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Monday, 22 April, 2024
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छापेमारियां, 106 गिरफ्तारियां, 250 हिरासत में – PFI पर प्रतिबंध लगाने के लिए ऐसे तैयार किया गया ‘मंच’

मंगलवार को की गई दूसरी छापेमारी में वकीलों, शिक्षकों और छात्रों सहित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के के सदस्यों को निशाना बनाया गया. गृह मंत्रालय ने बुधवार को संगठन और उसके सहयोगियों पर पांच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया.

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नई दिल्ली: मंगलवार तड़के लगभग 3 बजे थे जब दिल्ली पुलिस के जवानों ने संगठन के खिलाफ कार्रवाई करते हुए शाहीन बाग और निजामुद्दीन सहित छह जिलों में छापेमारी की थी, ताकि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से जुड़े लोगों को हिरासत में लिया जा सके.

हिरासत में लिए गए लोगों में एक व्यक्ति दरियागंज में एक पब्लिशिंग हाउस चलाता है और उर्दू साहित्य की छपाई करता है . इसके अलावा कुरान पढ़ाने वाला एक शिक्षक और दिल्ली विश्वविद्यालय का एक छात्र भी इनमें शामिल है.

अब तक राष्ट्रीय राजधानी से कार्यकर्ताओं और समर्थकों सहित कुल 30 लोगों को ‘शांति भंग’ करने के लिए हिरासत में लिया गया है. साथ ही पीएफआई के खिलाफ दूसरे दौर की कार्रवाई में छह राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के संगठन के 250 कथित सदस्यों को हिरासत किया गया था.

दिप्रिंट को पता चला है कि ये ‘पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने’ की कवायद और ‘प्रदर्शनों, हिंसक विरोध और हमलों पर अंकुश लगाने’ के लिए एक ‘रणनीति’ का हिस्सा थी. सूत्रों ने यह भी पुष्टि की कि एनआईए और ईडी के द्वारा पहले दौर की गिरफ्तारी के बाद, कई राज्यों की स्थानीय पुलिस बलों की ओर से की गई कार्रवाई इसी रणनीति का अगला हिस्सा थी.

मंगलवार को हिरासत में लिए गए लोगों की पहचान पिछली छापेमारी में गिरफ्तार किए गए लोगों से पूछताछ के बाद की गई. फिर उन्हें ‘ समस्या पैदा करने’ से रोकने के लिए एहतियातन हिरासत में रखा गया.

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छापेमारी के बाद गृह मंत्रालय ने बुधवार को पीएफआई और उसके सहयोगी संगठन को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत पांच साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया. मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, पीएफआई और उसके सहयोगियों के ‘ग्लोबल टेरर लिंक’ मिले थे और वे कई आतंकी घटनाओं को अंजाम देने, देश में आतंक फैलाने और देश की सुरक्षा व्यवस्था को खतरे में डालने के इरादे से’ काम कर रहे थे.

मंगलवार को की गई कार्रवाई एक हफ्ते से भी कम समय पहले उठाए गए कदम के बाद की गई है. उस दौरान कथित रूप से संगठन से जुड़े 106 लोगों को गिरफ्तार किया गया था.

दिप्रिंट से बात करते हुए पीएफआई के प्रवक्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘बीजेपी शासित राज्यों में एहतियातन हिरासत के नाम पर बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां की जा रही हैं. यह और कुछ नहीं बल्कि पीएफआई को निशाना बनाकर केंद्र सरकार के विच हंट के खिलाफ लोकतांत्रिक विरोध के अधिकार पर रोक लगाना है. यह निरंकुश व्यवस्था के तहत काफी स्वाभाविक और अपेक्षित है.’


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‘घर में घुसे, लोगों को घेरा’

जब दिप्रिंट प्रकाशक के घर गया तो उसकी पत्नी ने दरवाजा खोलने में काफी आना-कानी की.

उसने आरोप लगाते हुए कहा कि सिविल ड्रेस में कुछ लोग तड़के तीन बजे अचानक उसके घर में घुस आए. उससे उसके पति के ठिकाने के बारे में पूछा. उन्होंने बच्चों को भी जगाया और घर में ‘तोड़फोड़’ की. महिला के मुताबिक, जब उसने कहा कि उसे नहीं पता कि उसका पति कहां है, तो उन्होंने उसके साथ मारपीट भी की.

एक दौर की पूछताछ के बाद वह टूट गई और उन्हें अपने पति के पास ले गई, जो उसके दोस्त के घर पर रह रहा था.

