नई दिल्ली : कांग्रेस ने 5 अगस्त को अयोध्या में मंदिर के भूमि पूजन समारोह में पार्टी नेताओं को आमंत्रित न करने के लिए राम मंदिर न्यास पर निशाना साधा है.
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि इस कार्यक्रम को ‘भाजपा-आरएसएस के विशेष समारोह’ में बदल दिया गया है और नरेंद्र मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि वह राम मंदिर निर्माण का श्रेय लेने की कोशिश कर रही है जबकि यह पिछले साल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का परिणाम है.
न्यास की तरफ से प्रधानमंत्री मोदी, एलके आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी समेत तमाम वरिष्ठ भाजपा नेताओं के अलावा आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और महासचिव सुरेश भैयाजी जोशी को आमंत्रित किया गया है.
पिछले साल नवंबर में आए फैसले के बाद कांग्रेस कार्यसमिति ने निर्णय का स्वागत करने के साथ मंदिर निर्माण के पक्ष में एक प्रस्ताव पारित किया था.
हालांकि, जैसे कि दिप्रिंट ने खबर दी थी, कांग्रेस पार्टी के किसी भी नेता को न्यास की तरफ से न्योता नहीं दिया गया है- यहां तक कि पार्टी अध्यक्ष और रायबरेली की सांसद सोनिया गांधी को भी नहीं. समूचे विपक्ष में से केवल एक नेता को आमंत्रित किया गया है-वो हैं बसपा सांसद रितेश पांडे, जो अयोध्या के अंबेडकर नगर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने कहा, ‘किसी नेता के साथ शिष्टाचार भूल जाओ, लेकिन भगवान राम के प्रति शिष्टाचार दिखाते हुए ही हर राजनीतिक वर्ग से जुड़े लोगों को आमंत्रित किया जाना चाहिए था.’
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खुर्शीद ने कहा, ‘यह आस्था के मामले में भाजपा की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को उजागर करता है. अगर यह आस्था का मामला होता तो वे इस तरह न चुनते, बल्कि न्यौते में सभी को शामिल करते.’
‘न्यास भाजपा-आरएसएस के करीब, मंदिर पर श्रेय ले रहे’
पार्टी के अन्य नेता न्यास और उसके संगठन पर बरसे- और आरोप लगाया कि इसके पदाधिकारी मोदी सरकार के करीबी हैं.
राज्यसभा सदस्य और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा, ‘यह एक जन आंदोलन था, इसलिए अब जब आखिरकार मंदिर निर्माण होने जा रहा है तो इसमें राजनीति को क्यों घुसाना चाहिए? इस आंदोलन की शुरुआत तो आरएसएस के अस्तित्व में आने से काफी पहले ही हो चुकी थी.’
दिग्विजय ने न्यास के सदस्यों के राजनीतिक जुड़ाव को लेकर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा, ‘न्यास विहिप और आरएसएस कार्यकर्ताओं से भरा पड़ा है.’
दिग्विजय सिंह ने इससे पहले शंकराचार्यों, अखाड़ा परिषद और रामानंदी संप्रदाय से जुड़े हिंदू समुदाय के उन लोगों को इससे बाहर रखे जाने पर सवाल उठाए थे, जो मूल रूप से राम मंदिर आंदोलन का हिस्सा थे।
उन्होंने आगे कहा, ‘जिस तरह निमंत्रण भेजे गए हैं, यह इसका पूरा श्रेय भाजपा के खाते में जाने के लिए किया गया है.’ यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और उमा भारती, विनय कटियार और साध्वी ऋतंभरा आदि नेताओं के अलावा योग गुरु रामदेव को भी समारोह के लिए न्यौता भेजा गया है.
‘न्यौता मिलने पर भी नहीं जाएंगे’
एक तरफ जहां अन्य नेताओं ने इस पर जोर दिया कि कांग्रेस को आमंत्रित किया जाना चाहिए था, वहीं पार्टी के वरिष्ठ नेता अनिल शास्त्री ने दिप्रिंट से कहा कि भले ही न्यौता मिले पर वह समारोह में नहीं जाएंगे.
शास्त्री, जो स्वतंत्रता सेनानी लालबहादुर शास्त्री के पुत्र हैं, ने कहा, ‘यह भाजपा का एक कार्यक्रम बन गया है. मुझे भाजपा के कार्यक्रम में क्यों हिस्सा लेना चाहिए? इसलिए, अगर मुझे आमंत्रित किया जाता है, तो भी मैं नहीं जाऊंगा.’
कांग्रेस पार्टी के कई नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा था कि इससे धार्मिक शांति सुनिश्चित होगी.
कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने कहा, ‘लेकिन यह मंदिर का उद्घाटन नहीं है. यह आरएसएस-विहिप के कार्यालय के उद्घाटन की तरह है. मंदिर की असली नींव तो 1989 में ही रख दी गई.’
सिंह विहिप द्वारा 1989 में अयोध्या में मंदिर स्थल पर शिलान्यास या आधारशिला रखे जाने संबंधी कार्यक्रम का उल्लेख कर रहे थे.
विरोध का इरादा नहीं
आमंत्रित नहीं किए जाने पर अपनी नाराजगी दर्शाने के बावजूद कांग्रेस नेताओं ने कहा कि वे मंदिर को लेकर ‘आगे किसी होड़ में शामिल होने’ का इरादा नहीं रखते हैं.
सिंह ने कहा, ‘हम धर्म और राजनीति का कोई घालमेल नहीं चाहते. उन्होंने विपक्ष से किसी को आमंत्रित नहीं किया है, तो हम बहुत कुछ कर भी नहीं सकते.’
खुर्शीद ने कहा कि न्यौता न मिलने पर विरोध प्रदर्शन करना ‘भाजपा के हाथों में खेलने’ जैसा होगा.
उन्होंने आगे कहा, ‘राम मंदिर मुद्दे पर हमें भाजपा और विपक्ष के बीच दूसरे दौर की कोई प्रतिस्पर्द्धा शुरू नहीं करनी चाहिए. हमने सम्मान के साथ निर्णय स्वीकारा था अदालत का फैसला अंतिम है. हमें समय के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है.’
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