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Tuesday, 15 October, 2024
होमदेशPFI क्या है, SIMI और अन्य प्रतिबंधित आतंकी संगठनों से क्या है ‘लिंक’, हर एजेंसी की हिटलिस्ट में क्यों है ये संगठन

PFI क्या है, SIMI और अन्य प्रतिबंधित आतंकी संगठनों से क्या है ‘लिंक’, हर एजेंसी की हिटलिस्ट में क्यों है ये संगठन

एनआईए ने 2017 में पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश करते हुए एक रिपोर्ट फाइल की थी. दिल्ली और यूपी पुलिस के साथ-साथ ईडी की तरफ से भी 2020 के दंगों और हाथरस में बवाल समेत विभिन्न मामलों में इस संगठन की भूमिका की जांच की जा रही है.

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नई दिल्ली: सीएए विरोधी प्रदर्शनों और पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगों के लिए कथित तौर पर फंडिंग से लेकर हाथरस में हिंसा भड़काने तक में आरोपी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर पहले भी कई मौकों पर ‘देशद्रोह’, ‘सरकारी मशीनरी को बाधित करने’, ‘धार्मिक नफरत को बढ़ाने’ और ‘सांप्रदायिक हिंसा भड़काने की साजिश’ में लिप्त होने के आरोप लगते रहे हैं.

विभिन्न मामलों में सौ से अधिक पीएफआई सदस्यों के खिलाफ जांच कर रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने गुरुवार को देशभर में छापेमारी कर 45 लोगों को गिरफ्तार किया. बाकी 61 को स्थानीय पुलिस और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गिरफ्तार किया है, जिनके द्वारा पीएफआई के खिलाफ 2019 के सीएए विरोध प्रदर्शनों और 2020 के पूर्वोत्तर दिल्ली दंगों को ‘फंड’ करने के आरोपों की जांच की जा रही है.

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल 2020 के दंगों के लिए ‘लॉजिस्टिक मुहैया कराने’ में संगठन की भूमिका की जांच कर रही है, जबकि यूपी पुलिस सितंबर 2020 में हाथरस मामले के बाद वहां अशांति फैलाने के आरोप में पीएफआई सदस्यों के खिलाफ दर्ज 19 से अधिक मामलों की जांच कर रही है.

केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन की गिरफ्तारी का कारण भी पीएफआई के साथ उनके लिंक को ही बताया गया था. गौरतलब है कि कप्पन को हाथरस जाते समय पकड़ा गया था. यूपी पुलिस ने पीएफआई पर ‘देशद्रोह, साजिश, शांति भंग करने और धार्मिक घृणा को बढ़ावा देने’ का आरोप लगाया है.

जांच एजेंसियों का दावा है कि पीएफआई ने ‘पिछले कुछ सालों में अपनी जड़ें दूर-दूर तक जमा लीं हैं’, लेकिन संगठन के एक प्रवक्ता ने कहा कि एजेंसियां ‘जानबूझकर संगठन के पीछे पड़ी हैं.’

पीएफआई की उत्पत्ति और सिमी के साथ लिंक

पीएफआई खुद को भारत में हाशिये पर रहने वाले सभी वर्गों को सशक्त बनाने के उद्देश्य के साथ शुरू किया गया एक ‘नव-सामाजिक आंदोलन’ बताता है.

2006 में इसका गठन मुस्लिम हितों के लिए काम करने वाले तीन समूहों केरल स्थित नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट (एनडीएफ), कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी (केएफडी) और तमिलनाडु स्थित मनिथा नीथी पासराय (एमएनपी) के विलय का नतीजा था.

यद्यपि, इसका असर सबसे ज्यादा केरल में ही है, लेकिन पीएफआई ने खुद को पूरे देश में विस्तारित कर लिया है और जैसा एनआईए कहती है, लगभग 23 राज्यों में इसकी मौजूदगी है.

अपनी स्थापना के बाद से ही पीएफआई पर प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) की एक शाखा होने का आरोप लगता रहा है क्योंकि पीएफआई के कई सह-संस्थापक सिमी नेता हैं. इनमें पीएफआई के वाइस-चेयरमैन ईएम अब्दुल रहमान भी शामिल हैं, जो 1982 और 1993 के बीच सिमी के जनरल सेक्रेटरी रहे थे.

