ष दिए गए बयानों के दौरान अपने बयान में लगातार ‘सुधार’ करना जारी रखा. हालांकि, अदालत ने इन तमाम दलीलों को खारिज कर दिया और हार्दिक व करण को दी गई सजा और उन्हें दोषी ठहराए जाने को बरकरार रखा.

हालांकि, विकास को बरी कर दिया गया था, क्योंकि अदालत ने कहा कि ‘अभियोजन पक्ष का यह आरोप कि विकास अन्य दो आरोपियों के साथ भी था, वाजिब संदेह से परे साबित नहीं हो सका है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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