(सोमिल अब्रोल और अनिल भट्ट)
पल्लनवाला/जम्मू, सात सितंबर (भाषा)जम्मू के सीमावर्ती गांव लंबे समय से सीमा पार से गोलाबारी से आतंकित रहे हैं और अब बाढ़ ने उनकी जिंदगी को और मुश्किल बना दिया है। पहले उनके घरों पर पाकिस्तान की ओर से दागे जा रहे मोर्टार के गोलों का ही खतरा था लेकिन इस मानसून आई अभूतपूर्व बाढ़ ने उनके घरों को तबाह कर उनका भविष्य अनिश्चित कर दिया है।
पल्लनवाला सेक्टर और आर.एस.पुरा सेक्टर के ग्रामीण भय के साये में जी रहे हैं और अब उनकी मांग पुनर्वास, राहत और ऐसे भविष्य की हैं, जहां उनके बच्चे गोलियों या पानी के बहाव से घरों को बहने के खतरे के बिना बड़े हो सकें।
नियंत्रण रेखा (एलओसी) के नजदीक पल्लनवाला सेक्टर में 26 अगस्त को चिनाब नदी में अचानक जल स्तर बढ़ने से आई बाढ़ से घरों की पहली मंजिल तक गांव जलमग्न हो गए, सड़कें और मवेशी बह गए तथा 3,000 से 4,000 से अधिक लोग विस्थापित हो गए।
गिगरियाल निवासी 71 वर्षीय संतोक सिंह ने कहा, ‘‘हमारे यहां हर साल बाढ़ आती है, लेकिन इस बार यह सबसे भयानक थी। मैंने अपने जीवनकाल में ऐसी तबाही नहीं देखी। इसने नियंत्रण रेखा से सटे हर इलाके को जलमग्न कर दिया। भगवान का शुक्र है कि हम ज़िंदा हैं।’’ उनके परिवार को सैनिकों ने सुरक्षित निकाला था।
सिंह ने कहा, ‘‘मुझे और मेरे परिवार को सेना के जवानों ने बचाया। ऐसा लग रहा है जैसे मुझे दूसरी जिंदगी मिल गई हो। सब कुछ तबाह हो गया है – घर से लेकर रोज़ी-रोटी और खेती तक।’’
इस क्षेत्र के लोगों ने 1999, 2001, 2009, 2011, 2016, 2019 और हाल ही में 2023 में सीमा पार से मोर्टार के गोले और लगातार मशीन गन की गोलीबारी के आतंक को झेला है। उन्हें अपने घरों से भागने और एक महीने से लेकर छह महीने तक की अवधि के लिए देवीगढ़ और परनवाला स्कूलों में बनाए गए शिविरों में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
पल्लनवाला के ग्रामीणों ने भी 1984, 1992, 1998, 2003, 2014 और अब भी आई विनाशकारी बाढ़ का डटकर सामना किया है। हालांकि इन बाढ़ के कारण सशस्त्र बलों को उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना पड़ा और अब वे विद्यालयों में बने राहत शिविरों में रह रहे हैं। करीब पांच हजार से अधिक आबादी वाला पल्लनवाला-खौर क्षेत्र चिनाब और मुनव्वर तवी नदी के बीच निचले इलाके में बसा है।
तहसीलदार के. रणजीत सिंह ने बताया कि 300 से ज्यादा मकान क्षतिग्रस्त हो गए हैं और इस सेक्टर में नियंत्रण रेखा पर गिगरियाल, हमीपुर, नईबस्ती नारायणा, पल्लनवाला, धार चन्नी, पलटन, मोल्लू, सजवाल कुल्ले, चन्नी, नई बस्ती, रंगपुर और पिंडी समेत बीस बस्तियां प्रभावित हुई हैं। उन्होंने बताया कि भोजन उपलब्ध कराने के लिए विद्यालयों और अन्य जगहों पर तीन-चार आश्रय शिविर बनाए गए हैं।
ग्रामीण सुरेंद्र कुमार ने कहा, ‘‘यहां रहने की स्थिति आगे कुआं और पीछे खाई जैसी है। एक तरफ हम पाकिस्तानी गोलीबारी का सामना करते हैं, दूसरी तरफ चिनाब हमारे घरों को तबाह कर देती है।’’ उन्होंने अपने परिवार के नौ सदस्यों के साथ एक स्कूल के राहत शिविर में शरण ली है।
स्थानीय लोगों के मुताबिक 1984 और 1992 में इतनी भीषण बाढ़ देखी गई थी। इस बार, पानी का स्तर निकासी की सीमा से भी ज्यादा बढ़ गया था, जिससे गांवों के घरों की पहली मंज़िल तक पानी में डूब गयी थीं और सड़कें, पुल, मवेशी और खेत बह गए थे।
कुमार ने कहा, ‘‘कुछ ही मिनटों में बाढ़ ने गांव को झील में बदल दिया। घर पहली मंजिल तक डूब गए। अगर सेना हमारी मदद के लिए नहीं आती, तो हमें लगता था कि हम बह जाएंगे।’’
इस सीमावर्ती क्षेत्र के लोग अब बाढ़ और गोलीबारी के बीच असहाय बने रहने की अपनी पुरानी समस्या के स्थायी समाधान की मांग कर रहे हैं। उनकी मांग है कि उन्हें सुरक्षित स्थानों पर स्थायी रूप से बसाया जाए।
पाकिस्तान द्वारा 1999 में की गई गोलीबारी में अपने परिजन गंवा चुके युद्धवीर ने कहा, ‘‘हम वर्षों से अपने गांवों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन एक के बाद एक आने वाली सरकारों ने हमारी दुर्दशा और हर साल हमारे सामने आने वाले आघात से आंखें मूंद कर रखी हैं।’’
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से पुनर्वास की सदियों की लंबी मांग पर ध्यान देने का आग्रह किया ताकि आने वाली पीढ़ियों को परेशानी न हो।
सड़कें बह जाने के कारण गांव जिले से कटे हुए हैं, जिससे लोगों को बाढ़ के पानी को पार कर अपने घरों तक पहुंचने के लिए नावों का उपयोग करना पड़ रहा है।
ग्रामीण गरिमा देवी ने कहा, ‘‘इन क्षेत्रों में पानी और बिजली की आपूर्ति नहीं हो रही है, प्रशासन बुनियादी ढांचे को हुए भारी नुकसान के कारण इन्हें बहाल करने के प्रयास कर रहा है।’’
आर एस पुरा के नंदवाल गांव में बासमती धान की खेती की जाती है लेकिन अगस्त में आई बाढ़ ने उपजाऊ खेतों को बंजर भूमि में बदल दिया है।
किसान नरेश कुमार (65)ने कहा, ‘‘यहां चारों तरफ बासमती धान होता था। अब यह रेगिस्तान में बदल गया है।’ उन्होंने याद करते हुए कहा कि यह तबाही 2010 और 2014 की बाढ़ से भी ज़्यादा भयानक है।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)स्थानीय विधायक नरिंदर रैना ने घोषणा की कि पार्टी के 28 विधायक एक करोड़ रुपये और दो सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्र विकास निधि से प्रभावित लोगों की सहायता के लिए राज्य आपदा राहत कोष (एसडीआरएफ) में 2.5 करोड़ रुपये का योगदान देंगे।
भाषा धीरज नरेश
नरेश
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