इसी तरह, पीएफआई की राजनीतिक शाखा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के अध्यक्ष ई. अबूबकर ने 1982 से 1984 के बीच सिमी की केरल इकाई का नेतृत्व किया था, जबकि पीएफआई की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य प्रोफेसर पी. कोया सिमी और एनडीएफ दोनों के संस्थापक सदस्य रहे हैं.

इस दावे को निराधार बताते हुए कि उनका संगठन सिमी की ही एक छद्म इकाई है, पीएफआई नेता कहते हैं कि उनका मूल संगठन एनडीएफ 1993 में अस्तित्व में आया था, यानी पर 2001 में पहली बार सिमी पर प्रतिबंध लगने से बहुत पहले ही इसका गठन हो चुका था.

कोया ने फरवरी में दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने 1982 में सिमी को छोड़ दिया था और लगभग एक दशक बाद 1993 में—1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में ‘हिंदुत्व फासीवाद के उदय’ के बाद—एनडीएफ की स्थापना की थी.

उनका कहना था, ‘इसी फासीवाद का नतीजा था कि एल.के. आडवाणी और अन्य लोगों के नेतृत्व में बाबरी मस्जिद को ढहा दिया गया. तभी यह एकदम स्पष्ट हो गया था कि पारंपरिक मुस्लिम संगठन मुस्लिम समुदाय की चिंताओं को पुख्ता तौर पर उठाने में सक्षम नहीं हैं.’

कोया ने यह भी बताया था कि सिमी पर प्रतिबंध लगाने से पहले 10 साल तक एनडीएफ और सिमी समानांतर संगठन थे और उनकी विचारधारा अलग थी. उनका दावा था, ‘सिमी की नजर में इस्लाम भारत की समस्या का एकमात्र समाधान है, लेकिन हमारा मानना है कि भारत कई धर्मों वाला एक बहुलतावादी देश है. हम सिमी के नजरिये से कभी भी सहमत नहीं रहे हैं.’

कोया पीएफआई के उन सदस्यों में शामिल हैं जिन्हें एनआईए ने गुरुवार को गिरफ्तार किया था.


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पीएफआई के खिलाफ क्या हैं आरोप

सीएए विरोधी प्रदर्शन:—

जनवरी 2021 में गृह मंत्रालय (एमएचए) को भेजी एक रिपोर्ट में ईडी ने आरोप लगाया कि पीएफआई ने ‘6 जनवरी 2020 तक सीएए बिल के खिलाफ प्रदर्शनों और घेराव को वित्तपोषित करने के लिए धन जुटाया था.’ ईडी सूत्रों के मुताबिक, एजेंसी को पीएफआई के खिलाफ 2018 में मनी लॉन्ड्रिंग कानून (पीएमएलए) के तहत जांच के दौरान ही यह जानकारी ‘अचानक हाथ’ लगी.

ईडी का दावा था कि बैंक लेनदेन के आधार पर यह पता चलता है कि पीएफआई से संबंधित खातों में 120.5 करोड़ रुपये जमा किए गए थे, और यह भी कि ‘इन खातों में राशि जमा होने और निकासी की तारीखों का देश के कुछ हिस्सों में सीएए विरोधी प्रदर्शन की तारीखों के साथ सीधा संबंध नजर आता है.

रिपोर्ट में यह भी आरोप लगाया गया है कि नई दिल्ली में सिंडिकेट बैंक की नेहरू प्लेस ब्रांच के पीएफआई एकाउंट के माध्यम से उत्तर प्रदेश के बहराइच, बिजनौर, हापुड़, शामली जिलों और डासना क्षेत्र के कुछ खातों में ‘बड़ी मात्रा में नकदी जमा की गई थी.’

ईडी ने पीएफआई और इसी से जुड़े एक अन्य संगठन रिहैब इंडिया फाउंडेशन के खातों से धन निकासी और 4 दिसंबर 2019 और 6 जनवरी 2020 के बीच सीएए के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसक प्रदर्शनों को लेकर बाकायदा एक तुलनात्मक चार्ट भी बनाया.

