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Sunday, 5 May, 2024
होमदेशएक से ज्यादा बीवी वालों में सिर्फ मुसलमान नहीें, कई समुदाय शामिल, ट्रेंड भी गिरा: रिसर्च

एक से ज्यादा बीवी वालों में सिर्फ मुसलमान नहीें, कई समुदाय शामिल, ट्रेंड भी गिरा: रिसर्च

एनएफएचएस-5 (2019-2021) सर्वेक्षण में शामिल विवाहित भारतीय महिलाओं में से केवल 1.4% ने कहा कि उनके पति की दूसरी पत्नी हैं. जबकि आदिवासी बहुल जिलों में यह प्रथा अधिक प्रचलित है.

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नई दिल्ली: समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर अटकलों के कारण पिछले कुछ महीनों में बहुविवाह राजनीतिक चर्चा का विषय बन गया हैं. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि भारत में यह प्रथा दुर्लभ है – इतना ही नहीं 2019-2021 में सर्वेक्षण में शामिल विवाहित भारतीय महिलाओं में से केवल 1.4 प्रतिशत ने कहा कि उनके पति की दूसरी पत्नी हैं.

जून 2022 में मुंबई स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज (IIPS) द्वारा प्रकाशित एक रिसर्च के अनुसार, भारत ने सभी धर्मों और जनसांख्यिकी में बहुविवाह की घटनाओं में गिरावट देखी है. नवीनतम एनएफएचएस-5 (2019-21) और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के कई दौरों में एकत्रित प्रतिक्रियाओं के आधार पर यह दावा किया गया है.

संक्षेप में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि ‘सबसे गरीब’ और ‘अशिक्षित’ परिवारों के अलावा, आदिवासी बहुल जिलों में एक समय में एक से अधिक पति-पत्नी के विवाह की प्रथा अधिक प्रचलित है. लेखक – हरिहर साहू, आर. नागराजन और चैताली मंडल – NFHS-5 डेटा का उपयोग यह स्थापित करने के लिए करते हैं कि बहुविवाह की घटनाएं भारत में अनुसूचित जनजातियों (ST) के सदस्यों में सबसे अधिक हैं.

राष्ट्रीय औसत 1.4 प्रतिशत (एनएफएचएस-5) की तुलना में बहुविवाह की दर एसटी में 2.4, एससी में 1.5, ओबीसी में 1.3 और अन्य में 1.2 हैं.

एसटी के बीच भी, संख्या एनएफएचएस-3 (2005-06) में 3.1 प्रतिशत से घटकर एनएफएचएस-4 (2015-16) में 2.8 प्रतिशत और एनएफएचएस-5 (2019-21) में 2.4 प्रतिशत हो गई है.

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रिसर्च में कहा गया कि “भारत में मुसलमानों के अलावा किसी भी समुदाय के लिए बहुपत्नी विवाह गैरकानूनी है, लेकिन भारतीय समाज के कुछ वर्गों में अभी भी इसका चलन जारी है.” इसमें कहा गया है कि 2019-21 में भारत में बहुपत्नी विवाह का प्रचलन काफी कम – 1.4 प्रतिशत था, और समय के साथ इसमें और गिरावट आई.

रिसर्च एनएफएचएस प्रश्नावली में बहुविवाह पर एक प्रश्न के जवाबों पर आधारित है. राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के एक भाग के रूप में, विवाहित महिलाओं से पूछा गया कि क्या उनके पतियों की एक से अधिक पत्नियां हैं.

सकारात्मक प्रतिक्रिया देने वाली महिलाओं का प्रतिशत 2005-06 (एनएफएचएस-3) में 1.9 से घटकर 2015-16 (एनएफएचएस-4) में 1.6 हो गया और अंततः 2019-21 (एनएफएचएस-5) में 1.4 हो गया था.

सरल शब्दों में, 2005-06 में, प्रत्येक 50 महिलाओं में से लगभग एक ने बहुपत्नी विवाह में होने की बात स्वीकार की. 2019-21 तक यह संख्या घटकर प्रति 70 महिलाओं में से एक हो गई. एनएफएचएस-5 उन महिलाओं के लिए भी डेटा प्रदान करता है, जिनकी शादी 2015-18 के बीच हुई थी, और उनमें से 1 प्रतिशत भी बहुपत्नी विवाह में नहीं थीं.

