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Saturday, 1 November, 2025
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IIT की नई स्टडी ने बताया—दिल्ली में क्लाउड सीडिंग सफल क्यों नहीं हो सकती

इस हफ्ते दिल्ली सरकार की क्लाउड सीडिंग की कोशिशें पूरी तरह असफल रहीं. IIT दिल्ली के अध्ययन ने अक्टूबर से फरवरी के दौरान दिल्ली में बादलों के तापमान, जल वाष्प स्तर और आर्द्रता जैसे पैरामीटर का उपयोग किया है.

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नई दिल्ली: दिल्ली की सर्दियों की क्लाइमेट क्लाउड सीडिंग को प्रभावी वायु प्रदूषण (एयर पॉल्यूशन) समाधान के रूप में अनुकूल नहीं बनाती, ऐसा IIT दिल्ली के एक नई स्टडी में कहा गया है, जो 31 अक्टूबर को प्रकाशित हुई. ‘क्या क्लाउड सीडिंग दिल्ली के एयर पॉल्यूशन से निपटने में मदद कर सकती है?’ शीर्षक वाली यह स्टडी दिल्ली सरकार और IIT कानपुर द्वारा उत्तर-पश्चिम दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने के लिए किए गए तीन क्लाउड सीडिंग ट्रायल के कुछ दिनों बाद जारी किया गया. इन ट्रायल का कोई स्पष्ट परिणाम नहीं मिला.

अध्ययन में कहा गया, “दिल्ली का सर्दियों का वातावरण लगातार और प्रभावी क्लाउड सीडिंग के लिए मौसम संबंधी रूप से उपयुक्त नहीं है.” “सबसे अधिक प्रदूषण वाले महीनों में, जब इस हस्तक्षेप की सबसे अधिक जरूरत होती है, पर्याप्त नमी और संतृप्ति की मूल कमी रहती है.”

IIT दिल्ली के सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंसेज के शोधकर्ताओं द्वारा लिखा गया यह स्टडी 2011-2021 तक के जलवायु डेटा का उपयोग करता है. हालांकि, यह अक्टूबर 2025 की शुरुआत में एक हैकाथॉन के हिस्से के रूप में लिखा गया था, इसलिए अभी इसका पीयर रिव्यू नहीं हुआ है.

स्टडी में तापमान, हवा में नमी और अक्टूबर से फरवरी तक दिल्ली में होने वाली बारिश जैसे आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है और दिखाया गया है कि मौजूदा सर्दियों की स्थिति क्लाउड सीडिंग को कठिन बनाती है. प्रदूषण पर इसके वास्तविक प्रभाव का आकलन करना तो दूर की बात है. जबकि दिल्ली में पिछले दो सप्ताह से ‘खराब’ वायु गुणवत्ता बनी हुई है, बादल बहुत कम हैं. इसी कारण दिल्ली सरकार ने कहा कि इस सप्ताह क्लाउड सीडिंग ट्रायल असफल रहे.

IIT दिल्ली के अनुसार, यह पूरे मौसम में होने वाली समस्या है और उनके पास दस साल का डेटा है जो इसे साबित करता है. रिसर्चर्स ने डेटा और आवश्यक स्थितियों का उपयोग कर यह गणना की कि दिल्ली में सर्दियों के दौरान क्लाउड सीडिंग कितने दिनों में संभव थी—10 साल में केवल 92 दिन.

अध्ययन में लिखा है, “किसी भी क्लाउड सीडिंग ऑपरेशन की सफलता मूल रूप से पहले से मौजूद वातावरणीय परिस्थितियों पर निर्भर करती है.” “सीडिंग के संभव होने के लिए एक अवसर की खिड़की का होना जरूरी है.”

यह मौका तभी बनता है जब हवा में नमी हो, जल वाष्प हो और आसमान में बादल हों. इसलिए क्लाउड सीडिंग तभी की जा सकती है जब बादल मौजूद हों और बारिश की संभावना हो.

दिल्ली में ज्यादातर बारिश पश्चिमी विक्षोभ के कारण होती है, जो सर्दियों में कम और अनियमित होते हैं. उत्तर-पश्चिम भारत में सर्दियों में कुछ बारिश जरूर होती है, लेकिन यह शहर की कुल बारिश का केवल 15 प्रतिशत होती है. 2011 से 2021 के दस वर्षों में अध्ययन ने पाया कि सर्दियों में केवल 137 बारिश की घटनाएं हुईं, जिनमें से 112 पश्चिमी विक्षोभ के कारण थीं.

इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के कारण पश्चिमी विक्षोभ—जो सर्दियों में दिल्ली में बादल लाते हैं—अब कम हो गए हैं.

जल वाष्प के मामले में, अध्ययन ने सर्दियों के महीनों में हवा में कुल जल वाष्प की मात्रा का विश्लेषण किया और पाया कि अक्टूबर से जनवरी के बीच मौसम और अधिक शुष्क होता जाता है, जिससे क्लाउड सीडिंग और भी अनुपयुक्त हो जाती है. जल वाष्प के अलावा, तापमान भी एक मुख्य आवश्यकता है, जो यह निर्धारित करता है कि किस प्रकार की क्लाउड सीडिंग संभव है.

अध्ययन में कहा गया कि अक्टूबर और नवंबर में बादलों का तापमान न्यूनतम 0°C तक जाता है, इसलिए केवल हाइज्रोस्कोपिक सीडिंग संभव है—जिसमें बादलों के नीचे से सीड मिश्रण डाला जाता है और गर्म हवाएं या तापमान बारिश लाने में मदद करते हैं. क्लाउड सीडिंग में सिल्वर आयोडाइड या कैल्शियम क्लोराइड जैसे पदार्थों को बादलों में छिड़का जाता है ताकि बारिश हो सके.

दिसंबर और जनवरी में बादलों का तापमान शून्य से नीचे चला जाता है, इसलिए केवल ग्लेशियोजेनिक सीडिंग संभव है. ग्लेशियोजेनिक सीडिंग ठंडे पानी वाले बादलों में की जाती है, आमतौर पर बर्फबारी बढ़ाने या पहाड़ी इलाकों में ठंडी बारिश लाने के लिए.

अध्ययन ने दिखाया कि ये बुनियादी स्थितियां दिल्ली की सर्दियों में मिलना बहुत मुश्किल है. पर्याप्त बादल और सही वातावरण न होने पर क्लाउड सीडिंग की संभावना काफी घट जाती है. इसके अलावा, यदि क्लाउड सीडिंग दिल्ली में वायु प्रदूषण कम करने के लिए की भी जाए, तो इसका प्रभाव बहुत कम समय तक ही रहता है.

लेखकों ने AQI मॉनिटरिंग स्टेशनों के पास बारिश से पहले और बाद में प्रदूषण स्तर का अध्ययन किया और पाया कि भारी बारिश PM2.5 स्तर को काफी घटाती है, लेकिन ये स्तर 1-5 दिनों के भीतर फिर बढ़ जाते हैं.

स्टडी ने निष्कर्ष में कहा, “दिल्ली की सर्दियों के एयर पॉल्यूशन प्रबंधन के लिए क्लाउड सीडिंग को प्राथमिक या विश्वसनीय रणनीति के रूप में सिफारिश नहीं की जा सकती.” “इसे अधिकतम एक महंगी, आपातकालीन, अल्पकालिक उपाय के रूप में ही देखा जाना चाहिए.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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