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Thursday, 16 May, 2024
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10 लाख से अधिक लंबित मामले, 37% खाली पड़े पद, इलाहाबाद HC के वकील नहीं चाहते कि कोई ‘बाहरी’ बने जज

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश के बेटे की संभावित पदोन्नति के खिलाफ विरोध के रूप में शुरू हुआ यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में यूपी के वकीलों के नामों के विरोध तक फैल गया है, स्थानीय बार एसोसिएशन ने न्यायाधीशों के इलाहाबाद हाई कोर्ट वकीलों के भीतर से ही चुने जाने की मांग की है.

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नई दिल्ली: इलाहाबाद हाई कोर्ट को ‘बाहरी’ वकीलों को यहां न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत करने के मसले पर अदालत के बार एसोसिएशन के पुरजोर विरोध का सामना करना पड़ रहा है. यह ऐसे समय में हो रहा है जब इलाहाबाद हाई कोर्ट न्यायाधीशों के लिए अपनी स्वीकृत संख्या के केवल 63 प्रतिशत के साथ काम चला रहा है और राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के आंकड़ों के अनुसार यह फिलहाल 10 लाख से अधिक लंबित पड़े मामलों के बैकलॉग से जूझ रहा है.

दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार इस महीने कुछ समय पहले नए न्यायाधीशों के चुनाव के लिए कॉलेजियम की बैठक से पहले ही, हाई कोर्ट बार एसोसिएशन, इलाहाबाद और स्थानीय वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश के बेटे को पदोन्नत किए जाने की संभावित सिफारिश पर अपनी चिंता व्यक्त की थी. बार एसोसिएशन के सूत्रों ने कहा कि इस विरोध को बाद में राज्य के उन सभी वकीलों को पदोन्नत्ति के दायरे से बाहर रखने तक विस्तारित कर दिया गया, जो फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस (वकालत) कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और उनके बेटे इस राज्य से नहीं हैं.

इलाहाबाद हाई कोर्ट के कॉलेजियम में फिलहाल इस अदालत के मुख्य न्यायाधीश, जस्टिस राजेश बिंदल और दो सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश – जस्टिस प्रिंकर दिवाकर और मनोज मिश्रा- शामिल हैं. सूत्रों ने कहा कि इन तीन में से दो सदस्यों ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश के बेटे के नाम की सिफारिश का विरोध किया था, जिससे गतिरोध पैदा हो गया इसकी वजह से सिफारिशों में महीनों तक की देरी हुई.

एक ओर जहां सुप्रीम कोर्ट के जज को रिटायरमेंट के कुछ घंटों बाद ही केंद्र सरकार द्वारा प्रख्यात सेंट्रल ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया. वहीं, इस जज का बेटा एक वकील है.

इलाहाबाद हाई कोर्ट के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि इस तरह से विरोध किए जाने का प्राथमिक कारण यह था कि इन पूर्व न्यायाधीश का बेटा आमतौर पर इस अदालत में प्रैक्टिस नहीं करता है और किसी दूसरे राज्य में सरकारी वकील है.

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सूत्रों के अनुसार, एक अन्य कारण यह भी है कि वह 43 वर्ष के हैं, यानी की उनकी उम्र हाई कोर्ट के न्यायाधीश के पद पर पदोन्नति के लिए विचार किए जाने और आवश्यक सामान्य योग्यता आयु, 45 वर्ष, से दो वर्ष कम है.

उनकी संभावित सिफारिश की खबर के बारे में अग्रिम जानकारी मिलने के बाद, हाई कोर्ट में वकालत कर रहे वकीलों ने इस महीने की कॉलेजियम बैठक से पहले इस संभावित कदम के प्रति अपनी अस्वीकृति दर्ज करवाई थी. हाई कोर्ट बार एसोसिएशन, इलाहाबाद द्वारा 23 अगस्त को पारित एक प्रस्ताव में, न्यायालय के सभी वकीलों ने 24 अगस्त को एक दिन के लिए अदालती कामकाज से दूर रहने का फैसला किया था. बाद में, इसे दो और दिनों, यानी कि 26 अगस्त तक, के लिए बढ़ा दिया गया था.

दिप्रिंट के पास इस प्रस्ताव की एक कॉपी है.