क्षेत्र में एक पीएफआई सदस्य के अनुसार, प्रकाशक पीएफआई का नियमित सदस्य नहीं था. वह सिर्फ ‘अभियानों के लिए पोस्टर छापने’ में शामिल था.

सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘वह पिछले कुछ समय से हमारे लिए पोस्टर छाप रहा है, लेकिन वह हमारा सक्रिय सदस्य नहीं है.’

हिरासत में लिए गए डीयू का छात्र, जो मानवाधिकार संगठनों के राष्ट्रीय समन्वय (एनसीएचआरओ) से जुड़ा है, को पुलिस ने शाहीन बाग से उठाया था.

एनसीएचआरओ को पीएफआई से जोड़ा गया है. पहले दौर की छापेमारी में गिरफ्तार किए गए लोगों में संगठन के महासचिव पी कोया और सचिव ए मोहम्मद युसूफ भी शामिल थे.

दिप्रिंट से बात करते हुए बीए तृतीय वर्ष के छात्र के एक मित्र ने कहा, ‘वह सीधे पीएफआई से नहीं जुड़ा हैं, लेकिन एनसीएचआरओ के लिए स्वयंसेवी कार्य करता रहा है. वह अतीत में कई विरोधों और आंदोलनों का हिस्सा रहा है चाहे वह आइसा या किसी अन्य संगठन द्वारा आयोजित किया गया हो. वह सीएए के विरोध प्रदर्शन का भी हिस्सा था.’

उसने कहा, ‘वास्तव में, हम कुछ विरोध प्रदर्शनों में मिलने के बाद दोस्त बन गए.’

पीएफआई ने मंगलवार को एक बयान में कहा कि छापेमारी, गिरफ्तारी और हिरासत में लेना पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के बारे में लोगों में आतंक की भावना पैदा करने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास है.

पीएफआई के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘क्रैकडाउन’ शब्द जिसका इस्तेमाल एजेंसियों और मीडिया द्वारा गिरफ्तारी और छापे के बारे में बताने के लिए किया जा रहा है, खुद ही शासन के इरादे को संगठन पर कलंक लगाने और इसके परिणामस्वरूप आम जनता को आतंकित करने का संकेत देता है. गिरफ्तार नेता हमेशा या तो अपने आवासों पर या संगठन के कार्यालयों में या सार्वजनिक कार्यक्रमों में मौजूद रहते हैं और गिरफ्तारी के समय भी यही स्थिति थी.’

‘विरोध में धरना देने’ और ‘दंगे जैसी स्थिति’ से बचने के लिए की गई कार्रवाई

खुफिया सूत्रों के मुताबिक, पिछले हफ्ते राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की छापेमारी के बाद, ‘दंगा जैसी स्थिति’ और ‘धरना-प्रदर्शन’ से बचने के लिए इसके सदस्यों को हिरासत में लेने के लिए स्थानीय पुलिस को दूसरी बार इस काम पर लगाया गया था.

पीएफआई ने पहले दौर की गिरफ्तारी के खिलाफ पिछले शुक्रवार को हड़ताल की थी. उस दौरान केरल केरल में पत्थर और पेट्रोल बम फेंके गए. संगठन ने 12 घंटे की हड़ताल का आह्वान किया था.

राज्य में विरोध प्रदर्शनों के बाद 500 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया और 400 अन्य को एहतियातन हिरासत में लिया गया था.

तमिलनाडु में पिछले गुरुवार को कोयंबटूर में वीकेके मेनन रोड पर भाजपा कार्यालय और पास की एक कपड़ा दुकान पर पेट्रोल बम फेंके गए. मदुरै, पोलाची, इरोड और थूथुकुडी में भी इसी तरह की घटनाएं सामने आई हैं.

इसके बाद तमिलनाडु भाजपा प्रमुख के अन्नामलाई ने भाजपा, आरएसएस के पदाधिकारियों के लिए पुलिस सुरक्षा की मांग की.

दूसरे दौर की छापेमारी मंगलवार को कर्नाटक, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, असम, महाराष्ट्र और तेलंगाना में की गई. इस बार निशाने पर पीएफआई के मध्य क्रम के सदस्य थे, जिनमें वकील, शिक्षक और यहां तक कि एक छात्र भी शामिल है.