हालांकि, पीएफआई के महासचिव मोहम्मद अली जिन्ना ने ईडी के दावों को ‘पूरी तरह से निराधार’ बताते हुए खारिज कर दिया था.

2020 के दिल्ली दंगे:—

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 2020 के दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में अपने आरोपपत्र में पीएफआई पर ‘दंगाइयों को साजो-सामान और वित्तीय सहायता’ मुहैया कराने का आरोप लगाया था. आरोपपत्र में यह भी कहा गया कि जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के स्कॉलर उमर खालिद ‘पीएफआई के सदस्यों के साथ लगातार संपर्क में थे, जिसकी तरफ से फंडिंग की जा रही थी.’

पीएफआई के अध्यक्ष ओ.एम.ए. सलाम ने सीएए विरोधी प्रदर्शनों का हिस्सा रहे छात्र कार्यकर्ताओं के खिलाफ जांच को ‘विच-हंट’ करार देते हुए दावा किया था कि संगठन के खिलाफ जांच ‘राजनीति प्रेरित’ है.

मार्च 2020 में दंगों से जुड़े एक अन्य मामले में ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग और ‘फंडिंग’ के जरिये अशांति फैलाने के आरोप में पीएफआई के खिलाफ मामला दर्ज किया. इसने यह भी आरोप लगाया था कि आम आदमी पार्टी (आप) के निलंबित पार्षद ताहिर हुसैन—जिन्हें दंगों में कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार किया गया था—ने पीएफआई से धन लेने के बदले दंगाइयों को ‘लॉजिस्टिक्स मुहैया कराया.’

तब्लीगी जमात से लिंक:—

अप्रैल 2020 में दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने पीएफआई और तब्लीगी जमात के बीच लिंक का दावा किया. गौरतलब है कि तब्लीगी जमात एक इस्लामिक संगठन है जो कोविड की पहली लहर चरम पर होने के दौरान दिल्ली के निज़ामुद्दीन मरकज में एक मजहबी सम्मेलन आयोजित करने को लेकर विवादों के घेरे में आया था.

सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि ईडी ने तब्लीगी जमात के नेताओं के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के एक अलग मामले में अपनी जांच के दौरान पाया कि ‘आयोजन के लिए धन जुटाने में पीएफआई भी शामिल था.’

मंगलुरु में हिंसा:—

दिसंबर 2019 में कर्नाटक के मंगलुरु में सीएए के विरोधी प्रदर्शन हिंसक हो जाने पर पुलिस फायरिंग में दो लोगों की मौत हो गई. हफ्तों बाद, मंगलुरु पुलिस ने दावा किया कि उसे ऐसे अहम साक्ष्य मिले हैं जिससे पता चलता है कि पीएफआई और एसडीपीआई से जुड़े समूहों ने हिंसा से पहले ‘भड़काऊ संदेश’ साझा किए थे.

दो संदिग्धों अबुबकर सिद्दीकी और मोइदीन हमीज को गिरफ्तार किया गया और हिंसक गतिविधियों के सिलसिले में पीएफआई और एसडीपीआई सदस्यों सहित 30 अन्य को नोटिस जारी किया गया. सिद्दीकी और हमीज पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए (देशद्रोह) सहित कई धाराओं में आरोप लगाए गए.

सोने की तस्करी:—

एनआईए ने जुलाई 2020 में कहा था कि वह उसी माह के शुरू में केरल में सामने आए सोने की तस्करी के रैकेट और पीएफआई के बीच किसी तरह के संभावित लिंक की जांच कर रही है.

5 जुलाई 2020 को तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट पर तैनात सीमा शुल्क अधिकारियों ने तिरुवनंतपुरम में संयुक्त अरब अमीरात के वाणिज्य दूतावास को भेजे जा रहे राजनयिक बैगेज से 15 करोड़ रुपये मूल्य का 30 किलोग्राम सोना जब्त किया था.