रिसर्च के अनुसार, “बहुपत्नी विवाह उन महिलाओं में अधिक प्रचलित था, जिनके पास उच्च शैक्षिक योग्यता रखने वालों की तुलना में कोई औपचारिक शिक्षा नहीं थी.”

एक बहुपत्नी संबंध वह है जिसमें एक व्यक्ति एक ही समय में दो या दो से अधिक लोगों से विवाह करता है.


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हिंदू, मुस्लिम धर्म में बहुविवाह 

रिसर्च में आगे बताया गया है कि बहुविवाह की घटनाओं में हिंदुओं, मुस्लिमों, ईसाइयों और बौद्धों जैसे अधिकांश धर्मों के अनुयायियों में गिरावट आई है, जबकि सिखों के मामले में मामूली वृद्धि देखी गई है – 2019-21 में 0.5 से 2005-06 में 0.3 की.

भारत का मुस्लिम पर्सनल लॉ बहुविवाह को मान्यता देता हैं. यानी एक मुस्लिम व्यक्ति को चार पत्नियां रखने की इजाजत है. हालांकि, डेटा से पता चलता है कि यह प्रथा भारतीय मुसलमानों के बीच प्रचलित नहीं है.

एनएफएचएस-5 के आंकड़ों के अनुसार, केवल 1.9 प्रतिशत मुस्लिम महिलाओं ने कहा कि उनके पतियों की एक से अधिक पत्नियां थीं, जबकि 1.3 प्रतिशत हिंदू महिलाओं ने 2019-21 में बहुविवाह में शामिल होने की बात स्वीकार की थी.

Illustration: Prajna Ghosh | ThePrint
चित्रण: प्रजना घोष | दिप्रिंट

चूंकि मुस्लिम महिलाओं की आबादी हिंदू महिलाओं की तुलना में कम से कम चार-पांच गुना कम है, इसलिए इस बात की संभावना है कि बहुपत्नी विवाह में रहने वाली हिंदू महिलाएं पूर्ण रूप से मुस्लिम महिलाओं से आगे निकल सकती हैं.

2005-06 में यह अंतर व्यापक था, जब 1.8 प्रतिशत हिंदू महिलाओं की तुलना में 2.6 प्रतिशत मुस्लिम महिलाओं ने बहुविवाहित रिश्ते में रहना स्वीकार किया.

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह अंतर क्षेत्रीय विषमता के अधीन भी है.

उदाहरण के लिए, असम – जहां मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कथित तौर पर पिछले साल मई में कहा था कि समान नागरिक संहिता ‘मुस्लिम बेटियों’ के लिए ‘संरक्षण’ के रूप में कार्य करेगी, वहां हिंदू और मुस्लिम महिलाओं के बीच सबसे बड़ा अंतर था, जिन्होंने 2019-21 में बहुविवाहित रिश्ते में होने की बात स्वीकार की थी. एनएफएचएस-5 के आंकड़ों के अनुसार, असम में हिंदू महिलाओं में बहुविवाह की दर लगभग 1.8 प्रतिशत थी, जबकि मुस्लिम महिलाओं में यह दर 3.6 प्रतिशत थी.

अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जहां यह अंतर व्यापक था, उनमें ओडिशा, पश्चिम बंगाल, दिल्ली और केरल शामिल हैं.

Illustration: Prajna Ghosh | ThePrint
चित्रण: प्रजना घोष | दिप्रिंट

चार राज्य ऐसे भी थे जहां मुस्लिम महिलाओं की तुलना में बहुपत्नी संबंध में रहने वाली हिंदू महिलाओं का अनुपात अधिक था.

