नई दिल्ली : श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए भारत के बाहर से धन जुटाने का रास्ता तभी अपनाएगा, जब देश के भीतर मिलने वाला योगदान प्रोजेक्ट की लागत पूरी करने के लिए पर्याप्त न हो. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.
ट्रस्ट के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि वे अभी विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) के तहत पंजीकरण के लिए आवेदन करने नहीं जा रहे हैं. मंदिर निर्माण और प्रबंधन का जिम्मा संभालने के लिए गठित किए गए ट्रस्ट के सदस्यों को भरोसा है कि अपेक्षित राशि देश के अंदर ही जुटा ली जाएगी.
ट्रस्ट ने इस प्रोजेक्ट के लिए धन जुटाने के उद्देश्य से 15 जनवरी को 44 दिन का ‘व्यापक जनसंपर्क और चंदा अभियान’ चलाया था. यह अभियान 27 फरवरी को माघ पूर्णिमा पर पूरा हुआ. धन जुटाने के लिए 10 रुपये, 100 रुपये और 1,000 रुपये मूल्य वाले कूपन का इस्तेमाल किया गया.
ट्रस्ट की ओर से विश्व हिंदू परिषद और कई अन्य संगठनों ने धन संग्रह का यह अभियान चलाया था.
ट्रस्ट के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि इस अभियान, जिसमें घर-घर जाकर चंदा जुटाना भी शामिल था, में करीब 2,500 करोड़ रुपये का योगदान मिला है.
वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि भले ही यह अभियान अब बंद हो गया है, लेकिन फंड मिलना जारी है. और ट्रस्ट को उम्मीद है कि अब तक जुटाया गया धन मंदिर निर्माण के लिए पर्याप्त होगा.
उन्होंने आगे कहा, ‘दरअसल इस अभियान के तहत हम भारतीय आबादी के केवल 10 प्रतिशत हिस्से तक ही पहुंच पाए हैं. इसलिए, यह अभियान आधिकारिक तौर पर पूरा होने के बावजूद हम योगदान के लिए हमसे संपर्क करने वाले किसी भी व्यक्ति को मना नहीं कर रहे हैं. ट्रस्ट जल्द ही वास्तविक निर्माण लागत का मूल्यांकन करेगा और फिर इस पर विचार करेगा कि अभियान के दूसरे चरण की जरूरत है या नहीं.
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सबसे ज्यादा योगदान राजस्थान से
वरिष्ठ पदाधिकारियों ने बताया कि अभियान को जिस तरह की जोरदार प्रतिक्रिया मिली है, उसे देखते हुए ट्रस्ट एफसीआरए के तहत पंजीकरण के लिए आवेदन करने नहीं जा रहा है.
ट्रस्ट के एक अन्य सदस्य ने कहा, ‘हम भारत में ही पर्याप्त धन जुटाने लेने के प्रति आश्वस्त हैं. अगर कोई कमी रह जाएगी तभी हम देश से बाहर के योगदान के बारे में सोचेंगे.’
उन्होंने कहा कि अभियान सभी राज्यों में काफी सफल रहा, यहां तक कि जहां गैर-भाजपा सरकारें हैं. ट्रस्ट को अब तक का सबसे अधिक करीब 500 करोड़ रुपये का योगदान राजस्थान से मिला है. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक व्यक्तिगत योगदान के मामले में भी यह राज्य सूची में सबसे ऊपर है.
ऊपर उद्धृत सदस्य ने कहा, ‘यदि आप जनसंख्या के पैमाने पर तुलना करें तो काफी कम जनसंख्या के बावजूद तेलंगाना ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है.’
हालांकि, उत्तर प्रदेश, जहां मंदिर बनने वाला है, से ट्रस्ट मात्र 200 करोड़ रुपये से थोड़ा कम ही जुटा पाया है.
ट्रस्ट के कुछ अन्य सदस्यों ने बताया कि ट्रस्ट ने डोर-टू-डोर अभियान के दौरान एकत्रित धन को जमा करने के लिए एक खास अवधि के लिए वर्चुअल खाते खोले थे. लेकिन चूंकि योगदान मिलना अभी भी जारी है, ऐसे में ये धन अब नियमित खातों में जमा होगा.
एक अन्य सदस्य ने कहा, ‘लेखा-जोखा की समझ रखने वाली युवा पेशेवरों की एक टीम को एकत्रित धन का पूरा रिकॉर्ड रखने का जिम्मा सौंपा गया था. हर दान को रीयल-टाइम के आधार पर ट्रैक किया जा रहा था. आज, बस एक बटन क्लिक पर हम यह जान सकते हैं कि ट्रस्ट के किस वर्चुअल खाते में कितना पैसा जमा हुआ है. अब भी, हम उसी तरह से दान का रिकॉर्ड रख रहे हैं.’
दिप्रिंट को दी गई जानकारी के मुताबिक, मंदिर पत्थरों से निर्मित होगा, स्टील से नहीं. मंदिर निर्माण पर कम से कम 36 से 40 माह लगेंगे और यह 2024 तक तैयार होने की संभावना है. मंदिर का निर्माण कम से कम 1,000 वर्षों के अनुमानित जीवन के साथ किया जाएगा.
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