हालांकि, अदालत के समक्ष पेश किए जाने वाले मामलों की सूची इस अनुपस्थिति के प्रमुख कारणों में से एक थी, मगर इस प्रस्ताव में अन्य कारणों समेत एक नए न्यायाधीशों की नियुक्ति भी थी.

हाई कोर्ट में मौजूदा रिक्तियों पर प्रकाश डालते हुए इस प्रस्ताव में हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, भारत के मुख्य न्यायाधीश और केंद्र सरकार से बिना किसी देरी के अदालत में अधिक जजों को नियुक्ति करने का अनुरोध किया गया था.

हालांकि, इस प्रस्ताव में यह भी कहा गया था कि, ‘यह नियुक्ति इलाहाबाद हाईकोर्ट और लखनऊ बेंच के वकीलों से बीच से ही की जानी चाहिए. अगर इलाहाबाद हाई कोर्ट में किसी भी प्रकार से बाहर के वकीलों की नियुक्ति की जाती है तो हाई कोर्ट बार एसोसिएशन इलाहाबाद इसका पुरजोर विरोध करेगा.‘

बार एसोसिएशन के एक पदाधिकारी ने उनका नाम न छापने की शर्त पर बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश के बेटे की इस हाई कोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति की संभावना के बारे में एसोसिएशन की चिंता की पुष्टि की.

इलाहाबाद हाई कोर्ट के सूत्रों के अनुसार, कॉलेजियम ने इस महीने की शुरुआत में एक बैठक की और न्यायाधीशों के पद के लिए सोलह वकीलों के नामों पर अपनी सहमति व्यक्त की. सूत्रों ने कहा कि हालांकि पूर्व न्यायाधीश के बेटे इसके लिए पात्रता मापदंड हासिल नहीं कर सके,  मगर इन नामों में शामिल कम-से-कम चार वकील मुख्य रूप से सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं, भले ही वे यूपी से हों, और इसकी वजह से बार एसोसिएशनों ने प्रतिक्रियाएं व्यक्त कीं.

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 217 के अनुसार, वकीलों के लिए किसी भी हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिए आवश्यक योग्यता में से एक यह है कि उन्हें कम-से-कम दस वर्षों तक किस ‘हाई कोर्ट के वकील या क्रमिक रूप से दो या उससे अधिक ऐसी अदालतों का वकील’ होना चाहिए.

आमतौर पर, उसी हाई कोर्ट में वकालत करने वाले और जिन्हें यहां के न्यायाधीशों ने व्यक्तिगत रूप से बहस करते देखा है उन्हीं वकीलों को न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत करने की सिफारिश की जाती है.

फिर भी, अन्य हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से वकीलों की नियुक्ति हमेशा कॉलेजियम और वकीलों के बीच विवाद का विषय रही है.


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वकीलों का मनोबल टूटेगा

इलाहाबाद हाई कोर्ट के सूत्रों के अनुसार, कॉलेजियम ने इस महीने की शुरुआत में एक बैठक की और न्यायाधीशों के पद के लिए सोलह वकीलों के नामों पर अपनी सहमति व्यक्त की. सूत्रों ने कहा कि हालांकि पूर्व न्यायाधीश के बेटे इसके लिए पात्रता मापदंड हासिल नहीं कर सके, मगर इन नामों में शामिल कम-से-कम चार वकील मुख्य रूप से सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं, भले ही वे यूपी से हों, और इसकी वजह से बार एसोसिएशनों ने प्रतिक्रियाएं व्यक्त कीं.

इस बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के अवध बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश चौधरी ने पिछले 9 सितंबर को भारत के चीफ जस्टिस यू. यू. ललित से सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे वकीलों को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज के तौर पर प्रोन्नत करने का प्रस्ताव नहीं करने का अनुरोध किया.

दिप्रिंट के पास इस पत्र की भी एक कॉपी है.

इस पत्र में लिखा गया है , ‘हाई कोर्ट में कई ऐसे अधिवक्ता हैं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन इस पेशे के लिए समर्पित किया है और वास्तव में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत होने के योग्य हैं.’ साथ ही, इसमें यह भी कहा गया है कि ‘उन अधिवक्ताओं के नामों पर विचार करना, जिन्होंने इस हाई कोर्ट के समक्ष कभी वकालत ही नहीं की है, न केवल मेहनती अधिवक्ताओं का मनोबल गिराएगा, बल्कि व्यवस्था की निष्पक्षता पर भी संदेह पैदा करेगा.’

