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Sunday, 28 April, 2024
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PFI को MHA ने 5 साल के लिए ‘गैरकानूनी’ घोषित किया, ‘वैश्विक आतंकी संगठनों से जुड़े’ होने के सबूत मिले

सूत्रों के मुताबिक, 'संगठन पर रोक लगाने' का काम जारी था. पिछले हफ्ते एनआईए और ईडी की एकजुट होकर की गई छापेमारी और मंगलवार को लोकल पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई इसी का हिस्सा था.

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नई दिल्ली: गृह मंत्रालय ने बुधवार को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और उसके सहयोगियों को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत ‘गैरकानूनी संगठन’ घोषित करते हुए पांच साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया है.

मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, पीएफआई और उसके सहयोगियों के ‘ग्लोबल टेरर लिंक’ पाए गए और वे कई ‘आतंकी मामलों’ में शामिल थे, जिनका मकसद ‘देश में आतंक मचाना, राज्य की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था को खतरे में डालना था.’

इसके अलावा जिन पीएफआई सहयोगियों को ‘गैरकानूनी’ घोषित किया गया है, उनमें रिहैब इंडिया फाउंडेशन, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया इमाम काउंसिल, नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन, नेशनल वूमेन फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन (केरल) शामिल हैं.

सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) का नाम संबद्धों की सूची में नहीं था. इसे प्रतिबंधित नहीं किया गया है क्योंकि यह एक पंजीकृत राजनीतिक दल है.

27 सितंबर की अधिसूचना बुधवार सुबह 5.43 बजे सार्वजनिक की गई.

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सुरक्षा सेवाओं के सूत्रों के अनुसार, ‘संगठन पर प्रतिबंध लगाने’ की दिशा में पहले से काम चल रहा था और पिछले सप्ताह राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की समन्वित छापेमारी के साथ-साथ स्थानीय पुलिस बलों द्वारा मंगलवार को दूसरी कार्रवाई की गई थी. यह इस संगठन को बैन करने की तैयारियों का हिस्सा था.

एमएचए छह महीने के लिए किसी संगठन को गैरकानूनी बताते हुए उस पर प्रतिबंध लगाने की अधिसूचना जारी कर सकता है. फिर मामला एक ट्रिब्यूनल के पास जाएगा और प्रतिबंध को बरकरार रखने के लिए संगठन के खिलाफ सबूतों की बारीकी से जांच की जाती है. यह मामला गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) ट्रिब्यूनल के पास जाएगा.

एमएचए को यह सुनिश्चित करना है कि संगठन के खिलाफ पर्याप्त सबूत हों, जिसमें इसके सदस्यों के खिलाफ मामलों की संख्या, उन मामलों की प्रकृति, दायर की गई चार्जशीट और अदालतों द्वारा संज्ञान, सदस्यों की सजा, आदि शामिल हैं. पर्याप्त मजबूत सबूतों के अभाव में ट्रिब्यूनल प्रतिबंधों को रद्द भी कर सकता है.

अब तक भारत में 39 प्रतिबंधित संगठनों पर प्रतिबंध लगाया गया है, जिनमें स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी), यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया, सिख फॉर जस्टिस और जम्मू एंड कश्मीर लिबरेशन फ्रंट समेत अन्य शामिल हैं.

एमएचए अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि अगर संगठन को अभी प्रतिबंधित नहीं किया गया, तो वह इस अवसर का ‘अपनी विध्वंसक गतिविधियों को जारी रखने’, ‘आतंकी घटनाओं को अंजाम देने’, ‘राष्ट्र-विरोधी भावनाओं का प्रचार करने और समाज के एक विशेष वर्ग को कट्टरपंथी बनाने’ व ‘देश की अखंडता, सुरक्षा और संप्रभुता को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों को बढ़ाने’ के लिए करता रहेगा.


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‘गैरकानूनी गतिविधियां, आतंकी संगठनों से संबंध, आतंकवाद को समर्थन’

एमएचए की अधिसूचना के अनुसार, पीएफआई और उसके सहयोगी संगठन ‘गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त हैं, जो देश की अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा के लिए खतरा है’ और ‘देश की सार्वजनिक शांति और सांप्रदायिक सद्भाव को भंग करने और देश में उग्रवाद का समर्थन करने की क्षमता’ रखते हैं.

इसमें आगे कहा गया है कि पीएफआई के कुछ संस्थापक सदस्य सिमी नेता हैं और पीएफआई के जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) के साथ उनके संबंध हैं. ये दोनों ही प्रतिबंधित संगठन हैं.

