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Thursday, 16 May, 2024
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रेलटेल विदेशी फर्म के साथ 1500 करोड़ रुपए के सौदे पर मुहर लगाना चाहता है, जिसे रेलवे ने ठंडे बस्ते में डाल दिया

रेलवे ने भारत के एंटीक्वाटेड सिग्नलिंग सिस्टम को यूरोपियन तकनीक से अपग्रेड करने के लिए पिछले साल रेलटेल के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया था. लेकिन आत्मनिर्भर भारत की वजह से अपना मन बदल लिया था.

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नई दिल्ली: रेलवे द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी रेलटेल एंटरप्राइजेज (आरईएल) के साथ 1,500 करोड़ रुपये के पायलट प्रोजेक्ट के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के एक साल बाद मंत्रालय ने केवल देश भर में स्वदेशी तकनीक लागू करने का फैसला किया है. इस प्रोजेक्ट के तहत भारत की सिग्नलिंग प्रणाली को यूरोपीय तकनीक के साथ बदलने का निर्णय किया गया था.

जैसे ही रेलवे ने आत्मनिर्भर भारत का आवाह्न किया, रेलटेल टेंडर बंद करने के कगार पर पहुंच गया. करोड़ों रुपये के पायलट प्रोजेक्ट की जरूरत पर सवाल उठा रहा है, जिसे ट्रांसपोर्टर बड़े पैमाने पर लागू नहीं करना चाहते हैं.

जून 2019 में, रेल मंत्रालय और आरईएल ने एक परीक्षण के आधार पर चार वर्गों में भारत की प्राचीन एंटीक्वाटेड सिग्नलिंग प्रणाली को आधुनिक बनाने के उद्देश्य से एक पायलट प्रोजेक्ट के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. चुने गए चार खंड दक्षिण मध्य रेलवे के रेनीगुंटा-येरगुंटला खंड पर 165 किमी, पूर्व तट रेलवे के विजयनगरम-पलासा खंड पर 145 किमी, उत्तर मध्य रेलवे के झांसी-बीना खंड पर 155 किमी और मध्य रेलवे के नागपुर-बडनेरा खंड पर 175 किमी लंबा था.

आरईएल भारतीय रेल के तहत पीएसयू के रेलटेल कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है.

रेलटेल ने बाद में सिग्नलिंग प्रोजेक्ट के लिए टेंडर खोला, यूरोपियन ट्रेन कंट्रोल सिस्टम लेवल 2 (ईसीटीएस लेवल 2) की मांग की- जो यूरोप में कार्यरत एक सिग्नलिंग तकनीक है. दिप्रिंट से बात करते हुए रेलटेल कॉरपोरेट कम्युनिकेशन की एक्जीक्यूटिव सुचरिता प्रधान ने कहा कि वे एक महीने में प्रोजेक्ट के लिए एक कंपनी को अंतिम रूप देने के लिए तैयार हैं.

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इस निविदा के लिए बॉम्बार्डियर, हिताची, सीमेंस इत्यादि कंपनियों को 1,000 करोड़ रुपये और 1,500 करोड़ रुपये के मूल्य के अनुमान के साथ शामिल हैं.


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‘केवल स्वदेशी तकनीक’

रेलवे के प्रवक्ता डीजे नारायण ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भर भारत मिशन पर जोर दिया है, पर रेलवे ने आगे बढ़कर सैद्धांतिक रूप से निर्णय लिया कि देश भर में सिग्नल अपग्रेडेशन के लिए केवल स्वदेशी तकनीक का उपयोग किया जाए.

नारायण ने अपने इंटरव्यू में कहा, ‘सैद्धांतिक रूप से भविष्य में हम टीसीएएस (ट्रेन टकराव से बचाव प्रणाली – सिग्नल अपग्रेड के लिए एक स्वदेशी तकनीक) के साथ आगे बढ़ रहे हैं. जहां तक ​​ईटीसीएस का संबंध है, रेलटेल सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए अंतिम निर्णय लेगा.’

रेलटेल द्वारा खोले गए टेंडर का जिक्र करते हुए नारायण ने कहा, ‘यह एक पायलट प्रोजेक्ट के लिए था और पिछले साल खोला गया था, जब हम एक पायलट का संचालन करने और फिर 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार वाले व्यस्त मार्ग पर ईटीसीएस एल2 के लिए जाने की सोच रहे थे (बहुत सीमित मार्ग किमी) और अन्य सभी मार्गों के लिए टीसीएएस के साथ जा रहे थे. पिछले महीने पीएम के आत्मनिर्भर भारत के आह्वान के बाद हमने केवल टीसीएएस के साथ जाने का फैसला किया है.