मामला एनआईए को सौंपे जाने के बाद केंद्रीय एजेंसी के सूत्रों ने आरोप लगाया कि तस्करी के सोने का इस्तेमाल पीएफआई द्वारा ‘राष्ट्र-विरोधी’ गतिविधियों को फंड करने के लिए किया जा सकता है.

‘लव जिहाद’:—

2017 में हादिया ‘लव जिहाद’ के विवादास्पद मामले की जांच करते हुए एनआईए ने दावा किया कि महिलाओं को इस्लाम धर्म ग्रहण कराने के दो मामलों और पीएफआई के बीच एक मजबूत संबंध पाया गया है. हालांकि, एजेंसी ने अक्टूबर 2018 में अपनी जांच बंद कर दी, क्योंकि उसे ‘जबरन धर्मांतरण का ऐसा कोई सबूत’ नहीं मिला था, जिसके आधार पर मुकदमा चलाया जा सकता हो.

ईस्टर पर बम धमाके:—

मई 2019 में आठ पीएफआई कार्यालयों पर इस संदेह पर छापा मारा गया कि इस्लामिक संगठन तमिलनाडु तौहीद जमात (टीएनटीजे) के साथ ही इस संगठन की भी उससे पिछले माह श्रीलंका में ईस्टर पर बम विस्फोटों को अंजाम देने वाले मास्टरमाइंड्स को कट्टरपंथी बनाने में कुछ भूमिका हो सकती है.

पीएफआई पर प्रतिबंध की कवायद में जुटी एजेंसियां

कई संवेदनशील मामलों में एक ‘साजिशकर्ता’ और ‘वित्तपोषक’ के तौर पर पीएफआई की कथित भूमिका को लेकर संगठन पर प्रतिबंध लगाने की मांग उठती रही है.

2019 में, उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के कुछ हिस्सों में सीएए के विरोध प्रदर्शनों में संगठन की कथित भूमिका को लेकर पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी.

एनआईए ने भी 2017 में एमएचए को भेजी एक विस्तृत रिपोर्ट में इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी. रिपोर्ट में दावा किया गया था कि पीएफआई ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक खतरा’ है और केरल के मलप्पुरम स्थित एक मजहबी शिक्षा केंद्र सत्य सरानी जैसे संगठनों का उपयोग करके ‘जबरन धर्मांतरण’ की मुहिम चला रहा है, खासकर अथिरा नांबियार और अखिला अशोकन समुदाय के बीच.

अपनी रिपोर्ट में एजेंसी ने यह भी कहा था कि उसे पीएफआई पर ‘ऐसे संस्थान चलाने का संदेह है जहां युवाओं को आतंकवाद की राह पर धकेला जाता है.’ साथ ही जोड़ा कि वालंटियर्स को ‘देसी बम बनाने में प्रशिक्षित’ किया जाता है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि केरल की एक स्पेशल एनआईए कोर्ट ने कैसे 2016 में पीएफआई के 21 सदस्यों को 2013 में कन्नूर में एक आतंकी प्रशिक्षण शिविर लगाने के मामले में आतंकवाद के आरोपों में दोषी ठहराया था.

एनआईए के डोजियर में चार मामले शामिल थे:—केरल के इड्डुकी में पीएफआई सदस्यों की तरफ एक प्रोफेसर की हथेली काटना, बेंगलुरु में एक आरएसएस नेता की हत्या में पीएफआई सदस्य की भूमिका, इस्लामिक स्टेट अल-हिंद मॉड्यूल की दक्षिण भारत के शहरों को निशाना बनाने की एक साजिश का हिस्सा होना और कन्नूर में सिमी ट्रेनिंग कैंप से बम, आईईडी और तलवारें मिलना.

एनआईए के एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने पीएफआई के डोजियर के आधार पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी. फिलहाल यह अनुरोध एमएचए के पास लंबित है.’

हालांकि, पीएफआई के एक प्रवक्ता ने कई एजेंसियों द्वारा संगठन के खिलाफ लगाए गए आरोपों को ‘निराधार और हास्यास्पद’ करार दिया और दावा किया कि मामले ‘मामले संगठन को जानबूझकर निशाना बनाने की कोशिश’ का हिस्सा हैं.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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