यह सभी राज्यों के साथ तालमेल के साथ की गई कार्रवाई का ही हिस्सा था, जहां कई एजेंसियों के 15,00 से ज्यादा कर्मचारियों ने 15 राज्यों में पीएफआई से संबंधित 93 जगहों पर एक साथ तड़के 3 बजे छापेमारी की और 106 लोगों को गिरफ्तार किया.

एमएचए छह महीने के लिए किसी संगठन को गैरकानूनी बताते हुए उस पर प्रतिबंध लगाने की अधिसूचना जारी कर सकता है. फिर मामला एक ट्रिब्यूनल के पास जाएगा और प्रतिबंध को बरकरार रखने के लिए संगठन के खिलाफ सबूतों की बारीकी से जांच की जाती है. यह मामला गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) ट्रिब्यूनल के पास जाएगा.

एमएचए को यह सुनिश्चित करना है कि संगठन के खिलाफ पर्याप्त सबूत हों, जिसमें इसके सदस्यों के खिलाफ मामलों की संख्या, उन मामलों की प्रकृति, दायर की गई चार्जशीट और अदालतों द्वारा संज्ञान, सदस्यों की सजा, आदि शामिल हैं. पर्याप्त मजबूत सबूतों के अभाव में ट्रिब्यूनल प्रतिबंधों को रद्द भी कर सकता है.

PFI पर ‘टेरर लिंक्स, हिट लिस्ट’ का आरोप

मंगलवार की छापेमारी में कुल 250 लोगों को हिरासत में लिया गया था. हिरासत में लिए गए 72 लोगों के साथ कर्नाटक सबसे आगे है, इसके बाद उत्तर प्रदेश (44), असम (25), दिल्ली (30), महाराष्ट्र (43), गुजरात (15) और मध्य प्रदेश (21) का नंबर आता है.

सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों के अनुसार, PFI नेताओं पर ‘मुस्लिम युवाओं को इस्लामिक स्टेट, लश्कर-ए-तैयबा और अल कायदा में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने’, प्रचार अभियान चलाने और ‘आतंकवादी गतिविधियों’ के लिए खाड़ी से धन जुटाने के लिए जांच की जा रही है.

जांचकर्ताओं ने यह भी कहा कि नेताओं ने ‘हत्या करने के लिए भारतीय नेताओं की एक हिट-लिस्ट’ बनाई थी.

उन्होंने आगे दावा किया, ‘पीएफआई ने जुलाई में पीएम मोदी की पटना यात्रा के दौरान गड़बड़ी पैदा करने के लिए संवेदनशील स्थानों पर हमले शुरू करने और प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने के लिए घातक हथियारों और विस्फोटकों को इकट्ठा’ करने की गतिविधियों में शामिल पाया गया था.

ईडी ने यह भी दावा किया था कि पीएफआई ने ‘भारत की एकता, अखंडता के लिए खतरा पैदा करने वाला साहित्य’ तैयार किया, अपने पास रखा और उसे छापा भी.

एनआईए के एक सूत्र ने कहा, ‘यह उनके नेटवर्क, जो पूरे देश में फैल रहा है, को बाधित करने के लिए की गई एक कार्रवाई है.’

पिछले हफ्ते छापेमारी में पीएफआई के पूर्वोत्तर क्षेत्रीय सचिव अमीनुल हक समेत असम से 11 गिरफ्तारियां की गईं. इस राज्य में 22 सितंबर से अब तक कुल 36 लोगों को हिरासत में लिया जा चुका है.

असम पुलिस की एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, 22 सितंबर से 10 गिरफ्तारियां धारा 120-बी (आपराधिक साजिश), 124-ए (देशद्रोह), 153-ए (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और IPC की धारा 353 (लोक सेवक को उसके कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) के तहत की गईं.

असम पुलिस ने दावा किया कि पीएफआई नेता नागरिकता संशोधन अधिनियम, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर, नई राज्य शिक्षा नीति और मवेशी संरक्षण अधिनियम सहित कई मुद्दों पर ‘धार्मिक अल्पसंख्यकों के सांप्रदायिक मनोविकारों और भावनाओं को भड़काने में लिप्त थे.’

पिछले शनिवार को असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा था, ‘हमारे पास खुफिया जानकारी है कि पीएफआई ने एक इकोसिस्टम बनाया है जो कुछ लोगों को भारतीय उपमहाद्वीप (एक्यूआईएस) में आईएसआईएस और अल कायदा द्वारा प्रायोजित कट्टरपंथी मॉड्यूल में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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