पिछले साल रेलटेल और मंत्रालय के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए थे. ‘इस पायलट परियोजना के सफलतापूर्वक लागू होने के बाद भारतीय रेलवे नेटवर्क के महत्वपूर्ण और व्यस्त मार्गों पर इसे लागू करने का प्रस्ताव किया गया था.’

यह पूछे जाने पर कि 1,500 करोड़ रुपये के पायलट प्रोजेक्ट की बात क्या थी अगर रेलवे ने टीसीएएस को लागू करने का मन बना लिया, तो नारायण ने कोई जवाब नहीं दिया.

इस बीच, आरईएल के प्रधान ने कहा कि कंपनी अपने ईटीसीएस-आधारित टेंडर को अंतिम रूप देने के साथ आगे बढ़ेगी और जांच करेगी कि प्रौद्योगिकी कहीं और लागू करने से पहले कैसे परफॉर्म करती है. प्रधान ने कहा, ‘रेलवे अपने दम पर टीसीएएस लागू कर रहा है, रेलटेल ईसीटीएस लेवल 2 पर आधारित निविदा के साथ आगे बढ़ रहा है.’

सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि ईटीसीएस एल2 और टीसीएस की लागत में अंतर 10 गुना से अधिक का है, जबकि माना जाता है कि पूर्व में 3.2 करोड़ रुपये प्रति किमी की लागत आती है, यह बाद के लिए प्रति किमी 30 लाख रुपये है.

खुद पीएम मोदी द्वारा 2018 में लागत का मुद्दा उठाया गया है, जब उन्होंने पूरे नेटवर्क में ईटीसीएस एल2 तकनीक को लागू करने के लिए रेलवे की योजना को बंद करने के लिए कथित रूप से लागत का हवाला दिया था.

पीएम ने भारतीय परिस्थितियों में बिना किसी परीक्षण के देश भर में लागू की जा रही ‘एलियन यूरोपीय तकनीक’ को लेकर भी चिंता जताई थी. उन्होंने कथित तौर पर कहा कि भारी यातायात घनत्व वाले खंड में व्यापक परीक्षण पहले किए जाने चाहिए और फिर उनकी सफलता के आधार पर निर्णय किया जाएगा.


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‘पूरी तरह से आत्मनिर्भर भारत के लिए प्रतिबद्ध’

ईटीसीएस की तरह टीसीएएस एक स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (एटीपी) प्रणाली है. नारायण ने कहा कि रेलवे के रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गनाइजेशन (आरडीएसओ) ने भारतीय विक्रेताओं के सहयोग से इसे स्वदेशी रूप से विकसित किया है.

उन्होंने कहा कि भारतीय रेलवे टीसीएएस के साथ पूरी तरह से आगे बढ़ रही है. उन्होंने कहा, ‘भारतीय रेलवे भी पूरी तरह से आत्मनिर्भर भारत मिशन के लिए प्रतिबद्ध है.’

भारतीय रेलवे ने यूरोपीय तकनीक जैसी सुविधाओं के लिए इसे स्वदेशी रूप से विकसित टीसीएएस के डेवलपमेंट को आगे बढ़ाया है. टीसीएएस के उन्नयन के लिए पहचानी जाने वाली विशेषताएं सभी सिग्नलिंग क्षेत्र (पूर्ण और स्वचालित) में काम करने के लिए उपयुक्त होंगी, यह अधिकतम 160 किमी प्रति घंटे की गति पर अस्थायी गति प्रतिबंधों के दूरस्थ परिचय को शामिल करने और अन्य सिग्नलिंग सिस्टम के साथ सुविधाओं को इंटरफेस करने के लिए महत्वपूर्ण है.

उन्होंने कहा, ‘चूंकि टीसीएएस का पूर्ण परिचालन तैनाती से गुजरना बाकी है, इसलिए व्यापक परीक्षण किए गए हैं’.

प्रवक्ता ने कहा, इसके आधार पर पटरियों के बड़े वर्गों को लिया जाएगा.

रेल मंत्रालय ने यह भी कहा कि 26,000 किलोमीटर से अधिक ट्रैक टीसीएएस के तहत लाए जाने की प्रक्रिया में हैं और रेलटेल द्वारा मंगाई गई टेंडर एक पायलट परियोजना है जिसे अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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