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Friday, 22 November, 2024
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कैसे राजीव गांधी मां इंदिरा की ‘तानाशाही’ से अलग एक नई राजनीति लेकर आए

राजीव गांधी ने मां से अलग सरकार को आम आदमी तक पहुंचाया. राजनीति का विकेंद्रकरण हुआ. यह राजनीति पंचायती राज की शक्ल में हमारे सामने आई.

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राजीव गांधी की राजनीति क्या थी? मां इंदिरा से अलग उनकी राजनीति में ‘अलग’ क्या था. उनके बारे में बात करते हुए एक राजनेता के तौर यही सवाल लाजिमी तौर पर सामने आता है. खासकर तब जब सत्ता इंदिरा तक ही सिमटकर रह गई थी, लोगों ने इसे इमरजेंसी में भी बदलते देखा था. ऐसे में एक युवा, नये जोशो-खरोस से भरा प्रधानमंत्री जिसको इतिहास में सबसे बड़ा जनादेश मिला था, जाहिर है कि देश ने उससे एक नये रंग-ढंग की सरकार की उम्मीद लगाई. राजीव गांधी ने मां से अलग सरकार को आम आदमी तक पहुंचाया. राजनीति का विकेंद्रकरण हुआ. यह राजनीति पंचायती राज की शक्ल में हमारे सामने आई.

उस समय रोजगार, महंगाई जैसे बड़े सवाल थे, ऐसे में औद्योगीकरण का विकल्प ही सामने था जिससे कि रोजगार बढ़े. लिहाजा इस युवा इंजीनियर प्रधानमंत्री ने तकनीक आधारित उद्योगों के जाल वाला भारत का सपना देखा और इसे गढ़ने में लग गया. जाहिर तौर पर यह क्रांति से कम नहीं था, लेकिन इस क्रांति से लोगों के मनमुताबिक समस्याओं का हल तुरंत नहीं मिलने वाला था. उन्होंने जो किया उसका नतीजा तकरीबन उनके जाने के लगभग 14 साल बाद हमारे सामने दिखा. 2004 में हम यूपीए सरकार में न्यू इंडिया, डिजिटल इंडिया का बूम देखते हैं, जो कि अभी भी जारी है.

आज एक नई सरकार है और ऐसा कहा जा रहा है कि लोकतंत्र लोकतांत्रिक तरीके से गिरफ्त में है. ऐसे में राजीव गांधी की राजनीति की तरह एक नई राजनीति की जरूरत बढ़ जाती है.

एक युवा इंजीनियर लड़का जो राजनीतिक परिवार से होते हुए भी राजनीति में नहीं आना चाहता था, उसका सपना आसमान में उड़ानें भरना था, और इस सपने को गढ़ा, साकार भी किया. मजबूरियां बनीं, बेमन से राजनीति में उतरा तो यहां भी कमाल कर गया. डिजिडल इंडिया, न्यू इंडिया का सपना देखा. महज पांच साल के अपने एक ही कार्यकाल में  इस सपने को साकार कर गया. राजनीति के पेचीदा राहों में लड़खड़ाया भी, गिरा भी लेकिन 21वीं सदी के भारत को नई उड़ान दे गया.

उसके सपने का मजाक भी बना, कम्प्यूटर ब्वॉय कहके उसका मजाक उड़ाया गया, वही कम्यूटर जिसके बिना आज इस देश का काम नहीं चल सकता. वह आलोचना करने वाले को अपना दुश्मन नहीं समझा, वह नाम कमाया ‘मिस्टर क्लीन’ का, ‘नाइस मैन’ का, लेकिन बेदाग ना रहा. वह लड़का कहता था, ‘आई एम यंग, आई टू हैव ड्रीम’ (मैं जवान हूं और मेरा भी एक सपना है) जाहिर इस अभिमान से गच्चा खाया, इल्जाम लगे, नाकामियां भी हाथ आईं. लेकिन जवान होने का जज्बा दिखाया, अपने सपने को हकीकत बना गया. वह ‘द पॉलिटिशियन विद ए डिफरेंस‘ यानि कि एक अलग तरह का राजनेता कहलाया.

20 अगस्त 1944 को आज ही के दिन राजीव गांधी मुंबई में पैदा हुए. देश आजाद हुआ तो वह महज 3 साल के थे.
वह दून स्कूल से पढ़ाई के बाद लंदन पढ़ने गए. वहां ट्रिनिटी कालेज, कैम्ब्रिज और फिर जल्दी ही लंदन के इम्पीरियल कालेज शिफ्ट हो गए. जहां उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की.