इसलिए, पत्र में भारत के चीफ जस्टिस से अनुरोध किया गया है कि ‘वे हाई कोर्ट के न्यायाधीश के कार्यालय में सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने वाले अधिवक्ता को पदोन्नत करने के लिए कोई अनुमति या सहमति न दें’.

फिर, 15 सितंबर को, अवध बार एसोसिएशन ने एक और प्रस्ताव पारित किया, जिसमें कहा गया है कि बार एसोसिएशन द्वारा उठाए गए आपत्तियों के बावजूद इस हाई कोर्ट में वकालत नहीं करने वाले वकीलों के नामों की सिफारिश की गई है. इसलिए, इसने 16 और 17 सितंबर को दो दिनों के लिए अदालती कामकाज से दूर रहने का फैसला किया. प्रस्ताव में कहा गया है कि हाई कोर्ट में वकालत नहीं करने वाले वकीलों की सिफारिश करने की प्रथा में ‘किसी व्यक्ति के वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन (ऑब्जेक्टिव असेसमेंट) का अभाव है और यह शक्ति का एक मनमाना प्रयोग है.’

प्रस्ताव में आगे कहा गया है  ‘यह (इस) संस्था को बचाने के लिए और सार्वजनिक उद्देश्य के लिए किया गया एक आह्वान है. इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने भी 17 सितंबर को काम से दूर रहने का प्रस्ताव पारित किया.

दिप्रिंट के पास इन दोनों प्रस्तावों की प्रतियां उपलब्ध है.

बता दें कि 1 सितंबर, 2022 तक, इलाहाबाद हाई कोर्ट में कुल 101 न्यायाधीश थे, जबकि इसके लिए स्वीकृत संख्या 160 न्यायाधीशों की है. हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (प्रक्रिया ज्ञापन) के अनुसार, ऐसी नियुक्ति के प्रस्ताव को हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा शुरू करने की आवश्यकता होती है, जिन्हें प्रस्तावित नामों की उपयुक्तता के संबंध में पीठ में शामिल अपने दो वरिष्ठ सहयोगियों से परामर्श करना होता है. इसके बाद कॉलेजियम न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में अपनी सिफारिशें मुख्यमंत्री, केंद्र सरकार और साथ ही भारत के मुख्य न्यायाधीश को भेजता है.

उसके बाद भारत के चीफ जस्टिस, सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श से, हाई कोर्ट में नियुक्ति के लिए सिफारिश किए जाने वाले व्यक्ति/व्यक्तियों के संबंध में अपनी राय बनाते हैं.  सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि की जांच के पश्चात सरकार से प्रस्ताव प्राप्त होने के बाद ही इन नामों को मंजूरी दे सकता है.

कानूनी बिरादरी के सूत्रों के अनुसार, ऐसे मामले पहले भी सामने आते रहे हैं जहां ऐसे वकीलों के नामों की सिफारिश हाई कोर्ट के जजों के पद पर पदोन्नत करने के लिए की जाती है, जो सिर्फ सुप्रीम कोर्ट में ही वकालत करते रहे हैं, लेकिन मूल रूप से उस राज्य से हैं जहां वह हाई कोर्ट स्थित है.

इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट के जिन चार वकीलों की सिफारिश की गई है, वे भी यूपी राज्य के ही रहने वाले हैं, लेकिन उन्होंने अपनी वकालत को सुप्रीम कोर्ट तक ही सीमित रखा है. इनमें से एक इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश के बेटे हैं.

अवध बार एसोसिएशन के एक वकील ने इन सिफारिशों के खिलाफ व्याप्त नाराजगी का कारण बताते हुए कहा, ‘यहां मुद्दा यह नहीं है कि कौन इस राज्य से है और कौन नहीं. मुद्दा यह है कि उन्होंने इस सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कभी वकालत नहीं की है. कॉलेजियम में शामिल न्यायाधीश किसी को बहस करते हुए देखे बिना ही उसकी पदोन्नति के लिए सिफारिश कैसे कर सकते हैं?’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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