नई दिल्ली: कांग्रेस सांसद जयराम रमेश और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा सहित कई याचिकाकर्ताओं ने नागरिकता संशोधन विधेयक की वैधता को चुनौती देते हुये उच्चतम न्यायालय में शुक्रवार को याचिकायें दायर कीं. इन सभी याचिकाओं में कहा गया है कि नागरिकता कानून में संशोधन संविधान के बुनियादी ढांचे और समता के अधिकार सहित मौलिक अधिकारों का हनन करता है.
संशोधित नागरिकता कानून के अनुसार 31 दिसंबर, 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ्गानिस्तान से भारत आये हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के सदस्यों को अवैध शरणार्थी नहीं माना जायेगा और उन्हें भारत की नागरिकता प्रदान की जायेगी.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बृहस्पतिवार की रात नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 को अपनी संस्तुति दी और इसके साथ ही यह विधेयक कानून बन गया.
शीर्ष अदालत में इस कानून की वैधानिकता को चुनौती देते हुये याचिका दायर करने वाले अन्य व्यक्तियों और संगठनों में आल असम स्टूडेन्ट्स यूनियन, पीस पार्टी, गैर सरकारी संगठन ‘रिहाई मंच’ और सिटीजन्स अगेन्स्ट हेट, अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा और कानून के छात्र शामिल हैं.
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ के समक्ष शुक्रवर को तृणमूल कांग्रेस की सांसद मोइत्रा की याचिका सुनवाई के लिये आज या 16 दिसंबर को सूचीबद्ध करने के लिये उल्लेख किया गया.
पीठ ने कहा, ‘आज? आज कुछ नहीं. आप शीघ्र सुनवाई के उल्लेख के लिये निर्धारित अधिकारी के पास जायें.’
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जयराम रमेश की याचिका में कहा गया है कि यह कानून संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों की बुनियाद पर हमला है और यह समानता को असमान बनाने वाला है.
मोइत्रा ने इस कानून को ‘सरासर असंवैधानिक’ बताते हुये कहा कि यह भारत के धर्मनिरपेक्षता के बहुलता, बहुधर्मी और सर्वधर्म सम्भाव की बुनियाद को नष्ट करता है.
रमेश ने अपनी याचिका में कहा है कि इस कानून ने न्यायलाय के विचार के लिये अनेक कानूनी सवालों को जन्म दिया है. इनमें यह भी शामिल है कि क्या भारत में नागरिकता प्राप्त करने या इससे इंकार करने के लिये धर्म एक पहलू हो सकता है. याचिका में नागरिकता कानून में संशोधन को पूरी तरह असंवैधानिक बताया गया है. इस कानून से अनेक सवाल पैदा हुये.
मोइत्रा ने इस संशोधित कानून को विघटनकारी, लोगों को अलग करने वाला और पक्षपात करने वाला बताते हुये अपनी याचिका में कहा है कि इससे देश का धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को अपूर्णीय नुकसान होगा और यह विशेष धर्मों के अवैध शरणार्थियों को तत्काल नागरिकता हासिल करने की अनुमति देता है.
तृणमूल सांसद ने इस याचिका का निपटारा होने तक नागरिकता संशोधन कानून के अमल और इसके तहत सभी कार्रवाई पर रोक लगाने का निर्देश देने का अनुरोध किया है.
अधिवक्ता फौजिया शकील के माध्यम से दायर गैर सरकारी संगठन ‘रिहाई मंच’ और सिटीजन्स अगेन्स्ट हेट की याचिका में संशोधित कानून को पक्षपातपूर्ण और मनमाना बताते हुये कहा है कि इससे कानून में समानता सहित मौलिक अधिकारों और संविधान के बुनियादी ढांचे का हनन करता है.
इससे पहले, बृहस्पतिवार को इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने भी इस कानून को चुनौती दी. मुस्लिम लीग ने अपनी याचिका मे कहा है कि यह संशोधन संविधान में प्रदत्त समता के मौलिक अधिकार का हनन करता है और इसका मकसद धार्मिक आधार पर अवैध शरणार्थियों के एक वर्ग को अलग करना है.
इस याचिका में नागरिकता संशोधन विधेयक और विदेशी नागरिक संशोधन (आदेश) 2015 तथा पासपोर्ट (नियमों में प्रवेश), संशोधन नियम 2015 के अमल पर अंतरिम रोक लगाने का अनुरोध किया गया है.
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याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह विधेयक संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ है और इसका स्पष्ट मकसद मुसलमानों के साथ भेदभाव करना है क्योंकि प्रस्तावित कानून का लाभ सिर्फ हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के सदस्यों को ही मिलेगा.
याचिका में कहा गया है, ‘याचिकाकर्ताओं को शरणार्थियों को नागरिकता दिये जाने के बारे में कोई शिकायत नहीं है लेकिन याचिकाकर्ता की शिकायत धर्म के आधार पर भेदभाव और अनुचित वर्गीकरण को लेकर है.’
याचिका में कहा गया है, ‘गैरकानूनी शरणार्थी अपने आप में ही एक वर्ग है और इसलिए उनके धर्म, जाति या राष्ट्रीयता के आधार के बगैर ही उन पर कोई कानून लागू किया जाना चाहिए.’
याचिका में आरोप लगाया गया है कि सरकार ने अहमदिया, शिया और हजारा जैसे अल्पसंख्यकों को इस विधेयक के दायरे से बाहर रखने के बारे में कोई स्पष्टीरण नहीं दिया है. इन अल्पसंख्यकों का लंबे समय से अफगानिस्तान और पाकिस्तान में उत्पीड़न हो रहा है.