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नहीं थी राजनीति में दिलचस्पी

राजीव ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, जाहिर है कि वह राजनीति में दिलचस्पी नहीं रखते थे. उनके क्लासमेट बताते हैं कि वह साइंस की ही किताबें रखते थे, उनके पास कभी दर्शनशास्त्र, राजनीति या इतिहास की किताबें नहीं रहीं. हालांकि उन्हें भारतीय क्लासिकल म्यूजिक और मॉडर्न म्यूजिक का शौक था. बाकी फोटोग्राफी और रेडियो में भी दिलचस्पी थी.

राजीव गांधी का सबसे बड़ा पैशन उड़ान थी. लंदन से वापस लौटते ही उन्होंने दिल्ली फ्लाइंग क्लब का एंट्रेंस एग्जाम पास कर लिया और कॉमर्शियल पायलट का लाइसेंस हासिल किया. जल्दी ही वह इंडियन एयरलाइंस की घरेलू उड़ानों के पायलट बन गए.

कैम्ब्रिज में पढ़ाई के दौरान ही उनकी वहां अंग्रेजी की पढ़ाई करने वाली इटली की लड़की एंटीनिया माइनो से मुलाकात हुई. जिनसे उन्होंने 1968 में दिल्ली में शादी की और वह सोनिया गांधी बन गईं. उनके दो बच्चे राहुल और प्रियंका हुए.

1980 में एक विमान क्रैश में संजय गांधी मारे गए. मां इंदिरा के दबाव में राजीव को राजनीति मे आना पड़ा, शुरुआत में उन्होंने मना किया लेकिन बाद में झुकना पड़ा और भाई संजय की मौत से खाली हुई सीट अमेठी, यूपी से उपचुनाव जीतकर सांसद बने.

वह राजनीति में पैर जमा ही रहे थे कि 31 अक्टूबर 1984 को मां इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उन पर एक प्रधानमंत्री और पार्टी प्रेसीडेंट के तौर पर भारी जिम्मेदारी आई जिसे उन्होंने पूरी हिम्मत से निभाया.

राजीव ने इस दौरान हुए चुनाव में देश के एक छोर से दूसरे छोर तक अथक यात्रा की. 250 सभाएं कीं और देश के करोड़ों लोगों से मुखातिब हुए. वह महज 40 साल की उम्र में देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने. 543 सीटों में 415 सीटों का विशाल जनादेश पाया. जो भारत में किसी प्रधानमंत्री के लिए आज भी इतिहास है. जाहिर तौर पर देश ने इस युवा इंजीनियर पर बड़ी उम्मीदों, आशाओं, आकांक्षओं का जिम्मा डाल दिया.

उन्होंने बार-बार कहा कि भारत की एकता को बनाए रखने के अलावा उनका मुख्य उद्देश्य इसे 21वीं सदी में ले जाना है.

कैसे अलग थे राजीव गांधी

राजीव गांधी ने इंदिरा की तानाशाही वाली छवि से अलग एक आम आदमी के नेता की छवि गढ़ने की कोशिश की. वह यात्राएं करते थे, ताकि लोगों से सीधे मुखातिब हो सकें. इंटेलीजेंस से जान को खतरे के संकेत को नजरंदाज कर आम आदमी से सीधे मिलते थे, और दुर्भाग्य से यही चीज उनके लिए जानलेवा भी साबित हुई. 21 मई, 1991 की रात 10 बज कर 21 मिनट पर तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में जहां वह चुनावी भाषण देने पहुंचे थे, 30 साल की एक लड़की चंदन का हार लेकर राजीव गांधी की तरफ़ बढ़ी और वह उनके पैर छूने के लिए झुकी, और कमर में बंधे बम का बटन दबा दिया, एक जोरदार धमाके से राजीव गांधी की हत्या कर दी गई.

उनके द्वारा किए गए 5 बड़े काम

1- पंचायती राज की नींव: राजीव गांधी सत्ता के विकेंद्रीकरण के पक्ष में थे, ताकि लोकतंत्र निचले स्तर तक पहुंच सके. जिससे की आम आदमी की भागदारी सत्ता में सीधे-सीधे हो सके. लिहाजा उन्होंने पंचायती राज व्यवस्था की नींव डाली और इसका पूरा प्रस्ताव तैयार किया. 21 मई 1991 में उनकी हत्या के एक साल बाद 1992 में 73वां और 74वां संविधान संशोधन कर देश में पंचायती राज व्यवस्था को लाया गया. यह बहुत बड़ा कदम था. राजीव गांधी की सरकार के 64वें संविधान संशोधन के आधार पर नरसिम्हा राव की सरकार ने 73वां संविधान संविधान संशोधन कर विधेयक पारित कराया. 24 अप्रैल 1993 से पूरे देश में पंचायती राज व्यवस्था लागू हो गई.