गृह मंत्रालय ने कहा, ‘ग्लोबल टेरर ग्रुप के साथ पीएफआई के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के कई उदाहरण हैं. PFI के कुछ कार्यकर्ता इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (ISIS) में शामिल हो गए और उन्होंने सीरिया, इराक एवं अफगानिस्तान में आतंकी गतिविधियों में भाग लिया है.

अधिसूचना में कहा गया है, ‘पीएफआई और उसके सहयोगी संगठन देश में असुरक्षा की भावना को बढ़ावा देकर एक समुदाय के कट्टरपंथ को बढ़ाने के लिए गुप्त रूप से काम कर रहे हैं, जिसकी पुष्टि इस तथ्य से होती है कि कुछ पीएफआई कैडर अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों में शामिल हो गए. ISIS से जुड़े इन PFI कैडरों में से कुछ संघर्ष में मारे गए हैं और कुछ को राज्य पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों ने गिरफ्तार किया है.’

इसमें कहा गया है, ‘पीएफआई कई आपराधिक और आतंकी मामलों में शामिल है और देश के संविधान अनादर कर रहे हैं.’

‘नेटवर्क का विस्तार, अवैध फंड’

एमएचए अधिसूचना में कहा गया है कि पीएफआई ने ‘युवाओं, छात्रों, महिलाओं, इमामों, वकीलों या समाज के कमजोर वर्गों के बीच अपनी पहुंच बढ़ाने के मकसद से अपने संगठन का विस्तार किया और इसकी सदस्यता, प्रभाव बढ़ाने व फंड रेजिंग करने के लिए अपने सहयोगियों संगठनों को बनाया है.’

इसमें आगे कहा गया है कि ‘ये गैरकानूनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए अपनी क्षमताओं को मजबूत करने के लिए किया गया था. इन सहयोगियों संगठनों ने पीएफआई को हर तरीके से मजबूत बनाने में काफी मदद की.’

एमएचए ने आगे कहा कि पीएफआई और उसके सहयोगी सामाजिक-आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक संगठनों के रूप में खुले तौर पर काम करते हैं, लेकिन लोकतंत्र की अवधारणा को कम करने की दिशा में काम कर रहे समाज के एक विशेष वर्ग को कट्टरपंथी बनाने के लिए एक गुप्त एजेंडा हमेशा इनके साथ रहा है.’

पीएफआई को मिलने वाले फंड को लेकर अधिसूचना में कहा गया है कि पीएफआई के पदाधिकारी और कार्यकर्ता अन्य लोगों के साथ सोची-समझी साजिश के तहत भारत और विदेशों से बैंकिंग चैनलों के माध्यम से और हवाला डोनेशन के जरिए फंड प्राप्त कर रहे थे.

उनके मुताबिक, इन फंड्स को कई खातों का इस्तेमाल करके ट्रांसफर, लेयरिंग और एकीकरण के जरिए वैध दिखाने की कोशिश की गई. और फिर ‘भारत में विभिन्न आपराधिक, गैरकानूनी और आतंकवादी गतिविधियों’ को अंजाम देने के लिए इस पैसे का इस्तेमाल किया गया.

अधिसूचना में कहा गया है, ‘पीएफआई की ओर से अपने कई बैंक खातों के संबंध में जमा किए गए पैसे के स्रोत खाताधारकों के वित्तीय प्रोफाइल द्वारा समर्थित नहीं थे और पीएफआई की गतिविधियां उनके घोषित उद्देश्यों के अनुसार नहीं चलाई जा रही थीं.’

उसमें आगे कहा गया, ‘इसलिए, आयकर विभाग ने आयकर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) की धारा 12ए या 12एए के तहत पीएफआई को दिए गए पंजीकरण को रद्द कर दिया.’


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‘विध्वंसक गतिविधियों में लिप्त’

कहा गया कि पीएफआई के खिलाफ विभिन्न मामलों में की गई जांच से पता चला है कि ‘धन’ और ‘बाहर से वैचारिक समर्थन’ के साथ यह ‘देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा’ बन गया है.

अधिसूचना के मुताबिक, ‘इसके कार्यकर्ता बार-बार हिंसक और विध्वंसक कार्यों में लिप्त पाए गए हैं. पीएफआई के आपराधिक हिंसक कामों में एक कॉलेज के प्रोफेसर के शरीर के एक हिस्से को काटना, अन्य धर्मों को मानने वाले संगठनों से जुड़े व्यक्तियों की निर्मम हत्याएं, प्रमुख लोगों और जगहों को निशाना बनाने के लिए विस्फोटक हासिल करना और सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करना शामिल है.’

इसमें कहा गया है कि पीएफआई कैडरों द्वारा ‘सार्वजनिक शांति भंग करने और जनता के मन में आतंक का डर बैठाने’ के एकमात्र उद्देश्य से नृशंस हत्याएं की गई हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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