तेलंगाना में, यह हिंदू महिलाओं के मामले में 3 प्रतिशत था, जबकि मुस्लिम महिलाओं के मामले में यह 2.1 प्रतिशत था. छत्तीसगढ़ (2 प्रतिशत बनाम 1.6 प्रतिशत), तमिलनाडु (2 प्रतिशत बनाम 1.7 प्रतिशत) और आंध्र प्रदेश (1.9 प्रतिशत बनाम 1.8 प्रतिशत) अन्य तीन राज्य थे जिन्होंने समान पैटर्न की सूचना दी.

रिसर्च पेपर के अनुसार आय में वृद्धि के साथ बहुविवाह की प्रथा समाप्त हो जाती है. भारत में सबसे गरीब परिवारों में बहुविवाह की दर 2.4 प्रतिशत थी, जबकि सबसे अमीर घरों में यह 0.5 प्रतिशत थी.

Illustration: Prajna Ghosh | ThePrint
चित्रण: प्रजना घोष | दिप्रिंट

बहुविवाह और क्षेत्रीय विषमता

कुल मिलाकर, लगभग 18 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश थे जहां बहुविवाह का प्रचलन राष्ट्रीय औसत 1.4 से ऊपर था.

मेघालय ने बहुविवाह के उच्चतम आंकड़े की सूचना दी, राज्य में 6.1 प्रतिशत महिलाओं ने स्वीकार किया कि उनके पतियों की दूसरी पत्नी थीं.

Illustration: Manisha Yadav | ThePrint
चित्रण: मनीषा यादव | दिप्रिंट

मिजोरम और सिक्किम में, जहां आदिवासी क्रमशः 95 प्रतिशत और 33.8 प्रतिशत आबादी हैं वहां बहुविवाह की दर 4.1 प्रतिशत और 3.9 प्रतिशत थी.

अरुणाचल प्रदेश में, यह 3.7 प्रतिशत था, इसके बाद तेलंगाना (2.9 प्रतिशत) और असम, कर्नाटक और पुडुचेरी प्रत्येक में 2.4 प्रतिशत था.

गोवा में बहुविवाह की दर सबसे कम थी – बमुश्किल 0.2 प्रतिशत, या 500 महिलाओं में से 1 ने कहा कि उनके पति की एक से अधिक पत्नि थीं. सूची के निचले सिरे पर गोवा के साथ शामिल होने वालों में हरियाणा (0.3 प्रतिशत), जम्मू और कश्मीर (0.4 प्रतिशत), गुजरात (0.5 प्रतिशत), पंजाब (0.5 प्रतिशत), राजस्थान, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश (0.6 प्रतिशत प्रत्येक) थे.

रिसर्च ब्रीफ में उन 40 जिलों को भी सूचीबद्ध किया गया है जहां बहुपत्नी विवाह का प्रचलन अधिक था, मेघालय में पूर्वी जयंतिया हिल्स जिले में सबसे अधिक रिपोर्ट की गई – जिले में सर्वेक्षण में शामिल हर पांच महिलाओं में से लगभग एक ने बहुपत्नी विवाह में होने की बात स्वीकार की.

Illustration: Prajna Ghosh | ThePrint
चित्रण: प्रजना घोष | दिप्रिंट

बहुविवाह की दर अरुणाचल प्रदेश के क्रा दादी जिले में 16.4 प्रतिशत थी, इसके बाद मेघालय में पश्चिम जयंतिया हिल्स (14.5 प्रतिशत) थी. मेघालय में पश्चिम खासी हिल्स और अरुणाचल प्रदेश में पूर्वी कामेंग में भी बहुविवाह की दर 10 प्रतिशत से अधिक बताई गई है.

रिसर्च में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि इस मुद्दे पर काम करने वाले नीति निर्माताओं को यह पता होना चाहिए कि भारत में यह प्रथा कम है और इसमें और गिरावट आ रही है.

“सामाजिक, आर्थिक और जनसांख्यिकीय विशेषताओं के आधार पर किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले, किसी को यह ध्यान रखना होगा कि भारत में बहुविवाह का प्रचलन कम है और यह कम होता जा रहा है.” इसका निष्कर्ष यह निकालता है कि जनसांख्यिकीय स्वास्थ्य और लिंग संबंधी परिणाम बहुविवाह को और जांच की आवश्यकता है.

(संपादन: अलमीना खातून)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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