2- डिजिटल इंडिया का सपना ऐसे किया साकार: राजीव गांधी को भारत में डिजिटल इंडिया का शिल्पकार, सूचना तकनीक व दूरसंचार का जनक कहा जाता है. गांधी ने कम्प्यूटर और फोन से पूरे भारत को जोड़ने का काम शुरू किया. उन्होंने यह सपना साकार करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी के दिग्गज सैम पैत्रोदा को भारत बुलवाया. पैत्रोदा ने सस्ते फोन की तकनीक उपबल्ध कराई और राजीव का सपना साकार होना शुरू हो गया. 10 साल भारत रहे सैम राजीव के काम से इतने प्रभावित हुए कि भारत की नागरिकता ले ली. सैम ने उस दौरान टेलीफोन, तकनीक मिशन, टीकाकरण, साक्षरता, पेयजल, दुग्ध उत्पाद जैसे शानदार प्रोजेक्ट को पूरा किया.

3- कम्प्यूटर क्रांति: राजीव गांधी ने कम्प्यूटर को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए बड़ा कदम उठाया. इस पर आयात शुल्क घटा दिया. भारतीय रेलवे में कम्प्यूटरीकृत टिकट जारी करने का काम उन्हीं के समय में शुरू हुआ. हालांकि उनके पीएम बनने से पहले 1970 में पब्लिक सेक्टर में कम्प्यूटर डिवीजन शुरू करने के लिए डिपार्टमेंट्स ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स की स्थापना हो गई थी. 1978 में आईबीएम पहली कम्प्यूटर क्षेत्र की कंपनी बन गई थी बाद में और कंपनियां आईं.

आज दुनिया में जिस तरह डिजिटल इंडिया के तौर पर भारत की पहचान बढ़ रही है वह राजीव गांधी की देन है. 2004 से 2014 तक मनमोहन सरकार में डिजिटल इंडिया की इमारत खड़ी हो चुकी थी, इसमें अब नये-नये आयाम जुड़ रहे हैं.

4- नवोदय विद्यालय खोले गए: गांवों के बच्चों को भी अव्वल दर्जे की शिक्षा मिल सके इसके लिए राजीव गांधी ने देशभर में नवोदय विद्यालय खोले. आज देश में कुल 661 नवोदय विद्यालय में प्रतिभाशाली छात्रों का जीवन संवर रहा है. ये आवासीय विद्यालय होते हैं. प्रवेश परीक्षा पास करने वाले छात्रों को इसमें एडमिशन मिलता है. बच्चों को 6वीं से 12वीं तक की शिक्ष फ्री में और हॉस्टल में रहने की सुविधा मिलती है.

गांधी ने उच्च शिक्षा की भी तस्वीर बदली. 1986 में उनकी सरकार में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NPE) की घोषणा हुई. इससे पूरे देश की उच्च शिक्षा व्यवस्था का आधुनिकीकरण हुआ.

5- वोट देने की उम्र सीमा घटाई: प्रधानमंत्री राजीव गांधी को वोट देने की उम्रसीमा 21 वर्ष सही नहीं लगती थी. लिहाजा उन्होंने इसकी सीमा घटाकर 18 वर्ष की. 1989 में संविधान में 61वां संविधान संशोधन किया गया जिससे मताधिकार की उम्र 18 वर्ष की गई और तब से करोड़ों युवा अपना प्रतिनिधि चुन रहे हैं.

सर पर इल्जाम आए और छवि धूल में मिल गई

‘मिस्टर क्लीन’, ‘नाइस मैन’ की छवि बनाने वाले राजीव गांधी पर बोफोर्स घोटाले का दाग लगा, और वो दाग बेशक हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट मे धुल गया. चार्जशीट से उनका नाम हटाया गया, लेकिन उसके बाद कांग्रेस जिस तरह लड़खड़ाई वह आज तक अकेले खड़ी नहीं हो पाई. वह इसके बाद सत्ता में आई तो उसे सहारे की जरूरत पड़ी. बोफोर्स ने राजीव गांधी की छवि को धूल में मिला दिया और कांग्रेस की छवि भी.

नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद 2018 में सीबीआई एक बार फिर बोफोर्स मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची, तो सुप्रीम कोर्ट ने मामले को यह कहते हुए खोलने की अनुमति नहीं दी कि इसकी याद अचानक 13 साल बाद कैसे आई. लिहाजा अब बोफोर्स मामले पर राजनीति बंद हो चुकी है.


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